अमृतसर: सत्रह साल के मोहम्मद अयान एक सफेद एसयूवी में पीछे वाली सीट पर बैठे हैं, उन्होंने अपने हाथों से कसकर छाती को पकड़ा है मानो मानो वह खुद को संभालने की कोशिश कर रहे थे. उनकी आंखें — लाल, सूजी हुई जिनमें आंसू थे — वाघा-अटारी बॉर्डर गेट को घूर रही हैं, जो अब एक ऐसे सफर के अचानक खत्म होने का इशारा है, जिसे वह कभी अकेले नहीं करना चाहते थे.
दो साल पहले पाकिस्तान में अपने घर पर एक दुर्घटना में लकवाग्रस्त हो जाने वाले अयान 17 मार्च को भारत पहुंचे. उम्मीद की एक किरण के साथ आखिरकार वह — मैक्स से अपोलो अस्पतालों के बीच बहादुरी से घूमता रहे क्योंकि दिल्ली उनका अस्थायी घर बन गया था, लेकिन आज, वह यादें धुंधली हो गई हैं. पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तानियों के वीज़ा रद्द कर दिए हैं, अयान और उनके तीन भाई-बहन अपनी मां के बिना घर लौटने के लिए मजबूर हैं, जो एक भारतीय नागरिक हैं और उनकी शादी एक पाकिस्तानी से हुई है.
अयान ने कहा, “हमारे वीज़ा पर पंद्रह दिन और बचे थे. ऐसे में मुझे अपनी मां की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, डॉक्टरों से भी ज़्यादा.” सांस लेने में तकलीफ महसूस करते हुए उन्होंने जल्दी-जल्दी अपने आंसू पोंछे. उनकी व्हीलचेयर कार की छत पर रखी है, जबकि उनके शरीर में मूत्र की थैली लगी हुई है. उन्होंने बार-बार कहा, “मैं अपनी मां के बिना वापस नहीं जाना चाहता. मैं यहां अपने इलाज के लिए आया था.” उनके भाई-बहन बेचैनी से उनके बगल में करवटें बदल रहे थे.

अमृतसर के पास भारत-पाकिस्तान सीमा अब पीड़ा से दबे परिवारों की लंबी, धीमी गति से चलने वाली कतारों से भरी है. सीमा पार करने की समय सीमा 27 अप्रैल है; उसके बाद सीमा को बंद कर दिया जाएगा. लोग सुबह-सुबह अपने पासपोर्ट के साथ अटारी में कतार में खड़े हैं और अपने साथ पछतावे से भरे बैग लेकर चल रहे हैं.
हमारे वीज़ा पर पंद्रह दिन और बचे थे. ऐसे में, मुझे अपनी मां की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, डॉक्टरों से भी ज़्यादा
— मोहम्मद अयान, 17

वाघा, जो कभी भारत और पाकिस्तान के परिवारों और दोस्तों को जोड़ने वाली एक उम्मीद भरी सीमा थी, अब अचानक अलविदा और बाधित जीवन योजनाओं के एक जल्दबाजी भरे, भ्रमित दृश्य में बदल गई है. अपने माता-पिता की मौजूदगी के बिना शादी करने वालीं भारतीय दुल्हन को अब यह नहीं पता कि वह कहां की हैं; पाकिस्तान में विवाहित भारतीय मूल की एक महिला को उतरने के कुछ दिनों के भीतर ही अपने मायका (माता-पिता के घर) की अपनी यात्रा को बीच में ही रोकना पड़ा; एक मां को अपने बेटे के बिना ही पाकिस्तान जाना पड़ा.
मुझे नहीं पता कि क्या हुआ, लेकिन मुझे बस इतना पता है कि मुझे भारत से प्यार है — यह मेरा देश है. हमारे पास जो कुछ भी है, वह यहीं है
— सिंधु कंवर, पाकिस्तान में विवाहित भारतीय हिंदू महिला
वाघा में रहने वाले कई परिवारों के लिए आज भारत और पाकिस्तान के बीच की दूरी पहले से कहीं ज़्यादा बड़ी और दुर्गम लगती है.
भारत सरकार को हमें कम से कम एक हफ्ते का वक्त देना चाहिए था; यही मेरी उनसे शिकायत है. मेरी गलती यह है कि मेरे पास ग्रीन पासपोर्ट है. कश्मीर में जो कुछ भी हुआ वह बहुत बुरा है और दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिए, लेकिन मैं, भारत की बेटी, इसमें कैसे दोषी हूं?
— रबिका, भारत में जन्मी एक पाकिस्तानी नागरिक

52-वर्षीय सलीम-उन-निसा, जो भारत में अपनी बहनों के साथ नौ दिन बिताने के बाद पाकिस्तान लौट रही हैं, ने कहा, “हमने सालों तक इंतज़ार किया, वीज़ा के लिए दुआएं कीं और अपने परिवार से मिलने का सपना देखा. जब हम आखिरकार बॉर्डर के इस पार आए, तो ऐसा लगा जैसे ज़िंदगी ने हमें दूसरा मौका दिया है, लेकिन अब, बिना किसी चेतावनी के, हमें पीछे धकेला जा रहा है — मानो हमारी यादें, हमारी उम्मीदें, हमारे आंसू कोई मायने नहीं रखते. मुझे नहीं पता कि हम फिर कब मिलेंगे या फिर मिलेंगे भी या नहीं.”
उन्होंने कहा, “मैं अपना पसंदीदा खाना नहीं खा पाई, अपने दूसरे रिश्तेदारों से नहीं मिल पाई. मुझे 10 साल बाद यहां आने का मौका मिला था. मुझे नहीं लगता कि मैं इस ज़िंदगी में फिर कभी भारत आ पाऊंगी.”
इस बीच, पाकिस्तान में विवाहित भारतीय हिंदू महिला 55-वर्षीय सिंधु कंवर अटारी-वाघा सीमा पर लाल प्लास्टिक की कुर्सी पर झुकी हुई बैठी हैं, उन्होंने अपने पीले दुपट्टे से अपने आंसुओं से सने चेहरे को ढंक रखा है.

उनके बगल में उनकी बेटी, भाभी और पति चुपचाप एक-दूसरे को पकड़े हुए हैं, जबकि उनका बेटा कुछ कुर्सियों से दूर बैठा है. सिंधु के हाथ, जो सफेद चूड़ियों से भारी हैं, कांप रहे हैं और जब-जब वह अपनी आंखें पोंछ रही हैं, खनक रहे हैं. यह एक उत्सव होना चाहिए था — उनकी बेटी की शादी 29 अप्रैल को जोधपुर में रहने वाले एक हिंदू परिवार में होने वाली थी. अब, उन्हें भारत छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है, उनके सपने वीज़ा के अचानक रद्द होने के कारण टूट रहे हैं.
वह बार-बार कह रही हैं, “हमें बस दो दिन और चाहिए” उनकी आवाज़ में दुख है, “सब कुछ तैयार था…सब कुछ तैयार था…लेकिन अब हमारी बेटी की शादी हमारे बिना ही होगी.”
वाघा में अलगाव का नाटक दिखाया जा रहा है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे कुछ लोगों के कागज़ी काम ढीले-ढाले तरीके से किए जाते हैं और उनकी जांच-पड़ताल नहीं की जाती है और कैसे मिश्रित परिवारों को भारतीय नागरिकता मिलने के लिए सालों तक इंतज़ार करना पड़ता है, जबकि उन्हें अनिश्चित धरती में भटकना पड़ता है. अन्य लोग दोनों तरफ दीर्घकालिक वीज़ा पर रहते हैं और पारिवारिक जीवन जीते हैं.
मैं अपना पसंदीदा खाना नहीं खा पाई, अपने दूसरे रिश्तेदारों से नहीं मिल पाई. मुझे 10 साल बाद यहां आने का मौका मिला था. मुझे नहीं लगता कि मैं इस ज़िंदगी में फिर कभी भारत आ पाऊंगी
— सलीम-उन-निसा, भारत में जन्मी पाकिस्तानी नागरिक
सिंधु और उनकी बड़ी बेटी, जिनकी शादी हो रही है, दोनों के पास भारतीय पासपोर्ट हैं. उनका जन्म भारत में हुआ और उनकी बेटी का जन्म भी यहीं हुआ, लेकिन सिंधु की शादी पाकिस्तानी नागरिक तख्त सिंह से हुई और उनके दो अन्य बच्चे भी जन्म से पाकिस्तानी नागरिक हैं. परिवार शादी की तैयारी के लिए 26 दिसंबर को भारत आया था. उन्होंने खरीदारी की, सोना खरीदा, हलवाई को बुलाया और भारत में अपने सभी रिश्तेदारों को आमंत्रित किया. यह उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा दिन होने वाला था, लेकिन पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने सब कुछ बदल कर रख दिया.

सिंधु कंवर को नहीं पता कि कश्मीर में क्या हुआ था. वह ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं और दोनों देशों के बीच की राजनीति को नहीं समझती हैं. उन्हें “टीवी पर पाकिस्तानी नागरिकों को जाने के लिए कहने वाली खबर” याद है, जिसके बाद उन्होंने अपना बैग पैक करना शुरू कर दिया.
उन्होंने अपने आंसू छिपाने के लिए अपने चेहरे पर दुपट्टा खींचते हुए कहा, “मुझे नहीं पता कि क्या हुआ, लेकिन मुझे बस इतना पता है कि मुझे भारत से प्यार है — यह मेरा देश है. हमारे पास जो कुछ भी है, वह यहीं है.”
सिंधु के परिवार ने वक्त पर अटारी सीमा पर पहुंचने के लिए जोधपुर से 1,000 किलोमीटर से अधिक की यात्रा की, लेकिन अंत में उन्हें अलग होना पड़ा. सिंधु चाहती थीं और कानूनी तौर पर भारत में ही रह सकती थीं, लेकिन उन्हें अपने पति और छोटे बच्चों के साथ रहने के लिए पाकिस्तान लौटना होगा. केवल उनकी बड़ी बेटी, जो जन्म से भारतीय नागरिक हैं, जोधपुर में अपने जल्द ही होने वाले वैवाहिक घर में रहेंगी.
पहलगाम हमले ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को फिर से तनावपूर्ण बना दिया है, जिसमें भारत सरकार ने कई सख्त उपायों की घोषणा की है — जिसमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना, सीमा पार बस और ट्रेन सेवाओं को रोकना, व्यापार प्रतिबंधों को कड़ा करना, पाकिस्तानी दूत को बुलाना और पाकिस्तानी नागरिकों को जारी किए गए वीज़ा को रद्द करना शामिल है. सैकड़ों पाकिस्तानी नागरिक जो भारत आए थे — मेडिकल इलाज, पारिवारिक मुलाकातों या धार्मिक तीर्थयात्राओं के लिए — अब वापस लौटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यहां तक कि पाकिस्तानी हिंदू जो लंबे समय के वीज़ा पर महीनों या सालों से भारत में रह रहे थे, वह भी अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित और डरे हुए हैं.

नौकरशाही की लंबी देरी के बाद वीज़ा हासिल करने के लिए सालों इंतज़ार करने वालीं महिलाओं को आने के कुछ ही दिनों बाद अपना बैग पैक करना पड़ा. पुलिस प्रोटोकॉल अधिकारी अरुण महल ने बताया कि महज़ तीन दिनों में करीब 537 पाकिस्तानी नागरिक वापस आ गए हैं, जबकि पाकिस्तान में रह रहे 850 से ज्यादा भारतीय नागरिक भी वापस आ गए हैं. यह उनके परिवार, सपनों और बिखरी उम्मीदें हैं.
भारत में पाकिस्तानी हिंदुओं के अधिकारों की वकालत करने वाले सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हमीर सिंह सोढ़ा ने कहा, “लोग अलग-अलग वीज़ा के बूते भारत आए थे, धर्म, शादी या परिवारों से मिलने के लिए. इन परिवारों के लिए यह बहुत मुश्किल फैसला था, लेकिन आतंकी हमला भी भयानक था, इसलिए हम सरकार के फैसले का पालन करने के लिए मजबूर हैं.”

सीमा पार के परिवारों द्वारा सामना किए जाने वाले बड़े संघर्ष पर विचार करते हुए, उन्होंने कहा, “पुलवामा के बाद, थार एक्सप्रेस ट्रेन सेवा बंद कर दी गई थी. भारत आना सस्ता और आसान हुआ करता था. वीज़ा की प्रक्रिया मुश्किल हो गई थी. हमें बहुत से लोगों से गुज़रना पड़ा. धीरे-धीरे सब ठीक होने लगा था, लेकिन अब ऐसा लगता है कि हम मुश्किल दिनों में वापस आ गए हैं, जो लोग अभी भी पाकिस्तान में हैं और यहां आने की उम्मीद करते हैं, उनके लिए यह बहुत मुश्किल है.”
जब परिवार अपनी यादों को सूटकेस में पैक करके दर्दनाक अलविदा के लिए तैयार हो रहे थे, तो सीमा के हर कोने में दिल टूटने का एहसास साफ झलक रहा था.
सिंधु के पति तख्त सिंह ने कहा, “सीमाओं ने हमेशा देशों को बांट दिया है, लेकिन इस हफ्ते, वह परिवारों को विभाजित कर रही हैं, शादियों को तोड़ रही हैं और दो देशों में यादें बिखेर रही हैं जो कभी इतने करीब लगते थे, जितना अब नहीं लगते.”
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बिखरते परिवार
रविवार सुबह से ही दिल्ली, बाड़मेर, प्रयागराज और जोधपुर से लोग अटारी-वाघा बॉर्डर पर इकट्ठा होने लगे, ताकि सीमा पार करने की तैयारी कर सकें. तीन पहिया ऑटो, छोटी हैचबैक से लेकर एसयूवी तक गेट पर कतार में खड़े हैं, जिसमें लोग जो भी सामान ले जा सकते हैं, उसे भरकर ले जा रहे हैं — भारी ट्रॉलियों से लेकर साधारण प्लास्टिक बैग तक. अमीर हो या गरीब, हर कोई अपने कागज़ पकड़कर और मंजूरी की उम्मीद में अपनी बारी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है. हालांकि, गाड़ियां सुबह 6 बजे ही आ गईं, लेकिन 10 बजे के बाद ही बैरिकेड्स खुले, जिससे सीमा पार धीमी, भारी आवाजाही की अनुमति मिली.
अगर मेरी सेहत ठीक होती, तो मैं उन आतंकवादियों को सबक सिखाती, जिन्होंने मासूमों की जान ली. वह इंसान नहीं हैं
— मोहम्मद बी, 85
सीमा सुरक्षा बल (BSF) के एक अधिकारी ने 85 साल की मोहम्मद बी के कागज़ों की जांच करते हुए जो अपने बेटे के साथ वक्त बिताने भारत आईं थीं, कहा, “यह हमारा फैसला नहीं है. हम सिर्फ आदेशों का पालन कर रहे हैं. लोगों को अपने परिवार को छोड़कर रोते हुए देखना दुखद है…लेकिन यही है. स्थिति असहाय है.”

मोहम्मद बी चांदनी चौक में अपने बेटे के साथ सिर्फ दो महीने ही बिता पाईं. उनके पास एक महीना और बचा था, लेकिन उन्हें अपने बेटे और पड़ोसी के साथ सीमा पर जाना होगा. उनका दूसरा बेटा, जो पाकिस्तान में रहता है, स्थिति से बहुत गुस्से में है.
मोहम्मद बी ने कहा, “अगर मेरी सेहत ठीक होती, तो मैं उन आतंकवादियों को सबक सिखाती, जिन्होंने निर्दोष लोगों की जान ली. वह इंसान नहीं हैं, राक्षस हैं.”

आज अटारी में माताएं अपने बच्चों के बिना ही जा रही हैं और बच्चे अपनी मां के बिना ही सीमा पार कर रहे हैं.
आतंकवादियों के लिए कोई हमदर्दी नहीं
48-वर्षीय रबिका की गालियां वाघा सीमा तक जाने वाली भीड़ भरी सड़कों पर यातायात की लाइनों के शोर को चीरती हुई पहुंचती हैं. वह भारत सरकार और उन आतंकवादियों से नाराज़ हैं जिन्होंने एक बार के पारिवारिक मिलन को बेरहमी से खत्म कर दिया. उनके आस-पास, अन्य पाकिस्तानी नागरिक भी खुलेआम अपना गुस्सा ज़ाहिर कर रहे हैं, आतंकवादियों को आम लोगों की ज़िंदगी को बर्बाद करने के लिए दोषी ठहरा रहे हैं, उन्हें “इंसानियत के दुश्मन” और “परिवारों के टूटने का असली कारण” बता रहे हैं.

ऑटो रिक्शा में दो बड़े बैग के बगल में बैठी भारत में जन्मी पाकिस्तानी नागरिक रबिका ने कहा, “भारत सरकार को हमें कम से कम एक हफ्ते का वक्त देना चाहिए था; यही मेरी उनसे शिकायत है. मेरी गलती यह है कि मेरे पास ग्रीन पासपोर्ट है. कश्मीर में जो कुछ भी हुआ वह बहुत बुरा है और दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिए, लेकिन मैं, भारत की बेटी, इसमें कैसे दोषी हूं?”
अपनी ट्रॉली बैग उठाने की कोशिश करने वाले तख्त सिंह चिल्लाए, “अगर उन्हें कोई शर्म होती, तो वह देखते कि उन्होंने बेहन-बेटियों के साथ क्या किया है. वह जंग नहीं करते, परिवारों को खत्म करते हैं.”
लोगों को रोते हुए, अपने परिवारों को पीछे छोड़ते हुए देखना दुखद है…लेकिन यही है. स्थिति असहाय है
— अटारी-वाघा बॉर्डर पर बीएसएफ के एक अधिकारी
बच्चों के मन में भी खामोश दुख है. अयान अपनी कार की पिछली सीट पर बैठे हैं और गेट की तरफ देख रहे हैं.
उन्होंने रुंधते गले से कहा, “मैं इस गेट को खुलते हुए भी नहीं देखना चाहता. मैं बस इतना चाहता हूं कि जब मैं पार करूं तो मेरी मां मेरा हाथ थामे रहे.”
अटारी-वाघा में सबसे ज़्यादा देर तक दरवाज़े बंद होने या पासपोर्ट पर मुहर लगने की आवाज़ नहीं सुनाई देती. यह टूटे हुए वादों की गूंज है, आंसुओं के बीच फुसफुसाए गईं दुआओं, नक्शे पर खींची गई रेखाओं से बिखरते परिवार और उन लोगों का शांत रोष है जिन्होंने फिर से एक होने का अपना आखिरी मौका भी खो दिया है.
रबिका ने आंसू भरी आंखों से कहा, “हमने मुस्कुराते हुए यह सीमा पार की और हम ज़ख्मों के साथ वापस लौट रहे हैं. कुछ ज़ख्मों को कोई वक्त या कोई सरकार नहीं भर सकती.”
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