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Tuesday, 5 November, 2024
होमफीचर‘राज्य को फिर खड़ा करने में एक साल लगेगा’, शिमला रिलीफ कैंप में आपबीती सुना रहे हैं पीड़ित

‘राज्य को फिर खड़ा करने में एक साल लगेगा’, शिमला रिलीफ कैंप में आपबीती सुना रहे हैं पीड़ित

15 अगस्त को आए भूस्खलन ने कृष्णा नगर निवासियों के जीवन को मुश्किल कर दिया. कई लोगों ने मकान खो दिए, कुछ को उन्हें खाली करना पड़ा और अब वो आंबेडकर भवन में शरण ले रहे हैं.

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शिमला: मन्नू देवी का छोटा बेटा सागर शिमला के कृष्णा नगर इलाके में अपना एक कमरे का घर छोड़ने से इनकार कर रहा है. एक तरफ तो देश के बाकी हिस्सों ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया, लेकिन, भूस्खलन के कारण हिमाचल के इस शहर का अधिकांश हिस्सा मलबे में तब्दील हो गया, घरों की दीवारों में दरारें पड़ गई, लेकिन वो वहां से नहीं हिलेगा.

मन्नू देवी जो अपने बेटों द्वारा तबाही के वीडियो भेजे जाने के बाद अंबाला से शिमला पहुंची हैं, बहुत दुखी हैं, वे कहती हैं, “उन्होंने (अधिकारियों) बस उसे जाने के लिए कहा और ये भी नहीं बताया कि जाना कहां है. मैंने सब कुछ करने की कोशिश की. मैं अभी उसके घर से वापस आई हूं. मैं रोयी, उससे साथ आने की विनती भी की.”

Krishna Nagar residents who were evacuated after the 15 August landslide, at Ambedkar Bhawan in Shimla | Praveen Jain | ThePrint
शिमला में 15 अगस्त को हुए भूस्खलन के बाद निकाले गए कृष्णा नगर से बचाए गए निवासी आंबेडकर भवन में शरण ले रहे हैं | प्रवीण जैन/दिप्रिंट

उनके बड़े भाई सूरज ने कहा, “उन्हें चिंता है कि कोई उनका सामान चुरा लेगा.”

मन्नू देवी और परिवार के बाकी सदस्य अब आंबेडकर भवन में रुके हुए हैं, जो कि कृष्णा नगर को आपदा क्षेत्र घोषित किए जाने के बाद अपने घरों से निकाले गए परिवारों को आश्रय देने वाला एक सामुदायिक केंद्र है. लगभग 250 निवासियों को यहां विस्थापित किया गया है.

Mannu Devi, whose sons lost their homes in the landslide, at Ambedkar Bhawan | Praveen Jain | ThePrint
आंबेडकर भवन में मन्नू देवी, जिनके बेटों ने भूस्खलन में अपना घर खो दिया | प्रवीण जैन/दिप्रिंट

इस मानसून ने पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश को तबाह कर दिया है. अब तक 346 लोगों की मौत हो चुकी है. बारिश का मौसम आमतौर पर जून में शुरू होता है, लेकिन स्थानीय निवासियों का कहना है कि मार्च से ही बारिश हो रही है. आपदा प्रबंधन के प्रधान सचिव ओंकार चंद शर्मा के अनुसार, अचानक आई बाढ़ और पहाड़ों के दरकने से 2,200 घर नष्ट हो गए और 10,000 अन्य क्षतिग्रस्त हो गए.

हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि उनके राज्य को 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है और इसे फिर से खड़ा करने में एक साल तक का समय लगेगा. सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में सोलन, शिमला, कांगड़ा, मंडी और हमीरपुर हैं. मंडी जिले में कथित तौर पर एक पूरे गांव को खाली करा लिया गया.

15 अगस्त तक कृष्णा नगर एक सुरम्य इलाका था, जहां पहाड़ी ढलानों पर ऊंचे पेड़ों के बीच कतारों में सभी रंगों के घर एक-दूसरे से सटे हुए थे. भूस्खलन की चपेट में आते ही आठ घर ताश के पत्तों की तरह एक नवनिर्मित बूचड़खाने पर गिर गए. इस दौरान दो लोगों की जान चली गई.

शिमला के कृष्णानगर इलाके में पहाड़ों के दरकने से दो लोगों की मौत हो गई, आठ घर ढह गए और एक बूचड़खाना मलबे में तब्दील हो गया | प्रवीण जैन/दिप्रिंट
शिमला के कृष्णानगर इलाके में पहाड़ों के दरकने से दो लोगों की मौत हो गई, आठ घर ढह गए और एक बूचड़खाना मलबे में तब्दील हो गया | प्रवीण जैन/दिप्रिंट

दिप्रिंट ने आंबेडकर भवन और सामुदायिक भवन का दौरा किया, जो परिवारों और — अपने घरों को खोने वाले और क्षतिग्रस्त घरों से निकाले गए लोगों को — रहने, सोने की जगह और दिन में तीन बार भोजन मुहैया करवा रहे हैं. सामुदायिक भवन में मुश्किल से ही कोई रहता है, लेकिन आंबेडकर भवन में प्रभावित परिवार एक-दूसरे से बंधे घेरे में बैठते हैं, एक-दूसरे से धीरे-धीरे बात करते हैं. जैसे ही कोई स्थानीय सरकार का प्रतिनिधि वहां आता है, केंद्र में गतिविधियां बढ़ जाती है और परिवारों और उनकी आवश्यकताओं के बारे में पूछताछ की जाती है. जैसे ही प्रतिनिधि चला जाता है, बातचीत फिर से शुरू हो जाती है.

उनमें से केवल कुछ ही अपना सामान साथ लाने में कामयाब रहे. मन्नू देवी का बड़ा बेटा, सूरज, अपने परिवार की कुछ संपत्ति वापस पाने की कोशिश कर रहा है. वो बताती हैं, “मैंने अकेले सामान की डिलीवरी पर 2,500 रुपये खर्च किए हैं. उनके दोनों बेटे ड्राइवर का काम करते हैं.”

सागर की पत्नी और बच्चे मन्नू देवी के पास बैठे फोन पर कुछ देख रहे हैं, कोई एक शब्द भी नहीं बोल रहा. उनका घर किराए का है, लेकिन सूरज के पास उनका अपना घर है, जिसे उन्होंने 2.5 लाख रुपये का कर्ज लेकर खरीदा था. सागर ट्रक ड्राइवर है जो कंस्ट्रक्शन साइट पर इस्तेमाल होने वाला सामान ले जाता है और सूरज टूरिस्ट के लिए एक टैक्सी चलाता है. वो प्रति माह 9,000 रुपये से 10,000 रुपये के बीच कमाते हैं.

Sagar’s wife and children at Ambedkar Bhawan | Praveen Jain | ThePrint
आंबेडकर भवन में सागर की पत्नी और बच्चे | प्रवीण जैन/दिप्रिंट

प्रधान सचिव शर्मा, जिनका पहले हवाला दिया गया था, ने दिप्रिंट को बताया, “राहत और बचाव कार्य जारी है. हम राहत मैनुअल के अनुसार राहत प्रदान कर रहे हैं, जिसे हाल ही में संशोधित किया गया था, जहां तक परिवारों के पुनर्वास की बात है तो हम एक योजना बना रहे हैं. अभी तक प्राथमिकता राहत कार्य है. इस संबंध में मुख्यमंत्री, राजस्व मंत्री ने भी लोगों को आश्वस्त किया है कि जिन लोगों ने आपदा में अपना सब कुछ खो दिया है, उन्हें कानून के मुताबिक, ज़मीन दी जाएगी.”


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‘एक चम्मच भी नहीं बचा होगा’

तत्काल राहत के रूप में कृष्णा नगर के निवासियों को, जिनके घर भूस्खलन में पूरी तरह से नष्ट हो गए थे, 12,000 रुपये मिले हैं, जबकि किराएदारों को 2,500 रुपये मिले. आंबेडकर भवन में रुके परिवारों का कहना है कि बाकी लोगों को अब तक कोई सहायता नहीं मिली है.

कृष्णा नगर के पार्षद बिट्टू कुमार ने दिप्रिंट को बताया, “मकान मालिकों को 12,500 रुपये मिलने थे और किरायेदारों को 2,500 रुपये मिलने थे, लेकिन कोई पक्की व्यवस्था नहीं थी. मैंने डीसी से उन लोगों को भी मुआवजा देने के लिए कहा था, जिनके मकानों में दरारें आ गई थीं और उन्होंने जगह खाली कर दी थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.”

समर हिल के निवासियों को भी बाहर निकाल लिया गया है, जहां एक मंदिर ढह गया था, जिसमें कम से कम 20 लोग मारे गए थे. शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंदर सिंह पंवर बताते हैं कि समर हिल और कृष्णा नगर दोनों प्राकृतिक झरनों पर बने हैं, जिससे उनकी नींव मूसलाधार बारिश के दौरान अधिक संवेदनशील हो जाती है.

मन्नू देवी सागर के लिए परेशान हैं, उनका घर चारों ओर ढह जाएगा, लेकिन वो नहीं जानती कि वो और क्या कर सकती हैं. उन्होंने कहा, “अब मेरे बेटे के लिए केवल सरकार ज़िम्मेदार है. अगर उसे कुछ होगा, फिर मैं लुंगी पंगा.”

लेकिन अभी के लिए, “हम बस चुपचाप बैठे हैं”. वो कहती हैं, “सरकारी अधिकारी केवल उन्हीं से बात करते हैं जिन्हें वे महत्वपूर्ण समझते हैं. यह गरीब लोगों की स्थिति है.”

जो लोग आगे बढ़ सकते हैं, वो आगे बढ़ गए हैं. कुछ किराएदारों ने शिमला के दूसरे इलाकों में घर ले लिए हैं. उन्होंने काम पर वापस जाना शुरू कर दिया है. बच्चे वापस स्कूल जाना चाहते हैं, लेकिन उनमें से कुछ, जैसे लता घई की बेटियां रैना और रागिनी, ऐसा नहीं कर सकते.

12-वर्षीय रैना जो अपनी छोटी बहन के साथ मैचिंग गुलाबी टी-शर्ट में हैं, कहती हैं, “हमारी किताबें और वर्दी बह गईं हैं. स्कूल तो खुल गया है, लेकिन हम जाएं कैसे?”

Lata Ghai and her daughters, who lost their home in the 15 August landslide, at Ambedkar Bhawan | Praveen Jain | ThePrint
आंबेडकर भवन में लता घई और उनकी बेटियां, जिन्होंने 15 अगस्त को भूस्खलन में अपना घर खो दिया था | प्रवीण जैन/दिप्रिंट

लता घई और उनका परिवार पंजाब से लौट रहे थे जब उन्हें पता चला कि उनका घर चला गया है. उनका अनुमान है कि उनका कम से कम 2 से 2.5 लाख रुपये तक का नुकसान हो गया है.

लता की सास हंसते हुए कहती हैं, “एक चम्मच भी नहीं होगा.” उनके पति और बेटा यह देखने के लिए कि मकान में क्य कुछ है जिसे बचाया जा सकता है साइट की छानबीन कर रहे हैं, खुदाई कर रहे हैं. पहाड़ दरकने के पांच दिन बाद, जो कुछ बचा है वो कूड़े का ढेर है – टूटे हुए खंभे, ईंट के टुकड़े, लकड़ी के टुकड़े और गिरे हुए पेड़.

जब दिप्रिंट ने साइट का दौरा किया तो वहां एक भी व्यक्ति मौजूद नहीं था. हरकत का एकमात्र संकेत कुत्ते की हिलती हुई पूंछ थी.

लता जानती हैं कि यह बहुत दूर की बात है, लेकिन उन्हें अब भी उम्मीद है…“क्या पता”

निकाले गए निवासी अपने पालतू जानवरों सहित, जो कुछ भी ले जा सकते थे, आंबेडकर भवन ले आए. एनी लैब्राडोर एक कोने में जंजीर से बंधी हुई बैठी है. वो फैलती है, भौंकती है, अपनी पूंछ हिलाती है, लेकिन उस पर शायद ही कभी ध्यान दिया जाता है. अगर उसने किसी को काट लिया तो, इस डर से उसे खोला नहीं जाता. बचाए गए लोगों में से एक, शाहिद ने उसे सहलाया और उसे कुछ बिस्कुट खिलाए.

लता की छोटी बेटी रागिनी कहती है, “डॉगी की किस्मत अच्छी है.” उसने तुरंत बताया कि उसका निकनेम ‘गुलु’ है.

Annie the labrador, staying at Ambedkar Bhawan with her family, is fed biscuits by one of the evacuees | Praveen Jain | ThePrint
आंबेडकर भवन में अपने परिवार के साथ रह रही लैब्राडोर एनी को वहां से निकाले गए लोगों में से एक ने बिस्कुट खिलाया | प्रवीण जैन/दिप्रिंट

(सौरभ चौहान के इनपुट्स के साथ)

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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