कोच्चि: कोच्चि में 15 साल की स्टूडेंट के लिए उनकी नाक से टपकता खून एक चेतावनी थी, जिसे पोछते हुए उन्होंने खुद से कहा, ‘अब और नहीं’. अब और कोकीन नहीं. अब और MDMA नहीं. अब और ड्रग्स नहीं.
बचपन से उनका सपना पुलिस अधिकारी बनने का था, लेकिन, वयस्कता की दहलीज़ पर वे अपने परिवार से अलग होकर महिलाओं के लिए बने सरकारी सहायता प्राप्त नशा मुक्ति केंद्र में हैं. उनक पहला प्रेमी उनका सप्लायर था और वे बमुश्किल दो साल में मारिजुआना और हशीश से MDMA और कोकीन तक पहुंच गई.
किशोरी ने कहा, “इसकी शुरुआत गांजा से हुई. मैं अपना ज़्यादातर वक्त बाहर बिताती थी, दोस्तों के साथ घूमती और ड्रग्स मिलना कभी मुश्किल नहीं था. इतना आसान था कि यह मेरी ज़िंदगी का एक पार्ट बन गया.”
वह एक ‘बीमारी’ का लक्षण है जो केरल के सुरक्षित स्थानों — स्कूलों, कॉलेज कैंपस और मिडिल क्लास के घरों में भी फैल गई है.
गॉड्स ऑन कंट्री में अब नशीली दवाओं की समस्या है. कोच्चि के डिप्टी एक्साइज कमिश्नर माजू टीएम के अनुसार, केरल में जब्त की गई प्रतिबंधित दवाओं की सूची में एमडीएमए सबसे ऊपर है, इसके अलावा कोकेन, एलएसडी, हशीश, ब्राउन शुगर और हेरोइन भी शामिल हैं.
“स्कूली बच्चे, कॉलेज स्टूडेंट्स — भीख मांगते हैं, सौदेबाजी करते हैं.”

एक राज्य जो पूर्ण साक्षरता, मजबूत सार्वजनिक कल्याण और बेहतरीन स्वास्थ्य संकेतकों पर गर्व करता है, लंबे समय से शराब की लत, आत्महत्या की चिंताजनक दरों और अनियंत्रित लॉटरी कल्चर से जूझ रहा है. अब, इसमें एक और घातक संकट जड़ जमा रहा है — सिंथेटिक ड्रग्स, जो इसके युवाओं को खतरे में डाल रहा है.
कोच्चि में एक पूर्व ड्रग यूज़र और डीलर 24-वर्षीय सेबी ने कहा, “स्कूली बच्चे, कॉलेज स्टूडेंट्स — भीख मांगते हैं, सौदेबाजी करते हैं.” वह शहर के एक नशा मुक्ति केंद्र में हैं, जहां अपनी ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाने के लिए दृढ़ हैं. उन्होंने कहा, “जब मैं उन्हें मना करता हूं, तो वह दूसरे डीलर का नंबर मांगते हैं.”
जिस शहर में सेबी बड़े हुए थे — जिस राज्य को उन्होंने कभी प्रगति का प्रतीक माना था — वह उनकी आंखों के सामने बदल रहा है. महामारी के दौरान एक खामोशी को छोड़कर, केरल ने 2016 से 2022 तक नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में 300 प्रतिशत की वृद्धि देखी है. यह पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे पारंपरिक रूप से उच्च बोझ वाले राज्यों से भी आगे निकल गया है. 2022 में, केरल ने NDPS अधिनियम के तहत 26,619 मामले दर्ज किए — पंजाब के 12,442 से दोगुने से भी ज़्यादा और यूपी के 11,541 से ज़्यादा.
चहल-पहल वाले शहरों से लेकर शांत छोटे शहरों तक, ड्रग नेटवर्क खतरनाक दर से फैल रहे हैं, जो कैंपस में नशे की लत को बढ़ावा दे रहे हैं और कोच्चि को घेरने वाला एर्नाकुलम जिला इस संकट का केंद्र बिंदु बनकर उभरा है.
पुलिस, राजनेता और यहां तक कि पुजारियों ने भी हाल के महीनों में अपनी कोशिशों को तेज़ किया है. ऑपरेशन डी-हंट से लेकर ऑपरेशन क्लीन स्लेट तक, राज्य सरकार ने पेइंग गेस्ट घर, होटल और हॉस्टलों में छापेमारी, कार्रवाई और जब्ती तेज़ कर दी है. कैंपस में स्पेशल कैंपेन, जागरूकता अभियान और काउंसलिंग सेशन आयोजित किए जा रहे हैं.
यह एक राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है.
कांग्रेस के लोकसभा सांसद शशि थरूर ने इस महीने की शुरुआत में तिरुवनंतपुरम में मीडिया से कहा, “यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे मैंने संसद में उठाया है और मुझे अधिकारियों से संतोषजनक जवाब नहीं मिला है. हमें केरल में ड्रग्स के खिलाफ जंग छेड़नी होगी.” उन्होंने इसे “बेहद गंभीर” स्थिति बताया. हालांकि, खतरे की घंटी बजाने वाले वे कोई अकेले नेता नहीं हैं.
फरवरी में, केरल विधानसभा ने ड्रग के खतरे पर चर्चा करने के लिए नियमित कामकाज को स्थगित कर दिया था. विपक्ष ने मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन पर इसे एक बड़े वैश्विक रुझान के हिस्से के रूप में पेश करके संकट को कम करके आंकने का आरोप लगाया.
केरल हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति वी.जी. अरुण ने मार्च 2025 में नशीली दवाओं के दुरुपयोग से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा, “हम ऐसी स्टेज में पहुंच गए हैं, जहां राज्य विधानसभा को इस सामाजिक खतरे पर विचार करने के लिए अपने नियमित कामकाज को स्थगित करना पड़ा. सत्र को स्थगित कर दिया गया क्योंकि यह मुद्दा अब स्कूलों तक पहुंच गया है. यह वह सच्चाई है जिससे हमें निपटना है. हम इसे यह कहते हुए टालते रहे हैं कि केरल में ऐसा नहीं हो रहा है.”
यह भी चिंताजनक है कि केरल में नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों में वृद्धि हुई है — डकैती, गैंगवार और यहां तक कि हत्याएं भी.
केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और सीपीआईएम की नेता के.के. शैलजा ने कहा, “केरल में अब लोगों के पास पैसा है और ड्रग माफियाओं ने अपना बाज़ार बनाने के लिए केरल को चुना है. वह युवाओं को निशाना बना रहे हैं क्योंकि वह इसके लिए एकदम सटीक टार्गेट हैं.”

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नशे के खिलाफ जंग
पार्टी ड्रग MDMA केरल में अपना दौर देख रहा है.
सेबी ने मेडिकल स्टूडेंट्स, होटलों में मेहमानों और यहां तक कि स्कूलों में भी मारिजुआना और MDMA बेचना शुरू कर दिया. हर बूंद से उन्हें 1,000-2,000 रुपये मिलते थे — जो उनकी अपनी आदत को ज़िंदा रखने के लिए काफी था. तीन साल तक नशे की लत, तीन नशा मुक्ति केंद्रों और कई काउंसलिंग सेशन के बाद, अब वे अपनी रिकवरी के फाइनल स्टेज में हैं, लेकिन ऑर्डर के लिए उनका फोन अभी भी बजता है — लगभग सभी ऑर्डर स्टूडेंट्स ही देते हैं.
नशा मुक्ति केंद्र में काली कुर्सी पर बैठे सेबी ने कहा, “मैं उन्हें चेतावनी देने की कोशिश करता हूं, उन्हें बताता हूं कि कैसे इसने मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी, लेकिन किसी को परवाह नहीं है. जब तलब लगती है, तो कुछ और मायने नहीं रखता. न भविष्य, न परिवार — चाहिए तो बस नशा.”

पुलिस और आबकारी विभाग ने सेबी जैसे डीलरों पर अपनी कार्रवाई तेज़ कर दी है. अगर वह उन्हें रंगे हाथों नहीं पकड़ पाते हैं, तो अधिकारी उनके घरों पर दस्तक दे रहे हैं. 21 साल के मुहम्मद नसीफ के साथ यही हुआ. 4 मार्च को रात 10:30 बजे छह पुलिस अधिकारियों की एक टीम उनके कोच्चि स्थित घर पर पहुंची. उसे 4.2 ग्राम एमडीएमए, एक इलेक्ट्रॉनिक वजन मापने वाली मशीन और खाली ज़िप-लॉक पैकेटों के जखीरे के साथ गिरफ्तार किया गया. उसके सबसे बड़े ग्राहक स्कूल और कॉलेज जाने वाले किशोर थे. पुलिस ने बताया कि उनमें से कई बी.टेक के स्टूडेंट्स थे, जो मुश्किल से किशोरावस्था से बाहर निकले थे.
छापेमारी में शामिल एक इंस्पेक्टर ने बताया, “ज़्यादातर ग्राहक 21 साल से कम उम्र के थे. उसने कुछ महीने पहले ही इसे बेचना शुरू किया था, लेकिन राज्य में युवा पेडलर्स का चलन बढ़ रहा है, ठीक वैसे ही जैसे इसका इस्तेमाल बढ़ रहा है.”
1 जनवरी 2023 से 1 जून 2024 के बीच राज्य भर में दर्ज किए गए 41,53 एनडीपीएस मामलों में से एर्नाकुलम जिले में 8,567 मामले दर्ज किए गए, जो राज्य में सबसे ज़्यादा है. इनमें से 6,436 कोच्चि से थे.
केरल में पार्टी ड्रग एमडीएमए का दौर चल रहा है. यह उत्तेजक पदार्थ जो मतिभ्रम का कारण भी बनता है, उसे कई नामों से जाना जाता है — मॉली, एक्स्टसी, एक्स और एक्सटीसी. पुलिस और आबकारी अधिकारियों के अनुसार, सिर्फ एक साल में इसकी जब्ती में 65 प्रतिशत से ज़्यादा की वृद्धि हुई है.
2016 में आबकारी विभाग द्वारा दर्ज की गई जब्ती में एमडीएमए नहीं था. 2022 तक, विभाग द्वारा 7,775.425 ग्राम ड्रग जब्त किया गया. मनोरंजक ड्रग मेथामफेटामाइन के साथ भी ऐसा ही मामला था, जिसने पहली बार 2021 में आबकारी विभाग का ध्यान खींचा था. उस समय, लगभग 88.806 ग्राम ड्रग जब्त किया गया था. 2022 तक, 2,400 ग्राम से अधिक जब्त किया जा चुका था.
2025 के पहले दो महीनों में, 18 साल से कम उम्र के 588 बच्चों ने केरल भर के नशा मुक्ति केंद्रों में इलाज की मांग की. जवाब में, सरकार 1 अप्रैल से एक व्यापक “केरल मॉडल” नशा विरोधी अभियान शुरू करेगी.
कोच्चि के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “बेंगलुरु सबसे पास वाला सेंटर है, जहां से ड्रग्स, विशेष रूप से एमडीएमए और मेथ वेरिएंट केरल में आते हैं, चेन्नई एक अन्य प्रमुख सप्लाई प्वॉइंट है. केरल की 590 किलोमीटर लंबी तटरेखा इसे ड्रग तस्करी के लिए अत्यधिक संवेदनशील बनाती है. चुनौती को जोड़ते हुए, कोच्चि दो रेलवे स्टेशनों और एक अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के साथ एक प्रमुख पर्यटन स्थल है, जो इसे तस्करी के लिए एक आकर्षण का केंद्र बनाता है.”
राज्य के आबकारी मंत्री एमबी राजेश के अनुसार, ऑपरेशन क्लीन स्लेट के तहत 5 से 12 मार्च के बीच 3,568 छापे मारे गए, जिससे 1.9 करोड़ रुपये की ड्रग्स जब्त किया गया.
इस बढ़ते संकट से निपटने के लिए, केरल पुलिस ने ड्रग नेटवर्क, विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों को आपूर्ति करने वाले लोगों को लक्षित करते हुए एक राज्यव्यापी कार्रवाई ऑपरेशन डी-हंट शुरू किया. मार्च 2025 की शुरुआत में एक हफ्ते तक चलने वाले विशेष अभियान के दौरान, इस अभियान के तहत ड्रग तस्करी के संदिग्ध 2,854 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया. राज्य सरकार ने ऑपरेशन डी-हंट की अवधि भी 31 मार्च तक बढ़ा दी.
इस महीने की शुरुआत में, कोच्चि सिटी पुलिस ने सुबह-सुबह छापेमारी की और फोर्ट कोच्चि के एक होटल से 300 ग्राम एमडीएमए जब्त किया. इस अभियान में 40 अधिकारी शामिल थे.
सुबह करीब 6 बजे, पांच अधिकारियों ने संदिग्धों द्वारा बुक किए गए होटल के कमरे का दरवाजा खटखटाया. पुलिस ने अंदर से दो महिलाओं और तीन पुरुषों को गिरफ्तार किया, जो कथित तौर पर ड्रग तस्करी में शामिल थे. उनमें पुणे की एक पढ़ी-लिखी महिला भी शामिल थी. छापेमारी में शामिल एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि एमडीएमए, कथित तौर पर भारत के बाहर से मंगाया गया था और बांटे जाने के लिए तैयार था.
यह छापेमारी केरल में मादक पदार्थों पर कड़ी कार्रवाई का हिस्सा थी, जहां अधिकारी एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप और डार्कनेट मार्केट के जरिए किए जाने वाले ड्रग सौदों पर नज़र रखने के लिए डिजिटल निगरानी पर काफी भरोसा कर रहे हैं. आबकारी विभाग ने भी राज्य में बढ़ते ड्रग खतरे को रोकने के लिए समानांतर अभियान चलाकर अपने प्रयासों को तेज कर दिया है.
कोच्चि के आबकारी उपायुक्त माजू टी.एम. ने कहा, “ड्रग्स कूरियर सर्विस, डार्क वेब और क्रिप्टोकरेंसी के जरिए भी बेचे जा रहे हैं. हम इस स्थिति से निपटने के लिए हर मोर्चे पर लड़ रहे हैं.”
केरल में ज़्यादातर ड्रग लेन-देन बिना पहचान के होते हैं, जो अक्सर डार्क वेब और क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिए किए जाते हैं. ज़मीनी स्तर पर, अधिकारियों ने लगभग 1,300 ड्रग-पैडल की पहचान की है, राज्य भर में ‘ब्लैक स्पॉट’- सुनसान सड़कें, खाली पड़ी इमारतें, समुद्र तट पर बनी झुग्गियां, कुछ बस स्टॉप और यहां तक कि शिक्षण संस्थानों के पास के स्थान जहां डीलर चुपके से काम करते हैं.
माजू ने कहा, “तस्कर अब ड्रग्स बेचने के लिए इंस्टाग्राम, डार्क वेब और क्रिप्टो ट्रांजेक्शन का इस्तेमाल कर रहे हैं, अक्सर स्टूडेंट्स को मुफ्त सैंपल का लालच देते हैं. हम रोकथाम कार्यक्रमों और जागरूकता कार्यक्रमों के लिए स्कूलों और कॉलेजों के साथ सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं.”
इस बीच, पुलिस ने ड्रग से संबंधित हिंसक अपराधों में वृद्धि दर्ज की है. पिछले तीन महीनों में हुए मामले इस परेशान करने वाली प्रवृत्ति को उजागर करते हैं. 24 दिसंबर 2024 को वर्कला में एक 60-वर्षीय व्यक्ति की इसलिए हत्या कर दी गई क्योंकि उन्होंने अपने जिले में ड्रग के इस्तेमाल का विरोध किया था. कोझिकोड में, 25 जनवरी को गिरफ्तारी से बचने के लिए एमडीएमए पैकेट निगलने के बाद 28-वर्षीय व्यक्ति की मौत हो गई. पुलिस के अनुसार, 18 जनवरी को 25-वर्षीय ड्रग यूज़र ने अपनी मां की बेरहमी से हत्या कर दी – जो ब्रेन की सर्जरी से उबर रही थी – कथित तौर पर “उसे जन्म देने की सज़ा” के तौर पर.
कोच्चि के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “हमने नशे की लत और बढ़ते अपराध के बीच क्लियर संबंध देखा है. चोरी और हमलों से लेकर हिंसक हत्याओं तक, नशेड़ी अपनी लत को पूरा करने के लिए अपराध का सहारा ले रहे हैं.”
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थेरेपी से रिकवरी

माजू और उनकी टीम नशीली दवाओं के नेटवर्क को खत्म करने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) और पुलिस के साथ मिलकर काम करती है, साथ ही विमुक्ति नशा मुक्ति केंद्रों के साथ मिलकर युवाओं को काउंसलिंग और थेरेपी देकर रिकवरी में मदद करती है. 2018 में स्थापित उनका कोच्चि स्थित काउंसलिंग सेंटर, नशे की लत से जूझ रहे व्यक्तियों को सीधी मदद देता है. केंद्र व्यक्तिगत थेरेपी, ग्रुप काउंसलिंग और जागरूकता कार्यक्रम प्रदान करता है.
“जब मैं पहली बार यहां आया, तो मुझे लगा कि मेरी ज़िंदगी खत्म हो गई है, लेकिन यहां, मुझे ऐसे लोग मिले जो मुझे समझते थे और जो मुझे जज नहीं करते थे.”
कोच्चि से लगभग 30 किलोमीटर दूर, एक चर्च द्वारा संचालित महिलाओं का नशा मुक्ति केंद्र, कुछ सरकारी सहायता के साथ, घनी हरियाली के बीच शांत है. हालांकि, सेंटर को सरकार से सीधे वित्तीय सहायता नहीं मिलती, लेकिन इसकी 20 बिस्तरों वाला सेंटर हमेशा भरा रहता है, जो नशे की लत से जूझ रही महिलाओं के लिए पुनर्वास स्थानों की बढ़ती ज़रूरत को दर्शाता है.

अंदर, माहौल व्यवस्थित और उम्मीद भरा है. सेंटर में एक छोटा सा कार्यालय, काउंसलिंग रूम और एक हॉल है, जहां महिलाएं पढ़ती हैं, पेंटिग करती हैं और लिखती हैं. उनकी कलाकृतियां — उनके संघर्ष और इलाज की अभिव्यक्तियां — सेंटर को घेरने वाली लोहे की जाली पर लटकी हैं. सेंटर पूरी तरह से बंद रहता है, जिससे सिक्योरिटी सुनिश्चित होती है, लेकिन सलाखों के ठीक पीछे, ऊंचे पेड़ हिलते हैं, जो बाहरी दुनिया की झलक पेश करते हैं.

गर्म दोपहरों में, महिलाएं जाली के पास बैठती हैं, पढ़ते या चिंतन करते समय अपने चेहरे पर हवा महसूस करती हैं. कॉमन एरिया के ठीक बगल में स्थित हर कमरे में छह से सात बिस्तर हैं, जो साझा रिकवरी की भावना को मजबूत करते हैं.
सेंटर में एक 19 साल की महिला ने कहा, “जब मैं पहली बार यहां आई थी, तो मुझे लगा कि मेरी ज़िंदगी खत्म हो गई है, लेकिन यहां, मुझे ऐसे लोग मिले जो मुझे समझते थे और जो मुझे जज नहीं करते थे. अब, जब मैं जाल से बाहर देखती हूं, तो मुझे सिर्फ दुनिया नहीं दिखती—मुझे उम्मीद दिखती है.”
पिछले कुछ साल में, केरल में बढ़ती जागरूकता और नशीली दवाओं के खिलाफ प्रयासों में तेज़ी के कारण मदद मांगने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है. हालांकि, केंद्र सार्वजनिक रूप से परामर्श दिए गए लोगों की सही संख्या का खुलासा नहीं करता है, लेकिन राज्यव्यापी नशा मुक्ति पहल 1.5 लाख से अधिक व्यक्तियों तक पहुंच चुकी है. इस सुविधा में प्रशिक्षित परामर्शदाता और सामाजिक कार्यकर्ता कार्यरत हैं, जहां ज़रूरत पड़ने पर डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों के लिए रेफरल उपलब्ध हैं.
माजू ने कहा, “फिलहाल केरल में केवल तीन (सरकारी) काउंसलिंग सेंटर हैं, लेकिन और भी खुल रहे हैं. हर महीने हम हर रिकवरी केस का अनुसरण करते हैं, व्यक्तियों से मिलकर उनके इलाज पर नज़र रखते हैं. नियमित रूप से नए मामलों की पहचान भी करते हैं और ज़रूरतमंदों की मदद करते हैं.”
ये तीन परामर्श केंद्र विमुक्ति मिशन के तहत चलाए जा रहे नशा मुक्ति केंद्रों के अलावा हैं.
खबरों से पता चलता है कि युवा महिलाएं विशेष रूप से कमज़ोर हैं, अक्सर उन्हें उनके प्रेमी या शोषक शोषण करने के लिए नशे की लत में डाल देते हैं. यह संकट किसी भी वर्ग को नहीं बख्शता — झुग्गी — झोपड़ियों में रहने वालों से लेकर संपन्न परिवारों तक, नशे की लत घरों को तोड़ रही है.

26-वर्षीय एक पिता ने अपने बेटे के इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लेने पर दोस्तों और परिवार के लिए एक छोटा सा जश्न मनाया. बेटे को बेस्ट देने की इच्छा से, उन्होंने उसे घर से महज़ 15 किलोमीटर दूर एक हॉस्टल में दाखिला दिलाया, लेकिन उनका गर्व तब निराशा में बदल गया, जब एक अघोषित यात्रा के दौरान उन्होंने पाया कि उनका बेटा नशे में है — उनके सपने पल भर में टूट गए.
प्रोजेक्ट वेंडा की संस्थापक डायना जोसेफ ने पूछा, “अभी दृष्टिकोण रोकथाम के बारे में है. बच्चों को रोकना और उन्हें जागरूक करना, लेकिन अगर अगले कुछ वर्षों में इस पर नियंत्रण नहीं पाया जाता है, तो हमें पुनर्प्राप्ति पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा, लेकिन आप कितने नशा मुक्ति केंद्र खोलेंगे?” जोसेफ केरल में बच्चों को नशे की लत से छुटकारा दिलाने में मदद करने के लिए काम कर रही हैं. केरल में किए गए काम के लिए उन्हें संयुक्त राष्ट्र से कई पुरस्कार मिल चुके हैं.
“केरल एक ऐसे नशे के संकट से गुजर रहा है जो अब एक स्वास्थ्य संकट बन गया है.”
केरल को पिछले तीन वर्षों में नशीली दवाओं की मांग में कमी के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीडीडीआर) के तहत कुल 13.12 करोड़ रुपये मिले हैं—2020-21 में 5.96 करोड़ रुपये, 2021-22 में 3.62 करोड़ रुपये और 2022-23 में 3.54 करोड़ रुपये. हालांकि, यह महत्वपूर्ण है, लेकिन यह उसी अवधि के दौरान महाराष्ट्र (38.51 करोड़ रुपये) और ओडिशा (30.04 करोड़ रुपये) जैसे राज्यों को मिले धन से बहुत कम है. इस निवेश के बावजूद, केरल में नशा मुक्ति सेवाओं की मांग बढ़ी है, जिसके लाभार्थियों में 2020-21 में 4,239 से बढ़कर 2022-23 में 10,385 हो जाना राज्य में नशीली दवाओं के संकट के बढ़ते पैमाने को दर्शाता है.
कोच्चि के मेडिकल ट्रस्ट अस्पताल के एमडी (मनोरोग चिकित्सा) डॉ सीजे जॉन ने कहा।, “जल्दी पता लगाना महत्वपूर्ण है, लेकिन हम इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे हैं. जितनी जल्दी हम लत की पहचान करेंगे, व्यक्ति को वापस लाना उतना ही आसान होगा. हमने शराब से एमडीएमए और अन्य सिंथेटिक दवाओं की ओर स्पष्ट बदलाव भी देखा है क्योंकि वह तेज़, लंबे समय तक चलने वाले नशे की पेशकश करते हैं, गंध नहीं करते हैं और केवल छोटी खुराक की ज़रूरत होती है. यह अक्सर प्रयोग या रोमांच के रूप में शुरू होता है, लेकिन विनाशकारी स्थिति में बदल जाता है. इस संकट से निपटने के लिए हमारे दृष्टिकोण को बदलने की ज़रूरत है.”
विशेषज्ञों का कहना है कि केरल का नशीली दवाओं का संकट अब केवल कानून प्रवर्तन का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक बढ़ती हुई पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी है. आठ साल की उम्र के बच्चों के मादक पदार्थों के संपर्क में आने के साथ, कार्यकर्ता चेतावनी देते हैं कि तत्काल हस्तक्षेप के बिना, राज्य को जल्द ही नशामुक्ति के भारी बोझ का सामना करना पड़ सकता है.
जोसेफ ने कहा, “केरल में नशाखोरी का संकट है जो अब स्वास्थ्य संकट बन गया है. हम 8-9 साल के बच्चों के नशे की गिरफ्त में आने के मामले देख रहे हैं. यह चिंताजनक है. नशाखोरी की समस्या समाज में घर कर रही है. सरकार इस पर काम कर रही है, लेकिन हमें और भी कुछ करने की ज़रूरत है.”
उन्होंने कहा कि अगर अभी पर्याप्त कार्रवाई नहीं की गई, तो बहुत देर हो जाएगी.
नशामुक्ति केंद्र और टूटते परिवार
“नशे की लत ने न केवल उसकी जिंदगी बल्कि हमारे पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया है. हमारे रिश्तेदारों ने हमारा बहिष्कार कर दिया है.”
पिछले साल, 20-वर्षीय एक लड़की दो नशामुक्ति केंद्रों में जा चुकी है, लेकिन नशे की लत से उसकी लड़ाई जारी है. उसकी मां, जो कभी हाई इनकम वाली पेशेवर थीं, उन्होंने इस लड़ाई के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी — एक ऐसी लड़ाई जो उन्हें हर पल खाए जा रही है.उनके ऑफिस टेबल पर प्रार्थनाओं की एक वेदी है और उनके ईमेल भगवान से फुसफुसाती हुई विनती करते हैं.
हर हफ्ते, वे नशा मुक्ति केंद्र में जाती हैं, गले में यीशु का लॉकेट लटकाए, किसी संकेत की तलाश में —अपनी बेटी की आंखों में उम्मीद की एक झलक. हर बार उनके मन में एक ही सवाल है: वह वक्त कब होगा जब मेरी बेटी आखिरकार ठीक हो जाएगी?
42-वर्षीय मां ने कहा, “वह मेरी प्यारी बच्ची थी. नशे की लत ने न सिर्फ उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर दी है, बल्कि हमारे पूरे परिवार को भी बर्बाद कर दिया है. हमारे रिश्तेदारों ने हमारा बहिष्कार कर दिया है. मेरे पति विदेश में रहते हैं. मैं हर रोज़ उसके ठीक होने के लिए प्रार्थना करती हूं.”
वे इसके लिए राज्य को दोषी मानती हैं.
उन्होंने कहा, “मुझे केरल से बाहर चले जाना चाहिए था. शायद मैं अपनी बेटी को नशे की लत से बचा सकती थी, लेकिन अभी के लिए, मैं सिर्फ प्रेयर कर सकती हूं.”
युवती अपनी मां से ज़्यादा बात नहीं करती. पांच साल पहले की बात है जब वह अपने बॉयफ्रेंड के कारण ड्रग्स के संपर्क में आई थी. कुछ ही वक्त में उसे एहसास हुआ कि वह MDMA या LSD के बिना एक दिन भी नहीं बिता सकती.
नशा मुक्ति केंद्र की एक मैनेजर धनलक्ष्मी ने कहा, “वह कई खतरनाक दवाओं के संपर्क में आ चुकी है और वह दोनों का लगातार सेवन कर रही थी. उसकी लाइफ अच्छी थी और उसके पैरेंटेस भी शिक्षित थे, लेकिन उसका मानना है कि वह उससे प्यार नहीं करते. यही कारण है जो उसे बार-बार नशीली दवाओं की ओर ले जाता है.”
15-वर्षीय लड़की की मां के दर्द को उसकी मां में भी देखा जा सकता है, जिसने नाक से बहुत ज़्यादा खून बहने के बाद नशीली दवाओं को छोड़ने का फैसला किया. हर हफ्ते मिलने आने वाले कुछ माता-पिता के विपरीत, वह महीने में सिर्फ दो बार ही जा पाती है, हर बार बदलाव के लिए मौन प्रेयर करती हैं.
काले रंग का सूट सलवार पहनी 15 साल की लड़की ने कहा, “मैंने अपने बॉयफ्रेंड के साथ शारीरिक संबंध बनाने से पहले पहली बार ऐसा किया था. मुझे इसके लिए पैसे नहीं देने पड़े. मैंने गांजा से शुरुआत की, लेकिन बाद में मैंने MDMA लेने की कोशिश की, बाद में उसने मुझे छोड़कर दूसरी लड़की के साथ संबंध बना लिए.”
26-वर्षीय युवक के पिता पिछले कुछ सालों से परिवार के सभी समारोहों से दूर रह रहे हैं. उनका सामाजिक दायरा सिर्फ करीबी दोस्त, उनकी पत्नी और उनकी बेटी तक सीमित रह गया है. उन्होंने पांच साल बाद अपने बेटे से फिर से बातचीत शुरू की है. उन्हें अपने बेटे की लत के बारे में तब पता चला जब वे अपनी पत्नी के साथ अपने बेटे के हॉस्टल गए और पाया कि वह नशे में है.
62-वर्षीय पिल्लई ने कहा, “मैंने यह सोचकर उसकी पॉकेट मनी कम करनी शुरू कर दी कि अगर उसके पास पैसे नहीं होंगे तो वह नशा छोड़ देगा, लेकिन मैं गलत था. उसने ऐसा नहीं किया, कोविड के दौरान, वह हमारे घर में अपने कमरे में ड्रग्स ले रहा था.”
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कॉलेज, कैंपस और संस्कृति
“बहुत समय तक, मैं सोचता था कि ड्रग्स का इस्तेमाल करना अच्छा है.”
पिल्लई के बेटे को भी कॉलेज के पहले साल में उसके दोस्तों ने ड्रग्स के संपर्क में लाया था. पिछले पांच महीनों में वह गांजा से एलएसडी तक पहुंच गया है. अब, वह नशे से दूर होने की कोशिश कर रहा है.
26-वर्षीय छात्र ने कहा, “मेरे पिता हमेशा मुझे कोसते थे. मुझे बुरा लगता है कि मेरे परिवार को बहुत शर्मिंदगी से गुजरना पड़ा और यह कलंक कभी नहीं मिटेगा. बहुत समय तक, मैं सोचता था कि ड्रग्स का इस्तेमाल करना अच्छा है.”
बड़े से बरगद के पेड़ की छाया में, केरल के एक प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों का एक समूह एक साथ इकट्ठा हुआ, उनकी हंसी घेरे के भीतर हो रही सूक्ष्म बातचीत को छिपा रही थी. ऐसे दृश्य, जो कभी दुर्लभ थे, राज्य के परिसरों में तेजी से आम हो गए हैं. पहले, छात्र शराब पीते देखे जाते थे, लेकिन अब वह सावधान हो गए हैं, सब कुछ पर्दे के पीछे हो रहा है.
महाराजा कॉलेज के प्रोफेसर विनोद प्रापोइल ने कहा, “पांच से 10 साल पहले, छात्र ज़्यादातर शराब पीते थे, लेकिन अब वे ड्रग्स की ओर चले गए हैं और वह इस बारे में बहुत ज़्यादा सावधान और समन्वित हैं. पहले के विपरीत, हम शायद ही कभी कैंपस में ऐसा होते देखते हैं. उन्होंने कॉलेज के बाहर जगहें ढूंढ़ ली हैं, जिनकी जांच की जानी चाहिए. पूरे कैंपस का कल्चर बदल गया है.”
अब, छात्र सिर्फ 15 मिनट में ड्रग्स का कॉकटेल प्राप्त कर सकते हैं.
सेबी के ज़्यादातर डिलीवरी क्लाइंट 15 साल के बच्चों से लेकर 29 साल के लोगों तक के थे, जिनमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल थे. वह ज़्यादातर डिलीवरी कॉलेजों में करता था.
उसने कहा, “पहले स्थायी डिलीवरी भी होती थी. कॉलेजों में ड्रग्स का इस्तेमाल काफी आम बात है, लेकिन अब स्कूलों में भी. बहुत से छात्र स्कूल के बाहर छिपकर इकट्ठा करते हैं.”
जोसेफ के अनुसार, ड्रग डील बच्चों को आय के आसान स्रोत के रूप में लक्षित करती है.
उन्होंने कहा, “उन्हें बेवकूफ बनाना आसान है और डीलर इसे निवेश के रूप में देखते हैं. ये पदार्थ सिर्फ अस्थायी नशा ही नहीं पैदा करते हैं, ये मस्तिष्क को फिर से सक्रिय कर देते हैं, खास तौर पर फैसले और आवेग को नियंत्रित करने वाले क्षेत्रों को.”
सिनेमा और प्रभाव
मलयालम सिनेमा में ऐसी फिल्मों की संख्या में वृद्धि देखी गई है, जो नशीली दवाओं के इस्तेमाल को आकस्मिक या हास्यपूर्ण रूप में दर्शाती हैं.
2013 की फिल्म किली पोई, जिसे अक्सर मॉलीवुड की पहली स्टोनर फिल्म कहा जाता है, दो दोस्तों की कहानी है जो नशीली दवाओं के नशे में धुत होकर रोमांच का अनुभव करते हैं, जिसमें मादक पदार्थों के इस्तेमाल को हानिरहित मज़ा के रूप में पेश किया जाता है.
मरियम वन्नू विलक्कुथी (2020) भी इसी तरह का दृष्टिकोण अपनाती है, जिसमें हास्य और अराजकता के लिए मारिजुआना का इस्तेमाल कथानक के तौर पर किया जाता है. हाल ही में, नल्ला समयम (2023) ने विवाद को जन्म दिया और कथित तौर पर MDMA के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए कानूनी कार्रवाई भी की गई.
“हम संयुक्त राष्ट्र में इस बात पर बहस कर रहे हैं कि इस तरह के कंटेंट पर कुछ नियम होने चाहिए. आजकल बच्चों के पास कोई रोल मॉडल नहीं है.”
कोच्चि में रहने वाले एक पटकथा लेखक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “कुछ फिल्में नशीली दवाओं के इस्तेमाल को सामान्य या मज़ेदार दिखाती हैं, बजाय इसके कि इसके वास्तविक परिणाम दिखाए जाएं. यहीं पर सिनेमा योगदान देता है, लोगों की धारणाओं को आकार देकर, चाहे वह अच्छी हो या बुरी.”
आज बनाई जा रही फिल्में और कंटेंट शायद ही कभी नशीली दवाओं पर सवाल उठाते हैं, इसके बजाय, वह अक्सर हिंसा और मादक द्रव्यों के सेवन को बढ़ावा देते हैं.
उन्होंने कहा, “फिल्म जगत में नशीली दवाओं का इस्तेमाल कोई नई बात नहीं है. दशकों पहले, लोग रचनात्मक जीवनशैली की मांगों को पूरा करने के लिए डेक्सड्राइन जैसे पदार्थों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन आज, यह सिर्फ उद्योग तक ही सीमित नहीं रह गया है, नशीली दवाओं का इस्तेमाल आईटी पेशेवरों से लेकर स्कूली बच्चों तक सभी क्षेत्रों में फैल गया है.”
ऐसी सामग्री पर विनियमन की कमी के बारे में भी सवाल उठाए गए हैं.
जोसेफ ने कहा, “हम संयुक्त राष्ट्र में इस बात पर बहस कर रहे हैं कि इस तरह के कंटेंट पर कुछ रेगुलेशन होने चाहिए. आज बच्चों के पास कोई रोल मॉडल नहीं है. इन फिल्मों को देखने वाला 12 या 13 साल का बच्चा मानता है कि नशीली दवाओं का इस्तेमाल आनंद देता है और यह हानिकारक नहीं है.”
जोसेफ ने आगे कहा, “ये पदार्थ केवल अस्थायी नशा ही नहीं पैदा करते हैं, वह मस्तिष्क को फिर से जोड़ते हैं, विशेष रूप से निर्णय और आवेग को नियंत्रित करने वाले क्षेत्रों को. प्रभाव समाप्त होने के बाद भी, लालसा बनी रहती है, जो उपयोगकर्ता को वापस खींचती है. समय के साथ, शरीर सहनशीलता विकसित करता है, जिससे उन्हें उसी उत्साह को महसूस करने के लिए अधिक खुराक लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है.”
सेबी, जो अब नशे की लत से मुक्त है और नशा मुक्ति केंद्र से बाहर है, अपने अतीत को पीछे छोड़कर अपनी ज़िंदगी को फिर से बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित है. वह एक नई शुरुआत की तलाश में है. उसकी मां, जो एक डिपार्टमेंटल स्टोर में काम करती हैं, पैसे जोड़ रही हैं, उम्मीद है कि वह उसके दूसरे मौके का समर्थन करेगी.
सेबी की तरह, नशा मुक्ति केंद्र में 15-वर्षीय लड़की न केवल नशीली दवाओं से बल्कि स्वीकृति और प्यार की अपनी ज़रूरत से भी उबर रही है.
उसने चेहरे पर मुस्कान के साथ कहा, “मैं ठीक हो रही हूं, सिर्फ नशे की लत से ही नहीं, बल्कि हर उस चीज़ से जिसने मुझे तोड़ दिया. मैंने गांजा, हशीश और MDMA का इस्तेमाल किया, लेकिन मुझे प्यार की भी लत लग गई.”
उसने कहा, “मुझे अपने परिवार से कभी प्यार नहीं मिला, इसलिए मुझे लगा कि मेरे बॉयफ्रेंड मुझसे प्यार करते हैं, लेकिन अंत में, मुझे नशे की लत से ही प्यार हो गया और अब ब्रेकअप का वक्त आ गया है.”
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