नई दिल्ली: बॉलीवुड की रोमांटिक-कॉमिडी फिल्म ‘जब वी मेट’ के एक सीन में करीना कपूर (गीत ढिल्लों) का सामान ट्रेन में चला जाता है और वो स्टेशन पर रह जाती हैं. बदहवास, परेशान करीना स्टेशन मैनेजर के पास पहुंचती है तब स्टेशन मैनेजर कहता है, ‘अगला स्टेशन कोटा है, मैं स्टेशन मास्टर को फ़ोन कर दूंगा. वो आपका सामान रख लेगा और तो कुछ नहीं हो सकता.’
लेकिन इसके ठीक उलट नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अगर आपका सामान ट्रेन में छूट जाता है तो आपको उम्मीद नहीं छोड़नी है. हो सकता है आपके फोन पर जो अगली घंटी बजे वो नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से राकेश शर्मा की हो और वो आपको कह रहे हों कि आपका सामान सुरक्षित है आप ले जाइए.
राकेश शर्मा कहते है, ‘लोगो को जब उनका खोया सामान मिलता है और उनके चेहरे पर जब खुशी देखता हूं तो मुझे लगता है मैं यही करना चाहता था और फिर मैं जोश से भर जाता हूं.’
अमृतसर से नई दिल्ली पहुंची पूनम मेहरा को ट्रेन में अपना बैग छूटने का एहसास तब हुआ, जब स्टेशन मैनेजर राकेश शर्मा ने खुद इस बात की जानकारी उन्हें दी. 7 दिसंबर को अमृतसर शताब्दी की सीट 37-44 में बैग मिलने के बाद राकेश ने आईआरसीटीसी लिस्ट की मदद से यात्री का फोन नंबर प्राप्त किया और जब फ़ोन किया गया तो पूनम मेहरा ये बात सुनकर हैरान हुईं की उनका बैग ट्रेन में छूट गया है जिसकी उन्हें खबर ही नहीं.
पूनम अगले ही दिन कनाडा के लिए रवाना होने वाली थीं. जिस वज़ह से वो खुद अपना सामान लेने स्टेशन नहीं आ सकीं, उन्होंने अपना बैग लेने के लिए अपने एक रिश्तेदार रवदीप हीरा को स्टेशन भेजा. रवदीप ने न केवल बैग मिलने पर भारतीय रेल को धन्यवाद दिया, साथ ही उन्होंने राकेश शर्मा की भी खूब तारीफ की.
नई दिल्ली रेलवे के स्टेशन मैनेजर राकेश शर्मा 2006 से ट्रेन में छूटे या भूले सामान को अपनी टीम के साथ मिलकर लोगों तक पहुंचाने में जुटे हैं. अब तक 600 से ज्यादा छूटा सामान उनके मालिकों तक पहुंचाया है.
ट्रेन में अक्सर यात्री लैपटॉप, फ़ोन, बैग, पर्स, सूटकेस, सोने चांदी के गहने जैसे महंगे सामान से लेकर जैकेट, चश्मा, कोट, बोतल तक भूल जाते हैं या फिर उनसे छूट जाता है. छूटे सामान की जानकारी राकेश शर्मा को ट्रेन के सफाई कर्मचारी, कैटरिंग सर्विस के लोग, टीटी, कुली या फिर कभी अन्य यात्रियों से मिलती है.
छूटे हुए सामान की जानकारी मिलने के बाद राकेश पीएनआर (passenger name record) लिस्ट से असली मालिक का पता लगाते हैं, उनको फ़ोन करते हैं, और यह सुनिश्चित करने के बाद की सामान का असली मालिक यही व्यक्ति है उसे उसका सामान सौंप दिया जाता है.
दिप्रिंट से बातचीत में शर्मा ने बताया, ‘जब मुझे रेलवे स्टाफ या कर्मचारियों से किसी सामान की सूचना मिलती है तो मैं अपने सहकर्मियों की मदद से उस ट्रेन, बोगी और सीट पर सफर कर रहे यात्री की डिटेल निकलवाकर उसे फ़ोन करता हूं. टिकट के डिटेल में मौजूद यात्री की जानकारी और फ़ोन नंबर की मदद से उनतक सामान पहुंचता हूं.’
वह आगे कहते हैं, ‘इसके बाद मैं फ़ोन करके सामने वाले से छूटे सामान की जानकारी मांगता हूं. अगर वो सामान के बारे में सही सही बता देते हैं और ये यकीन होने पर कि सामान उनका ही है हम उन्हें स्टेशन आकर सामान ले जाने हो कह देते हैं.’
कई बार ऐसा होता है कि पैसेंजर किसी और राज्य या फिर शहर का होता है ऐसे में यदि कोई व्यक्ति दिल्ली स्टेशन तक अपना सामान लेने नहीं आ पाता है तो टीटी या कैटरिंग स्टाफ के हाथों उनका सामान उनके नज़दीकी स्टेशन तक पहुंचाने की भी कोशिश की जाती है. कई बार तो स्पीड पोस्ट से भी लोगों के सामान अन्य राज्यों तक पहुंचाया गया है.
ऐसा नहीं है कि राकेश सिर्फ दिल्ली से गुजरने वाली ट्रेनों में छूटे सामानों के यात्रियों को खोजते हैं. अब उनके इस मिशन में कई अन्य राज्यों के अधिकारी और कर्मचारी भी जुड़ रहे हैं.
ऐसा ही एक मामला 27 सितंबर का है जब एक एनआरआई पूर्णिमा बवेशी वडोदरा से मुंबई सफर कर रहीं थीं उनका बैग ट्रेन में छूट गया था. मुंबई के कैटरिंग स्टाफ चिरनजीत को मुंबई सेंट्रेल शताब्दी एक्सप्रेस के कोच नंबर ई-3 में एक बैग मिला. उसके बाद वहां के चीफ इंसपेक्टर ऑफ टिकट संजय बलसोडे ने 28 सितंबर को राकेश शर्मा से संपर्क साधा और बैग की जानकारी दी. जिसके बाद पूर्णिमा बवेशी के बारे में आईआरसीटीसी से डिटेल्स निकाली गयी और उन्हें फोन किया गया. बाद में टीटी संजय बालसोडे द्वारा पूर्णिमा का सामान मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर पहुंचाया गया.
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यात्री की खुशी से ही मिलती है प्रेरणा
शर्मा जी बताते है उन्होंने 2006 में पहली बार एक यात्री का ट्रेन में छूटा सामान उन तक पहुंचाया था. सामान मिलने पर यात्री के चेहरे की ख़ुशी को देखकर उन्हें यह काम जारी रखने की प्रेरणा मिली.
अपना छूटा हुआ फ़ोन वापस मिलने की ख़ुशी जाहिर करते हुए अजय गुप्ता कहते है, ‘शर्मा जी के वजह से मेरा मोबाइल मिल गया उनका बहुत बहुत धन्यवाद. मेरी हेल्प करने के लिए राकेश जी और इंडियन रेलवे का आभारी हूं. बहुत बहुत शुक्रिया…
राकेश बताते है ‘आज एक रेलयात्री नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से अपने चेहरे पर मुस्कान के साथ लौटा. अपना सामान भूले यात्री को जब उसका सामान मिला तो उसने नई दिल्ली टीम के प्रयासों का धन्यवाद किया और भारतीय रेल के प्रति सम्मान बढ़ने की बात की.’
दिप्रिंट से बातचीत के दौरान मोहाली पंजाब के सॉफ्वेयर इंजीनियर दीपेंद्र कुमार ने बताया कि 2 दिसंबर को चंडीगढ़ एक्सप्रेस से सफर के दौरान उनका लैपटॉप ट्रेन की सीट पर छूट गया था. जिसके बाद उन्होंने स्टेशन मैनेजर राकेश से संपर्क किया.
पूछताछ के बाद उन्हें उनका लैपटॉप वापस दे दिया गया. उन्होंने आगे कहा ‘मैं राकेश शर्मा के इस काम से बहुत खुश हूं और उनका धन्यवाद भी करता हूं.’
सोशल मीडिया है अहम
स्टेशन मैनेजर राकेश अपने सोशल मीडिया हैंडल फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर का इस्तेमाल भी लोगों के छूटे सामान को उन तक पहुंचाने के लिए करते हैं. राकेश को कोई सामान मिलने पर और सामान से जुड़ी कोई जानकारी हासिल न होने पर, वो उसकी फोटो खींच कर अपने सोशल मीडिया हैंडल पर डाल देते हैं. ताकि लोग तस्वीर देख कर सामान की पहचान कर सकें या सामान से जुड़ी जानकारी उन्हें दे सकें.
हालांकि राकेश ने बताया की सोशल मीडिया से उन्हें सामान पहुंचाने में ज्यादा लाभ नहीं मिलता पर कभी कभी ये काम आ जाता. सोशल मीडिया पर लोगों की सराहना और कमेंट देखकर उन्हें खुशी जरूर मिलती है.
कई बार लोग उन्हें मैसेज करके भी मदद मांगते हैं.
राकेश शर्मा ने अपने सहकर्मियों की सहायता से सिर्फ भारतीय यात्रियों के ही नहीं बल्कि अन्य देशों से आए यात्रियों के छूटे सामान भी उन तक पहुंचाए है. इनमें यूके, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, यूएई, केन्या, अमेरिका जैसे कई देशों से आए यात्री शामिल हैं.
राकेश बताते हैं, एक बार उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के यात्री पॉल मल्लम का एप्पल मैकबुक सोशल मीडिया की मदद से उन तक पहुंचाया.
‘मैंने ट्रेन की यात्री लिस्ट से उस पैसेंजर से जुड़े जानकारी हासिल की फिर फ़ोन न लगने पर उसे फेसबुक पर ढूंढ़कर, मैकबुक मिलने की जानकारी दी उसके बाद उसकी एजेंसी की मदद से मैकबुक ऑस्ट्रेलिया भेजा गया.
दिप्रिंट से बातचीत में रिटायर्ड चीफ स्टेशन मैनेजर बी.के शुक्ल ने कहा, ‘लोगों को लगता है एक बार ट्रेन में कोई सामान छूट गया तो वह कभी वापस नहीं मिलेगा. राकेश के इस काम से भारतीय रेलवे की इमेज को फायदा हुआ है. लोगो पर रेलवे का अच्छा इम्प्रेशन पड़ा है.’
चैलेंज और समाधान
एकबार ट्रेन में बॉक्स पॉर्टर चिंटू को 15 नवंबर को काल्का शताब्दी ट्रेन के जेनरेटर कार कोच के पास एप्पल का फ़ोन मिला. 16 नवंबर को फोन राकेश शर्मा के पास पहुंचा. फोन में स्क्रीन लॉक लगा था और वह चार्ज भी नहीं था. एप्पल के फोन में सिक्योरिटी बड़ी समस्या है. फोन को चार्ज किया गया. सिम को निकालकर ट्रू कॉलर की मदद से फोन के मालिक से बात की गई. फोन आईआईटी, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ. एस के मंडल का था. फोन दूसरी ट्रेन में सहायकों के माध्यम से बनारस भेजा गया.
अपना फ़ोन सुरक्षित वापस मिलने पर डॉ.मंडल कहते है ‘ये एक बहुत ही सराहना का काम है जो राकेश शर्मा और उनकी टीम कर रही हैं. मेरा फ़ोन मुझ तक पहुंचाने के लिए मैं राकेश और उनकी टीम का शुक्रगुजार हूं.’
कई बार ट्रेनों में मिले सामान के मालिकों का पता नहीं चल पाता है. ऐसे में राकेश बताते हैं कि वो उस सामान को स्टेशन के ‘लॉस्ट एंड फाउंड’ ऑफिस में जमा करवा देते है.
राकेश शर्मा को लोगों के खोए और छूटे सामान को पहुंचाने के लिए डीआरएम पुरस्कार, महाप्रबंधक पुरस्कार और रेल राज्यमंत्री समेत कई विभागीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं.
गुजरात से कार्तिक बताते हैं कि 26 जून को दिल्ली से चंडीगढ़ सफर करते समय उनका कुछ सामान चंडीगढ़ शताब्दी के कोच सी-1 में छूट गया था. जिसके बाद उन्हें सामने से राकेश का फ़ोन आया और सामान छूटने की बात पूछा गया. कुछ डिटेल्स और आईडी लेने के बाद कार्तिक को उनका सामान भेज दिया गया.
कार्तिक कहते है, ‘फ़ोन आने के दो दिन के भीतर ही मुझे मेरा सामान राजधानी एक्सप्रेस से गुजरात भेज दिया गया जिसके लिए में राकेश उनकी टीम और भारतीय रेल का आभारी हूं. हालांकि मेरा सामान बहुत ही मामूली था फिर भी मुझ तक पहुंचाया गया, इसके लिए धन्यवाद.’
राकेश कहते हैं, ‘मुझे अब इस काम में मज़ा आने लगा है. मैं जब तक भारतीय रेल में काम करूंगा तब तक, लोगों तक उनका ट्रेन में छूटा सामान पहुंचाने का काम भी करता रहूंगा.’ ‘जब वी मेट’ की गीत को शर्मा के काम के बारे में पता होता, तो वह कहती, ‘तू ऑरिजनल पीस है, मालूम है ना तुझे! ऐसा दूसरा नहीं है.’
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