रिलीज़ होने से पहले ही, सुदीप्तो सेन और विपुल शाह की नई फिल्म, बस्तर: द नक्सल स्टोरी, उनकी पिछली फिल्म, द केरल स्टोरी की तरह ही बांटने वाली साबित हो रही है. मंगलवार को जारी किए गए एक टीज़र में अभिनेत्री अदा शर्मा को आईपीएस अधिकारी नीरजा माधवन के रूप में एक भाषण देते हुए दिखाया गया है, जिसमें दावा किया गया है कि वामपंथी भारत को विभाजित करने के लिए बस्तर में नक्सलियों से हाथ मिला रहे हैं.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के कई छात्र फिल्म के इस दावे से नाराज हैं कि भारतीय सैनिकों की हत्या पर “जेएनयू में जश्न” मनाया गया था. बस्तर: द नक्सल स्टोरी, जिसके निर्माताओं का कहना है कि यह सच्ची घटना पर आधारित है, 15 मार्च को रिलीज़ होगी.
शाह का किरदार फिल्म के टीज़र में कहता है, “जब बस्तर में 76 जवान मारे गए तो जेएनयू ने जश्न मनाया. बस इसके बारे में सोचो. कहां से लाते हैं वे ऐसी मानसिकता? बस्तर में जो लोग भारत को विभाजित करने की योजना बना रहे हैं, उनके पीछे वामपंथी, उदारवादी, शहरों के छद्म बुद्धिजीवी हैं. मैं इन वामपंथियों को सार्वजनिक रूप से गोली मार दूंगा. फिर मुझे फांसी दे दो.”
गुरुवार को 50 से अधिक जेएनयू छात्रों ने सेन का पुतला और फिल्म के पोस्टर जलाकर विरोध प्रदर्शन किया.
“जेएनयू छात्रों के नरसंहार के खुले आह्वान के खिलाफ हम सुदीप्तो सेन, अदा शर्मा, विपुल अमृतलाल शाह के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग करते हैं. लोगों को गुमराह करने के लिए ऐसा कदम एक आपराधिक कृत्य है.’ सभी कानूनी कदम उठाए जाएंगे और हम अपने पूर्व छात्रों और वीसी से तत्काल कार्रवाई करने की अपील करते हैं.”
केरल के बाद बस्तर की ‘कहानी’
जलपाईगुड़ी में पले-बढ़े सेन को उम्मीद है कि उनकी फिल्म नक्सल आंदोलन पर अधिक ‘जागरूकता’ पैदा करेगी. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ”मैंने खुद महसूस किया है कि इसका विस्तार भारत के विभिन्न राज्यों में हो रहा है.” उन्होंने टीज़र में दो विषयों को उजागर करने का विकल्प चुना- मारे गए सैनिकों की संख्या और उनका दावा कि “वामपंथी-उदारवादियों ने नक्सलियों की मदद की”.
“हर जगह ये खबर छपी कि जवानों की मौत पर जेएनयू में जश्न मनाया गया. यह तथ्य है. इसमें कोई राजनीतिक बयान नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से एक राजनीतिक फिल्म है.” 2010 में, आरएसएस की छात्र शाखा एबीवीपी और एनएसयूआई जैसे कुछ छात्र समूहों ने आरोप लगाया था कि छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों द्वारा 75 सीआरपीएफ कर्मियों और एक राज्य पुलिस कांस्टेबल की हत्या का “जश्न” मनाने के लिए जेएनयू फोरम अगेंस्ट वॉर ऑन पीपल द्वारा एक बैठक आयोजित की गई थी. आयोजकों ने इस आरोप को खारिज कर दिया था और कहा था कि बैठक राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों द्वारा शुरू किए गए ‘खोज और तलाशी’ अभियान ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ का विरोध करने के लिए आयोजित की गई थी.
सेन इस पूरे मुद्दे को हल करने में राज्य की विफलता को स्वीकार करते हैं. “हमने नक्सल आंदोलन के किसी भी पहलू को नहीं छोड़ा है. जो लोग फिल्म देखेंगे उन्हें सारे जवाब मिल जाएंगे.”
वह चाहते हैं कि फिल्म को उसी तरह से जेएनयू में प्रदर्शित किया जाए जैसे मई 2023 में द केरल स्टोरी को दिखाया गया था.
फिल्म की शूटिंग दंडकारण्य के घने जंगल में दो महीने तक की गई थी. डिकोड रेड: इनसाइड स्टोरी ऑफ माओवादी ऑपरेशंस लिखने वाले पटकथा लेखक अमरनाथ झा के अनुसार, लोगों को नक्सलियों की खौफनाक दुनिया के बारे में गलत जानकारी है.
झा ने कहा, “हम फिल्म के माध्यम से बताना चाहते हैं कि वास्तविक ईको सिस्टम क्या था जिसके ये लोग समर्थक थे. और उन्हें छूट कहां से मिल गई कि वे 50 साल तक आगे बढ़ते रहे. यह फिल्म बताती है कि नक्सली इतने सालों तक कैसे जीवित रहे.”
सेन की एक और फिल्म, इन द नेम ऑफ लव-मेलानकोली ऑफ गॉड्स ओन कंट्री, के कारण 2018 में विश्वविद्यालय में इसकी स्क्रीनिंग के दौरान जेएनयू में हिंसा हुई थी.
द केरल स्टोरी में अपने निराधार और बाद में खारिज किए गए संख्यात्मक दावे के समान – ‘आईएसआईएस द्वारा 32,000 महिलाओं की भर्ती’ – सेन ने द नक्सल स्टोरी में भी एक नंबर पेश किया है: कि ‘नक्सलियों द्वारा 15,000 से अधिक भारतीय सैनिक मारे गए’.
लेकिन पटकथा लेखक झा इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि फिल्म का फोकस क्या है. “इस फिल्म के मूल में मानवीय भावना है कि कोई मौत का जश्न कैसे मना सकता है.”
सेन के लिए, यह फिल्म उनके 50 वर्षों का एक संस्मरण है और उनका दावा है कि दर्शक एक खतरनाक, अज्ञात दुनिया की यात्रा से गुजरेंगे. सेन का जन्म पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में हुआ था, जो नक्सलबाड़ी से 50 किमी दूर है, जहां 1967 में नक्सली विद्रोह शुरू हुआ था. वे कहते हैं, ”मैंने इस आंदोलन के विकास और परिवर्तन को अपने जीवन के विस्तार के रूप में देखा.”
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जेएनयू तलवार की धार पर
यूनाइटेड स्टूडेंट्स ऑफ इंडिया के तहत AISA, AISF, NSUI, SFI सहित सोलह अलग-अलग स्टूडेंट्स विंग्स ने टीज़र की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया, और इसे बयान में कहा गया है, “भारतीय वामपंथ को कलंकित करने की फासीवादी परियोजना” का हिस्सा बताया. “यह स्पष्ट है कि राष्ट्रवाद का जो ब्रांड देश को बेचा जा रहा है वह राजनीतिक हिंदुत्व है. हम छात्र समुदाय से इस प्रचार फिल्म के खिलाफ खड़े होने और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को बनाए रखने की अपील करते हैं.”
Trailer of ‘Bastar: The Naxal Story has been shared recently via social media.The teaser of this movie closes with a statement by the lead character stating she would shoot to death left liberal pseudo intellectuals and attacks the university students especially from JNU. pic.twitter.com/hpZfIEchg6
— SFI (@SFI_CEC) February 7, 2024
आरएसएस नेता जे नंदकुमार फिल्म के समर्थन में सामने आए हैं और एक्स पर टीज़र साझा करते हुए फिल्म के निर्माताओं को “साहसी स्टोरीटेलर” कहा है.
Here is the eagerly awaited teaser of, the courageous storytellers’ “Bastar” The naxal story. pic.twitter.com/Uyt89BHTRU
— J Nandakumar (@kumarnandaj) February 6, 2024
टीजर के आधार पर आदिवासी नेताओं ने फिल्म की आलोचना की है. “ये लोग नक्सलियों पर फिल्म बनाकर सिर्फ पैसा कमाना चाहते हैं. कश्मीरी पंडितों पर फिल्म बनाकर भी यही किया गया. फिल्म में हकीकत नहीं दिखाई गई है. जनता की भावनाओं से खिलवाड़ किया गया है. भारतीय ट्राइबल पार्टी की स्थापना करने वाले गुजरात के पूर्व विधायक छोटूभाई वसावा ने कहा, इस फिल्म में भी नक्सलियों और सैनिकों के बीच संघर्ष दिखाया जाएगा और आदिवासियों का असली मुद्दा पीछे छूट जाएगा.
लेकिन झा का कहना है कि कहानी को मानवीय एंगल से बताने की कोशिश की गई है. उनका दावा है, ”फिल्म में पूरे बस्तर क्षेत्र का दर्द व्यक्त हुआ है.”
जैसे ही फिल्म के निर्माता जेएनयू में स्क्रीनिंग के लिए तैयार हो रहे हैं, एबीवीपी का कहना है कि वह फिल्म का समर्थन करेगी. “ऐसी फिल्में देश को तोड़ने वाले लोगों को बेनकाब करती हैं. जेएनयू में एबीवीपी के अध्यक्ष उमेश चंद्र अजमीरा ने आरोप लगाया, ”जेएनयू में भी ऐसे लोग हैं, खासकर फैक्लटी में, जो नक्सलियों का समर्थन करते हैं.”
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