चेन्नई: “रूक कैसे चाल चल रहा है?” जी रमेश एक चमकदार रोशनी वाले कमरे के बीच में खड़े हैं और शतरंज के सबसे बुनियादी प्रश्न के साथ अपने खिलाड़ियों के प्रशिक्षण की शुरुआत करते हैं. आठ वर्षीय के विष्णुवर्धन जवाब देते हैं, “आगे, पीछे और बगल से.” शतरंज प्रशिक्षक सिर हिलाते हैं और कहते हैं, “रूको, तुम हिल नहीं सकता.” विष्णुवर्धन और अन्य छात्रों की आवाज अचानक से रूक जाती है और पूरे कमरे में सन्नाटा छा जाता है. फिर थोड़ी देर बाद सभी अपने खेल पर वापस लौट आते हैं. चेन्नई स्थित साई शतरंज अकादमी और दूसरे प्रशिक्षण अकादमियों के लिए शतरंज एक खेल नहीं है ब्लकि यह एक धर्म है.
चेन्नई के पहले ग्रैंडमास्टर मैनुअल आरोन से लेकर विश्वनाथन आनंद जैसे खिलाड़ियों ने स्थानीय लोगों के बीच इस खेल के प्रति एक अलग ही चार्म पैदा कर दिया है. लोग उन्हें अपने नायक के तौर पर देखते हैं. शतरंज संस्कृति में योगदान देने वाली एक पीढ़ी पहले लगभग हर घर में एक शतरंज बोर्ड होता था. यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हैदराबाद बैडमिंटन और कोच पुलेला गोपीचंद के साथ जुड़ गया है.
हालांकि, तमिलनाडु में सरकार ने भी इस खेल को काफी बढ़ावा दिया है. इससे यह सुनिश्चित हुआ है कि शतरंज के प्रति प्रेम अगली पीढ़ी तक बना रहे. जब जयललिता सत्ता में थीं, तब उन्होंने सरकारी स्कूलों में शतरंज सिखाना अनिवार्य कर दिया था. एमके स्टालिन की देखरेख में शतरंज ओलंपियाड अपने लगभग 100 साल के इतिहास में पहली बार भारत आया. महाबलीपुरम के यूनेस्को विरासत स्थल ने 2022 में ओलंपियाड की मेजबानी की और स्टालिन ने स्कूलों में शतरंज को बढ़ावा देने के लिए 1 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया.
पहले भारतीय ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद कहते हैं, “चेन्नई हमेशा भारतीय शतरंज का केंद्र रहा है.” विश्वनाथन आनंद ताल शतरंज क्लब में खेल खेलते हुए बड़े हुए, जिसे 1972 में चेन्नई के सोवियत सांस्कृतिक केंद्र में आरोन द्वारा स्थापित किया गया था.
यूएसएसआर के साथ ऐतिहासिक संबंधों के अलावा, जब माता-पिता पहली बार अपने बच्चों को इस खेल से परिचित कराते हैं तो उन्हें काफी खर्च करना पड़ता है. यह खेल शांतिप्रिय परिवारों को काफी भाता है क्योंकि यह फुटबॉल, क्रिकेट और अन्य खेलों की तरह नहीं जहां झगड़े होने की संभावना रहती है. इसे काफी सौम्य खेल माना जाता है.
बताया जाता है कि शतरंज की दीवानी तमिलनाडु की राजधानी में 50 से अधिक प्रशिक्षण केंद्र हैं जहां छह साल की उम्र के बच्चे खेल के नियम सीखना शुरू करते हैं. स्कूल और प्रशिक्षण केंद्र अगले प्रतिभाशाली और भावी ग्रैंडमास्टरों की खोज करते हैं. भारत के 83 ग्रैंडमास्टर्स में से 29 तमिलनाडु से हैं, जिनमें से 15 चेन्नई के एक स्कूल मोगाप्पैर में वेलाम्मल विद्यालय से हैं. लेकिन अब तेलुगु भाषी आंध्र के शतरंज खिलाड़ी भी तमिल गढ़ पर धावा बोल रहे हैं.
महाराष्ट्र के ग्रैंडमास्टर प्रवीण थिप्से ने कहा, “50 से अधिक सालों से तमिलनाडु राष्ट्रीय खिलाड़ियों, अच्छे खिलाड़ियों के मामले में सबसे महत्वपूर्ण राज्य रहा है. आम तौर पर, तमिलनाडु में ओपन टूर्नामेंट का स्तर देश के अन्य हिस्सों में ओपन टूर्नामेंट की तुलना में काफी मजबूत माना जाता है.”
थिप्से ने कहा कि राज्य भर में कोयंबटूर, इरोड और सेलम जैसे छोटे शहरों में भी कई टूर्नामेंट हुए. भारत में पहला अंतर्राष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंट 1978 में त्रिची, तमिलनाडु में आयोजित किया गया था.
उन्होंने कहा, “जबकि देश के अधिकांश हिस्सों में मध्यम वर्ग इस खेल की ओर आकर्षित हुआ था, तमिलनाडु में 1970 के दशक में भी श्रमिक वर्ग भी यह खेल खेल रहे थे.”
विश्वनाथन आनंद की भूमि
साई शतरंज अकादमी में सोमवार को शाम 5 बजे, लगभग दस बच्चे अपने किश्तियों, बिशपों, शूरवीरों और प्यादों से शह और मात के इस खेल में जोर लगा रहे थे. उनके आधे कंधे बोर्ड पर झुके थे. अधिकांश छह से नौ साल के बीच के थे और जोड़े में बैठे थे. उन दोनों के बीच शतरंज का एक बोर्ड थी जिसपर शह और मात का दांव चला जा रहा था. उनके माथे पर लकीरें उभरी हुई थी. रमेश कमरे के बीच में खड़ा होकर उन्हें बोर्ड पर उनके द्वारा चले जा रहे चाल पर नजर रख रहे थे.
यदि सुनील गावस्कर और बाद में सचिन तेंदुलकर ने मुंबईवासियों की एक पीढ़ी को क्रिकेट का बल्ला उठाने के लिए प्रेरित किया, तो चेन्नई या फिर तमिलनाडु भी इस मामले में पीछे नहीं है.
राज्य को कई प्रथम पुरस्कारों का श्रेय प्राप्त है- पहले अंतर्राष्ट्रीय मास्टर मैनुअल आरोन, पहले पुरुष ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद, पहली महिला ग्रैंडमास्टर सुब्बारमन विजयालक्ष्मी और पहले अंतर्राष्ट्रीय आर्बिटर वेंकटचलम कामेश्वरन. ये सभी यही की उपज हैं.
पांच बार के विश्व शतरंज चैंपियन आनंद कहते हैं, “शतरंज को मस्तिष्क के लिए एक स्वस्थ खेल के रूप में देखा जाता है और इसलिए परिवार हमेशा चाहते है कि अगली पीढ़ी भी शतरंज खेले. हमारे पास बहुत सारे शतरंज क्लब हुआ करते थे और हमने हमेशा उसी आधार से निर्माण किया है.”
उनकी सफलता ने 1990 के दशक में चेन्नई की सड़कों पर शतरंज को एक पहचान बना दिया. वह रजनीकांत, एआर रहमान और इलैयाराजा की तरह ही तमिल लोकप्रिय संस्कृति का हिस्सा हैं.
इंटरनेशनल आर्बिटर और FIDE (इंटरनेशनल शतरंज फेडरेशन) के प्रशिक्षक आरआर वासुदेवन कहते हैं, “यह विश्वनाथन आनंद की भूमि है. कई ऐसे कई लोग हैं जो उनकी तस्वीरों को देखकर प्रेरित होते हैं और खेलना शुरू करते हैं.”
28 वर्षीय घरेलू नौकरानी गायत्री के लिए अपने बेटे विष्णुवर्धन को शतरंज की कोचिंग के लिए भेजना गर्व की बात है. वह खुद शतरंज खेलना नहीं जानती, लेकिन जब उसके बेटे ने इसमें रुचि दिखाई तो उसे काफी अच्छा लगा. उसने तुरंत उसे साईं अकादमी में दाखिला दिलाया. वह शुरुआती स्तर के प्रशिक्षण के लिए 1200 रुपये का वार्षिक प्रवेश शुल्क अदा करती हैं. वह आर प्रगनानंद (18) और गुकेश डी (17) से काफी प्रभावित हैं और उसे भविष्य में काफी आगे बढ़ते हुए और शतरंज का मास्टर बनते हुए देखना चाहती है.
शतरंज के प्रतिभाशाली प्रगनानंद, जो 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बन गए, ने इस साल के FIDE विश्व कप में रजत पदक जीता. वहीं अगस्त के पहले सप्ताह में गुकेश ने आनंद को पछाड़कर भारत में नंबर 1 खिलाड़ी का खिताब हासिल किया. यह वह उपाधि थी जिसे आनंद ने 36 वर्षों तक अपने पास रखा था.
गायत्री ने कहा, “विष्णु के शिक्षक ने उन्हें बताया कि वे [प्रगनानंद और गुकेश] तमिलनाडु के सर्वश्रेष्ठ युवा खिलाड़ी हैं और उन्होंने उन्हें उनके यूट्यूब वीडियो भी दिखाए हैं.”
लेकिन किसी भी अन्य खेल की तरह, हर बच्चा राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय शतरंज चैंपियन नहीं बन सकेगा और वासुदेवन इस बात को स्वीकार भी करते हैं.
उन्होंने कहा, “माता-पिता अपने बच्चों से प्यार करते हैं. बच्चे शतरंज से प्यार करते हैं और माता-पिता अपने बच्चे के सपने और खेल के प्रति प्यार का समर्थन करने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं. लेकिन शतरंज कोई खेल नहीं है जहां आप एक आईपीएल [क्रिकेट] टूर्नामेंट खेलते हैं और करोड़ों पैसे कमाते हैं और फिर रिटायर हो जाते हैं और जीवन भर खुश रहते हैं.”
यह भी पढ़ें: संघर्ष, ताने और एडजस्टमेंट: कंटेट क्रिएटर्स की दुनिया में कैसे अपनी जगह बना रही हैं छोटे शहर की लड़कियां
चैंपियन काम पर हैं
जब गुकेश ने आनंद को उनके नंबर एक स्थान से हटा दिया, तो पूरे भारत में एक तरह का सामूहिक आक्रोश फैल गया. समाचार पत्रों और पत्रिकाओं ने शतरंज में एक नए युग की शुरुआत की भविष्यवाणी करने वाली कहानियां समर्पित कीं. साथ ही इसने उस विलक्षण प्रतिभा के गृह नगर, चेन्नई की ओर भी लोगों का ध्यान खींचा.
उनकी मां डॉ. पद्माकुमारी जगदीसन अपना गौरव छिपाती नहीं हैं. उन्होंने कहा, गुकेश मनोरंजन के लिए घर पर शतरंज खेलता था. लेकिन उन्होंने और उनके पति दोनों ने खेल में उनकी गहरी रुचि देखी. वेलम्मल विद्यालय में उनके स्कूल के शिक्षकों ने सुझाव दिया कि उन्हें पेशेवर रूप से खेलने के लिए प्रशिक्षित किया जाए. उस समय गुकेश साढ़े छह साल का था.
वह कहती हैं, “वह अपने मैचों के लिए लगातार यहां वहां जाते रहते हैं. केवल 90 दिनों के लिए भारत में अपने घर में रहा था. मुझे उसकी बहुत याद आती है और कभी-कभी अकेलापन महसूस होता है.” लेकिन वह तुरंत कहती हैं: “यह उसका जुनून है और हम उनका पूरा समर्थन करते हैं.”
26 अप्रैल 1947 को मद्रास शतरंज क्लब के गठन के साथ तमिलनाडु में शतरंज एक संगठित खेल के रूप में विकसित होना शुरू हुआ. हालांकि यह भारत में सबसे पुराना क्लब नहीं है. यह सम्मान कलकत्ता शतरंज क्लब को जाता है, जिसकी स्थापना लगभग एक सदी पहले जॉन कोचरन ने 1850 में की थी.
आज, मद्रास शतरंज क्लब को तमिलनाडु राज्य शतरंज संघ कहा जाता है, लेकिन इसका लक्ष्य एक ही है- खेल के बारे में जागरूकता फैलाना, प्रतिभा की पहचान करना और ग्रैंडमास्टरों की एक नई पीढ़ी को तैयार करना.
एरोन ने द हिंदू के साथ एक साक्षात्कार में शतरंज में तमिलनाडु की सफलता का श्रेय राज्य संघों के “दूरदर्शी अध्यक्षों”, अच्छे बुनियादी ढांचे और टूर्नामेंटों को दिया.
एरोन का ताल शतरंज क्लब, जिसका नाम आठवें विश्व शतरंज चैंपियन मिखाइल ताल के नाम पर रखा गया, 1970 के दशक की शुरुआत में शहर में शतरंज प्रेमियों के लिए एक बड़ा केंद्र था.
यह क्लब आनंद सहित राज्य के कई शतरंज के दिग्गजों के लिए एक प्रशिक्षण की सबसे बड़ी जगह थी. शतरंज के ग्रैंडमास्टर के लिए चेन्नई में उनके प्रशिक्षण के दौरान जो स्मृति सामने आती है, वह है, “बस शतरंज क्लब में जाना, अपने दोस्तों से मिलना और फिर वहां ये सभी ब्लिट्ज गेम खेलना.”
1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद ताल शतरंज क्लब को नुकसान उठाना पड़ा. जब केंद्र का नाम बदलकर रूसी सांस्कृतिक केंद्र कर दिया गया, तो क्लब को किराया देने के लिए कहा गया और अंततः ताल क्लब बंद हो गया.
लेकिन तब तक, स्कूल, शतरंज प्रशिक्षण अकादमियां और राज्य संघ मैदान में उतरने के लिए तैयार थे. 2000 FIDE विश्व शतरंज चैंपियनशिप के फाइनल में एलेक्सी शिरोव के खिलाफ आनंद की जीत ने शतरंज में एक नए युग की शुरुआत की.
ग्रैंडमास्टर वी विष्णु प्रसन्ना याद करते हैं कि कैसे आनंद के विश्व चैंपियन बनने के बाद उनकी मां ने उसे इस खेल के बारे में बताया था. उन्होंने 12 साल की उम्र में उसे एक शतरंज क्लब में भेजना शुरू कर दिया. आज, प्रसन्ना गुकेश को प्रशिक्षित करते हैं, चेन्नई के अन्ना नगर में एक अकादमी और जीएम विष्णु शतरंज क्लब चलाते हैं. वह युवा प्रतिभाओं, अंतर्राष्ट्रीय मास्टर्स और ग्रैंडमास्टर्स को प्रशिक्षित करते हैं.
वह कहते हैं, “सुधार करने का एकमात्र तरीका खेलना जारी रखना है.” इस लिहाज से शतरंज अन्य खेलों से अलग नहीं है. और एक समय आएगा जब बच्चों और उनके माता-पिता को यह तय करना होगा कि क्या वे इसे गंभीरता से लेना चाहते हैं. केवल रुचि के लिए खेल खेलना एक अलग बात है, लेकिन ग्रैंडमास्टर बनना बिल्कुल अलग बात है.
प्रसन्ना ने कहा, “यदि आप ग्रैंडमास्टर बनना चाहते हैं तो आपको खेल के लिए बहुत समय देना होगा. आपको कम से कम छह से सात साल तक प्रतिदिन कम से कम आठ से दस घंटे देने होंगे.”
जो चीज़ कई लोगों के लिए एक शौक के रूप में शुरू होती है वह आसानी से समय लेने वाला मामला बन सकती है.
वासुदेवन ने संभावित ग्रैंडमास्टर्स की पहचान करने के बारे में कहा, “हम इस बात पर गौर करते हैं कि एक बच्चा शतरंज के मोहरों को कैसे देखता है और वे किस तरह का चाल चलता है. उसके बाद हम उसके खेल और उसके दिमाग का आकलन करते हैं. यह एक पहेली की तरह है और आप इसे हल करते हैं.”
एक महंगा खेल
शौक के तौर पर शतरंज खेलना काफी सस्ता लगता है. लेकिन जब कोई इसे पेशेवर रूप से खेलना चाहे तो लाखों रुपये खर्च होते हैं. कोच, टूर्नामेंट की फीस, यात्रा में आने वाला खर्च और रहने में खर्च इसमें शामिल है.
वासुदेवन कहते हैं, “यह एक आजीवन यात्रा की तरह है. ग्रैंडमास्टर बनने के लिए आपको कम से कम 15 साल और लगभग 75 लाख रुपये की आवश्यकता होती है और फिर एक बार जब आप ग्रैंडमास्टर बन जाते हैं, तो आपको एक और लंबी यात्रा की करनी होती है. हर ग्रैंडमास्टर दुनिया का नंबर 1 खिलाड़ी बनना चाहता है.”
कई राज्यों में, पेशेवर खिलाड़ियों के लिए यह असामान्य बात नहीं है कि वे शतरंज छोड़ दें जब उन्हें पता चले कि इसमें अन्य खेलों की तुलना में अच्छा पैसा नहीं मिलता है.
प्रसन्ना ने कहा, “एक समय के बाद, यदि आप शतरंज के खेल में काफी अच्छा नहीं कर रहे हैं और आप शीर्ष खिलाड़ी नहीं हैं, तो आप बहुत सारा पैसा नहीं कमा सकते.”
परिवार पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ के बारे में बात करते हुए, गुकेश की मां पद्मा ने कहा कि 2020 तक डॉक्टर होने के बावजूद उनके परिवार को लगा कि यह खेल “आर्थिक रूप से खर्चीला” है. इस समय शतरंज संस्कृति के फलफूलने के साथ, उन्हें उम्मीद है कि सरकार भी खिलाड़ियों को अधिक सहायता देगी.
सितंबर 2022 में, स्टालिन सरकार ने स्कूली छात्रों के लिए, खासकर सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए, ऑनलाइन और ऑफलाइन कक्षाओं के रूप में शतरंज कोचिंग का प्रस्ताव रखा. स्टालिन इस पहल में राज्य के सर्वश्रेष्ठ कोचों और ग्रैंडमास्टरों को शामिल करना चाहते हैं. फिलहाल यह प्रस्ताव अभी भी पाइपलाइन में है.
FIDE के वरिष्ठ उपाध्यक्ष के रूप में आनंद ने कहा कि शतरंज को दुनिया भर में और अधिक लोकप्रिय बनाने का प्रयास जारी हैं. उन्होंने कहा, “हमने भारत में शतरंज ओलंपियाड जैसे कुछ बहुत बड़े प्रतिष्ठित आयोजन किए हैं. अब हम कोलकाता में टाटा स्टील इंडिया शतरंज टूर्नामेंट (रैपिड और ब्लिट्ज) आयोजित करने जा रहे हैं. इसलिए भारत एक ऐसा देश है जो शतरंज में बहुत सक्रिय रूप से शामिल रहेगा.”
44वें शतरंज ओलंपियाड से पहले, तिरुवरुर जिले में एक प्राचीन शिव मंदिर- जो 1,500 साल पुराना माना जाता है- खेल से जुड़े होने के कारण सुर्खियों में आया.
कहा जाता है कि यहां शिव ने शतरंज के खेल में पार्वती के अवतार राजराजेश्वरी को हराया था. शिव के इस रूप को ‘सथुरंगा वल्लभनाथर’ मंदिर या शतरंज के मास्टर देवता के रूप में पूजा जाता है.
यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ओलंपियाड के उद्घाटन के मौके पर इसका जिक्र किया.
शतरंज तमिलनाडु की विद्या, इतिहास और संस्कृति का हिस्सा है और विष्णु जैसे बच्चे उस यात्रा की शुरुआत कर रहे हैं जो अनगिनत अन्य लोगों ने की है.
चेन्नई में साई शतरंज अकादमी में, घड़ी में शाम के 6 बज रहे हैं. कक्षा ख़त्म हो गई है, लेकिन विष्णु और उसके दोस्त खेल के बारे में बात करना बंद नहीं कर सकते. वह दौड़कर अपनी मां गायत्री के पास जाता है जो उसका इंतजार कर रही है.
वह कहते हैं, “अम्मा शतरंज में सबसे अच्छी मोहरी रानी है, वह किसी भी दिशा में जा सकती है.”
(संपादन: ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: जब एक अपहरण कांड में अमरमणि त्रिपाठी को गिरफ्तार करने गई पुलिस उसे पीटने के लिए जूते, बेल्ट उतार दी थी