लुधियाना: पंजाब के बखतगढ़ गांव में मस्जिद उमर बिन खत्ताब को बनाने में एक साल का समय, कुछ मजदूरों की मेहनत और बारह लाख रुपए से अधिक की लागत लगी. नीले और गुलाबी रंग की धारियों से सजी सफेद मीनारों वाली यह चमचमाती नई मस्जिद न सिर्फ गांव के करीब 15 मुस्लिम परिवारों के लिए, बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार से आए नए मुस्लिम प्रवासी मजदूरों के लिए भी एक आध्यात्मिक आश्रय बन गई है.
पंजाब की जनसंख्या संरचना धीरे-धीरे बदल रही है. और उसके साथ-साथ, यहां की स्थिति भी.
इसकी शुरुआत 2022 में तब हुई जब एक सिख निवासी ने बखतगढ़ के मुसलमानों को उनकी उपासना की आवश्यकता को समझते हुए आठ मरले जमीन दान में दे दी. इससे पहले, गांव के मुस्लिम निवासियों को नमाज अदा करने के लिए चार किलोमीटर दूर एक अन्य गांव जाना पड़ता था.
स्थानीय पशु चिकित्सक मोती खान ने मस्जिद से बाहर निकलते हुए कहा, “इस मस्जिद का निर्माण गांव के मुसलमानों, अन्य धार्मिक समुदायों के निवासियों और पंजाब के बाहर के मुस्लिमों के सामूहिक प्रयास से हुआ है. यहां कई मुस्लिम प्रवासी मौसमी रूप से काम करने आते हैं, लेकिन अब हमारे पास खुद की एक इबादतगाह होना बहुत अच्छा लग रहा है.”
खान के अनुसार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुस्लिम परिवारों ने मस्जिद के निर्माण में लगभग 6 लाख रुपये का योगदान दिया.

हालांकि, 2023 में बनी बखतगढ़ की यह नई मस्जिद केवल गांव के बदलते सामाजिक और धार्मिक परिदृश्य का एक प्रतीक मात्र नहीं है. पंजाब में खेतों से लेकर लुधियाना के औद्योगिक उपनगरों तक, प्री-पार्टिशन (विभाजन से पहले) की मस्जिदों को पुनर्जीवित करने या नई मस्जिदें बनाने के प्रयास जारी हैं. जमात-ए-इस्लामी हिंद की राज्य इकाई के एक प्रतिनिधि ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले पांच वर्षों में ऐसे 165 मस्जिदों का निर्माण या पुनर्निर्माण किया गया है. यह पंजाब में बदलते प्रवासन पैटर्न का एक संकेत और प्रतिक्रिया दोनों है.
‘डंकी’ रूट से कनाडा और अमेरिका जाने के लिए मशहूर पंजाब अब उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल से आए मुस्लिम मजदूरों को अपना रहा है. ये मजदूर अब धीरे-धीरे यहां अपनी जड़ें जमाने लगे हैं.
1990 के दशक से अंतरराज्यीय मौसमी प्रवासन बढ़ रहा है. लेकिन अब इसमें एक बड़ा बदलाव यह है कि मजदूर अपने परिवारों को भी साथ ला रहे हैं. पंजाब के बदलते सामाजिक ताने-बाने ने यह बहस छेड़ दी है कि यह प्रवृत्ति राज्य में बढ़ती श्रमिकों की कमी का नतीजा है या फिर इसके पीछे कोई राजनीतिक कारण है.
इस बीच, पंजाब में अधिक से अधिक मस्जिदें बनाई जा रही हैं—और इसमें स्थानीय सिख समुदाय भी सहयोग कर रहा है. यह प्रवृत्ति मुस्लिम प्रवासियों की बढ़ती संख्या के समानांतर चल रही है.
“कई खेतिहर मजदूर चार-पांच महीने के लिए पंजाब आते हैं और इस मस्जिद में इबादत करते हैं. मैं खुद बिहार के पूर्णिया से हूं,” बखतगढ़ की मस्जिद के मौलवी मोहम्मद निजामुद्दीन ने कहा.
पंजाब में प्रवासियों और कारोबारियों के सामाजिक-आर्थिक या धार्मिक जानकारी पर कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है. लेकिन धीरे-धीरे यह साफ होता जा रहा है कि विभाजन से पहले राज्य की सबसे बड़ी आबादी रहे मुसलमान यहां फिर लौट रहे हैं.
यह बदलाव सिर्फ ग्रामीण इलाकों में कृषि मजदूरी तक सीमित नहीं है, बल्कि लुधियाना, चंडीगढ़ और जालंधर जैसे शहरों के औद्योगिक केंद्रों, कपड़ा निर्माण इकाइयों और कारखानों में भी दिखाई दे रहा है.
जालंधर जिले के जमीयत उलेमा-ए-हिंद अध्यक्ष और खमबरा स्थित मस्जिद कुबा के अध्यक्ष मज़हर आलम ने कहा, “कई श्रमिक, स्वरोजगार करने वाले और छोटे-मंझोले व्यापारी अब अपने परिवारों के साथ बस रहे हैं, जबकि पहले वे काम करके वापस चले जाते थे. पिछले पांच वर्षों में उनकी संख्या लगभग दोगुनी हो गई होगी.”
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उत्तर प्रदेश से पंजाब
लुधियाना के बाहरी इलाके साहनेवाल में मोहम्मद अहद अपनी फैक्ट्री के विशाल यार्ड में फैले ई-वेस्ट—डेस्कटॉप कंप्यूटर से लेकर लैपटॉप तक—का निरीक्षण कर रहे हैं. सहारनपुर (यूपी) से ताल्लुक रखने वाले अहद पिछले 25 सालों से लुधियाना में रह रहे हैं और यहीं उन्होंने अपना ई-वेस्ट कारोबार खड़ा किया.
अहद फोन पर एक अन्य मुस्लिम उद्यमी से बात करते हैं, जिसकी आवाज़ में पश्चिमी यूपी की खास खिंचाव भरी हिंदी झलकती है.
“ताजपुर रोड पर बनने वाले हाउसिंग सोसाइटी का क्या चल रहा है?” वे अपने दोस्त से पूछते हैं, जो वाराणसी से हैं और फर्नीचर का व्यवसाय करते हैं. “क्या मुसलमानों को आसानी से घर मिल रहे हैं?”

अहद के नेटवर्क के कई लोग हाल के वर्षों में पंजाब आए हैं या आने की योजना बना रहे हैं. वे कम से कम पांच मुस्लिम परिवारों को जानते हैं, जो वाराणसी से लुधियाना शिफ्ट हो रहे हैं—सभी फर्नीचर व्यवसाय से जुड़े हैं. लेकिन सिर्फ व्यापार ही कारण नहीं है; कुछ परिवार इसलिए भी आ रहे हैं क्योंकि वे अपने पुराने मोहल्लों में तनाव का सामना कर रहे थे.
अहद के पिता, मोहम्मद इरफान (65), 2000 के दशक की शुरुआत में पंजाब आए थे, जब वे शुगर मिल्स के ठेकेदार हुआ करते थे. आज उनके तीनों बच्चे यहीं बस चुके हैं. अहद ने भी लुधियाना के ही एक प्रवासी परिवार की महिला से शादी की है.
इरफान के मुताबिक, उनके जैसे “कम से कम 10 अन्य परिवार” पश्चिमी यूपी से आए और अब ताजपुर रोड के इलाके में बस चुके हैं.
ई-वेस्ट प्लांट में काम करने वाले 29 वर्षीय दिलशाद भी सहारनपुर के नानौता कस्बे से करीब एक दशक पहले लुधियाना आए थे.
उनकी पत्नी और बच्चे अभी भी यूपी में हैं, लेकिन वे जल्द ही उन्हें लुधियाना लाने की योजना बना रहे हैं.
उन्होंने कहा, “बच्चों की पढ़ाई के लिए लुधियाना बेहतर है। सहारनपुर में कुछ नहीं है.”
लुधियाना के जुगियाना, राम नगर और ताजपुर रोड जैसे इलाकों में भी ऐसे कई परिवारों की कहानियां उभर रही हैं—जहां मुस्लिम प्रवासी अपने लिए नई ज़मीन तलाश रहे हैं, नए सिरे से जीवन बसा रहे हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार पंजाब को सबसे अधिक प्रवासी भेजने वाले राज्य रहे हैं. पंजाब में यूपी से 6,50,000 और बिहार से 3,50,000 से अधिक प्रवासी रहते हैं. 2023 में राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया गया कि 2011 तक पंजाब में लगभग 12,44,056 प्रवासी मजदूर थे, जबकि अकेले चंडीगढ़ में 2,06,642 प्रवासी मजदूर मौजूद थे.
2011 की जनगणना के आंकड़ें बताते हैं कि पंजाब में मुस्लिम आबादी 1971 में 2,52,688 थी, जो बढ़कर 5,35,489 हो गई.
1947 के बाद से पंजाब में मलेरकोटला और कादियान (अहमदिया संप्रदाय का केंद्र) ही मुस्लिम पहचान से जुड़े प्रमुख स्थान रहे हैं. मलेरकोटला में मुस्लिम जनसंख्या 1971 में 15.2 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 22.5 प्रतिशत हो गई. लेकिन मलेरकोटला और उसके गृह जिले संगरूर से बाहर पंजाब में मुस्लिम आबादी 1971 में 53,000 थी, जो 2011 में 3,56,000 से अधिक हो गई.
लुधियाना में 2011 की जनगणना के अनुसार 45,473 मुस्लिम रहते हैं. इसकी होजरी, टेक्सटाइल और स्टील निर्माण उद्योग देशभर से मजदूरों को आकर्षित करता है.
पंजाब इस्लामिक वेलफेयर सोसाइटी की अध्यक्ष सरवर ग़ुलाम सबा ने कहा, “कोई धार्मिक कारणों से यहां नहीं आता, लेकिन हाल के वर्षों में यूपी से मुस्लिम प्रवासियों की संख्या बढ़ी है. वे सिर्फ काम के लिए नहीं, बल्कि स्थायी रूप से बसने के लिए आ रहे हैं.”
उन्होंने आगे बताया कि पुरानी मस्जिदों के मरम्मत और नई मस्जिदों के निर्माण की गति इसी बढ़ती मांग का नतीजा है.
मस्जिदों का निर्माण और मरम्मत
पंजाब के बखतगढ़ गांव में अमनदीप सिंह अक्सर अपने घर लौटते समय नई मस्जिद को देखते हैं और गर्व महसूस करते हैं. उन्होंने जो ज़मीन दान की थी, उसी से मस्जिद बनने की प्रक्रिया शुरू हुई.
अमनदीप सिंह ने कहा, “मेरा सिर्फ एक बेटा है जो कनाडा में बस चुका है. मेरा परिवार छोटा है, और मुझे उस ज़मीन की ज़रूरत नहीं थी. मुझे लगा कि इसे दान करना एक अच्छा काम होगा, जिससे समाज में एकता बनी रहे.”
बखतगढ़ के निवासियों ने मिलकर मस्जिद के लिए करीब 2 लाख रुपए जुटाए. मुस्लिम दाताओं और चैरिटी ट्रस्टों ने बाकी की राशि दी. आसपास के गांवों के लोगों ने निर्माण सामग्री जैसे सीमेंट और ईंटें दान करके मदद की. मस्जिद के मौलवी, मोहम्मद निज़ामुद्दीन ने बताया कि आसपास के इलाकों में कम से कम चार और मस्जिदों का निर्माण जारी है.
बखतगढ़ से दो किलोमीटर दूर भोटना गांव में, 1947 से पहले बनी एक पुरानी मस्जिद का पुनर्निर्माण किया जा रहा है.
“हाल ही में, हमने व्हाट्सएप पर उमरपुरा गांव में एक मस्जिद के पुनर्निर्माण का वीडियो देखा. अच्छा लग रहा है कि अब हमारे पास भी इबादत के लिए जगह होगी,” बखतगढ़ के निवासी भोला खान ने कहा, जिनका परिवार विभाजन से पहले से पंजाब में रह रहा है.
बरनाला जिले के मूम गांव में 2020 में हिंदू, सिख और मुस्लिम निवासियों ने मिलकर ‘अमन मस्जिद’ बनाने के लिए 12 लाख रुपये जुटाए. हाल ही में, मार्च 2023 में, बरनाला जिले के ही कुतबा बहमानिया गांव में पहली मस्जिद का पुनर्निर्माण किया गया, क्योंकि 1947 के बाद पुरानी मस्जिद जर्जर हो गई थी.
2021 में, भल्लूर गांव के सरपंच पाला सिंह ने एक प्री-पार्टिशन मस्जिद को फिर से बहाल करने की पहल की थी.

2021 में, भल्लूर गांव के सरपंच पाला सिंह ने विभाजन से पहले बनी एक मस्जिद के रेस्टोरेशन की पहल की थी.
सिंह ने उस समय मीडिया को बताया था, “विभाजन के बाद, ज्यादातर मुस्लिम परिवार पाकिस्तान चले गए और मस्जिद खंडहर बन गई. अब नई मस्जिद उसी जमीन पर बनाई जाएगी.”
पंजाब के गांवों में नई मस्जिदों के निर्माण के साथ-साथ सांप्रदायिक सौहार्द्र दिखाने वाले वीडियो भी सामने आ रहे हैं.
जनवरी 2024 में, सोशल मीडिया पर मलेरकोटला के उमरपुरा गांव में एक नई मस्जिद के उद्घाटन की तस्वीरें और वीडियो वायरल हुए. पूर्व सरपंच सुखजिंदर सिंह नोनी और उनके भाई ने मस्जिद निर्माण के लिए अपनी जमीन दान कर दी थी. 12 जनवरी को पंजाब के शाही इमाम मोहम्मद उस्मान रहमान लुधियानवी ने मस्जिद की आधारशिला रखी.
हालांकि, लुधियानवी का कहना है कि मस्जिदों का निर्माण और रेस्टोरेशन कोई नया चलन नहीं है.
“यह एक गलत धारणा है कि पंजाब में सिर्फ मलेरकोटला में मुस्लिम रहते हैं. समुदाय पूरे राज्य में मौजूद है, खासकर ग्रामीण इलाकों में. मैं इस धारणा से सहमत नहीं हूं कि मस्जिदों का निर्माण प्रवास की वजह से हो रहा है, क्योंकि अगर आप ग्रामीण पंजाब में जाएंगे, तो पहले से ही कई मस्जिदें मौजूद हैं,” उन्होंने कहा.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि लोग इस पर अब चर्चा कर रहे हैं क्योंकि “सोशल मीडिया और मौजूदा राजनीतिक माहौल के कारण” यह मुद्दा चर्चा में आ गया है.
“ये वीडियो पंजाबी संस्कृति को सभी धर्मों के प्रति आपसी सम्मान के साथ दर्शाते हैं, इसलिए लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं,” शाही इमाम ने कहा. लेकिन इसके तुरंत बाद, उन्होंने दावा किया कि पिछले दो-तीन सालों में लगभग 50 नई मस्जिदें गांवों में बनाई गई हैं.
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ज्यादा व्यापार, सुरक्षा?
लुधियाना में कारोबारी अलीमुद्दीन सैफी अपने बैंक्वेट-स्टाइल होटल के दफ्तर में बैठे थे, जब पंजाबी दोस्तों का एक समूह मिठाई का डिब्बा लेकर उनसे मिलने आया.
“जो परिवार मुझे अपनी शादी में आमंत्रित करने आया था, वे पंजाबी हिंदू हैं. मैं यह नहीं कह रहा कि यहां भाईचारा ज़्यादा है, लेकिन मुझे लगता है कि मैंने यहां एक मज़बूत समुदाय बना लिया है,” सैफी ने कहा. “यहां कोई मुस्लिम व्यापारों को बंद करने की धमकी नहीं दे रहा, न ही मुझसे होटल और फैक्ट्री के बाहर मेरा नाम या धर्म लिखने के लिए कहा जा रहा है.”

50 वर्षीय सैफी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर से हैं. उनका परिवार गारमेंट बिजनेस में है और 1960 के दशक से लुधियाना और जालंधर में कारोबार कर रहा है. लेकिन अब उन्हें यकीन है कि उनकी अगली पीढ़ी पंजाब में ही बसेगी.
उन्होंने कहा, “1980 के दशक में जब खालिस्तान आंदोलन चल रहा था, तो गांवों में परिवार अपने बेटों से पंजाब छोड़ने की बात करते थे. आज वही हालात हमारे लिए उत्तर प्रदेश में हैं. जहां दबाव ज़्यादा होता है, वहां से बाहर निकलने की इच्छा भी उतनी ही प्रबल होती है.”
उनके पिता 1960 के दशक में पंजाब आए और अपना होजरी व्यवसाय बढ़ाया, जबकि परिवार के बाकी लोग यूपी में ही रहे. सैफी 1980 के दशक में लुधियाना शिफ्ट हुए, और अब वह और उनके भाई यहीं पूरी तरह बस चुके हैं.
सैफी ने बताया कि लुधियाना में कोई भी मुस्लिम खुले तौर पर यह नहीं कहेगा कि उसने राजनीतिक कारणों से पलायन किया. लेकिन उन्होंने एक सवाल उठाया—”अगर आपके घर पर बुलडोज़र चलने की आशंका बनी रहती है, तो कौन वहां रहकर कारोबार करना चाहेगा?”
उन्होंने व्हाट्सएप पर अपने पारिवारिक ग्रुप के वीडियो दिखाए, जिनमें यूपी के संभल के विधायक जिया-उर-रहमान बरक के घर पर पुलिस की छापेमारी दिखाई गई थी. दिसंबर 2024 की इस घटना में उन पर ‘बिजली चोरी’ का आरोप लगाया गया था. जाहिर है कि नवंबर 2024 के संभल दंगों, जिनमें आम नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की जान गई थी, के मामलों में बरक का नाम भी शामिल किया गया था.
संभल में बढ़ते तनाव पर परिवार के ग्रुप में चर्चा हो रही थी, लेकिन पंजाब में भी असंतोष की हल्की आहट सुनाई देती है. सैफी अक्सर ई-वेस्ट प्लांट के मालिक मोहम्मद अहद से सतर्कता से बातें करते हैं. वे अक्सर गैंगस्टर से नेता बने लखा सिधाना की प्रवासी-विरोधी बयानबाजी पर चर्चा करते हैं. एक इंस्टाग्राम रील में सिधाना को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि पंजाब के गांवों में यूपी और बिहार से आए प्रवासी मज़दूरों को वोटर लिस्ट में शामिल नहीं होने चाहिए और उन्हें स्थायी रूप से बसने से रोकना चाहिए.
इस बीच, करीब 100 किलोमीटर दूर, चंडीगढ़ ट्राइसिटी में कुछ लोग ऐसे दावों से सहमत नहीं हैं. संभल के 50 वर्षीय रियल एस्टेट कारोबारी तबरेज़ आलम, जो मोहाली के खारड़ क्षेत्र में रहते हैं, मानते हैं कि प्रवास का कारण केवल आर्थिक अवसर हैं.
अपने जड़े हुए अंगूठियों वाले हाथ लहराते हुए, आलम इस्लाम और सिख धर्म की “आध्यात्मिक समानताओं” की चर्चा करते हैं और “पंजाब की आध्यात्मिक संस्कृति” के प्रति अपने प्रेम को जाहिर करते हैं. उन्होंने बताया कि खारड़ क्षेत्र में कुछ नई मस्जिदों का निर्माण हुआ है, जो यहां प्रवासी आबादी के बढ़ने का संकेत है.
“लेकिन मस्जिदों का निर्माण केवल मुस्लिम प्रवासियों के कारण नहीं हो रहा. प्रवास धर्म-विशेष से जुड़ा नहीं है. अगर एक मुस्लिम परिवार जा रहा है, तो चार हिंदू परिवार भी जा रहे हैं। मेरा भाई और मैं यहां इसलिए आए क्योंकि हमारा पंजाब से गहरा जुड़ाव है,” उन्होंने कहा.
उन्होंने यह भी जोड़ा कि पंजाब में सुरक्षा की भावना है, क्योंकि “सिख समुदाय आम तौर पर मुस्लिमों का समर्थन करता है.”