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Tuesday, 21 January, 2025
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हरियाणा के राखीगढ़ी में मिले रिजरवॉयर सिस्टम से सरस्वती नदी के बारे में क्या सुराग मिलते हैं

हरियाणा के राखीगढ़ी में पिछले महीने खोजा गया रिजरवॉयर न केवल हड़प्पा इंजीनियरिंग का चमत्कार है, बल्कि सरस्वती नदी पर जारी रिसर्च को भी आगे बढ़ाता है.

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राखीगढ़ी: आर्कियोलॉजिस्ट की टीम ने कुछ हफ्ते पहले गांव के मज़दूरों के साथ मिलकर 10×10 की खाई से कई सारी गाद निकाली. वह चौंक गए और कीचड़ से सने कांपते हाथों से उन्होंने सदियों पुरानी मिट्टी को झाड़ दिया.

उन्हें लंबे समय से शक था कि हरियाणा के राखीगढ़ी में खुदाई स्थल पर हड़प्पा काल की पानी को स्टोर करने वाली प्रणाली थी, लेकिन उस दिन उनकी खोज सभी उम्मीदों से बढ़कर थी — एक रिजरवॉयर सिस्टम जो गुजरात के धोलावीरा के बाद दूसरा सबसे बड़ा रिजरवॉयर था.

यह इंजीनियरिंग के चमत्कार से कम नहीं था. राखीगढ़ी, हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े शहरी केंद्रों में से एक है, जो 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच फला-फूला, 500 हेक्टेयर में फैला है — मोहनजोदड़ो के आकार का लगभग दोगुना. फिर भी यहां इस पैमाने की कोई चीज़ नहीं मिली है. दिसंबर 2024 की खुदाई ने इस पुराने वॉटर मैनेजमेंट सिस्टम को सामने ला दिया. अब तक मोहनजोदड़ो और हड़प्पा काल के केवल कुएं पाए गए थे.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संयुक्त महानिदेशक और राखीगढ़ी में खुदाई निदेशक संजय मंजुल ने कहा, “राखीगढ़ी में कई बार खुदाई की गई, लेकिन रिजरवॉयर के बारे में अब तक कोई सुराग नहीं मिला था. पहली बार इस तीसरे टीले पर लगभग 3.5 से 4 फीट की गहराई वाला पानी स्टोर करने का सिस्टम सामने आया है. ये निष्कर्ष मैच्योर और उत्तर हड़प्पा काल के दौरान वॉटर मैनेजमेंट को समझने में मदद करेंगे, जब नदियां सूखने लगीं और लोगों ने पानी जमा करना शुरू कर दिया.”

ये नतीजे हमें पानी जमा करने के पैटर्न और समाज के सोचने के तरीकों की जानकारी देंगे

— संजय मंजुल, एएसआई के संयुक्त महानिदेशक और राखीगढ़ी में खुदाई निदेशक

रिजरवॉयर जियोलॉजिस्ट और आर्कियोलॉजिस्ट के बीच सरस्वती नदी पर जारी रिसर्च को भी आगे बढ़ाता है. मैच्योर और उत्तर हड़प्पा काल के दौरान, सरस्वती की मुख्य धारा, दृषद्वती नदी (जिसे चौतांग नदी के नाम से भी जाना जाता है) लगभग 3000 ईसा पूर्व सूखने लगी थी. रिजरवॉयर संभवतः नदी का आकार घटने की प्रतिक्रिया थी. रिमोट सेंसिंग डेटा राखीगढ़ी खुदाई से सिर्फ 400 मीटर की दूरी पर सूखी दृषद्वती से पैलियोचैनल की मौजूदगी की पुष्टि करता है.

पिछले दो दशकों में, पुरातात्विक खोजों ने लगातार ऋग्वेद में वर्णित एक शक्तिशाली सरस्वती नदी के विचार की पुष्टि की है. कहा जाता है कि हिमालय से अरब सागर तक बहने वाली सरस्वती आखिरकार पाताल लोक में गायब हो गई, केवल अपने निशान छोड़कर. दृषद्वती का उल्लेख ऋग्वेद में सरस्वती की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी के रूप में भी किया गया है.

भूविज्ञानी और प्रोफेसर एआर चौधरी द्वारा तैयार किया गया नक्शा हरियाणा में सरस्वती और दृषद्वती नदी प्रणाली के पैलियोचैनल को दर्शाता है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
भूविज्ञानी और प्रोफेसर एआर चौधरी द्वारा तैयार किया गया नक्शा हरियाणा में सरस्वती और दृषद्वती नदी प्रणाली के पैलियोचैनल को दर्शाता है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में सरस्वती नदी पर रिसर्च के लिए एक्सीलेंस सेंटर के प्रोफेसर एआर चौधरी ने कहा, “दृषद्वती एक वैदिक नदी है और राखीगढ़ी के पास एकमात्र जल स्रोत थी. यह महाभारत के काल से है.”

2022 में राखीगढ़ी की खुदाई शुरू करने वाले मंजुल ने कहा कि दृषवती कभी इस क्षेत्र की जीवन रेखा थी. उन्होंने कहा कि ये निष्कर्ष हड़प्पावासियों द्वारा पानी को जमा करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली उन्नत तकनीकों की ओर इशारा करते हैं. इससे पहले, पुरातत्वविद् सूरज भान, अमरेंद्र नाथ और वसंत शिंदे ने कई बार इस स्थल की खुदाई की थी. यह खोज पुरातत्वविद् सर जॉन मार्शल द्वारा 1924 में सिंधु घाटी सभ्यता की पहचान करने के लगभग 100 साल बाद हुई है.

मंजुल ने कहा, “लगभग 5,000 साल पहले, जब नदी सूखने लगी थी, तो लोगों को कृषि सहित अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों के लिए पानी जमा करना पड़ता था. ये नतीजे हमें पानी जमा करने के पैटर्न और समाज के सोचने के तरीकों की जानकारी देंगे.”

राखीगढ़ी भारत के पुरातात्विक परिदृश्य में एक मुकुट रत्न बन गया है. भिरड़ाना और फरमाणा जैसे आस-पास के स्थलों से मिली खोजों ने सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति को कम से कम 2,000 साल पीछे धकेल दिया है.


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एक अनुमान या अभूतपूर्व खोज

एक सूचित अनुमान ने हड़प्पा की एक सरलता और अस्तित्व की कहानी की खोज की.

2022 से संजय मंजुल की टीम राखीगढ़ी के तीसरे टीले पर प्राचीन मिट्टी-ईंट की संरचनाओं की खुदाई में व्यस्त थी, जो पहले और दूसरे टीले के बीच स्थित है. फिर 2023 में, उसी टीले की परिधि में खुले क्षेत्र की खुदाई करने का विचार उनके दिमाग में आया. उन्होंने तर्क दिया कि अगर कोई प्राचीन रिजरवॉयर था भी, तो यह संभवतः टीलों से दूर, मानव बस्तियों से अलग एक खुले क्षेत्र में स्थित होगा.

मंजुल का अनुमान सही निकला. उनकी टीम को 2023 में गाद की परत मिली, लेकिन उन्हें और पुष्टि करनी थी.

राखीगढ़ी में एक खुदाई वाली खाई जहां पुरातत्वविदों ने एक सहस्राब्दी पुरानी गाद की परत को उजागर किया. खोज ने एक परिष्कृत हड़प्पा वॉयर रिजरवॉयर सिस्टम का खुलासा किया | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
राखीगढ़ी में एक खुदाई वाली खाई जहां पुरातत्वविदों ने एक सहस्राब्दी पुरानी गाद की परत को उजागर किया. खोज ने एक परिष्कृत हड़प्पा वॉयर रिजरवॉयर सिस्टम का खुलासा किया | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

दिसंबर 2024 में उनकी टीम ने रिजरवॉयर सिस्टम के आकार और दायरे का पता लगाने के लिए दो और खाइयां खोदी और उन्हें इन खाइयों में भी गाद मिली, जो साइट पर कहीं और पाई जाने वाली जलोढ़ मिट्टी से बिल्कुल अलग थी.

हड़प्पा रिजरवॉयर के बारे में पिछली धारणाएं अचानक छोटी लगने लगीं. यह मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यता के स्थलों में पाई गई किसी भी चीज़ से बड़ी थी. पुरातत्वविद् सूरज भान के नेतृत्व में 1969 में राखीगढ़ी में खुदाई शुरू होने के बाद से यह सबसे बड़ी सफलताओं में से एक थी.

खुदाई की देखरेख करने वाले एएसआई के चंडीगढ़ सर्कल के सहायक पुरातत्वविद् पंकज भारद्वाज ने कहा, “गाद की तीन परतें पाई गई हैं. गाद का जमा होना इस बात का सबूत है कि वहां पानी रुकता होगा, लेकिन यह चौतांग नदी की गाद नहीं है, जिसका मतलब है कि यह एक स्टोरेज एरिया था.”

तीसरे टीले पर बंद खाई, जिसकी खुदाई 2023 में की गई थी. यहां रिजरवॉयर के संकेत मिले | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
तीसरे टीले पर बंद खाई, जिसकी खुदाई 2023 में की गई थी. यहां रिजरवॉयर के संकेत मिले | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

राखीगढ़ी के ड्रेनेज सिस्टम की खोज पहले हो चुकी थी, लेकिन बाद में हड़प्पा काल में लोग पानी कैसे जमा करते थे, इसका पता किसी को नहीं चला.

हालांकि, रिजरवॉयर बाद में हड़प्पा काल के बाद के समय का मिला, लेकिन सरस्वती-दृषद्वती पर वॉटर ड्रेनेज सिस्टम सभ्यता के तीनों चरणों में स्पष्ट थी, जैसा कि अनुभवी पुरातत्वविद् केएन दीक्षित ने 2013 में ‘Origin of Early Harappan Cultures in the Sarasvati Valley: Recent Archaeological Evidence and Radiometric Dates’ शीर्षक वाले एक शोधपत्र में लिखा है.

गाद की तीन परतें मिली हैं. (यह) इस बात का सबूत है कि वहां पानी रुकता था, लेकिन यह चौतांग नदी की गाद नहीं है, जिसका मतलब है कि यह एक स्टोरेज एरिया था

— पंकज भारद्वाज, एएसआई के चंडीगढ़ सर्कल में सहायक पुरातत्वविद्

मेसोपोटामिया और मिस्र के स्थलों के विपरीत, जहां ज्यादातर शासकों के लिए नहर सिस्टम डिज़ाइन किया गया था, राखीगढ़ी और धोलावीरा में बड़े हड़प्पा रिजरवॉयर आम लोगों के लिए थे. विशेषज्ञों का कहना है कि इसका उद्देश्य पानी तक पहुंच को लेकर होने वाले संघर्षों को कम करना था.

प्रोफेसर जोनाथन मार्क केनोयर ने 2016 में भारत यात्रा के दौरान कहा, “सफाई और कुओं और नालियों की अवधारणा स्वच्छता के बारे में नहीं बल्कि संघर्ष से बचने के बारे में है. इसलिए यह लोगों को एक-दूसरे से लड़ने से रोकने की रणनीति है.”

भारद्वाज ने कहा कि राखीगढ़ी की खाइयों में पाए गए तांबे के मछली के कांटे और समुद्री गोले हड़प्पावासियों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी और कारोबार की ओर इशारा करते हैं.

हज़ारों साल पहले, दृषद्वती नदी राखीगढ़ी के बीच से होकर बहती थी और प्राचीन हड़प्पा सभ्यता के लिए जीवन रेखा के रूप में काम करती थी.


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इतिहास दोहराने वाली जगह

पिछले दो दशकों में राखीगढ़ी भारत के पुरातात्विक परिदृश्य में एक मुकुट रत्न बन गया है. भिरड़ाना और फरमाणा जैसे आस-पास के स्थलों से मिली खोजों ने सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति को कम से कम 2,000 साल पीछे धकेल दिया है — पहले अनुमानित 4000 ईसा पूर्व से 6000 ईसा पूर्व तक.

इस जगह ने पिछले कुछ सालों में एक नई बहस को हवा दी है. एक महिला के 4,600 साल पुराने कंकाल पर आनुवंशिक परीक्षण ने 2019 में आर्यन आक्रमण सिद्धांत के बारे में चर्चाओं को फिर से हवा दी. नतीजों से पता चला कि उसके अवशेषों में “स्टेपी चरवाहों या अनातोलियन और ईरानी किसानों से कोई पता लगाने योग्य वंश” नहीं था.

राखीगढ़ी में पाए गए कंकाल लगभग 2500 ईसा पूर्व के हैं | यूट्यूब
राखीगढ़ी में पाए गए कंकाल लगभग 2500 ईसा पूर्व के हैं | यूट्यूब

केएन दीक्षित ने उसी 2013 के पेपर में लिखा था, “हरियाणा के क्षेत्र ने अब तक हड़प्पा सभ्यता के अन्य हिस्सों की तुलना में सबसे शुरुआती रेडियोमेट्रिक तिथियां दी हैं.”

जैसे-जैसे एएसआई राखीगढ़ी के रहस्यों को उजागर कर रहा है, यह स्थल गतिविधियों का केंद्र बन गया है, जिज्ञासु विजिटर्स अतीत की इन झलकियों को देखने के लिए यहां आ रहे हैं.

लेकिन इतने राष्ट्रीय महत्व के स्थल के बावजूद राखीगढ़ी को दरकिनार किया गया है. हालांकि, 2020-21 के केंद्रीय बजट में इसे एक “प्रतिष्ठित स्थल” के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन पूरे क्षेत्र में गोबर के ढेर लगे हुए हैं. आवारा कुत्ते, सूअर और गाय खाइयों के आसपास खुलेआम घूमते हैं.

राखीगढ़ी के दूसरे और तीसरे टीले के संरक्षित पुरातात्विक स्थल को चिह्नित करने वाला बोर्ड, जबकि आवारा मवेशी आस-पास खुलेआम घूमते हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
राखीगढ़ी के दूसरे और तीसरे टीले के संरक्षित पुरातात्विक स्थल को चिह्नित करने वाला बोर्ड, जबकि आवारा मवेशी आस-पास खुलेआम घूमते हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

लेकिन खुदाई ने स्थानीय स्कूलों और इतिहास प्रेमियों का ध्यान आकर्षित किया है.

जनवरी की एक सर्द दोपहर में, आस-पास के गांवों के छात्र प्रशिक्षित ग्रामीणों को खाइयां खोदते हुए ध्यान से देख रहे थे.

10वीं की छात्रा सृष्टि सिरोही ने पूछा, “इससे क्या पता चलेगा, इतना गहरा खोदा है.” जवाब संक्षिप्त था. एक ग्रामीण ने कहा, “हम खोद रहे हैं.”


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लुप्त हो चुकी दृषद्वती नदी

हज़ारों साल पहले, दृषद्वती नदी राखीगढ़ी के बीच से होकर बहती थी और प्राचीन हड़प्पा सभ्यता के लिए जीवन रेखा का काम करती थी. इसके पानी ने परिदृश्य को आकार दिया और इसके किनारों पर पनपने वाले शहरी केंद्रों का पोषण किया.

2011 से 2016 तक राखीगढ़ी में खुदाई का नेतृत्व करने वाले प्रसिद्ध पुरातत्वविद् प्रोफेसर वसंत शिंदे ने कहा, “यह इलाके की पानी जमा करने वाली प्रणालियों का एक महत्वपूर्ण घटक था, जो कृषि और रोज़मर्रा की काम के लिए मददगार था.”

हालांकि, सदियों से दृषद्वती लुप्त है. जलवायु परिवर्तन और भूवैज्ञानिक बदलावों के कारण यह सूख गई और पाताल में विलीन हो गई, जिससे इसकी एक बार की शक्तिशाली उपस्थिति के केवल निशान ही बचे हैं.

यह नदी कभी राजस्थान में सूरतगढ़ के पास सरस्वती में मिलने से पहले करनाल, जींद और हिसार जैसे आधुनिक जिलों से होकर बहती थी. राखीगढ़ी के अलावा, इसके मैदानों में स्थित प्रमुख हड़प्पा स्थलों में सोथी, सिसवाल, मिताथल, बालू और दौलतपुर शामिल हैं.

शिंदे ने कहा कि सभी हड़प्पा बस्तियों में से दो-तिहाई सरस्वती बेसिन में हैं — यही कारण है कि सिंधु घाटी सभ्यता का नाम बदलकर सिंधु-सरस्वती सभ्यता कर दिया गया, जिसमें स्कूलों की किताबें भी शामिल हैं.

एक ‘बेमिसाल’ रिजरवॉयर

एक ऐसा स्थल जो दर्शाता है कि हड़प्पावासी पानी बचाने में कितने आगे थे, वह है धोलावीरा, जो कच्छ के रण में एक आधे-सूखे द्वीप पर स्थित है.

1989 और 2005 के बीच पुरातत्वविद् आरएस बिष्ट द्वारा उत्खनन किए गए इस यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल पर, खोजों में पत्थर के चैनलों का एक नेटवर्क शामिल था जो रिजरवॉयर से शहर के विभिन्न हिस्सों में पानी पहुंचाता था. धोलावीरा एकमात्र हड़प्पा स्थल होने के कारण भी अद्वितीय है जो पूरी तरह से पत्थर से बना है. लोग पानी के लिए दो मौसमी नदियों, मानसर और मनहर पर निर्भर थे.

धोलावीरा में कुएं वाला रिजरवॉयर | एएसआई
धोलावीरा में कुएं वाला रिजरवॉयर | एएसआई

विशेषज्ञ धोलावीरा को हड़प्पा काल में पानी जमा करने का सबसे बेहतरीन उदाहरण मानते हैं. रिजरवॉयर विभिन्न आकारों के थे — कुछ आयताकार या गोलाकार डिज़ाइन में बनाए गए थे और कुछ खुले रिजरवॉयर भी थे.

वसंत शिंदे ने कहा कि बाढ़ को मोड़कर और बस्ती के अंदर टैंक बनाकर पानी जमा किया जाता था. गंदे पानी को एक चैनल के ज़रिए शहर के बाहर छोड़ा जाता था.

उन्होंने कहा, “इस तरह की व्यवस्था मेसोपोटामिया या मिस्र में नहीं पाई जाती है. यह बेमिसाल है.”

इस बीच, दिसंबर में बारिश से भीगे राखीगढ़ी में एक छोटी-सी त्रासदी हुई. खाई पानी से भर गई और एक हिस्सा धंस गया था.

भारद्वाज याद करते हैं, “हम यहां कई महीनों से खुदाई के कठिन काम में इतनी मेहनत कर रहे हैं. हम लगभग रोने लगे थे.”

यहां हर दिन समय और तत्वों के खिलाफ दौड़ है. भारद्वाज अब खुदाई को आगे बढ़ाने के लिए आवेदन करेंगे.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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