नई दिल्ली: एक पीकॉक ब्लू साड़ी और हर एक कलाई में ढेर सारी चूडियां पहने, ओडिशा निवासी सलिला जेना दिल्ली के विज्ञान भवन में एक मंच पर चलते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ पहुंचीं. वह देश भर की महिला चेंजमेकर्स में से एक थीं, जिन्हें शनिवार को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था.
सलिला को ओडिशा के जाजपुर जिले के अकरापाड़ा गांव में मल वाले कीचड़ और सेप्टेज मैनेजमेंट (एफएसएसएम) में उनके लगातार प्रयासों के लिए सम्मानित किया गया. वह समुदाय-प्रबंधित स्वच्छता में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देकर इन्क्लूसिविटी की अगुवा भी बन गई हैं.
सलिला ने एक ट्रांसलेटर की मदद से दिप्रिंट को बताया, “हमारे जिले में बहुत सारी नदियां हैं. भारी बारिश के दौरान, पानी की वजह से आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ आ सकती है या नमी बढ़ा सकती है. इससे कचरे का निस्तारण मुश्किल हो जाता है और इसीलिए इस पर ध्यान देने की जरूरत है.”
43 वर्षीय सलिला ने अपने वक्तृत्व कौशल का उपयोग सुरक्षित स्वच्छता प्रथाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने, घरेलू अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं का आकलन करने और अपने समुदाय के भीतर अन्य चीजों के बीच शौचालयों के निर्माण की निगरानी के लिए किया.
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा आयोजित, स्वच्छ सुजल शक्ति सम्मान का उद्देश्य जमीनी स्तर पर महिलाओं के नेतृत्व को सेलिब्रेट करना था. समारोह की शुरुआत 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस सप्ताह की शुरुआत के साथ हुई.
इसमें तीन श्रेणियां थीं – जल जीवन मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन और स्वच्छ भारत मिशन – ग्रामीण (एसबीएम-जी). अंत में सलिला को सम्मान दिया गया. एसबीएम-जी पहल का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) स्थिति और ठोस व तरल अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं का निर्माण करना है. एफएसएसएम एक प्रमुख घटक है.
56 महिला प्रतिनिधियों, सरपंचों, स्वच्छाग्रहियों, जल वाहिनी, जल योद्धाओं को सम्मानित किया गया. राष्ट्रपति ने उनमें से 18 को सम्मानित किया, बाकी ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से पुरस्कार प्राप्त किया.
उन्होंने यह रास्ता क्यों चुना?
10 साल पहले एक बेरोजगार सलिला ने खुद को ऐसी स्थिति में पाया जहां उसे अपने पूरे परिवार का भरण-पोषण करना था. उनके पति वेटर की नौकरी की तलाश में हैदराबाद गए थे, लेकिन उन्हें नौकरी मिलने में मुश्किल हो रही थी.
यह भी पढ़ेंः जल शक्ति मंत्रालय की हर घर जल योजना में पानी के साथ आर्सेनिक भी घर-घर पहुंचेगा
सलिला को लगा जैसे उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई हो. उसके सास-ससुर, दो बच्चे – एक बेटा 7वीं कक्षा में और एक बेटी 6ठीं कक्षा में – उस पर निर्भर थे और उनकी जमा पूंजी तेजी से घट रही थी.
सलिला ने गर्व से कहा,“मैं पैसे कमाने के लिए एक स्वयं सहायता समूह, जय जगन्नाथ सेवा समिति से जुड़ी. हालांकि मेरे पति को अंततः नौकरी मिल गई, फिर भी मैंने समूह के साथ काम करना जारी रखा.”
उन्होंने याद किया कि कैसे उनके 12-सदस्यीय एसएचजी को स्वच्छ भारत मिशन के पहले चरण के बारे में पता नहीं था, जब यह 2014 में लॉन्च किया गया था, जब तक कि उनके गांव में शौचालय नहीं बन गए थे.
उन्होंने कहा, “बाद में, जब मिशन का दूसरा चरण [2020 में] शुरू हुआ, तो हमने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लिया और इस कोशिश में अपनी भागीदारी निभाई. प्रारंभ में, हमारे पास गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे जैसे प्लास्टिक इत्यादि को कचरे में से अन्य सामानों में से अलग करने का काम था. हम जो प्लास्टिक इकट्ठा करते थे, उसे हम बेच देते थे और उसी से मिले पैसे ही हमारी कमाई थे.”
कोई काम छोटा नहीं होता
गांव में 40-50 सेप्टिक टैंक थे लेकिन सीवेज को जलाशयों में डाला जा रहा था जिसके लिए एफएसएसएम की आवश्यकता थी.
जिले के एक शहरी क्षेत्र में एक बड़ा मल-कीचड़ ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया गया था. शहरी-ग्रामीण कन्वर्जेंस के एक हिस्से के रूप में, अधिकारियों को पड़ोसी ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रीटमेंट सर्विसेज (अर्थात् सेप्टिक टैंक से मल कीचड़ का संग्रह, परिवहन और ट्रीटमेंट) प्रदान करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट का उपयोग करना था.
“मेरी भूमिका, अन्य एसएचजी महिलाओं की तरह, सेप्टिक टैंक वाले लोगों को यह समझाने की थी कि एक बार यह भर जाने के बाद, इसे खाली करने की आवश्यकता है. एक बार जब वे इसके लिए सहमत हो गए, तो मैं नगर पालिका से संपर्क करती थी और वे सीवेज एकत्र करने के लिए एक सेसपूल वाहन भेजते थे ताकि उसे कलेक्कट करके उसका ट्रीटमेंट किया जा सके.”
सलिला और एफएसएसएम में शामिल अन्य महिलाएं जब भी रेफ़रल भेजती हैं तो उन्हें हर बार इसके लिए पैसे मिलते हैं.
सलिला एक छोटे से गांव में की रहने वाली हैं और दसवीं कक्षा तक पढ़ी हैं जहां महिलाएं मुश्किल से शिक्षित हैं. उसे हमेशा अपने परिवार और समाज दोनों का समर्थन मिला है. उसके काम और पेशे की प्रकृति को लेकर किसी सामाजिक भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता है.
“मेरे पति कहते थे कि कोई काम छोटा नहीं होता. अगर कोई उससे पूछे कि उसकी पत्नी कचरे-वचरे का काम क्यों करती है, तो वह एक वेटर के रूप में अपने खुद के अनुभवों को बताते हुए जवाब देते थे कि कैसे उस काम के लिए भी बहुत ही अनोखी तकनीकों को सीखने की आवश्यकता है. वह इस मंत्र पर चलते थे कि अगर गांव स्वच्छ रहेगा तो परिवार भी स्वच्छ रहेगा और सभी को लाभ होगा.’
यह तीन-भागों की सीरीज का अंतिम भाग है, जिसमें तीन ग्रामीण महिलाओं की रूपरेखा दी गई है, जिन्हें जल क्षेत्र में उनके योगदान के लिए राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया था.
(अनुवाद एवं संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः परदे वाली ‘जल सखी’ और उनकी पूरी महिला टीम ने कैसे एक नदी को पुनर्जीवित कर गांव समृद्ध किया