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Tuesday, 3 December, 2024
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तड़के 4 बजे रिपोर्टिंग, इंतज़ार, कोई डॉक्टर नहीं — झारखंड SSC एस्पिरेंट्स ने मौत से पहले क्या झेला

पीड़ितों के परिवारों का आरोप है कि झारखंड कर्मचारी चयन आयोग से किसी ने भी उन्हें मौत के बारे में जानकारी नहीं दी.

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रांची: विकास लिंडा ने 29 अगस्त को साहिबगंज पहुंचने और फिजिकल टेस्ट में शामिल होने के लिए रांची से 12 घंटे की बस यात्रा की. 22-वर्षीय विकास ने सरकारी नौकरी का वादा पूरा करने के बाद वापस लौटने की योजना बनाई थी. जाने से पहले उन्होंने अपनी मां से कहा, “मैं उस दौड़ को पूरा करने जा रहा हूं. मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा, मां; घर पर चीज़ें ठीक हो जाएंगी.”

दो दिन विकास का केवल पार्थिव शरीर घर लौटा.

विकास लिंडा झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) द्वारा आयोजित फिजिकल टेस्ट के दौरान मरने वाले 12 एस्पिरेंट्स में से एक हैं. लगभग सौ अन्य लोग अस्पताल में भर्ती हैं. एक्साइज़ कांस्टेबलों के लिए विज्ञापित 583 पदों पर अब तक 1,27,572 उम्मीदवार उपस्थित हुए हैं, जो भारत के सबसे गरीब राज्यों में से एक में बेरोज़गारी की सीमा को रेखांकित करता है. भर्ती अभियान और इसके परिणामस्वरूप होने वाली मौतें तेज़ी से राजनीतिक मुद्दा बनती जा रही हैं क्योंकि झारखंड में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं. जबकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने परीक्षा को रोक दिया है और मौतों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया है, राज्य का विपक्ष सरकार पर कम समय में टेस्ट आयोजित करने का आरोप लगा रहा है. इसने मुआवजे की भी मांग की है.

सोरेन ने पिछली सरकार द्वारा कथित रूप से बनाए गए भर्ती नियमों को भी जिम्मेदार ठहराया है. कुछ लोगों के अनुसार, आयोजित फिजिकल टेस्ट सशस्त्र बलों की तुलना में कठिन थे. एस्पिरेंट्स को गर्मी और धूप वाले दिनों में दौड़ने से पहले घंटों इंतज़ार करना पड़ा. एस्पिरेंट्स को फलों सहित कोई नाश्ता उपलब्ध नहीं कराया गया था. कुछ लोगों ने इन केंद्रों पर मेडिकल सुविधाओं की अपर्याप्त व्यवस्था और JSSC से कोई सहायता नहीं मिलने का भी आरोप लगाया है.

Deepak Paswan (left) and Vikas Linda are two of the 12 candidates who died during the physical test conducted by JSSC | By special arrangement
दीपक पासवान (बाएं) और विकास लिंडा उन 12 एस्पिरेंट्स में से दो हैं जिनकी JSSC द्वारा आयोजित शारीरिक परीक्षण के दौरान मृत्यु हो गई | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

विकास की मां रत्नी लिंडा (59) अपने घर में प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठी हुई कहती हैं, “मेरे बेटे के दोस्तों ने मुझे बताया कि सेंटर पर कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था. मेरा बेटा इतनी गर्मी में दौड़ रहा था. उसे बहुत दर्द हो रहा होगा, लेकिन वो लोग (भर्ती अधिकारी) अस्पताल में उससे मिलने तक नहीं आए.”


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गरीबी से बाहर निकलने का ज़रिया

विकास का पूरा परिवार अब मौत का शोक मना रहा है. उनकी दो बड़ी बहनें और उनके पति परिवार के साथ घर आ गए हैं. रांची में घर के बाहर लोग जमा हो गए हैं और घर आने वाले लोगों को बारिश से बचाने के लिए आंगन में तिरपाल लगाया गया है. घर में केवल एक कमरा फूस की छत से ढका हुआ है और बाकी मकान मिट्टी से बना है.

विकास की भाभी बेला कच्छप ने दुखी होकर कहा, “लोग यहां आ रहे हैं और हमें बहुत सारे फोन आ रहे हैं, लेकिन हमारा बच्चा चला गया. हमारा छोटा बच्चा चला गया.”

झारखंड के पांच जिलों में सात केंद्रों पर भर्ती प्रक्रिया आयोजित की गई: गिरिडीह, पलामू, सीटीसी मुसाबनी, साहिबगंज, जेएपीटीसी (पद्मा, हज़ारीबाग) और रांची में दो. पहली मौत 27 अगस्त को पलामू जिले से हुई, उसके अगले दिन उसी केंद्र से चार और मौतें हुईं. हज़ारीबाग में दो एस्पिरेंट्स की मौत हो गई और फिर और मौतों की खबरें आने लगीं.

मेरा बेटा इतनी गर्मी में दौड़ रहा था. उसे बहुत दर्द हुआ होगा, लेकिन वो लोग (भर्ती अधिकारी) उसे देखने अस्पताल भी नहीं गए

— रत्नी लिंडा, विकास की मां

अब, मृतक के परिवार वाले मुआवजे और परिवार के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी की मांग कर रहे हैं.

विकास के बहनोई राहुल तिर्की ने कहा, “झामुमो के विकास मुंडा और भाजपा के आदित्य साहू ने हमें सहायता के तौर पर एक लाख रुपये नकद दिए और कांग्रेस के राजेश कच्छप हमसे मिलने आए और हमें आश्वासन दिया कि वो हमें न्याय दिलाने में मदद करेंगे.”

विकास के परिवार ने इस भर्ती को गरीबी से बाहर निकलने का रास्ता माना था, लेकिन उनकी मौत ने उन्हें पीछे धकेल दिया है.

राहुल तिर्की ने परीक्षा और यात्रा खर्च के तौर पर विकास के पेटीएम खाते में 1,000 रुपये ट्रांसफर किए थे. शुरुआत में तिर्की ने उन्हें परीक्षा के लिए इतनी दूर यात्रा नहीं करने की सलाह दी थी, लेकिन विकास दृढ़ निश्चयी थे. उन्होंने लगन से तैयारी की थी — हर दिन सुबह 5 बजे जगना. वो फुटबॉल खेलते थे और खेतों में काम करते थे और कभी किसी तरह का नशा या शराब नहीं पीते थे.

विकास को 14 अगस्त को अपना एडमिट कार्ड मिला और 22 अगस्त को परीक्षा शुरू हुई.

तिर्की ने कहा, “सरकार ने बहुत कम समय में इस भर्ती की घोषणा की और रिपोर्टिंग का समय सुबह 4 बजे था. दौड़ने के लिए विकास की बारी सुबह 11 बजे आई और मैदान में बहुत सारे लोग थे.” इस दौरान उनका फोन लगातार बज रहा था क्योंकि शुभचिंतक उनसे मौत के बारे में पूछताछ करने के लिए कॉल कर रहे हैं.

विकास की दो बड़ी बहनें और एक बड़ा भाई हैं. उनकी चचेरी बहन और भाभी भी उसी केंद्र पर उसी परीक्षा के लिए गई थीं. विकास की छोटी बहन अनुराधा लिंडा कुछ एस्पिरेंट्स की मौत के बारे में सुनकर डर गई थीं और वे परीक्षा में शामिल नहीं होना चाहती थीं, लेकिन विकास ने उन्हें मना लिया था.

अनुराधा ने फूट-फूट कर रोते हुए कहा, “मेरे भाई ने कहा कि मुझे जाना चाहिए. उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं थक जाऊं तो रुक जाऊं, लेकिन शुरू करने से पहले हार न मानूं. उन्होंने कहा था कि हम टेस्ट के बाद साथ-साथ वापस आएंगे, लेकिन मुझे नहीं पता था कि मुझे उनके साथ ऐसे वापस लौटना पड़ेगा.”

सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) से लेकर भाजपा और कांग्रेस तक, हर राजनीतिक दल के नेता विकास के घर आए और परिवार को आश्वासन दिया.

सरकार ने बहुत कम समय में इस भर्ती की घोषणा की और रिपोर्टिंग का समय सुबह 4 बजे था. सुबह 11 बजे उनकी दौड़ की बारी आई और मैदान में बहुत सारे लोग मौजूद थे

— राहुल तिर्की, विकास के बहनोई


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तेज़ धूप में…10 किलोमीटर की दौड़

पलामू के 25-वर्षीय दीपक पासवान को सुबह 5 बजे होने वाली परीक्षा के लिए पलामू के केंद्र पर उपस्थित होने के लिए देर रात एक बजे उठना पड़ा. फिर, उन्होंने तीन घंटे हवाई अड्डे के मैदान में खड़े होकर एस्पिरेंट्स को दौड़ते हुए देखा और उनकी बारी 10:30 बजे आई. यह उनका पहली बार परीक्षा देने का मौका नहीं था. उन्होंने 2019 में भी परीक्षा दी थी, लेकिन बाद में इसे रद्द कर दिया गया और पैटर्न बदल दिया गया. इस बार, एस्पिरेंट्स को पहले फिजिकल टेस्ट पास करना था.

दीपक ने चिलचिलाती धूप में 9 किलोमीटर की दौड़ लगाई, इससे पहले कि वे बेहोश हो जाते. सुबह के 10:30 बजे थे. उन्हें सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. बाद में उनके परिवार ने उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया. धीरज पासवान ने कहा, “लेकिन दो दिनों के बाद, अंगों का काम करना बंद होने के कारण रांची के मेदांता अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई.”

परिवार अब चयन नियमों पर सवाल उठा रहा है.

दीपक के बड़े भाई धीरज पासवान ने पूछा, “मानदंड एक घंटे में 10 किलोमीटर दौड़ना था. बीएसएफ और सीआईएसएफ के उम्मीदवार भले ही 5 किलोमीटर ही दौड़ते हों, लेकिन इन उम्मीदवारों को 10 किलोमीटर क्यों दौड़ाया गया? इसका क्या मतलब था?”

दीपक पासवान घर के सबसे छोटे बेटे थे. उनके पिता की दो साल पहले ही मृत्यु हो गई थी. उनके परिवार की आय का मुख्य स्रोत खेती है और उनके बड़े भाई प्राइवेट कंपनी में मजदूर हैं.

जान गंवाने वाले अधिकांश एस्पिरेंट्स गरीब परिवार से थे, जिनके पास भर्ती केंद्रों तक पहुंचने के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे. कुछ एस्पिरेंट्स ने रेलवे स्टेशन पर रात बिताई, फर्श पर सोए और दौड़ परीक्षण से पहले उन्हें ठीक से खाने-पीने को भी नहीं मिला.

मानदंड एक घंटे में 10 किलोमीटर दौड़ना था. बीएसएफ और सीआईएसएफ के उम्मीदवार भले ही 5 किलोमीटर ही दौड़ते हों, लेकिन इन उम्मीदवारों को 10 किलोमीटर क्यों दौड़ाया गया? इसका क्या मतलब था?

– धीरज पासवान, दीपक के बड़े भाई

कमल साहू, जो इसी परीक्षा के लिए गिरिडीह गए थे, ने कहा, “एक व्यक्ति केवल 250 रुपये लेकर आया था जिसे भी उसने किसी रिश्तेदार से उधार लिया था. झारखंड में सरकारी परीक्षाओं के मामले में यही स्थिति है. वहां बहुत सारे लोग थे और चीज़ों को संभालने के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं थे. कोई उचित दवाई या भोजन उपलब्ध नहीं कराया गया.”

विकास और दीपक दोनों को साहेबगंज के निकटतम अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन JSSC से किसी ने भी उनके परिवारों को उनकी स्थिति के बारे में नहीं बताया. मौत के बाद भी आयोग से कोई भी परिवार से मिलने नहीं पहुंचा. विकास का दोस्त जो परीक्षा देने के लिए साहिबगंज में था, उसे अस्पताल में भर्ती होने से पहले दो घंटे तक उसे खोजना पड़ा.

मृतक के परिवार के सदस्यों और दोस्तों ने अस्पताल में लापरवाही देखी.

अनुराधा लिंडा ने कहा, “जब हम वहां गए तो अस्पताल में एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं था. कई दिनों से बिस्तर के नीचे गंदे बर्तन रखे हुए थे और चादरें गंदी थीं. उन्हें केवल ग्लूकोज की ड्रिप दी गई थी. वे (विकास) शाम को करीब 4 बजे उठा और उसने एक सेब और कुछ अंडे खाए, लेकिन देर रात उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी और अस्पताल ऑक्सीजन भी नहीं दे सका.”

विकास के बहनोई रांची से साहिबगंज पहुंचे, लेकिन समय पर नहीं पहुंच सके.

राहुल तिर्की ने कहा, “मुझे तड़के 3 बजे फोन आया कि विकास की हालत गंभीर है और मुझे आना होगा. मैंने अपने साथ ऑक्सीजन सिलेंडर भी लिया था, लेकिन 175 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद मुझे पता चला कि वो इस दुनिया से चला गया है. अस्पताल ने हमें बताए बिना पोस्टमार्टम भी कर दिया.”

विकास और दीपक दोनों को साहेबगंज के नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन JSSC की ओर से किसी ने उनके परिवार को उनकी स्थिति के बारे में नहीं बताया. मौत हो जाने के बावजूद आयोग की ओर से कोई भी व्यक्ति परिजनों से मिलने नहीं पहुंचा.

हालांकि, प्रशासन का दावा है कि सभी भर्ती केंद्रों पर सभी सुविधाएं उपलब्ध थीं. वहीं झारखंड पुलिस के प्रवक्ता अमोल वी होमकर ने एक इंटरव्यू में दावा किया है कि सभी केंद्रों पर मेडिकल क्रू, दवाइयां, एंबुलेंस, मोबाइल शौचालय और पीने के पानी सहित पर्याप्त व्यवस्थाएं उपलब्ध थीं.

लेकिन अनुराधा और धीरज का दावा इससे अलग है. उन्होंने कहा कि मौके पर कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था और जब किसी एस्पिरेंट को बेचैनी महसूस हुई तो उसे नज़दीकी सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया.

धीरज पासवान ने कहा, “सेंटर की ओर से कोई नाश्ता या कोई फल नहीं दिया गया. पीने का पानी दौड़ मैदान से 60 मीटर दूर था. अगर कोई दौड़ में भाग ले रहा है तो वो पानी पीने के लिए इतनी दूर क्यों जाएगा? मेरे भाई को अस्पताल भेजने के बाद भी किसी ने मुझे इसकी जानकारी नहीं दी. ऐसा लगता है कि प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं थी.”


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मौत पर राजनीति

इस साल जनवरी में सीएम सोरेन के खिलाफ ईडी के एक मामले में उन्हें जेल भेजे जाने के बाद पिछले साल से झारखंड का राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है. इन 12 मौतों ने राज्य के विपक्ष को हमला करने के लिए नया हथियार दे दिया है.

भाजपा नेता और विपक्ष के नेता अमर कुमार बाउरी ने कहा, “भारत के इतिहास में अब तक किसी भी भर्ती प्रक्रिया में इतनी मौतें नहीं हुई हैं. यह स्थिति झामुमो-कांग्रेस-राजद सरकार के तानाशाही रवैये के कारण पैदा हुई है. यह झारखंड के बेरोज़गार युवाओं का नरसंहार है. पिछले पांच सालों में झामुमो-कांग्रेस-राजद सरकार ने पहले युवाओं को मानसिक रूप से मारा और अब शारीरिक रूप से उनकी हत्या कर रही है.”

भाजपा के राज्यसभा सांसद आदित्य साहू सरकार की नियुक्ति नीतियों की आलोचना कर रहे हैं. वे मृतक उम्मीदवारों के परिवारों को 50 लाख रुपये का मुआवजा और उनके आश्रितों को सरकारी नौकरी देने की मांग कर रहे हैं.

सोरेन इन मौतों को कोविड वैक्सीन से जोड़कर केंद्र सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं, लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में कोविड वैक्सीन को हृदय रोगों से जोड़ने वाला कोई दीर्घकालिक अध्ययन नहीं हुआ है. मैक्सिलोफेशियल सर्जन और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. अनुज कुमार ने हालांकि, माना है कि यह पहले से ही प्रलेखित है कि कोविड बीमारी का हृदय पर असर हो सकता है.

पीने का पानी दौड़ के मैदान से 60 मीटर दूर था. अगर कोई दौड़ में भाग ले रहा है, तो वो पानी पीने के लिए इतनी दूर क्यों जाएगा?

— धीरज पासवान, दीपक के भाई

कुमार ने मौजूदा भर्ती प्रक्रिया में मृत्यु की अधिक घटनाओं की ओर भी इशारा किया, जिसमें शारीरिक परीक्षण में शामिल 1.27 लाख उम्मीदवारों में से 12 की मृत्यु हुई है.

कुमार ने कहा, “मैराथन के दौरान पहले भी मौतें दर्ज की गई हैं. दर्ज की गई घटना दर एक लाख में 0.6 से 1.9 है. यह कोविड वैक्सीन के कारण है या बीमारी के कारण, यह पक्का नहीं है. मृत्यु होने के तीन मुख्य कारण हैं: कार्डियक अरेस्ट इसका मुख्य कारण है. यह उन धावकों में होने की अधिक संभावना है जो तेज़ शारीरिक गतिविधियों के आदी नहीं हैं. दूसरा कारण हाइपोनेट्रेमिया है जो इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन का एक प्रकार है और इसका तीसरा कारण हीट स्ट्रोक (लू) है.”

जबकि आबकारी भर्ती मौतों पर राजनीतिक कीचड़ उछालना झारखंड विधानसभा चुनाव तक जारी रहने की उम्मीद है, लेकिन अब जवाबदेही की मांग करने वाले परिवारों का नुकसान स्थायी है.

रत्नी लिंडा ने पिछले तीन दिनों से कुछ नहीं खाया है; वे उस रात को याद करती रहती हैं जब उन्हें मालूम चला कि उनके बेटे को अस्पताल में भर्ती कराया गया है. अब वे केवल एक ही बात जानना चाहती हैं: विकास की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है?

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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