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Monday, 14 July, 2025
होमफीचरगुरुग्राम नहीं ‘कूड़ाग्राम’: गंदगी के ढेर में दबती ‘मिलेनियम सिटी’ की हकीकत

गुरुग्राम नहीं ‘कूड़ाग्राम’: गंदगी के ढेर में दबती ‘मिलेनियम सिटी’ की हकीकत

फ्रेंच प्रवासी और जेट एयरवेज़ के पूर्व CEO संजीव कपूर की वायरल X पोस्ट्स ने गुरुग्राम की सड़ांध मारती कचरा समस्या पर फिर भड़काया गुस्सा. अमीर-गरीब सब हैं परेशान—‘हम गंदगी से घिरे हुए हैं.’

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गुरुग्राम: जब दो साल पहले श्वेता अरोड़ा और उनके पति ने गोल्फ ग्रीन एक्सटेंशन में अपना बड़ा सा फ्लैट खरीदा, तो उन्हें लगा जैसे उनकी कोई बहुत बड़ी लौटरी लग गई हो. इलाका ज्यादा भीड़-भाड़ वाला नहीं था और अरावली की पहाड़ियों के साथ-साथ शहर के स्काईलाइन का नज़ारा भी दिखता था, लेकिन बीते एक साल में वो नज़ारा काफी बदल गया है. अब उसी सड़क पर कंक्रीट का मलबा उतारते ट्रक दिखाई देते हैं और गायें प्लास्टिक की थैलियों को खींचती नज़र आती हैं.

श्वेता ने कहा, “दुनिया इसे गुरुग्राम के नाम से जानती है, लेकिन असल में यह कूड़ाग्राम है.” वे सेक्टर-55 के प्रगति अपार्टमेंट्स में रहती हैं, जहां फ्लैट की कीमत करीब 2 करोड़ रुपये है.

लेकिन DLF Camellias जैसे हाई-एंड अपार्टमेंट्स, जिनकी कीमत 100 करोड़ तक जाती है, उनके पास की सड़कें भी इससे बेहतर नहीं हैं और अब ये कचरा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.

पिछले शुक्रवार को एक फ्रेंच प्रवासी मैथिल्डे आर ने X पर पोस्ट किया: “मैंने दुनिया में कहीं इतनी गंदगी नहीं देखी. अफ्रीका, एशिया और साउथ अमेरिका इससे 100 गुना साफ हैं. यह भारत और भारतीयों के लिए दुखद है.”

इस पोस्ट पर सैकड़ों प्रतिक्रियाएं आईं. कुछ ने पेरिस की सफाई पर तंज कसा, लेकिन ज़्यादातर लोगों ने गुस्सा जताया. फिर आई एक और तीखी प्रतिक्रिया — इस बार जेट एयरवेज़ के पूर्व सीईओ संजीव कपूर की.

उन्होंने गायों के साथ कूड़े के ढेर की तस्वीरें साझा कीं और लिखा, “महीनों बाद हालात पहले से भी बदतर. शर्म करो @MunCorpGurugram @DC_Gurugram @cmohry — न देश की इज्जत, न टैक्स देने वालों की, न ही गायों की! और आप हरियाणा में डिज्नीलैंड बनाना चाहते हैं? हास्यास्पद!”

गुरुग्राम की मल्टीनेशनल कंपनियों और करोड़ों के अपार्टमेंट्स के बीच ट्रैफिक जाम, कूड़ा और गायों का सह-अस्तित्व | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गुरुग्राम की मल्टीनेशनल कंपनियों और करोड़ों के अपार्टमेंट्स के बीच ट्रैफिक जाम, कूड़ा और गायों का सह-अस्तित्व | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

इन पोस्ट्स ने जैसे लोगों की दुखती रग छू दी. #Kudagram ट्रेंड करने लगा. नाराज़ निवासियों ने अपने-अपने इलाके की गंदगी की तस्वीरें शेयर कीं, अधिकारियों को टैग किया और बहस छिड़ गई कि आखिर ठोस कचरा, सीवरेज और इंडस्ट्रियल वेस्ट को संभालने के लिए क्या कदम उठाने होंगे.

एक यूज़र ने लिखा, “इस शहर में वेस्ट मैनेजमेंट नाम की कोई चीज़ नहीं है.” दूसरे ने कहा: “ये भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्म करने जैसा है.” तीसरे ने कहा, “यहां विश्वस्तरीय कॉन्डोमिनियम्स हैं, लेकिन बाहर निकलते ही कूड़ा-कचरा फैला है — किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता.”

सूरज ढलते ही सुशांत लोक फेज-2 की मुख्य सड़क पर झुग्गी-बस्तियों के लोग कूड़े के ढेर पर पहुंचने लगते हैं | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
सूरज ढलते ही सुशांत लोक फेज-2 की मुख्य सड़क पर झुग्गी-बस्तियों के लोग कूड़े के ढेर पर पहुंचने लगते हैं | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

सोमवार को MCG (नगर निगम) ने कपूर की पोस्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए एक फोटो पोस्ट की, जिसमें साफ-सफाई दिखाते हुए लिखा गया: “समस्या के समाधान के लिए तुरंत कार्रवाई की गई.” लेकिन स्थानीय निवासी इस तरह के दावों से पहले भी धोखा खा चुके हैं.

आज गुरुग्राम में कचरा ही सबसे बड़ा बराबरी का संकट बन गया है, जो समस्या कभी सिर्फ झुग्गियों तक सीमित थी, अब करोड़पति इलाकों के दरवाज़े पर पहुंच गई है.

एक फ्रेंच प्रवासी और पूर्व सीईओ की पोस्ट ने राष्ट्रीय ध्यान दोबारा इस गंदगी की ओर खींचा. निजी ठेकेदारी, कचरा माफिया और प्रशासनिक विफलताओं ने इस कॉर्पोरेट टावरों वाले शहर को मलबे और अव्यवस्था में बदल दिया है.

गुरुग्राम के बंदवाड़ी लैंडफिल पर लीगेसी वेस्ट के पहाड़ से जूझता एक जेसीबी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गुरुग्राम के बंदवाड़ी लैंडफिल पर लीगेसी वेस्ट के पहाड़ से जूझता एक जेसीबी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

जून 2024 में हरियाणा सरकार ने गुरुग्राम में ठोस कचरा आपात स्थिति (Solid Waste Exigency) घोषित की थी, लेकिन जमीनी हालात में कोई बदलाव नहीं आया. गुरुग्राम बीते एक साल से कचरा आपातकाल की स्थिति में बना हुआ है और यह भारत का पहला शहर है जिसे यह बदनाम पहचान मिली है.

पिछले चार वर्षों में नगर निगम गुरुग्राम (MCG) ने सफाई व्यवस्था के लिए 1,795 करोड़ का बजट आवंटित किया. कचरे की सफाई के लिए SWEEP (Solid Waste Environment Exigency Programme) नाम से एक विशेष अभियान शुरू किया गया.

बंदवाड़ी लैंडफिल को दिसंबर 2024 तक पूरी तरह साफ करने की डेडलाइन तय की गई थी, लेकिन आज भी 8 लाख मीट्रिक टन से ज़्यादा पुराना (legacy) कचरा बिना प्रोसेस किए पड़ा है. 250 से अधिक अवैध डंपिंग साइट्स स्थायी रूप ले चुकी हैं और 60% से ज़्यादा इलाकों में नियमित घर-घर कचरा संग्रहण की व्यवस्था नहीं है. योजना बनी, पैसा भी लगा — लेकिन कूड़ा वहीं का वहीं है.

IAS अधिकारी प्रदीप दहिया, जो मई में गुरुग्राम के नगर आयुक्त बने, उन्होंने कहा कि “राष्ट्रीय शहरी स्थानीय निकाय सम्मेलन” (National Conference of Urban Local Bodies) की तैयारियों के कारण स्थानीय सफाई पर ध्यान नहीं दिया जा सका.

उन्होंने कहा, “अभी हम 400 छोटी गाड़ियों (LCVs) की व्यवस्था कर रहे हैं, जो अगले छह महीनों में कचरे का संग्रह करेंगी. चार दिन में हालात सामान्य कर देंगे.”

लेकिन हकीकत ये है कि सिर्फ सेक्टर-55 में ही 4 से 5 कूड़े के ढेर मुख्य सड़क के किनारे फैले पड़े हैं.

गुरुग्राम में अभी भी सफाई नहीं, सिर्फ बयानबाज़ी हो रही है.


यह भी पढ़ें: हर मानसून क्यों डूबता है गुरुग्राम? मास्टर प्लान, एजेंसियां और जवाबदेही पर सवाल


कॉरपोरेट टावर, मॉल और… कूड़े का साम्राज्य

गुरुग्राम के दो चेहरे हैं. एक तरफ यह शहर वित्त और टेक्नोलॉजी का पावरहाउस है. यहां गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, विप्रो, डेलॉयट, टीसीएस और एचसीएल टेक जैसी दिग्गज मल्टीनेशनल कंपनियों के ऑफिस हैं. जोमैटो के दीपिंदर गोयल और यूनो मिंडा के निर्मल कुमार मिंडा जैसे बड़े कारोबारी लक्ज़री गेटेड टावर्स में रहते हैं. चमचमाते मॉल और ऊंची-ऊंची इमारतें लगातार बन रही हैं.

दूसरा चेहरा? इन्हीं गेट्स के बाहर फैली बदबू, गंदगी और अफरातफरी.

2000 के दशक में गुरुग्राम को “मिलेनियम सिटी” के तौर पर एक आदर्श शहर की तरह पेश किया गया था — चौड़ी सड़कों, सजे-धजे पार्कों, अरावली की वादियों और साफ हवा के साथ, यह वो सब कुछ देने का वादा करता था जो दिल्ली नहीं दे पाती थी.

जो लोग राजधानी की भीड़-भाड़ से दूर जाना चाहते थे, उनके लिए यह शहर एक उम्मीद बनकर उभरा था.

गुरुग्राम सेक्टर-55 में ऊंची इमारतों के बीच बढ़ते कंक्रीट कूड़े के ढेर | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गुरुग्राम सेक्टर-55 में ऊंची इमारतों के बीच बढ़ते कंक्रीट कूड़े के ढेर | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

बाइस साल पहले, अनुराधा पी. धवन मालवीय नगर (दिल्ली) से गुरुग्राम के वेलिंग्टन एस्टेट में रहने आई थीं, बेहतर जीवन की उम्मीद लिए.

उन्होंने कहा, “हम तो साउथ दिल्ली से दौड़ते हुए आए थे, सोचकर कि यहां ज़िंदगी बेहतर होगी. पहले तो खिड़कियां-दरवाज़े खुले रखते थे ताकि ताज़ी हवा मिले. अब हर कमरे में एयर प्यूरीफायर लगा है. शहर में पानी, बिजली और बुनियादी सुविधाओं की हालत बहुत खराब है.”

महंगे इलाकों में भी गलियों में प्लास्टिक कप और रैपर बिखरे रहते हैं. गायें सड़कों के किनारे SUV के पास खड़ी होती हैं. बरसात में कीचड़ और कचरा पानी में तैरता है और ट्रैफिक जाम हो जाता है. निवासियों का कहना है कि कचरे का संकट सुधरने के बजाय हर साल और बढ़ता ही जा रहा है.

गुरुग्राम की सड़कों पर बिखरा कंस्ट्रक्शन वेस्ट और प्लास्टिक कचरा — मिलेनियम सिटी की अब आम तस्वीर | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गुरुग्राम की सड़कों पर बिखरा कंस्ट्रक्शन वेस्ट और प्लास्टिक कचरा — मिलेनियम सिटी की अब आम तस्वीर | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

गुरुग्राम के सेक्टर-55 में धीरे-धीरे कूड़े का साम्राज्य फैलता जा रहा है. श्वेता अरोड़ा, जो 2018 में कोलकाता से गुरुग्राम आईं और 2023 में प्रगति अपार्टमेंट्स में फ्लैट खरीदा, बताती हैं कि उस वक्त उनके घर से अरावली की हरियाली और पेड़ों की कतार दिखाई देती थी.

आज, इलाके के 10 अपार्टमेंट्स में से 4 के सामने एक बढ़ता हुआ कचरे का ढेर दिखाई देता है.

DRDO से रिटायर होकर 2021 में वास्तु अपार्टमेंट्स (सेक्टर 55) में रहने आए डी.पी. मक्कड़ ने कहा, “यह कंक्रीट लैंडफिल तीन साल पहले बनना शुरू हुआ था. अब तो यह पूरा डंपिंग यार्ड बन चुका है.”

उन्होंने कहा, “ग्रीन एरिया के चारों ओर बनी दीवार का एक हिस्सा तोड़ दिया गया है और कई बार कचरे का ढेर इतना बढ़ जाता है कि वह सर्विस रोड तक फैलने लगता है जो अपार्टमेंट्स तक जाती है.”

सेक्टर-55 में फैले कचरे के ढेर के पास खड़े स्थानीय निवासी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
सेक्टर-55 में फैले कचरे के ढेर के पास खड़े स्थानीय निवासी | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

पास ही के सिटी अपार्टमेंट्स में छह महीने पहले शिफ्ट हुए अजय सिन्हा ने कहा कि वे रोज़ाना “10 से 20 ट्रकों” को कंक्रीट कचरा डंप करते देखते हैं.

पहले जो बालकनी खुली रहती थी ताकि दक्षिण-पश्चिम की ठंडी हवा मिले, अब धूल से बचने के लिए हर वक्त बंद रहती है.

इसी शहर में दूसरी ओर, करोड़ों की कीमत वाले ड्रीम होम्स के बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे हैं. एक विज्ञापन में लिखा है, “मैक्स एस्टेट्स… LiveWell अब गुरुग्राम में”.

अरावली बचाओ अभियान की सदस्य अनुराधा धवन इस विरोधाभास से हैरान हैं.

उन्होंने हंसते हुए पूछा, “कूड़ाग्राम में कौन घर खरीद रहा है?”

टूटी हुई बाउंड्री वॉल के उस पार एक खाली ज़मीन, जो अब डंपिंग ग्राउंड बन चुकी है | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
टूटी हुई बाउंड्री वॉल के उस पार एक खाली ज़मीन, जो अब डंपिंग ग्राउंड बन चुकी है | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

रईस अब जागे

गुरुग्राम की आरडब्ल्यूए व्हाट्सएप ग्रुप्स में अब कचरे की चर्चा छाई हुई है. सदस्य ट्वीट्स शेयर कर रहे हैं और कचरे की छंटाई (waste segregation) को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं. यहां तक कि DLF सिटी के सात-सितारा कंडोमिनियम्स में रहने वाले रईस लोग भी अब इस कचरा संकट को लेकर जाग चुके हैं.

गुरुग्राम में पिछले एक दशक से रह रहे एक वरिष्ठ कॉर्पोरेट एग्जिक्यूटिव ने बताया कि अब यह समस्या इतनी सामने आ चुकी है कि गेटेड सोसायटी में रहने वाले लोग भी इसे नज़रअंदाज नहीं कर पा रहे.

उन्होंने कहा, “गुरुग्राम के अमीर लोग शानदार सोसायटियों में रहते हैं—सजे-धजे लॉन, रनिंग ट्रैक, शॉपिंग फैसिलिटीज़ के साथ, लेकिन जब वे अपनी लग्ज़री कारों में बाहर निकलते हैं, तो रास्ते में कचरे के ढेर और दुर्गंध से सामना होता है. गुरुग्राम सिर्फ हरियाणा के लिए नहीं, बल्कि देश के लिए भी एक अहम शहर है और हम गंदगी के बीच जी रहे हैं.”

AC कारों में अपने गेटेड अपार्टमेंट्स से बाहर निकलते ही गुरुग्राम के अमीरों का सामना कचरे, गायों और अव्यवस्था से होता है | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
AC कारों में अपने गेटेड अपार्टमेंट्स से बाहर निकलते ही गुरुग्राम के अमीरों का सामना कचरे, गायों और अव्यवस्था से होता है | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

गेटेड सोसाइटियों के भीतर रहने वाले लोग अब कचरे की इस गंभीर समस्या को नज़रअंदाज नहीं कर सकते. हालांकि, लंबे समय से लोग घरों में ही कचरे की छंटाई (waste segregation) करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जब कचरा संग्रहण करने वाले आते हैं, तब तक वह फिर से मिल-जुल जाता है. फिलहाल, सिर्फ 15 प्रतिशत कचरा ही स्रोत पर सही ढंग से अलग किया जा रहा है और 5,000 से ज्यादा पंजीकृत सफाई कर्मचारियों में से करीब 1,000 को अप्रैल तक कोई काम सौंपा ही नहीं गया था.

दिप्रिंट की पिछली रिपोर्ट में यह भी सामने आया था कि गुरुग्राम के कचरा प्रबंधन में माफिया राज भी फैला हुआ है. जो लोग DLF और साइबर सिटी जैसे फायदे वाले ज़ोन में सफाई का काम करना चाहते हैं, उन्हें धमकियां मिलती हैं, गाड़ियां छीनी जाती हैं या फिर उनसे जबरन वसूली की जाती है.

अरुण सिंह, जिनकी कंपनी को MCG ने DLF साइबर सिटी से कचरा उठाने के लिए अधिकृत किया है, ने बताया, “अगर आप गुरुग्राम में कचरा संग्रहण का काम करना चाहते हैं, तो हर महीने लोकल गुंडों को पैसा देना होगा, वरना आपकी गाड़ियां ज़ब्त कर ली जाएंगी, एंट्री बैन कर दी जाएगी, या जान से मारने की धमकी मिलेगी.”

गुरुग्राम के प्रवेश द्वार के पास अधजला पड़ा कचरे का ढेर | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गुरुग्राम के प्रवेश द्वार के पास अधजला पड़ा कचरे का ढेर | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

DLF-3 की एक हाई-एंड हाउसिंग सोसाइटी में रहने वाली और एक प्रोडक्शन कंपनी की डायरेक्टर इला गुप्ता ने कहा कि अब चुप रहना विकल्प नहीं है. वह बेहतर सिस्टम और सही कचरा प्रबंधन के लिए प्रशासन से लगातार संवाद कर रही हैं.

उन्होंने कहा, “हमने प्रशासन से बात करने के लिए सामूहिक रूप से आवाज़ उठानी शुरू की है, ताकि हमें स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण मिल सके — जो हर व्यक्ति का बुनियादी अधिकार है. हम वर्षों से गंदगी और कूड़े के बीच रह रहे हैं. अब वक्त आ गया है कि हम एकजुट होकर सार्वजनिक मंचों से अपनी बात कहें.”


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अधूरे वादे

गुरुग्राम का कचरा संकट अब चरम पर पहुंच चुका है. पिछले कई महीनों से आरडब्ल्यूए (रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन) लगातार शिकायतें दर्ज करवा रही हैं और विरोध कर रही हैं. आखिरकार, हरियाणा सरकार ने पिछले साल SWEEP (सॉलिड वेस्ट एनवायरनमेंट एक्सिजेंसी प्रोग्राम) कमेटी बनाई, जिसकी अगुवाई मुख्य सचिव कर रहे हैं. वादे किए गए थे कि 31 दिसंबर 2024 तक गुरुग्राम को साफ कर दिया जाएगा और यह फिर से ‘मिलेनियम सिटी’ के अपने नाम पर खरा उतरेगा, लेकिन कमेटी बने एक साल हो चुका है और हालात आज भी वैसे ही हैं.

गुरुग्राम में दो तरह का मुख्य कचरा निकलता है—सॉलिड म्यूनिसिपल वेस्ट और कंस्ट्रक्शन व डिमोलिशन (C&D) का मलबा. शहर के चारों ओर जो बड़े-बड़े कचरे के ढेर दिखते हैं, वे ज्यादातर निर्माण स्थलों से निकले मलबे के हैं. बासई प्लांट, जिसे C&D वेस्ट को प्रोसेस करने के लिए बनाया गया है, शहर से 25 किलोमीटर दूर है और वह एक दिन में सिर्फ 300 टन कचरा ही निपटा सकता है, जबकि गुरुग्राम हर दिन 1,000 टन से ज़्यादा मलबा पैदा करता है.

गुरुग्राम की सड़क किनारे पड़ा बायोमेडिकल कचरा | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गुरुग्राम की सड़क किनारे पड़ा बायोमेडिकल कचरा | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

तेज़ी से बदला शहर, पर बुनियादी ढांचे की अनदेखी. 1990 के दशक से जब गुरुग्राम ने दिल्ली के एक शांत उपनगर से एक तेज़ी से बढ़ते शहरी हब का रूप लेना शुरू किया, तो इस बदलाव में बुनियादी ढांचे को नजरअंदाज कर दिया गया. आज भी शहर के पास कचरा डंप करने के लिए कोई निर्धारित जगह (डंपिंग यार्ड) नहीं है.

फिलहाल, गुरुग्राम का लगभग सारा ठोस कचरा—करीब 1,200 टन प्रतिदिन—बांधवाड़ी लैंडफिल में फेंका जाता है, जो फरीदाबाद से भी कचरा लेता है. निर्माण स्थलों से निकलने वाला मलबा शहर के अलग-अलग कोनों में अनियमित रूप से डंप कर दिया जाता है.

फेडरेशन ऑफ अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय लाल ने कहा, “जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हो रहा है. आप शहर में कहीं भी चले जाइए, आपको कचरा ही दिखेगा और अब तक इसका कोई समाधान नहीं है.”

गुरुग्राम में सड़क किनारे छोड़ी गई नगर निगम की पाइपलाइन पर लोगों ने झोपड़ियां बना ली हैं | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गुरुग्राम में सड़क किनारे छोड़ी गई नगर निगम की पाइपलाइन पर लोगों ने झोपड़ियां बना ली हैं | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

गुरुग्राम में सिर्फ सड़कों पर ही नहीं, बल्कि अरावली के जंगलों, गांवों की सीमाओं और खुले इलाकों में भी धड़ल्ले से कचरा डंप किया जा रहा है.

पर्यावरण कार्यकर्ता वैशाली राणा, जो अरावली जंगल को बचाने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में मुकदमा लड़ रही हैं, ने बांधवाड़ी लैंडफिल को ‘टाइम बम’ बताया.

बांधवाड़ी लैंडफिल में कचरे के ऊंचे-ऊंचे ढेरों के बीच से गुजरता एक बच्चा | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
बांधवाड़ी लैंडफिल में कचरे के ऊंचे-ऊंचे ढेरों के बीच से गुजरता एक बच्चा | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

पर्यावरण कार्यकर्ता वैशाली राणा ने कहा, “यह एशिया के सबसे बड़े लैंडफिल में से एक है और अरावली के बिल्कुल पास स्थित है. यहां से निकलने वाला (कचरे का ज़हरीला पानी) पास के पांच गांवों के भूजल को प्रदूषित कर चुका है. यहां तक कि वन्यजीवों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले जलस्रोत भी दूषित हो चुके हैं.”

पिछले दिसंबर में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने गुरुग्राम नगर निगम (MCG) को लैंडफिल प्रबंधन को लेकर फटकार लगाई थी और कहा था कि ‘लीगेसी वेस्ट’ को हटाने और प्रोसेसिंग यूनिट बनाने में प्रगति बहुत धीमी है.’

फेडरेशन ऑफ अपार्टमेंट ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय लाल ने बताया, “जिन एजेंसियों को ठोस और निर्माण मलबा उठाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी, उन्होंने उसे शहर में कहीं भी डंप कर दिया. इसी वजह से अलग-अलग हिस्सों में कचरे के ढेर बनते गए.”

गुरुग्राम-फरीदाबाद मार्ग की हालत भी चिंताजनक है—सड़क के दोनों ओर हर कुछ मीटर पर पत्थरों की गिट्टियां, टूटे टाइल्स और ईंटों का मलबा फैला हुआ है और यह सब अरावली की हरियाली से सटी हुई ज़मीन पर बिखरा पड़ा है.

गुरुग्राम-फरीदाबाद सड़क के दोनों ओर फैला पड़ा निर्माण मलबा | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गुरुग्राम-फरीदाबाद सड़क के दोनों ओर फैला पड़ा निर्माण मलबा | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

लेखक राहुल पंडिता ने कहा, “यह रास्ता कभी दौड़ने और टहलने वालों के लिए एक खूबसूरत ठिकाना हुआ करता था, लेकिन अब तो चलने की जगह भी नहीं बची है.”

पिछले साल, नगर निगम गुरुग्राम (MCG) ने शहर का कचरा प्रबंधन देख रही कंपनी इकोग्रीन का कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया और एक नई कंपनी को जिम्मेदारी सौंपी. साथ ही यह भी वादा किया गया कि खुले में कचरा फेंकने वालों पर कार्रवाई की जाएगी.

एक वरिष्ठ एमसीजी अधिकारी ने कहा, “पिछले कुछ सालों में प्रशासनिक अड़चनों की वजह से काम धीमा पड़ा और सही तरह से नहीं हो पाया.”

‘अगर इंदौर कर सकता है, तो गुरुग्राम क्यों नहीं?’

गुरुग्राम के कई नागरिक अब अपने हालात की तुलना बीजेपी शासित दूसरे राज्यों से करने लगे हैं. वे मध्य प्रदेश का इंदौर और गुजरात का सूरत जैसे शहरों का उदाहरण देते हैं, जो हालिया स्वच्छ भारत रैंकिंग में टॉप पर रहे और सवाल करते हैं कि ‘डबल इंजन सरकार गुरुग्राम में नाकाम क्यों है?’

संजय लाल ने कहा, ‘‘यहां कोई विपक्षी पार्टी तो रोड़ा नहीं अटका रही, फिर भी ज़मीन पर काम नहीं हो रहा. लोग अब प्रशासन से तंग आ चुके हैं. डबल इंजन की सरकार की बात करते हैं, लेकिन कचरा प्रबंधन जैसी बुनियादी चीज़ भी ठीक से नहीं संभाल पा रहे.’’

गुरुग्राम के पॉश अपार्टमेंट ब्लॉक्स के बाहर कचरे के ढेर के बीच से गुजरती एक छोटी बच्ची | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
गुरुग्राम के पॉश अपार्टमेंट ब्लॉक्स के बाहर कचरे के ढेर के बीच से गुजरती एक छोटी बच्ची | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

निवासी अब इंदौर, पुणे और सूरत जैसे शहरों की मॉडल व्यवस्था की तारीफ करते हैं, जहां आम नागरिक भी सफाई अभियान में सक्रिय भागीदार हैं.

अनुराधा धवन ने कहा, ‘‘वहां लोगों को वर्दी दी गई है, रोज़गार दिया गया है और आज इंदौर का हर नागरिक अपने शहर को साफ रखने को लेकर जागरूक है.’’ धवन जैसे कई नागरिक अब चाहते हैं कि सिर्फ गेटेड सोसाइटी में सिमटना या सरकारी योजनाओं पर निर्भर रहना समाधान नहीं है.

पर्यावरण कार्यकर्ता वैशाली राणा ने कहा, ‘‘गुरुग्राम नगर निगम और एनजीटी—दोनों ने हमें निराश किया है.’’

राजेश पायलट मार्ग पर एक तार से लटका फटा हुआ तिरंगा. पीछे सड़क किनारे जंगल में जमा कचरे का ढेर। | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट
राजेश पायलट मार्ग पर एक तार से लटका फटा हुआ तिरंगा. पीछे सड़क किनारे जंगल में जमा कचरे का ढेर। | फोटो: मनीषा मोंडल/दिप्रिंट

7 जुलाई को, जब सोशल मीडिया पर गुरुग्राम की सफाई को लेकर बवाल मचा हुआ था, नगर निगम गुरुग्राम (MCG) ने #SwachhGurugram हैशटैग के साथ एक महीने लंबा सफाई अभियान शुरू करने का ऐलान किया.

MCG ने एक्स पर पोस्ट में लिखा, ‘‘गुरुग्राम और साफ़ बनेगा!— सफाई व्यवस्था को सुधारने के लिए सख्त कदम उठाए गए हैं. कमिश्नर ने अधिकारियों के साथ देर शाम बैठक की और निर्देश दिए कि क्विक रिस्पॉन्स टीम (QRT) तैनात की जाएगी—शिकायतों का तुरंत निपटारा होगा, अब कोई शिकायत अनदेखी नहीं होगी.’’

लेकिन इस पोस्ट पर आए कमेंट्स ने ज़मीनी हकीकत बयां कर दी.

एक यूज़र ने तंज कसते हुए लिखा, ‘‘गुड़गांव अब सिर्फ ट्विटर पर साफ होगा.’’

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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