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Tuesday, 22 July, 2025
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भारत में आम जनता के बीच कैसे पॉपुलर हो रही है आर्कियोलॉजी

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) एक नई छवि गढ़ रहा है. पुरातत्वविदों की अब सार्वजनिक आवाज़ है और सोशल मीडिया के जरिए आम जनता तक इसकी पहुंच बन रही है.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की आर्कियोलॉजी को अब एक नया चेहरा मिल गया है. वे वाकण दादा नामक एक शुभंकर हैं — एक कहानीकार जो इंस्टाग्राम के दौर की पीढ़ी के लिए राज्य के पुरातात्विक विरासत को जीवंत कर रहे हैं.

सफेद कुर्ता-पायजामा, घनी दाढ़ी, माथे पर तिलक और कंधे पर काला झोला—इन्हीं विशेषताओं के साथ उन्हें ‘पुरातात्विक दादा’ कहा जाता है. यह अनोखा शुभंकर प्रसिद्ध पुरातत्वविद् वी.एस. वाकणकर से प्रेरित है, जिन्होंने 1957 में भीमबेटका की गुफाओं की खोज की थी. यह गुफाएं अब यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं.

मध्य प्रदेश की पुरातत्व एवं अभिलेखागार आयुक्त उर्मिला शुक्ला, जिन्होंने इस पहल की शुरुआत की है और राज्य के पुरातत्व विभाग को नए सिरे से सक्रिय करने में जुटी हैं, बताती हैं, “वाकण दादा हमारे काम का चेहरा हैं—लोगों से जुड़ने और पुरातत्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने का माध्यम. वाकणकर अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शोधकर्ता थे. हम उनकी पहचान को जन संवाद का जरिया बना रहे हैं.”

शुक्ला का मानना है कि वाकण दादा विद्वानों के शोध और आम जनभागीदारी के बीच की खाई को पाटेंगे. साथ ही, वे नई पीढ़ी को हमारी पुरातात्विक विरासत की खोज, संरक्षण और महत्व को समझने और उससे जुड़ने के लिए प्रेरित करेंगे.

एक समय था जब पुरातत्व को एक निष्क्रिय या “मृत” विभाग मान लिया गया था, लेकिन अब यह छवि बदल रही है. न सिर्फ मध्य प्रदेश में, बल्कि पूरे देश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) एक नए, अधिक जीवंत और संवादात्मक रूप में सामने आ रहा है. पुरातत्वविद अब सिर्फ खुदाई करने वाले शोधकर्ता नहीं रह गए हैं—उन्हें एक सार्वजनिक चेहरा और एक प्रभावशाली आवाज़ मिल रही है. यह बदलाव भारतीय पुरातत्व को एक अकादमिक अनुशासन से आगे ले जाकर जन संवाद और सार्वजनिक इतिहास की दिशा में ले जा रहा है.

सफेद कुर्ता-पायजामा, घनी दाढ़ी, माथे पर तिलक और कंधे पर काला झोला—इन्हीं विशेषताओं के साथ उन्हें ‘पुरातात्विक दादा’ कहा जाता है. यह अनोखा शुभंकर प्रसिद्ध पुरातत्वविद् वी.एस. वाकणकर से प्रेरित है, जिन्होंने 1957 में भीमबेटका की गुफाओं की खोज की थी. यह गुफाएं अब यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं | फोटो: विशेष प्रबंध
सफेद कुर्ता-पायजामा, घनी दाढ़ी, माथे पर तिलक और कंधे पर काला झोला—इन्हीं विशेषताओं के साथ उन्हें ‘पुरातात्विक दादा’ कहा जाता है. यह अनोखा शुभंकर प्रसिद्ध पुरातत्वविद् वी.एस. वाकणकर से प्रेरित है, जिन्होंने 1957 में भीमबेटका की गुफाओं की खोज की थी. यह गुफाएं अब यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल हैं | फोटो: विशेष प्रबंध

हाल के वर्षों में, एएसआई ने दिल्ली के पुराना किला, तमिलनाडु के आदिचनल्लूर और हरियाणा के राखीगढ़ी जैसे महत्वपूर्ण उत्खनन स्थलों को आम लोगों के लिए खोल दिया है. यहां न केवल प्रवेश की अनुमति है, बल्कि व्याख्या केंद्रों के ज़रिए जानकारी को सरल और रोचक रूप में प्रस्तुत किया गया है. पहले जहां खुदाई केवल विद्वानों के लिए एक सीमित गतिविधि होती थी, वहीं अब ये स्थल आम जनता की जिज्ञासा और भागीदारी के केंद्र बनते जा रहे हैं.

राज्य पुरातत्व विभाग अब स्थलों के नियमित भ्रमण आयोजित कर रहे हैं, विरासत स्थलों की सैर को बढ़ावा दे रहे हैं, और उत्खनन के लिए अधिक लाइसेंस जारी कर रहे हैं. साथ ही प्रदर्शनियों, व्याख्यानों और संगोष्ठियों की शृंखला से यह विषय लगातार चर्चा में बना हुआ है. सोशल मीडिया पर उत्खनन स्थलों की तस्वीरें और रीलें वायरल हो रही हैं—जिससे नई पीढ़ी का जुड़ाव भी बढ़ रहा है.

आज पुरातत्व सिर्फ अतीत की परतों को खोलने का काम नहीं कर रहा, बल्कि यह भारत में इतिहास को लेकर हो रही अभूतपूर्व बातचीत का एक अहम हिस्सा बन चुका है.

“हम लोगों को जोड़ना चाहते हैं और उन्हें किसी पुरातात्विक स्थल को इतनी नज़दीक से देखने का रोमांच देना चाहते हैं. दूसरे देशों में यह आम बात है, लेकिन अब यह चलन भारत में भी लोकप्रिय होता जा रहा है.”

— सुजीत नयन, वरिष्ठ पुरातत्वविद्, एएसआई

एएसआई की संयुक्त महानिदेशक (स्मारक) और प्रवक्ता नंदिनी भट्टाचार्य साहू मानती हैं कि हाल के वर्षों में पुरातत्व को लेकर देश में जो नया उत्साह दिखाई दे रहा है, उसने न सिर्फ इस क्षेत्र को मुख्यधारा में ला खड़ा किया है, बल्कि भारत के प्राचीन अतीत के प्रति गौरव और जिज्ञासा की भावना को भी गहराया है.

साल 2023 के जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “विकास भी, विरासत भी” के आह्वान ने इस सोच को और मजबूती दी.

साहू ने कहा, “यह विरासत सभी की है. अधिक से अधिक लोगों को इसके बारे में जानना चाहिए और इससे जुड़ना चाहिए. यही इसका असली उद्देश्य है.”


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खुदाई में आम जनता की बढ़ती रुचि

सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे पुराने ज्ञात स्थलों में से एक, राखीगढ़ी, आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के मुकुट का रत्न बन चुका है. यहां एक संग्रहालय, छात्रावास और कैफेटेरिया निर्माणाधीन हैं. हरियाणा का पुरातत्व विभाग भी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) फंड की मदद से इस स्थल को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित कर रहा है.

पिछले साल, विभाग ने राखीगढ़ी भ्रमण, पानीपत में एक विरासत कार्यक्रम, और हिसार में ‘आइए अपनी धरोहर जानें’ टैगलाइन के साथ एक फोटोग्राफी कार्यशाला का आयोजन किया. राखीगढ़ी भ्रमण में दिल्ली के कश्मीरी गेट से परिवहन, स्थल अन्वेषण, एक प्रदर्शनी, कारीगरों के साथ बातचीत और “हड़प्पा कालीन गांव” में ग्रामीण भ्रमण शामिल था.

टूर फ्लायर में लिखा था, “हमारे साथ हरियाणा का अन्वेषण करें और इसके समृद्ध इतिहास को जानें, जहां हड़प्पा सभ्यता फली-फूली, वेदों की रचना हुई और श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया. उस भूमि से जुड़ें, जिसने भारत के इतिहास को आकार देने वाले कई महत्वपूर्ण युद्ध देखे हैं.”

हरियाणा के राखीगढ़ी उत्खनन स्थल पर कॉलेज छात्र एक निर्देशित हेरिटेज वॉक में भाग लेते हुए नज़र आए. यह भ्रमण राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा चलाए जा रहे आउटरीच कार्यक्रमों का हिस्सा है | फोटो: इंस्टाग्राम/@archaeologyharyana
हरियाणा के राखीगढ़ी उत्खनन स्थल पर कॉलेज छात्र एक निर्देशित हेरिटेज वॉक में भाग लेते हुए नज़र आए. यह भ्रमण राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा चलाए जा रहे आउटरीच कार्यक्रमों का हिस्सा है | फोटो: इंस्टाग्राम/@archaeologyharyana

जनसंपर्क को व्यापक प्रभाव देने के लिए, पुरातत्व विभाग के निदेशक अमित खत्री ने सोशल मीडिया और प्रचार सामग्री तैयार करने के लिए स्वतंत्र फोटोग्राफरों, चित्रकारों और फिल्म निर्माताओं की एक युवा टीम को जोड़ा है.

सलाहकार कुश ढेबर ने कहा, “पहले विभाग केवल विरासत और संग्रहालय दिवस जैसे विशेष अवसरों पर ही लोगों से जुड़ता था, लेकिन अब हम पूरे वर्ष विरासत और पुरातत्व को बढ़ावा दे रहे हैं.”

आउटरीच कार्यक्रमों के तहत, विभाग स्कूलों में ‘आइए पुरातात्विक कलाकृतियों से इतिहास सीखें’ जैसे विषयों पर कार्यशालाएं भी आयोजित कर रहा है.

ढेबर ने कहा, “यह एक स्नोबॉल प्रभाव पैदा कर रहा है. हम हरियाणा कॉमिक सीरीज़, वृत्तचित्र, कॉफी-टेबल बुक्स, स्मारकों के स्मृति-चिह्न, 3D प्रतिकृतियां, फोटो फ्रेम, बुकमार्क और टोट बैग भी प्रकाशित कर रहे हैं.”

ये स्मृति-चिह्न अमेज़न पर, सूरजकुंड मेले और राखीगढ़ी महोत्सव जैसे आयोजनों में तथा राज्यभर की प्रदर्शनियों में उपलब्ध हैं. 4 जुलाई को, विभाग ने पंचकूला के पिंजौर में आयोजित आम मेले में भी अपना स्टॉल लगाया.

हरियाणा पुरातत्व विभाग की कार्यशाला में प्राचीन कलाकृतियों की प्रतिकृतियों को देखते बच्चे. कार्यक्रम की थीम थी—‘आइए पुरातात्विक कलाकृतियों से इतिहास सीखें’ | फोटो: विशेष प्रबंध
हरियाणा पुरातत्व विभाग की कार्यशाला में प्राचीन कलाकृतियों की प्रतिकृतियों को देखते बच्चे. कार्यक्रम की थीम थी—‘आइए पुरातात्विक कलाकृतियों से इतिहास सीखें’ | फोटो: विशेष प्रबंध

ढेबर को इस वर्ष जनवरी में प्रकाशित अपनी नई सचित्र पुस्तक “हमारा हरियाणा: प्रारंभिक ऐतिहासिक काल” पर विशेष गर्व है. बच्चों के लिए तैयार की गई इस पुस्तक में एक दादी और पोती के पात्रों के माध्यम से क्षेत्र की कहानी कही गई है, जो पाठकों को पुरालेखशास्त्र, मुद्राशास्त्र, चीनी मिट्टी और टेराकोटा की मूर्तियों से परिचित कराते हैं.

उन्होंने कहा, “हम एक बहुआयामी दृष्टिकोण पर काम कर रहे हैं. हमारा अगला लक्ष्य यूट्यूब का अधिक से अधिक उपयोग करना है.”

भौतिक रूप से भी पुरातत्व अब ज्यादा सुलभ होता जा रहा है. राखीगढ़ी में आगंतुकों के लिए रैंप बनाए गए हैं. वहीं तमिलनाडु के आदिचनल्लूर में खाइयों को मजबूत शीशे से ढका गया है, जिससे लोग वहीं खड़े होकर 3,000 साल पुरानी वस्तुएं जैसे कलश और मिट्टी के बर्तन देख सकें. दोनों स्थल 2020–21 के केंद्रीय बजट में विकास के लिए नामित पांच ‘प्रतिष्ठित स्थलों’ में शामिल थे.

हरियाणा के प्रतिष्ठित राखीगढ़ी स्थल पर आगंतुकों के लिए रैंप बनाए गए | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
हरियाणा के प्रतिष्ठित राखीगढ़ी स्थल पर आगंतुकों के लिए रैंप बनाए गए | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

एएसआई के वरिष्ठ पुरातत्वविद् सुजीत नयन, जो वर्तमान में पटना सर्कल में कार्यरत हैं, ने कहा, “हम लोगों को जोड़ना चाहते हैं और उन्हें किसी स्थल को इतने करीब से देखने का रोमांच देना चाहते हैं. दूसरे देशों में यह प्रथा आम है, लेकिन अब यह भारत में भी लोकप्रिय हो रही है.”

तमिलनाडु में यह “खोज का रोमांच” एक राजनीतिक बहस का विषय भी बन गया है, जिसने इतिहास में व्यापक जनरुचि को जन्म दिया है. जनवरी में मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने घोषणा की थी कि तमिलनाडु में लौह युग चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व की पहली तिमाही में शुरू हुआ था. उनकी सरकार ने कीझाड़ी जैसे उत्खनन स्थलों में बड़े पैमाने पर निवेश किया है, जिससे उत्तर-दक्षिण की बहस को और बल मिला है.

बाद में एएसआई ने कीलाड़ी उत्खनन रिपोर्ट में कुछ बदलाव करने के लिए राज्य पुरातत्वविद् अमरनाथ रामकृष्ण को वापस बुलाया, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. इन घटनाओं ने प्राचीन इतिहास को धूल भरी लाइब्रेरियों से निकालकर भोजन की मेज पर चर्चा का विषय बना दिया है.

तमिलनाडु के एक वरिष्ठ पुरातत्वविद् ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं कि पुरातत्व लोकप्रिय हो रहा है, लेकिन दक्षिण भारत में इस पर गंभीर, ठोस काम हो रहा है—जिसका प्रमाण लौह युग और कीझाड़ी से जुड़ी रिपोर्टें हैं.”

2022 में शिवगंगई पुस्तक मेले में कीलाड़ी प्रदर्शनी की सांकेतिक तस्वीर | फोटो: सौम्या अशोक/दिप्रिंट
2022 में शिवगंगई पुस्तक मेले में कीलाड़ी प्रदर्शनी की सांकेतिक तस्वीर | फोटो: सौम्या अशोक/दिप्रिंट

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वायरल होती आर्कियोलॉजी

अब पुरातत्व पॉडकास्ट, रील्स और सोशल मीडिया प्रभावशालियों के क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है. क्या महाभारत काल का कोई ऐतिहासिक आधार है? क्या कीलाड़ी की सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता से भी पुरानी है?—हर कोई इन विषयों पर तीखी प्रतिक्रियाएं चाहता है.

BeerBiceps चैनल चलाने वाले यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया ने के.के. मुहम्मद, अनिका मान और दिशा अहलूवालिया जैसे पुरातत्वविदों से मंदिरों के पुनर्निर्माण से लेकर आर्यों के आक्रमण सिद्धांत तक के विषयों पर बातचीत की है. मुहम्मद वाला एपिसोड 60 लाख से ज़्यादा बार देखा गया, जिसमें उन्होंने इस क्षेत्र की अचानक बढ़ती लोकप्रियता पर भी बात की.

उन्होंने कहा, “नज़रिया बदल गया है. एक समय था जब लोग पुरातत्वविदों को फटे-पुराने कुर्ते, लंबे बाल और उससे भी लंबी दाढ़ी वाले बूढ़े मानते थे, लेकिन अब सब बदल गया है और इसका श्रेय सोशल मीडिया को जाता है.”

पुरातत्वविद् के.के. मुहम्मद यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया के साथ | यूट्यूब स्क्रीनग्रैब
पुरातत्वविद् के.के. मुहम्मद यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया के साथ | यूट्यूब स्क्रीनग्रैब

फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पुरातत्व से जुड़े दर्जनों पेज बन चुके हैं, जिनमें से कई शौकिया इतिहासकारों या इतिहास प्रेमियों द्वारा संचालित हैं. इंस्टाग्राम पर Indian Archaeology के 558 फॉलोअर हैं, Archaeologywala (शोधकर्ता प्रियांक वढेरा द्वारा संचालित) के 2,000 से ज़्यादा और Indian Archaeology Centre (inarch_center) के लगभग 6,000 फॉलोअर हैं. फेसबुक पर महाराष्ट्र के अमरावती स्थित पुरातत्व अध्ययन एवं अनुसंधान केंद्र द्वारा संचालित Archaeology Event के 10,000 से अधिक फॉलोअर हैं.

एएसआई की डिजिटल उपस्थिति भी उल्लेखनीय है—इंस्टाग्राम पेज (@asi.goi) पर लगभग 39,000 फॉलोअर हैं. यहां दिल और ताली वाले इमोजी की भरमार होती है, लेकिन कुछ फॉलोअर इतिहास पर राय भी रखते हैं और सुधार के सुझाव भी देते हैं.

“पहले विभाग केवल विरासत और संग्रहालय दिवस जैसे विशेष अवसरों पर ही लोगों से जुड़ता था, लेकिन अब हम पूरे वर्ष विरासत और पुरातत्व को बढ़ावा दे रहे हैं.”

— कुश ढेबर, सलाहकार, हरियाणा पुरातत्व विभाग

6 जून को एएसआई ने तमिलनाडु के गुडियम में 1962–64 की खुदाई की अभिलेखीय तस्वीरें पोस्ट कीं, जिनमें उत्तर-अचुलियन काल से लेकर सूक्ष्मपाषाण काल तक के सांस्कृतिक क्रम का उल्लेख था. एक यूज़र ने पुराने नामों के उपयोग पर टिप्पणी करते हुए लिखा: “एडमिन, अब यह चेंगलपट्टू और तिरुवल्लूर है.”

राज्य पुरातत्व विभाग भी अब सोशल मीडिया पर सक्रिय हो रहे हैं. मई में, हरियाणा पुरातत्व विभाग (@archaeologyharyana) ने अग्रोहा उत्खनन की एक रील शेयर की, जिसमें सितारवादक नीलाद्रि कुमार का ट्रैक “Sitar Gaze” पृष्ठभूमि में था. इसमें पुरातत्वविदों को खाइयों में काम करते हुए दिखाया गया है. एक दर्शक ने पूछा, “अच्छा वीडियो! गुप्त काल के कोई टेराकोटा?”

करीब दस महीने पहले, मध्य प्रदेश पुरातत्व विभाग ने भी इंस्टाग्राम पर पोस्ट करना शुरू किया.

मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग में आईटी सलाहकार कृष्णा शर्मा ने कहा, “कुछ ही महीनों में हम लोगों से एक बिल्कुल नए स्तर पर जुड़ने में सक्षम हो गए हैं.”

@directorate_of_archaeology_mp हैंडल के अब 29,000 से अधिक इंस्टाग्राम फॉलोअर हैं. एक साल से भी कम समय में इसने 300 से ज़्यादा पोस्ट किए हैं—स्मारकों के ड्रोन शॉट्स, उच्च गुणवत्ता वाले ग्राफिक्स, हेरिटेज रील्स, नियमित क्विज़ और मूर्तियों की तस्वीरें.

मध्य प्रदेश की विरासत पर आधारित वर्चुअल रियलिटी अनुभव 'आंखों देखा' का आनंद लेते दर्शक. राज्य पुरातत्व निदेशालय के सहयोग से भोपाल और ओरछा में वीआर केंद्र स्थापित किए गए हैं | इंस्टाग्राम/@aankhon.dekha
मध्य प्रदेश की विरासत पर आधारित वर्चुअल रियलिटी अनुभव ‘आंखों देखा’ का आनंद लेते दर्शक. राज्य पुरातत्व निदेशालय के सहयोग से भोपाल और ओरछा में वीआर केंद्र स्थापित किए गए हैं | इंस्टाग्राम/@aankhon.dekha

यह अभियान भोपाल कार्यालय में चार स्थायी कर्मचारियों की एक टीम द्वारा जनसंपर्क एजेंसियों के सहयोग से चलाया जा रहा है.

शर्मा ने कहा, “इन स्थलों को जीवंत बनाने के लिए नागरिकों की भागीदारी आवश्यक है और हमारा ध्यान इसी दिशा में है.”

फरवरी में विभाग ने देवबड़ला के लुप्त मंदिरों पर एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसे 15,000 से अधिक लाइक मिले। एक अन्य पोस्ट में भोपाल राज्य संग्रहालय में स्थापित ‘वाकण दादा’ शुभंकर को दिखाया गया था. एक टिप्पणी में लिखा गया, “हर बार कुछ नया और अद्भुत—शाबाश.”

विभाग ने भोपाल संग्रहालय में एक वर्चुअल रियलिटी सेंटर भी स्थापित किया है. यहां आगंतुक 3D फिल्में देख सकते हैं और ओरछा व खजुराहो जैसे स्थलों का 360-डिग्री वर्चुअल टूर कर सकते हैं.

लाल बाग पैलेस, इंदौर में जारी पुनर्स्थापन कार्य का परिचय कराते वाकण दादा की सोशल मीडिया पोस्ट. यह प्रयास आम लोगों के लिए विरासत संरक्षण को अधिक सुलभ और समझने योग्य बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है | क्रेडिट: एक्स/@dir_arch_mp
लाल बाग पैलेस, इंदौर में जारी पुनर्स्थापन कार्य का परिचय कराते वाकण दादा की सोशल मीडिया पोस्ट. यह प्रयास आम लोगों के लिए विरासत संरक्षण को अधिक सुलभ और समझने योग्य बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है | क्रेडिट: एक्स/@dir_arch_mp

शर्मा ने बताया, “जब से इस केंद्र की शुरुआत हुई है, संग्रहालय में आगंतुकों की संख्या बढ़ी है. हम कलाकृतियों के 360-डिग्री डिजिटलीकरण पर भी काम कर रहे हैं, ताकि जो लोग व्यक्तिगत रूप से नहीं आ सकते, वे इन्हें हमारी वेबसाइट पर देख सकें.”

2023 में, एएसआई ने अपनी नई वेबसाइट और Indian Heritage ऐप लॉन्च किया, जो ताजमहल, लाल किला, रानी की वाव, नालंदा और हम्पी जैसे स्थलों के टिकट बुक करने का एक प्लेटफॉर्म है. इसका दोहरा उद्देश्य है—ब्रांड निर्माण और जानकारी का विश्वसनीय स्रोत बनना.

सेवानिवृत्त पुरातत्वविद् इंदु प्रकाश ने कहा, “आज सामग्री की बाढ़ है, लेकिन पुरातत्व को लेकर गलत जानकारी भी तेजी से बढ़ रही है. आम लोगों के पास तथ्यों की जांच करने के साधन नहीं होते. वो जो देखते हैं, उसी पर विश्वास कर लेते हैं. पुरातत्व की लोकप्रियता के साथ यही सबसे बड़ा खतरा है.”


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ट्रेंच से चर्चा तक का सफर

इस फरवरी, दिल्ली विश्वविद्यालय के साहित्य महोत्सव के एक कार्यक्रम में पुरातत्वविदों ने प्रमुख भूमिका निभाई. एएसआई के महानिदेशक यदुबीर सिंह रावत, अतिरिक्त महानिदेशक संजय मंजुल और पुरातत्वविद् दिशा अहलूवालिया ने ‘खाइयों की कहानियां’ शीर्षक से एक पैनल चर्चा में भाग लिया. दर्शक पूरी तरह मंत्रमुग्ध थे.

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री संजीव सान्याल, जो दर्शकों में मौजूद थे, उन्होंने एक पोस्ट में लिखा, “भारतीय पुरातत्वविदों की तीन पीढ़ियों को इस क्षेत्र में जीवन की कठिनाइयों के बारे में सुनते हुए.”

कुछ ही दिनों बाद, 28 फरवरी से 2 मार्च तक बेंगलुरु में आयोजित इतिहास साहित्य महोत्सव में पुरातत्वविद् वी. सेल्वाकुमार, रवि कोरीसेट्टार, दिशा अहलूवालिया और वास्तुकार श्रीकुमार मेनन ने ‘पत्थर और परछाइयां: प्रागितिहास से महापाषाणों तक की यात्रा’ विषय पर पैनल चर्चा की.

इन आयोजनों के साथ, पुरातत्वविद अब साहित्य महोत्सवों में नियमित रूप से हिस्सा लेने लगे हैं.

आम लोगों के पास तथ्यों की जांच करने के साधन नहीं होते. वो जो कुछ भी अपने सामने देखते हैं, उसी पर विश्वास कर लेते हैं. यही खतरा है जब पुरातत्व अधिक लोकप्रिय हो जाता है.

— इंदु प्रकाश, सेवानिवृत्त पुरातत्वविद्

दिसंबर 2024 में कश्मीर साहित्य महोत्सव में, संजय मंजुल ने लेखिका नम्रता वाखलू के साथ ‘पुरातत्व के माध्यम से भारतीय विरासत का अन्वेषण’ शीर्षक सत्र में बातचीत की.

वाखलू ने मंजुल का परिचय कराते हुए कहा, “पुरातत्व के क्षेत्र में आपका नाम काफी महत्वपूर्ण है और आपने पिछले 30 साल में कई पुरातात्विक अभियानों का नेतृत्व किया है.” इसके बाद मंजुल ने भारत के अतीत से अपने जुड़ाव और 1999 से एएसआई के साथ अपने कार्य के अनुभव साझा किए.

राखीगढ़ी से लेकर गुजरात के धोलावीरा तक, देशभर में खुदाई कर चुके मंजुल ने कहा, “मैंने पुरातात्विक अवशेषों के माध्यम से देश भर की संस्कृति को समझने की कोशिश की है.”

लेकिन 2018 में उत्तर प्रदेश के सिनौली में हुई खुदाई ने सबसे ज़्यादा ध्यान खींचा. यहीं पर उनकी टीम को 2000 ईसा पूर्व का एक रथ मिला था. इस खोज ने प्राचीन भारतीय सभ्यता और योद्धा वर्ग की मौजूदगी को लेकर चली आ रही धारणाओं को चुनौती दी और व्यापक चर्चा छेड़ दी.

एएसआई अधिकारियों ने सिनौली उत्खनन पर व्याख्यान दिया जो आर्यन आक्रमण सिद्धांत को गलत साबित करता है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
एएसआई अधिकारियों ने सिनौली उत्खनन पर व्याख्यान दिया जो आर्यन आक्रमण सिद्धांत को गलत साबित करता है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

मंजुल ने कहा, “इसीलिए डिस्कवरी चैनल ने हमसे संपर्क किया. उन्होंने कहा कि इस पूरी कहानी में एक अद्भुत पहलू है.”

इसका नतीजा 56 मिनट की डॉक्यूमेंट्री ‘सीक्रेट्स ऑफ सिनौली’ के रूप में सामने आया, जिसका निर्देशन नीरज पांडे ने किया और जो 2021 में रिलीज़ हुई. अभिनेता मनोज बाजपेयी ने इसका नैरेशन किया, जिसकी शुरुआत एक संस्कृत श्लोक से होती है और फिर उनकी आवाज़ में इस खोज की महत्ता का वर्णन किया गया है.

पुरातत्वविद् संजय कुमार मंजुल डॉक्यूमेंट्री सीक्रेट्स ऑफ सिनौली में | यूट्यूब स्क्रीनग्रैब
पुरातत्वविद् संजय कुमार मंजुल डॉक्यूमेंट्री सीक्रेट्स ऑफ सिनौली में | यूट्यूब स्क्रीनग्रैब

बाजपेयी ने कहा, “मैं इस देश में हुई सबसे बड़ी खोज की बात कर रहा हूं—हमारी प्राचीन सभ्यता की खोज. सदियों तक भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता रहा. आक्रमणकारियों ने इसके पंख काट दिए. देश का इतिहास भी अछूता नहीं रहा, इसे बदला गया, दबाया गया. हमारा प्रयास है कि वर्तमान की परतों को हटाकर इतिहास को देखा और समझा जाए.”

हालांकि, जैसे-जैसे पुरातत्व राजनीतिक और सांस्कृतिक बहसों से जुड़ता जा रहा है, कुछ पुरातत्वविद सार्वजनिक मंचों पर सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं.

संजय मंजुल ने मार्च 2024 में जयेश गंगन द्वारा होस्ट किए गए ‘द आवारा मुसाफिर शो’ पॉडकास्ट के एक एपिसोड में कहा, “एक पुरातत्वविद के लिए दो चीज़ें सबसे ज़रूरी होती हैं—उसका अवलोकन और उसका बहु-विषयक ज्ञान.” इस एपिसोड को 44,000 बार देखा गया और 160 से ज़्यादा टिप्पणियां आईं.

मंजुल ने कहा, “मैं हमेशा कहता हूं कि एक पुरातत्वविद न वामपंथी होता है और न ही दक्षिणपंथी. वह जो देखता है, उसके बारे में बात करता है. एक पुरातत्वविद का कोई धर्म नहीं होता.”


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नए बदलाव

पिछला लगभग एक दशक, 160 साल से भी अधिक पुराने एएसआई के लिए एक नया, उत्साहवर्धक दौर रहा है. यह दौर पुराने को नया रूप देने का है.

2018 में एएसआई एक नए और आकर्षक मुख्यालय धरोहर भवन में स्थानांतरित हुआ, जिसकी लागत कथित रूप से उस वर्ष एएसआई द्वारा अपने सभी 3,600 संरक्षित स्मारकों के संरक्षण पर खर्च की गई राशि से भी अधिक थी.

तिलक मार्ग स्थित इस नए पते का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. भव्य स्तंभों और मेहराबों वाली चार मंज़िला यह इमारत सांची स्तूप और खजुराहो मंदिरों जैसे प्रतिष्ठित स्मारकों की फ्रेमयुक्त तस्वीरों से सजी है. इसमें एक अत्याधुनिक सभागार, ऊर्जा-कुशल प्रकाश व्यवस्था, वर्षा जल संचयन प्रणाली और एक केंद्रीय पुरातत्व पुस्तकालय है, जिसमें लगभग 1.5 लाख पुस्तकें और पत्रिकाएं हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन समारोह में कहा था, “एएसआई ने पिछले लगभग 150 वर्षों में महत्वपूर्ण कार्य किए हैं. भारत को अपनी महान विरासत को गर्व और आत्मविश्वास के साथ प्रदर्शित करना चाहिए.”

स्वतंत्रता दिवस 2024 के लिए एएसआई के भव्य दिल्ली मुख्यालय, धरोहर भवन में सेल्फी स्पॉट | फोटो: फेसबुक | भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण
स्वतंत्रता दिवस 2024 के लिए एएसआई के भव्य दिल्ली मुख्यालय, धरोहर भवन में सेल्फी स्पॉट | फोटो: फेसबुक | भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

दो साल बाद, एएसआई ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में स्मारकों के संरक्षण के लिए सात नए प्रशासनिक “सर्किल” घोषित किए. पूरे भारत में एएसआई के अब कुल 36 सर्किल हैं. इसके बजट में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है—कोविड-19 से पहले 2019-20 में जहां 1,036.41 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, वहीं 2025-26 में यह बढ़कर 1,278.49 करोड़ रुपये हो गया है.

एएसआई नए क्षेत्रों में भी सक्रिय हुआ है. 2025 में, उसने 15 वर्षों के अंतराल के बाद अपने अंतर्जलीय पुरातत्व विंग को पुनर्जीवित किया और गुजरात के द्वारका तट पर नए अन्वेषण कार्य शुरू किए.

शिक्षा के क्षेत्र में भी पुरातत्व के प्रति रुचि बढ़ रही है. पुरातत्व विज्ञान केंद्र की स्थापना 2012 में हुई थी. तीन वर्ष बाद, आईआईटी खड़गपुर ने “सांस्कृतिक विरासत स्थलों की योजना और प्रबंधन” नामक एक पाठ्यक्रम शुरू किया. 2014 में, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय ने अपना पुरातत्व विभाग आरंभ किया, जिसने तब से हड़प्पा स्थल तिगराणा में उत्खनन का नेतृत्व किया है और हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में अन्वेषण कार्य किए हैं.

और यह रुचि केवल पुरातत्वविदों और छात्रों तक सीमित नहीं है. दिल्ली में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी पुरातत्व से जुड़े आयोजन लगातार हो रहे हैं. उदाहरण के लिए जनवरी से दिसंबर 2024 के बीच, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (IIC) ने पुरातत्व विषयक आठ वार्ताओं की मेज़बानी की, जिनमें इतिहासकार हिमांशु प्रभा रे की श्रृंखला “इतिहास और विरासत: स्मारकों का परलोक” भी शामिल थी.

इन व्याख्यानों में टेराकोटा कलाकृतियों, मंदिर वास्तुकला और प्राचीन शिलालेखों जैसे विषयों पर चर्चा की गई. इस साल मई में, इंटैक ने भारत की समुद्री विरासत पर चार दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला आयोजित की, जिसमें राजीव निगम और वसंत शिंदे ने लोथल के समुद्री परिसर जैसे स्थलों पर अपने विचार रखे.

जून 2023 में, वरिष्ठ पुरातत्वविद् बीएम पांडे, IIC में आयोजित एक व्याख्यान के दौरान, पुराना किला उत्खनन पर दर्शकों की उपस्थिति से अभिभूत हो गए. न केवल हॉल खचाखच भरा था, बल्कि दर्शकों ने यह मांग भी रखी कि खुदाई स्थल सप्ताह में एक बार आम जनता के लिए खोला जाए.

पांडे ने कहा था, “एक समय था जब ऐसी चर्चाओं में बहुत कम लोग आते थे. आज इतने लोग हैं कि बैठने की जगह भी नहीं बचती. यह एक सकारात्मक संकेत है.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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