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शुक्रवार, 20 जून, 2025
होमफीचररोहू, मृगल, पंगास, झींगा—दूध-दही की पहचान रखने वाला हरियाणा, अब मछली पालन में भी अव्वल

रोहू, मृगल, पंगास, झींगा—दूध-दही की पहचान रखने वाला हरियाणा, अब मछली पालन में भी अव्वल

हरियाणा, जिसे पारंपरिक रूप से दूध और दही के लिए जाना जाता है, अब पूरे देश में हर एकड़ ज़मीन पर औसतन सबसे ज़्यादा मछली पैदा करने वाले राज्यों में दूसरे नंबर पर है.

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थकी हुई और मायूस सुमित्रा कुमारी हरियाणा के करमसाना गांव में अपने घर में बैठी मोबाइल पर स्क्रॉल कर रही थीं. गेहूं, बाजरा और सरसों की फसलें बर्बाद हो चुकी थीं. यहां तक कि पैंडेमिक में कार्टन बनाने की यूनिट भी बंद हो गई थी.

तभी उन्हें एक आइडिया आया.

मोबाइल स्क्रीन पर एक यूट्यूब वीडियो चल रहा था—‘हरियाणा में मछली पालन से किसानों को बड़ा फायदा.’ सुमित्रा भागकर अपने पति के पास गईं.

यह बात 2021 की है.

कुछ ही समय बाद सुमित्रा और राजेंद्र ने सफेद झींगा (श्रीम्प) पालन शुरू कर दिया. आज सुमित्रा हरियाणा की ‘व्हाइट श्रिम्प क्वीन’ बन चुकी हैं. हर सीजन में वह औसतन 30 लाख रुपये की मछली बेचती हैं. उनका बेटा जयपुर में बीबीए कॉलेज में पढ़ता है और यह कपल अब दो मंजिला घर में रहता है.

हरियाणा में खारे पानी की वजह से सामान्य खेती करना चुनौती भरा है, लेकिन यही पानी झींगा पालन के लिए आदर्श वातावरण बना रहा है. “यह खारा पानी पहले अभिशाप था, अब वरदान है,” सुमित्रा ने अपने 15 एकड़ के झींगा फार्म को देखते हुए गर्व से कहा.

हरियाणा का नाम अक्सर कुश्ती, ओलंपियन नीरज चोपड़ा, दूध-दही, छाछ, बासमती चावल और काचरी की चटनी से जोड़ा जाता है. अब मछली पालन इस सूची में नई पहचान बन रहा है. मोदी सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना से हज़ारों किसान नई आमदनी का जरिया खोज रहे हैं और अपनी किस्मत बदल रहे हैं. राज्य के 5,000 से ज्यादा किसान इस उद्योग का हिस्सा बन चुके हैं. दूध बेचने वाले, कर्ज़ में डूबे किसान और भूमिहीन दलित अब इसमें जुड़ रहे हैं. हिसार, सिरसा, भिवानी, रोहतक, करनाल से निकल रही कतला, रोहु, मृगल, पंगास, झींगा और सिंगही अब जापान, अमेरिका, चीन और भारत के अलग-अलग बाज़ारों तक पहुंच रही हैं. राज्य अब देश में प्रति यूनिट क्षेत्र में औसत वार्षिक मछली उत्पादन में दूसरे स्थान पर है.

हरियाणा उत्तर भारत में अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी पंजाब से भी अधिक झींगा उत्पादन कर रहा है | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

हरियाणा का वार्षिक मछली उत्पादन 11,000 किलो/हेक्टेयर है, जबकि राष्ट्रीय औसत 3,000-5,000 किलो/हेक्टेयर है. खासतौर से शाकाहारी जनसंख्या वाला और समुद्र से दूर यह राज्य मत्स्य पालन के लिए आदर्श नहीं माना जाता, लेकिन अब किसान गेहूं, बाजरा और सरसों से आगे की सोच रहे हैं.

“हर दिन हमारे पास कम से कम चार-पांच किसान आते हैं जो मछली पालन की तकनीक के बारे में पूछते हैं,” पंचकूला में मत्स्य पालन विभाग के जिला कार्यालय में बैठे निदेशक श्रीपाल राठी ने कहा. वह प्रेजेंटेशन पर साइन कर रहे हैं, किसानों के आवेदन देख रहे हैं, कर्मचारियों की मूल्यांकन रिपोर्ट और मछली से जुड़ी नई योजनाओं के दस्तावेज़ निपटा रहे हैं.

आमतौर पर जिलाधिकारी का दफ्तर सबसे ज्यादा व्यस्त होता है, लेकिन हरियाणा में मत्स्य पालन विभाग भी उतना ही व्यस्त है. देर रात मीटिंग, फील्ड विज़िट, किसानों से मुलाकात, डेटा खोजना, मार्केट ट्रेंड पढ़ना और नीतियों पर काम करना—यह विभाग बहुत सक्रिय है.

उत्तर भारत में झींगा उत्पादन में हरियाणा अब अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी पंजाब से आगे निकल चुका है. सिर्फ सिरसा में ही 1,700 एकड़ भूमि पर झींगा पालन हो रहा है, जबकि पूरे पंजाब में लगभग 1,300 एकड़ भूमि ही इसके लिए इस्तेमाल हो रही है.

हरियाणा के सिरसा में एक झींगा फार्म में | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

पंजाब के एक सफेद झींगा किसान ने कहा, “हरियाणा सरकार ने पंजाब सरकार से ज्यादा योजनाएं दी हैं.”

मछली पालन का सुल्तान

हरियाणा में आज जो मछली व्यापार तेजी से बढ़ रहा है, उसके पीछे कुछ लोगों के व्यक्तिगत प्रयोग और कई बार सामाजिक जोखिम भी शामिल हैं, जिसे सुल्तान सिंह चौधरी ने दशकों पहले उठाए थे. बात 1982 की है. करनाल जिले के बुटाना गांव में उस समय सामुदायिक तालाबों का इस्तेमाल सिर्फ मवेशियों को नहलाने के लिए होता था. लेकिन तब 19 साल के सुल्तान के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. उन्होंने कुछ “मछली के बीज” खरीदे.

उन्हें पता था कि अगर उन्होंने गांव वालों को बताया कि वो गांव के तालाब में मछली पालन शुरू करने जा रहे हैं, तो लोग नाराज़ हो जाएंगे. इसलिए गर्मी की एक रात, जब पूरा गांव सो रहा था, सुल्तान ने चुपचाप गांव के एक तालाब में “मछली के बीज” डाल दिए. कुछ महीनों बाद उनके पास बेचने के लिए कई किस्म की मछलियां थीं.

“ये गांव के तालाब गांव के लिए एक पैसा भी नहीं बना पा रहे थे. मैंने अपने गांव का पंचायत तालाब 1984 में 500 रुपये किराए पर लिया और 7,000 रुपये के बीज खरीदे. एक साल से ज़्यादा वक्त बाद मैंने उस तालाब में मछली पकड़ना शुरू किया और मेरी हैरानी की कोई सीमा नहीं रही जब मैंने मछली 1.5 लाख रुपये से ज़्यादा में बेची,” सुल्तान ने याद करते हुए कहा.

आज सुल्तान और उनके बेटे नीरज, 30 एकड़ के फार्म के परिसर में बने एक मंजिला ऑफिस में बैठते हैं, और मछली पालन का एक बड़ा कारोबार संभालते हैं, जिसकी सालाना कमाई एक करोड़ रुपये तक पहुंचती है. और हरियाणा सरकार उन्हें अपनी कामयाबी की मिसाल के तौर पर पेश करती है. हरियाणा सरकार की मत्स्य पालन वेबसाइट पर उनका नाम सबसे ऊपर है. ‘हरियाणा के मछली पालन के सुल्तान’ के नाम से मशहूर सुल्तान ने 2024 में प्रति एकड़ पांच लाख रुपये से ज़्यादा मुनाफा कमाया.

सुल्तान (नारंगी शर्ट) और उनके बेटे नीरज करनाल के बुटाना में अपने मछली फार्म पर। | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

बुटाना स्थित उनके ऑफिस में 10×12 की दीवार पर उनके द्वारा प्राप्त सभी पुरस्कार और सम्मान लगे हुए हैं— पद्म श्री, जगजीवन राम किसान अवार्ड, इंटरनेशनल क्वालिटी समिट अवार्ड, भारत सरकार का बेस्ट इनक्यूबेटी अवार्ड, हरियाणा सरकार का बेस्ट इनोवेटिव फार्मर अवार्ड, आदि.

सुल्तान एक पुराने घूमने वाली कुर्सी पर बैठे हैं, और एक कर्मचारी को देख रहे हैं जो ‘फिश बाइट’ नाम की प्रोसेस्ड फूड कंपनी के नए पर्चे काट रहा है. यह कंपनी उन्होंने और उनके बेटे नीरज ने तीन साल पहले शुरू की थी.

“फिश काली मिर्च, फ्रोजन रोहु फिश, फिश टिक्का, हमारे पास सब कुछ है। जब मछली नहीं, तो हम चिकन अचारी, सीख कबाब बेचते हैं,” सुल्तान ने कहा और सामने रखी फिश काली मिर्च का एक टुकड़ा खाया. एक करारी पंगास जो मुंह में घुल जाती है.

“मैंने इस काम को कभी नहीं छोड़ा, मछली अब मेरी ज़िंदगी है. मैंने किया और अब मेरा बेटा भी कर रहा है,” उन्होंने बेटे की ओर मुस्कराते हुए देखा.

62 वर्षीय सुल्तान तालाबों के बीच बनी ज़मीन पर लगे अमरूद, जामुन, चीकू के पेड़ों को पानी देते मज़दूरों को देखते हुए वहां घूमते हैं. फिर वे एक टीन शीट से बने लंबे आयताकार कमरे में पहुंचते हैं. उसमें कुछ खिड़कियां और दो निकास द्वार हैं. दोपहर की शांति को पानी की लगातार बहने की आवाज़ तोड़ती है. “जे है आरएएस (RAS),” सुल्तान की आवाज़ गूंजी.

यह इमारत RAS, यानी रिसर्कुलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम, की मेजबानी करती है— एक जल शुद्धिकरण तकनीक, जो हरियाणा के मछली किसानों के लिए तेज़ी से विकास का जरिया बनी है. राज्य ने 2020 में मीठे पानी की खेती में 14 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की. उस साल लगभग 2.3 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हुआ. इस कमरे में सुल्तान ने लगभग छह या सात RAS सिस्टम लगाए हुए हैं. पानी में ध्यान से देखने पर हज़ारों काले-भूरे रंग की पंगास मछलियां तैरती दिखती हैं—मध्यम से लंबी कद की मछलियों की किस्म.

करनाल के बुटाना में सुल्तान का मछली फार्म. सुल्तान नवीन कृषि तकनीकों के बड़े समर्थक हैं. वह पहली बार आरएएस के संपर्क में करीब 26 साल पहले अमेरिका और यूरोप की अपनी एक यात्रा के दौरान आए थे | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

सुल्तान नवाचार युक्त खेती के बड़े समर्थक हैं. उन्होंने पहली बार RAS के बारे में लगभग 26 साल पहले अमेरिका और यूरोप की यात्रा के दौरान सुना था. हालांकि, वे इसे 2014 में ही अपने राज्य में ला सके, जब हरियाणा में ‘ब्लू रिवॉल्यूशन’ आया.

मछली के लिए ईंधन

शाकाहारी राज्य हरियाणा में मछली व्यापार की शुरुआत एक ऐसा मौज़ू है जिसे बिजनेस स्कूलों में पढ़ाया जा सकता है. जब ‘ब्लू रिवॉल्यूशन’ यानी मत्स्य क्रांति की शुरुआत हो रही थी, तब ज़मीन पर मौजूद अधिकारियों के पास शुरुआती दिनों की कई कहानियां हैं. पारंपरिक किसानों तक मछली पालन को पहुंचाना एक संघर्ष था.

मत्स्य पालन अधिकारी रवि बखला ने दिप्रिंट को बताया, “हम शाकाहारी हैं, लेकिन हर दिन मछली से जुड़ा काम करना पड़ता है. हमें हमेशा पता था कि मछली हरियाणा की अर्थव्यवस्था को कितना लाभ पहुंचा सकती है. मुझे याद है जब हम पहली बार करनाल के एक किसान के पास गए थे, तो उनका परिवार पूरी तरह से इसके खिलाफ था. लेकिन जब किसानों ने दूसरों की तरक्की देखी, तो वे भी इसका हिस्सा बनना चाहते थे.”

विभाग ने किसानों को मत्स्य पालन शुरू करने के लिए ज़मीन दिलवाने में मदद की और सामुदायिक तालाब किराए पर दिए.

साथ ही विभाग ने सोशल मीडिया पर भी अपनी पकड़ मज़बूत की. हरियाणा मत्स्य विभाग के यूट्यूब, इंस्टाग्राम और फेसबुक हैंडल पर सफलता की कहानियां और मत्स्य पालन से जुड़े समझाने वाले वीडियो भरे पड़े हैं, जो लोगों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित करते हैं। विभाग ने दीवारों पर चित्र बनवाए, संदेश फैलाए. और किसानों के बीच आपसी बातचीत ने भी योजना को लोकप्रिय बनाने में मदद की. ‘स्वास्थ्य के लिए मछली, समृद्धि के लिए मछली’ जैसे पोस्टर लगाए गए. और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMYS) के साथ, हरियाणा में मत्स्य पालन ने नई ऊंचाइयां छू लीं.

हरियाणा के मत्स्य पालन विभाग के निदेशक श्रीपाल राठी पंचकूला में अपने जिला कार्यालय में. राठी एक व्यस्त व्यक्ति हैं. उन्होंने कहा, “हमारे पास हर दिन कम से कम चार से पांच किसान मछली पालन तकनीक के बारे में पूछताछ करने आते हैं.” | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

सिरसा के एक दलित किसान कुलपदीन सिंह, जो शुरुआत में नुकसान झेल चुके थे, को सरकार की सब्सिडी की वजह से बड़ा झटका नहीं लगा. सिंह का परिवार अब गांव में सम्मानित माना जाता है. “अब लोग हमसे पैसे उधार मांगते हैं,” उन्होंने कहा.

‘ब्लू रिवॉल्यूशन – इंटीग्रेटेड डिवेलपमेंट एंड मैनेजमेंट फिशरीज़’ या ‘ब्लू रिवॉल्यूशन स्कीम’ की घोषणा 2015 में भारत भर में मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए की गई थी. योजना शुरू होने के बाद, जो मत्स्य पालक पहले संशय में थे, वे बड़ी संख्या में सामने आए, तालाब खुदवाए और मीठे पानी की मत्स्य पालन शुरू की. पीएमएमएसवाई योजना ने इस पहल को 20,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त समर्थन दिया.

पिछले पांच वर्षों में, मोदी सरकार ने मत्स्य पालकों को सब्सिडी दी है—दलित और महिला किसानों को 60 प्रतिशत और पुरुष किसानों को 40 प्रतिशत, जिससे वे ढांचे और मज़दूरी की लागत निकाल सकें. इसके अलावा हरियाणा सरकार भी सब्सिडी देती है.

आधुनिक मछली पालन तकनीकों की शुरुआत ने भी बड़ी भूमिका निभाई. बायोफ्लॉक तकनीक ने किसानों को मछली को खाना खिलाने की ज़िम्मेदारी से राहत दी. यह तकनीक फीड कंजंपशन रेशियो को कम कर, बायोफ्लॉक से भोजन का स्रोत बढ़ा देती है. और आरएएस (RAS) तकनीक ने पानी को दोबारा उपयोग करने और रीसायकल करने में मदद की. मौसम चाहे जैसा भी हो, मत्स्य पालक अधिक उत्पादन करने में सक्षम रहे.

पिछले पांच सालों में मोदी सरकार ने मछली पालकों को सब्सिडी दी है – दलित और महिला किसानों को 60 प्रतिशत और पुरुष किसानों को 40 प्रतिशत, ताकि उन्हें बुनियादी ढांचे और श्रम की लागत को कवर करने में मदद मिल सके | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

‘गहन मत्स्य विकास कार्यक्रम’ और ‘राष्ट्रीय मत्स्य बीज कार्यक्रम’ जैसे कार्यक्रमों ने किसानों को संसाधन और प्रशिक्षण देकर समर्थन दिया, जिससे राज्य मीठे पानी की मछलियों के बीजों में आत्मनिर्भर बन सका.

भिवानी के गरवा गांव में ‘इंटीग्रेटेड एक्वापार्क एक्सीलेंस सेंटर’ और सिरसा, रोहतक, फतेहाबाद, हिसार जैसे जिलों में ‘एक्वाटिक एग्रीकल्चर क्लस्टर प्रोजेक्ट’ जैसी परियोजनाओं की स्थापना ने मत्स्य पालन को आधुनिक बनाने के हरियाणा के संकल्प को दर्शाया.

राज्य ने अब सजावटी मछली पालन की भी शुरुआत की है, जिसमें वे स्थानीय लोगों के लिए मछलियां तैयार कर रहे हैं जो उन्हें एक्वेरियम में रखना चाहते हैं.

विफलताएं और खतरा

हरियाणा का मछली पालन का प्रयोग सिर्फ सफलता की कहानियों तक सीमित नहीं है. यह सैकड़ों लोगों के लिए एक नया क्षेत्र है, जिन्हें कई बार वैश्विक कारणों से नुकसान भी उठाना पड़ा है. फिर भी वे जोखिम उठाने को तैयार हैं.

सिंह ने 2020-21 के सीज़न में 1.5 एकड़ के तालाब से 10 लाख रुपये कमाए थे. लेकिन 2022-23 में वैश्विक झटकों की वजह से सिंह और उनके भाइयों को करीब 70 लाख रुपये का नुकसान हुआ. अगले साल उन्होंने झींगा पालन नहीं किया. लेकिन इस साल, बेहतर दामों की उम्मीद में कुलदीप ने फिर से मछली पालन शुरू करने का फैसला किया.

उन्होंने कहा, “मैं अब भी पुराने घाटे से जूझ रहा हूं. लेकिन हमें जोखिम तो लेना ही पड़ेगा.”

जब सुल्तान ने हरियाणा में ‘कावई’ नाम की मछली की किस्म लाने की कोशिश की, जो मुख्यतः पश्चिम बंगाल में खाई जाती है, तो वह नाकाम रहे। मांग नहीं थी. लेकिन उन्होंने रास्ता बदला और रोहु, कतला और मृगल जैसी भारतीय मेजर कार्प पर अपना ध्यान केंद्रित किया.

मछली पालन में हरियाणा का यह नया प्रयोग सिर्फ़ कामयाबी की कहानियों तक नहीं सिमटा है. यह सैकड़ों लोगों के लिए नया रास्ता है, जिसमें कई बार दुनिया में होने वाले बदलावों की वजह से इन्हें नुकसान भी हुआ है | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

शुरुआती सफलता से आत्मविश्वास पाकर सुमित्रा और राजेंद्र ने प्रयोग करने की ठानी. 2021-22 के बीच इस कपल ने एक ही साल में दो बार झींगा पालन करने का फैसला किया. जल्दी ही उन्हें एहसास हुआ कि यह प्रक्रिया काफी थकाने वाली है और लंबे समय तक टिकाऊ नहीं.

‘ट्रायल एंड एरर’ यानी कोशिश और गलती किसानों की कहानी का अहम हिस्सा रही है.

जैसे-जैसे उन्नत तकनीकों की मदद मिली, विभिन्न गांवों के किसान झींगा पालन की ओर बढ़े. लेकिन 2022-23 में सफेद झींगे के वैश्विक बाज़ार में गिरावट ने उनकी कमाई को झटका दिया. उन्हें नुकसान हुआ और मुनाफे की दर कम हो गई.

सिरसा के किसान मनीष कुमार ने बताया कि कोविड, रूस-यूक्रेन युद्ध और इक्वाडोर पर बढ़ती निर्भरता ने भारतीय झींगा बाज़ार को प्रभावित किया. कुमार पहले आंध्र प्रदेश में एक फिश सीड डिस्ट्रीब्यूटर के साथ काम कर चुके हैं. इक्वाडोर सफेद लेग झींगा का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है और अमेरिका के पास होने से उसे स्थायी लाभ मिलता है.

कुमार ने कहा, “सफेद झींगे का बाज़ार पूरी तरह वैश्विक है, देश में इसकी खपत पांच प्रतिशत से भी कम है. इस साल हमें डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन के तहत बेहतर व्यापार शुल्क की उम्मीद है ताकि मछली उद्योग फल-फूल सके.”

सफेद झींगा, कैश काउ

कमरे के एक कोने में एक सफेद थर्मोकोल बॉक्स रखा था. इसमें 60 डायरीज़ रखी हैं. सुमित्रा एक डायरी उठाकर उसे पलटती हैं. “यह सारा हमारा डाटा है,” वे कहते हुए दूसरी डायरी खोलती हैं. इन डायरीज़ में 15 एकड़ की सफेद झींगा फार्म से जुड़ी जानकारी दर्ज है — जैसे भोजन का समय, मात्रा और अन्य विवरण. सफेद झींगा अब उनकी ‘कैश काउ’ बन चुका है. यह स्थिर आय का भरोसेमंद जरिया है. पश्चिम हरियाणा में सफेद झींगा क्रांति चल रही है.

हरियाणा के सिरसा जिले में अपने 15 एकड़ के झींगा फार्म में सुमित्रा कुमार और राजेंद्र कुमार | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

दो आयताकार खिड़कियों में से एक से बाहर देखते हुए, राजेन्द्र अपने स्मार्टफोन में एक ऐप खोलते हैं — पॉन्डलॉग्स V2, जो रीयल-टाइम तालाब डेटा मैनेजमेंट टूल है और उन्हें झींगे की जानकारी ट्रैक करने में मदद करता है.

ज़र फार्म पर बनाए हुए राजेंद्र एक चौकी पर बैठे हुए कहते हैं, “झींगों की वजह से हमने अच्छा कमाया है, लेकिन इनकी देखभाल भी बहुत ज़रूरी है. जैसे कोई सैनिक सीमा की रक्षा करता है.”

बाहर का सीन एक रेगिस्तान के बीच एक नजरी बिंदु यानी लाइटहाउस जैसा लगता है. यह बिल्डिंग ऊंचाई पर बनाई गई है ताकि राजेंद्र और सुमित्रा 13 तालाबों पर लगातार निगरानी रख सकें.

उनकी सफलता की कहानी अब राजस्थान के सीमावर्ती गांवों तक पहुंच चुकी है, जहां जमीन सूखी और खारे पानी पर निर्भर है. अब आसपास के लोग भी सफेद झींगा पालन की कोशिश कर रहे हैं.

राजेंद्र गर्व से कहते हैं, “हमने अपने गांव में कई लोगों के लिए उदाहरण कायम किया है, कम से कम तीन लोग हमारे आसपास मछली पालन शुरू कर चुके हैं.”

झींगा पालन मुश्किल और समय-साध्य काम है. इसमें 24×7 निगरानी की ज़रूरत होती है. मजदूरों को पानी में ऑक्सीजन का सही प्रवाह और भोजन सुनिश्चित करना होता है. सुमित्रा और राजेंद्र के फार्म में हर दो तालाब के लिए एक मजदूर तैनात है.

अपने खेत पर सुमित्रा कुमार और राजेंद्र कुमार | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

साल 2020 में, इस जोड़े ने अपनी सारी बचत लगाकर लगभग 80 लाख रुपये निवेश किए, जिसमें सरकारी सब्सिडी भी शामिल थी. 2025 में, उन्हें लगभग 2 लाख रुपये प्रति एकड़ की आमदनी हुई. फिलहाल, उनके पास सफेद झींगा पालन के 15 एकड़ हैं.

सुमित्रा डायरी के पन्ने देखकर बताती हैं, “मांग इतनी ज़्यादा है कि खरीदार हमारे पास आकर ले जाते हैं. हमें मौके पर ही भुगतान हो जाता है.”

सफेद झींगा हरियाणा की मत्स्य पालन में ट्रंप कार्ड बन गया है. 2024-25 में, राज्य में 15,000 मीट्रिक टन से अधिक सफेद झींगा उत्पादन हुआ. 2020 और 2024 के बीच खारे पानी के मत्स्य पालन में क्षेत्र में 300 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हुई है.

साल 2024-25 में, सिरसा के मछुआरों ने इस किस्म के 4,000 मीट्रिक टन झींगा उगाए, जो कि जिले का लगभग 27 प्रतिशत या एक-तिहाई उत्पादन है.

सच में, सिरसा उन 17 मछली क्लस्टर्स की सूची में भी शामिल हुआ है जिन्हें 2025 में केंद्र सरकार ने घोषित किया. इस क्षेत्र को केंद्र सरकार का विशेष ध्यान मिलेगा.

सफ़ेद झींगा। | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

दूधवाले से लेकर रोहू, कतला तक

साधारण पीली शर्ट, काली जैरसी और चप्पल पहने हुए, हाथ में आईफोन लिए 29 साल के प्रवीन कुमार ने अपनी मछली फार्म पर काम कर रहे दो मज़दूरों को निर्देश दिए.

इन फार्मों में ज़्यादातर मज़दूर उत्तर प्रदेश और बिहार से आते हैं — ये दोनों राज्य पारंपरिक कृषि कार्यों के लिए हरियाणा और पंजाब में मज़दूर भेजते हैं. अब ऐसे मज़दूर बड़ी संख्या में हरियाणा के उन ज़िलों में आ रहे हैं जहां मछली पालन हो रहा है.

सहारनपुर, यूपी के जुबैर मलिक पिछले छह महीने से प्रवीन कुमार के फार्म पर अपने परिवार के साथ रह रहे हैं. वे हर महीने 20,000 रुपये कमाते हैं और अब तक अपना कर्ज़ चुका चुके हैं.

यूपी में वे सिलाई का काम करते थे. हरियाणा में उनकी ज़िम्मेदारी फार्म की देखभाल और मछलियों को खाना देने की है. उन्होंने बताया कि पहले वे रोज़ 10-12 घंटे काम करते थे, लेकिन अब का काम पहले के मुकाबले कम थकाने वाला है.

कुमार मछलियों की डिलीवरी को लेकर लगातार आ रही कॉल्स अटेंड करने में व्यस्त हैं. “अभी समय है, तैयार होंगी तो बता दूंगा,” उन्होंने कॉल काटते हुए कहा, फिर फोन दोबारा बज गया. उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे अक्टूबर-नवंबर का सीज़न नज़दीक आएगा, ऐसी कॉल्स और बढ़ेंगी.

कुमार पहले अपने गांव भूड (पंचकूला ज़िले) में दूध बेचते थे और छोटे स्तर पर खेती करते थे. चार साल पहले उनके कुछ दोस्तों ने मछली पालन का ज़िक्र किया. कुछ अतिरिक्त कमाई के इरादे से उन्होंने गांव से दूर अपने चाचा की एक एकड़ ज़मीन किराए पर ली. और इस तरह एक शाकाहारी गुज्जर परिवार ने मछली पालन में हाथ आज़माया.

फोटो: मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

आज कुमार आठ एकड़ में फैले तालाब से 17 लाख रुपये मुनाफा कमा रहे हैं. उन्होंने 2024 में 35,000 किलो मछली बेची और 2023 में 28,000 किलो. इस साल वे 20 लाख रुपये का मुनाफा होने की उम्मीद कर रहे हैं.

कुमार ने मछलियों को खाना डालते हुए कहा, “ये मुनाफे वाला धंधा है, तो क्यों ना करूं? पहले दूध बेचता था, उससे बहुत कम कमाई होती थी. इतने कम पैसे में परिवार की देखभाल करना मुश्किल था.”

जब वे दूध बेचते थे, तब हर महीने करीब 15 हज़ार रुपये कमाते थे, लेकिन अब वे हर साल लाखों रुपये कमा रहे हैं.

‘पराठे से ज्यादा स्वस्थ है मछली’

हरियाणा की लगभग 80 प्रतिशत आबादी की तरह प्रवीन कुमार भी मछली या नॉन-वेज नहीं खाते. लेकिन वे मछलियों को छूते हैं, उनके साथ तैरते हैं और जब व्यापारी फसल कटाई के समय आते हैं तो उनकी मदद करते हैं.

“मैं मछली नहीं खाता, लेकिन बेचने में कोई दिक्कत नहीं है,” प्रवीन ने कहा, जब उन्होंने नीलम कटारिया को पानी दिया, जो फार्म पर चक्कर खा रही थीं. नीलम कटारिया पिछले एक दशक से मत्स्य पालन अधिकारी के रूप में काम कर रही हैं. वे इस्कॉन की अनुयायी हैं और प्याज़-लहसुन तक नहीं खातीं. उनका काम किसानों से मिलना और डेटा इकट्ठा करना है. अब उनकी पोस्टिंग सचिवालय में हो रही है और वे इससे खुश हैं.

प्रवीन के फार्म से लौटते समय कटारिया ने ड्राइवर से गाड़ी रोकने और खिड़की खोलने को कहा, फिर उन्होंने उल्टी कर दी. “मुझे ठीक नहीं लग रहा,” उन्होंने कहा.

मत्स्य पालन विभाग में ज़्यादातर अधिकारी मछली नहीं खाते, और ना ही किसान. दो साल से विभाग में काम कर रहे मत्स्य अधिकारी संदीप कुमार ने कहा, “घर पर कोई नहीं जानता कि हम चिकन खाते हैं, मछली खाना तो जैसे अपराध है.”

हरियाणा के करनाल में सरकारी हैचरी के मैनेजर दिलबाग सिंह। | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

संदीप कुमार और उनकी साथी सिमरनजीत हरियाणा में मछली व्यापार से होने वाले मुनाफे को समझते हैं और इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते. उन्होंने सिरसा में व्हाइट श्रिम्प फार्मिंग का विकास देखा है और इस उद्योग को अच्छे से जानते हैं. वे भी भविष्य में खुद का व्यवसाय शुरू करने का इरादा रखते हैं.

प्रवीन कुमार की मां ने उन्हें यह व्यापार शुरू करने की इजाज़त इसलिए दी क्योंकि उन्हें लगा कि उनका बेटा बहुत सी मछलियों को जीवन देने जा रहा है. सुल्तान चौधरी ने अपने परिवार को प्रोटीन की अहमियत बताकर मना लिया.

“हरियाणा के लोगों को जो पैसा आता है, वो पसंद है, मछली नहीं,” सुल्तान के बेटे नीरज ने कहा.

सुल्तान का परिवार उनके पहले 15 साल के मत्स्य पालन के दौरान मछली नहीं खाता था. धीरे-धीरे उम्र के साथ उन्हें मछली पसंद आने लगी.

“जो दोस्त मुझे मछली व्यापार के लिए भगा देते थे, अब वही मुझसे मछली मांगते हैं क्योंकि डॉक्टर ने उन्हें बुढ़ापे में प्रोटीन खाने को कहा है,” सुल्तान ने कहा. टमाटर वाली फिश करी से लेकर चिकन तंदूरी तक, सुल्तान और उनका बेटा अक्सर नॉन-वेज खाना खाते हैं.

लेकिन महिलाओं के लिए “इसमें बदबू है.”

सुल्तान के फार्म में मछली से भरी स्नैक प्लेट। | मनीषा मोंडल | दिप्रिंट

सुल्तान ने कहा, “मछली सेहत के लिए अच्छी होती है, यह जल्दी पचती है, पराठे से ज़्यादा. जो सब्ज़ियां, दूध के उत्पाद हम खाते हैं, वे सब कीटनाशकों और रसायनों से भरे होते हैं. लेकिन हरियाणा की मछली स्वादिष्ट और ऑर्गेनिक है.”

सुल्तान की पत्नी ने एक बार मछली से बने क्रैकर्स खा लिए, बिना ये जाने कि वे 80 प्रतिशत मछली से बने हैं. उन्हें पसंद आए, लेकिन जब सुल्तान ने बताया तो वे हैरान रह गईं.

हरियाणा में ज़्यादातर मछली फार्म बस्तियों से दूर, गांवों के बाहर बने हैं. यह अलगाव सांस्कृतिक और खानपान की पसंदों का ध्यान रखते हुए होता है ताकि व्यापार कभी न रुके. सुल्तान ने अपने ऑफिस के अंदर एक छोटा किचन भी बनवाया है. और बाहर तालाब में तैरती है मछलियों से भरी फसल. घर के किचन में अभी भी महिलाओं का ही राज चलता है.

“मेरे घर में मैं, मेरा बेटा और पोता नॉन-वेज खाते हैं. घर की कोई भी महिला नहीं खाती. मैं सुनिश्चित करूंगा कि मेरी पोती खाना शुरू करे,” सुल्तान ने कहा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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