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गुरूवार, 15 मई, 2025
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विक्रमादित्य से सुहेलदेव और अग्रसेन तक — हिंदू योद्धाओं की विरासत को फिर से खोजा जा रहा है

कई बहादुर हिंदू राजाओं को फिर से याद किया जा रहा है. पुरानी लोक कहानियां फिर से ज़िंदा की जा रही हैं और अब राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली और हरियाणा में उन्हें सांस्कृतिक प्रतीक माना जा रहा है.

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नई दिल्ली: छह साल का एक बच्चा अपने माता-पिता के साथ लाल किले के विशाल दरवाज़ों से अंदर गया. उसने अपनी गर्दन उठाकर सम्राट विक्रमादित्य की एक विशाल, ताकतवर छवि को देखा. माता-पिता चाहते थे कि उनका बेटा उस प्राचीन हिंदू सम्राट की महिमा को जाने, क्योंकि स्कूल की किताबों में उनके बारे में ज़्यादा कुछ नहीं पढ़ाया जाता. उनके लिए विक्रमादित्य पर आधारित यह महानाट्य एक आदर्श क्लास थी.

यह नाटक मध्य प्रदेश सरकार के उस व्यापक प्रयास का हिस्सा था, जिसमें प्राचीन हिंदू गौरव को फिर से जीवित करने और नए रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की जा रही है. यह सब उस राष्ट्रीय भावना के माहौल में हो रहा है जिसमें माना जाता है कि भारतीय इतिहास लेखन में मुग़ल शासकों को प्राथमिकता दी गई, जबकि हिंदू राजाओं और रानियों की वीरता को पीछे कर दिया गया.

लेकिन इस आयोजन का स्थान एक तरह की विडंबना भी था. मध्य प्रदेश सरकार ने तीन दिवसीय कार्यक्रम ‘विक्रमोत्सव’ के लिए दिल्ली के मुग़ल कालीन स्मारक लाल किले को चुना, जिसका उद्घाटन 12 अप्रैल को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया और कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी मौजूद थे.

भीतर, छोटा बच्चा विकास सिंह इस दृश्य को मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था. ‘महानाट्य विक्रमादित्य’ की शुरुआत विक्रमादित्य के सफेद घोड़े पर सवार होने से हुई. रथों की गड़गड़ाहट और एलईडी ग्राफिक्स की चमक के साथ शकों से उज्जैन को वापस लेने की लड़ाई मंच पर दिखाई गई. विक्रमादित्य को केवल एक योद्धा राजा के रूप में ही नहीं, बल्कि ज्ञान और शिक्षा के संरक्षक के रूप में भी दिखाया गया.

मोदी के एक दशक के शासन में कई वीर हिंदू राजाओं को एक तरह से नया जीवन मिला है. उन पर आधारित लोककथाएं और नैतिक कहानियों को फिर से खोजा जा रहा है और नए रूप में पेश किया जा रहा है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में उन्हें सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है. सम्राट विक्रमादित्य से लेकर शिवाजी, संभाजी, महाराजा अग्रसेन, हेमू विक्रमादित्य, राणा सांगा और अनंगपाल तोमर तक — ये सभी हिंदू योद्धा राजा अब कोर्स में शामिल हो रहे हैं, उनकी मूर्तियां बन रही हैं और उन्हें मालाएं पहनाई जा रही हैं, सड़कों के नाम बदले जा रहे हैं, और लंबे समय से छिपे हुए अतीत को उजागर किया जा रहा है. मुहरों और मिट्टी के बर्तनों को पुरातात्विक सबूत के तौर पर दिखाया जा रहा है. इस नए तरह के इतिहास लिखने का मकसद हिंदू गर्व को बढ़ावा देना है.

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छह वर्षीय विकास सिंह ने विक्रमादित्य को सफ़ेद घोड़े पर सवार होकर मंच पर आते हुए विस्मय से देखा. नाटक में इतिहास, पौराणिक कथाओं और राष्ट्रवाद का एक शक्तिशाली मिश्रण दिखाया गया है. फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

और अब और ज़्यादा हिंदू राजाओं की खोज का सिलसिला ज़ोरों पर है.

“हम मुग़ल इतिहास के साथ बड़े हुए और स्कूल की किताबों में उन्हीं के बारे में ज़्यादा पढ़ाया गया. हिंदू राजाओं और उनकी वीरता का ज़िक्र नहीं के बराबर था. मैं नहीं चाहता कि मेरे बेटे को भी वही इतिहास पढ़ना पड़े जो मैंने खो दिया. इसलिए मैं उसे विक्रमादित्य की वीरता और कहानियां दिखाने के लिए यहां लाया हूं,” नोएडा निवासी विजय सिंह ने कहा, जो अपनी पत्नी और बेटे को सिर्फ़ इस नाटक के लिए लाल किला लाए थे.

सम्राट विक्रमादित्य वाकई 57 ईसा पूर्व में राज करते थे या उनका अस्तित्व भी था या नहीं, इस पर विद्वानों में बहस होती रही है. लेकिन छह साल का यह बच्चा इन बारीकियों में नहीं पड़ा.

उसके लिए मालवा के राजा का आश्चर्य और उत्साह इतिहास, पौराणिक कथाओं और उभरते राष्ट्रवाद का मिला-जुला असर था.

“ऐसे कार्यक्रम ही हमारे इतिहास, धरोहर और हिंदू गौरव को जानने का एकमात्र रास्ता हैं. सिर्फ़ इस शो को देखने से ही मुझे पता चला कि विक्रमादित्य सिकंदर से भी बड़ा राजा था,” विजय सिंह ने आगे कहा. “अब वक्त आ गया है कि हिंदू इतिहास को मुख्यधारा में लाया जाए.”

दबाव में अतीत

भारत के इतिहास को दोबारा गढ़ने और उसे नए तरीके से पेश करने की कोशिशों को लेकर कुछ लोगों में चिंता भी है. डर यह है कि जब इतिहास को एक धार्मिक और राजनीतिक प्रोजेक्ट की तरह देखा जाता है, तब सच और उसकी व्याख्या, सबूत और मिथक के बीच की रेखाएं धुंधली होने लगती हैं.

“बेचारा मेरा देश,” जामिया मिल्लिया इस्लामिया की पूर्व प्रोफेसर और मशहूर इतिहासकार नारायणी गुप्ता ने कहा. “हमारे यहां इतिहास लिखने का तरीका राजनीतिक पहलू पर ज्यादा जोर देता है. जबकि हो सकता है कि संस्कृति और अर्थव्यवस्था जैसे दूसरे क्षेत्र भी हों, जिनमें हिंदू, जैन और मुस्लिम शासकों ने योगदान दिया हो. अगर इन क्षेत्रों पर रिसर्च हो, तो वो ज्यादा रोचक होगा. सिर्फ वीरता जैसे धुंधले गुण की बजाय सैन्य तकनीक पर ध्यान देना ज्यादा उपयोगी होगा.”

विद्वानों के लिए इतिहास को नया रूप देना सिर्फ स्कूलों तक सीमित नहीं है.

Cover of new NCERT Class 7 Social Science textbook | By special arrangement
नई NCERT कक्षा 7 सामाजिक विज्ञान की किताब से मुगलों और दिल्ली सल्तनत के अध्याय हटाए गए हैं, जबकि प्राचीन राजवंशों जैसे मौर्य, शुंग और सातवाहन पर नए अध्याय जोड़े गए हैं | स्पेशल अरेंजमेंट

गुप्ता के अनुसार, बच्चों को जहां किताबों से इतिहास सिखाया जाता है, वहीं बड़ों को यह फिल्मों, लोकप्रिय किताबों, नए त्योहारों और कार्यक्रमों के ज़रिए बताया जाता है.

उन्होंने कहा, “इन दोनों ही तरीकों में इतिहास के गंभीर विषय के साथ न्याय नहीं होता. जैसे विज्ञान को गंभीरता से लिया जाता है, वैसे इतिहास को क्यों नहीं?”

अकादमिक जगत में यह सवाल अब तेजी से उठाया जा रहा है, खासकर तब से जब कक्षा 7 की NCERT किताबों से मुगलों और दिल्ली सल्तनत से जुड़ी बातें हटा दी गईं और उनकी जगह भारतीय राजवंशों से जुड़ी जानकारी दी गई. इससे पहले तुगलक, खिलजी, ममलूक और लोदी वंश के बारे में दी गई जानकारियां भी घटाई जा चुकी हैं.

आगरा के इतिहासकार और लेखक राज किशोर शर्मा ने चेतावनी दी कि यह नई कोशिश ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ सकती है और भारतीय पहचान को संकीर्ण तरीके से पेश कर सकती है.

उन्होंने कहा, “आजकल इतिहास को लेकर बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बातें की जाती हैं. इतिहास को संदर्भ के साथ समझाना चाहिए, लेकिन राजनीतिक पार्टियां इसे राजनीति के लिए इस्तेमाल कर रही हैं.”

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि अब इसका विरोध करने का समय आ गया है. पिछले महीने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में इतिहासकार और एएमयू के प्रोफेसर एमेरिटस इरफ़ान हबीब ने अपने साथियों से इसकी अपील की.

“हम झूठी धारणाओं का समर्थन नहीं कर सकते, लेकिन हम उन असली ऐतिहासिक तथ्यों का ज़रूर बचाव कर सकते हैं जिन्हें पीढ़ियों के पेशेवर इतिहासकारों ने खोजा और समझा है,” उन्होंने कहा.

पुराने राजाओं का नए नायक के रूप में स्वागत

भारत में हिंदू शासकों की विरासत को खोजने, सामने लाने और बढ़ावा देने की कोशिश तेज़ होती जा रही है. मार्च में, विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली में हुमायूं का मकबरा “निरीक्षण” किया, उसी समय नागपुर में औरंगज़ेब के मकबरे को हटाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे थे.

Nagpur Aurangzeb riots: Protesters clash over tomb removal
17 मार्च को नागपुर के चिटनिस पार्क में बजरंग दल और VHP के प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई। प्रदर्शनकारियों ने औरंगजेब की कब्र तोड़ने की मांग की और कुरान की आयतों वाली चादर जलाई। वाहनों में आग लगा दी गई। | ANI

वीएचपी चाहती है कि दिल्ली के परिदृश्य में हिंदू शासकों का इतिहास भी दिखे.

“हेमू विक्रमादित्य 15वीं सदी के बहुत ही बहादुर राजा थे, लेकिन उनकी कहानी दिल्ली में कहीं नहीं मिलती,” दिल्ली वीएचपी के अध्यक्ष सुरेंद्र गुप्ता ने कहा. “दिल्ली सिर्फ मुगलों का इतिहास नहीं है. यहां हजारों सालों तक हिंदुओं ने भी राज किया है.”

From Jats, Rajputs to Gurjars everyone is claiming Anangpal Tomar's legacy. Women holding a flex of Tomar in a rally in Palwal last month | Photo: Special Arrangement
जाट, राजपूत से लेकर गुर्जर तक सभी अनंगपाल तोमर की विरासत पर दावा कर रहे हैं। पिछले महीने पलवल में एक रैली में तोमर का फ्लेक्स पकड़े महिलाएं | फोटो: विशेष व्यवस्था

तोमर वंश के राजा अनंगपाल द्वितीय की विरासत को फिर से जीवित करना — जिन्हें दिल्ली का संस्थापक माना जाता है — मोदी सरकार की उस कोशिश का हिस्सा है जिसमें राजधानी के इतिहास को उपनिवेशवाद से मुक्त किया जा रहा है. एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) पुराना किला में खुदाई कर रहा है ताकि “इंद्रप्रस्थ के पांडव राज्य” के सबूत मिल सकें और मुगलों के नाम पर रखी गई सड़कों के नाम बदले जा चुके हैं. अब तोमर राजाओं को हेरिटेज वॉक, राष्ट्रीय सेमिनार और अनंग ताल (मेहरौली की एक झील जिसे अनंगपाल द्वितीय ने बनवाया था) को संरक्षित स्मारक घोषित करके सामने लाया जा रहा है.

दिल्ली में अगर अनंगपाल तोमर और हेमू विक्रमादित्य की चर्चा हो रही है, तो राजस्थान में राणा सांगा, महाराष्ट्र में शिवाजी और उनके बेटे संभाजी महाराज, मध्य प्रदेश में विक्रमादित्य, हरियाणा में महाराजा अग्रसेन, और उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव की विरासत को फिर से सामने लाया जा रहा है. 2021 में प्रधानमंत्री मोदी ने 11वीं सदी के योद्धा राजा सुहेलदेव के स्मारक की आधारशिला रखी थी.

लोगों में उत्सुकता बढ़ाने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम, शैक्षिक योजनाएं और पुरातात्विक खुदाई की जा रही है. 2022 में आई फिल्म सम्राट पृथ्वीराज — जो 11वीं सदी के राजा पर आधारित है और जिसमें अक्षय कुमार ने अभिनय किया — को कई राज्यों में टैक्स फ्री किया गया था. इसे चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने निर्देशित किया था, जो 1990 के दशक में दूरदर्शन के शो चाणक्य में अभिनय कर घर-घर में पहचाने गए थे.

जैसे-जैसे ये राजा लोगों की याद में वापस लौट रहे हैं, वैसे-वैसे वर्तमान में भी विचारों की लड़ाई शुरू हो रही है. इन राजाओं के नाम पर बचाव और हमले किए जा रहे हैं.

मार्च में, समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने 16वीं सदी के राजपूत राजा राणा सांगा को गद्दार कह दिया, क्योंकि उन्होंने बाबर को बुलाकर इब्राहिम लोदी को हराने में मदद की थी. इसके बाद आगरा में उनके घर पर हिंसा हुई और 27 अप्रैल को अलीगढ़ में राजपूत समूहों ने उन पर हमला कर दिया. राज्यसभा में भी हंगामा हुआ.

राजनीतिक नेताओं की प्रतिक्रिया तेज़ और कड़ी रही. राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने राणा सांगा को राष्ट्रीय नायक बताया. राजस्थान से बीजेपी विधायक और राणा सांगा के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ ने भी सुमन के दावे को खारिज किया.

Rana Sanga statue at City Palace, Udaipur | Commons
सिटी पैलेस, उदयपुर में राणा सांगा की प्रतिमा | कॉमन्स

“यह कहना तथ्यात्मक रूप से गलत है कि बाबर को भारत बुलाने वाले राणा सांगा थे. असल में, उन्होंने बाबर से लड़ाई लड़ी थी,” मेवाड़ ने मीडिया से कहा. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राणा सांगा को धरती का वीर पुत्र बताया.

“उनकी देशभक्ति और बलिदान की गाथा इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है. उनका शौर्य आने वाली पीढ़ियों में भारत के प्रति गर्व को जाग्रत करता रहेगा,” योगी आदित्यनाथ ने एक्स पर लिखा.

इसी बीच, महाराष्ट्र अपने राजा शिवाजी को राज्य की सीमाओं से बाहर ले जाने की तैयारी में है. राज्य सरकार आगरा में शिवाजी पर आधारित कई स्मारक और संग्रहालय बनाने की योजना बना रही है. यह ऐसा पहला प्रोजेक्ट है जो महाराष्ट्र के बाहर हो रहा है. आगरा में औरंगज़ेब ने कभी शिवाजी को नजरबंद रखा था. मोदी सरकार भी दिल्ली से शुरू होकर पुणे, रायगढ़, नासिक, शिरडी और छत्रपति संभाजी नगर तक एक विशेष छत्रपति शिवाजी रेल यात्रा शुरू करने की योजना बना रही है.

हालांकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस संतुलन को बनाए रखना जरूरी है — अगर मुगलों को बहुत ज्यादा कम कर दिया जाए, तो हिंदू राजाओं की चमक भी फीकी पड़ सकती है.

इतिहासकार राज किशोर शर्मा ने कहा, “इतिहास में बहुत सी चीजें जोड़ने की ज़रूरत है, लेकिन ये भी सच है कि अगर औरंगज़ेब को इतिहास से हटा दिया गया, तो शिवाजी का पूरा जीवन ही बेमतलब हो जाएगा.”

दिल्ली और महाराष्ट्र से आगे बढ़ते हुए अब कुछ हिंदू राजाओं को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दी जा रही है.

The statue of Chhatrapati Shivaji Maharaj was inaugurated on the banks of Pangong Tso on 26 December | X/@firefurycorps
26 दिसंबर 2024 को पैंगोंग त्सो के तट पर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा का अनावरण किया गया | X/@firefurycorps

इस महीने की शुरुआत में, योगी आदित्यनाथ ने बहराइच में बनने वाले महाराजा सुहेलदेव स्मारक को भारत की विजय और विदेशी आक्रमणकारियों को चुनौती का प्रतीक बताया. कहा जाता है कि श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव ने 1034 में ग़ज़नवी सेनापति गाज़ी सैय्यद सालार मसूद को हराया था.

हरियाणा में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने ‘हिंदू इतिहास’ को खोजने की जिम्मेदारी संभाली है. मार्च में एएसआई ने 44 साल बाद अग्रोहा में खुदाई फिर से शुरू की — यह जगह महाराजा अग्रसेन की प्राचीन राजधानी मानी जाती है. पहले की खुदाई में सिक्के और महाभारत में जिक्र किए गए इसके प्राचीन नाम ‘अग्रडोका’ के प्रमाण मिले थे.

कुछ कहानियों के अनुसार, अग्रसेन ने लगभग 5,000 साल पहले शासन किया था. 31 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हरियाणा में उनकी एक विशाल मूर्ति का अनावरण किया और उनके शासन की तारीफ की.

“महाराजा अग्रसेन एक अनोखे राजा थे. कहा जाता है कि उनके समय में (अग्रोहा) में 1 लाख लोग रहते थे. जब भी कोई नया व्यक्ति वहां आता था, तो हर कोई उसे एक ईंट और एक रुपया देता था ताकि वो अपना घर बना सके,” शाह ने कहा. “महाराजा अग्रसेन ने राज्य पर बोझ डाले बिना हर व्यक्ति की समृद्धि और भलाई का रास्ता खोला.”

विक्रमादित्य मंच पर आए

ऐतिहासिक लाल किले में ‘महानाट्य विक्रमादित्य’ में दिखाया गया कि राजा ने भारत से शक नाम के इंडो-स्किथियन जाति के लोगों को खदेड़ दिया और ईरान, चीन, सुमेर, मिस्र और तुर्किस्तान तक का शासन संभाला. शक एक युद्धप्रिय जाति थी, जिनकी जड़ें फारस से जुड़ी थीं, और उन्हें नाटक में एक विदेशी खतरे के रूप में दिखाया गया जिसे मालवा के राजा ने पीछे हटाया.

नाटक, संगीत और दृश्य कलाओं के मेल से विक्रमादित्य के काल को भारतीय जज़्बे और देशभक्ति के प्रतीक के रूप में पेश किया गया.

नाटक का एक गीत था: “कथा सुनाये विक्रमादित्य की, जो थे वीर, ज्ञान की गंगा कला की धारा जिसके राज में बहती.”

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अप्रैल में दिल्ली के हर गली-मोहल्ले में बस स्टॉप से ​​लेकर सुलभ शौचालय तक सम्राट विक्रमादित्य के उत्सव विक्रमोत्सव के बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए थे। फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

कुछ साल पहले तक, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव खुद उज्जैन में इस नाटक में विक्रमादित्य के पिता का किरदार निभाते थे.

यादव ने लाल किले पर जमा भीड़ से कहा, “न्यायप्रिय और करुणामयी शासक के रूप में याद किए जाने वाले विक्रमादित्य की विरासत आज भी ज़िंदा है, यह साबित करती है कि सनातन संस्कृति कभी खत्म नहीं होती, वह गंगा की तरह निरंतर बहती रहती है.”

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मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्राचीन हिंदू गौरव को पुनर्जीवित करने और उसकी पुनर्कल्पना करने के प्रयास के तहत पिछले महीने लाल किले पर सम्राट विक्रमादित्य नाटक का मंचन किया गया। फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

इस कार्यक्रम को प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. दिल्ली की हर गली, बस स्टॉप और सुलभ शौचालय तक पर बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए.

नाटक के लेखक और महाराजा विक्रमादित्य अनुसंधान संस्थान के निदेशक श्री राम तिवारी ने कहा, “हमारी विरासत को जानबूझकर मिटा दिया गया. विक्रमादित्य एक सार्वभौम सम्राट थे जिनकी तलवार पर विदेशियों का खून था, भारतीयों का नहीं. अब धीरे-धीरे इस खोई हुई विरासत को खोजने और दिखाने का काम हो रहा है.” इस नाटक में 200 से ज़्यादा कलाकारों ने प्रस्तुति दी.

2007 में उज्जैन से शुरू हुआ ‘महानाट्य विक्रमादित्य’ इंदौर और हैदराबाद भी गया है. लाल किले की प्रस्तुति इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही, जहां तीन दिन तक शो हाउसफुल रहा. तिवारी के लिए यह स्थान बेहद खास था.

उन्होंने कहा, “यही वह इलाका है जहां औरंगज़ेब ने कत्लेआम किया था. लेकिन हमने यहां भारत की विरासत दिखाई, सिर्फ हिंदू विरासत नहीं.” उनका अगला पड़ाव लखनऊ, सूरत और कोलकाता होगा.

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अप्रैल में तीन दिनों के लिए लाल किले में विक्रमादित्य को समर्पित एक गैलरी बनाई गई थी, जिसमें सिक्के, मिट्टी के बर्तन और हाथीदांत की मुद्रा प्रदर्शित की गई थी. फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

विक्रमादित्य को अब भी स्कूल की इतिहास की किताबों में जगह नहीं मिली है, लेकिन पिछले साल मध्य प्रदेश सरकार ने सरकारी कार्यों में विक्रम संवत कैलेंडर लागू कर दिया.

तिवारी ने बताया कि विक्रमादित्य से जुड़े सिक्के और मिट्टी के बर्तन जैसे पर्याप्त पुरातात्विक और ऐतिहासिक सबूत हैं, जिन्हें लाल किले में प्रदर्शित भी किया गया.

तीन दिन के लिए वहां एक पूरी गैलरी विक्रमादित्य को समर्पित थी, जहां सिक्कों, मिट्टी के बर्तनों और हाथी दांत से बनी मुद्रा की जानकारी देने वाली पट्टिकाएं लगाई गईं.

एक पट्टिका पर लिखा था: “विक्रमादित्य काल के इस सिक्के पर ब्राह्मी लिपि में उज्जयिनी नाम अंकित है. यह सिक्का प्राचीन समय में उज्जयिनी नाम के प्रमाण का पक्का सबूत है.”

एक अन्य बोर्ड में उनके दरबार के ‘नवरत्नों’ की उपलब्धियों का ज़िक्र था और उनका प्रदर्शन भी किया गया था. “वराहमिहिर की रचनाओं में ज्योतिष, खगोलशास्त्र, गणित और यवन ज्योतिषियों का उल्लेख है,” एक बोर्ड में बताया गया.

तिवारी ने दावा किया कि इस्तांबुल के एक कवि जिर्रहम बिन्तोई ने पैग़ंबर मोहम्मद के जन्म से 150 साल पहले विक्रमादित्य का ज़िक्र अपनी रचनाओं में किया था. उन्होंने उनकी एक अरबी कविता का अनुवाद करते हुए कहा: “वो लोग भाग्यशाली हैं जो राजा विक्रम के शासन काल में पैदा हुए, वह एक नोबेल, उदार और कर्तव्यनिष्ठ शासक थे जो अपनी प्रजा के कल्याण के लिए समर्पित थे.”

इतिहास या मिथक?

मध्य प्रदेश के इतिहासकारों का कहना है कि लोककथाएं हमेशा से विक्रमादित्य की तारीफ करती रही हैं. लाल किले में हुए नाटक में विक्रम और बेताल की प्रसिद्ध कहानियों से भी प्रेरणा ली गई. ये कहानियां अमर चित्र कथा कॉमिक्स और 1980 के दशक के टीवी सीरियल ‘विक्रम और बेताल’ के ज़रिए मशहूर हुईं, जो राजा की बुद्धिमानी और चतुराई को नैतिक पहेलियों के रूप में दिखाती थीं। पहले ये कहानियां बच्चों के लिए मानी जाती थीं, लेकिन अब ये बड़ी विरासत का हिस्सा बन गई हैं.

मध्य प्रदेश सरकार के अनुसार, यह विक्रम केवल एक कथा पात्र नहीं हैं, बल्कि एक ऐतिहासिक व्यक्ति हैं. और यहां तक कि लोककथाएं भी तथ्य हैं.

मुख्यमंत्री मोहन यादव ने ‘भारत का नववर्ष विक्रम संवत’ नामक पुस्तिका में लिखा, “विक्रमादित्य से जुड़ी कई लोककथाएं हैं, जिनमें सिंहासन बत्तीसी और बेताल पच्चीसी प्रमुख हैं. ये कहानियां दिखाती हैं कि वे कितने बुद्धिमान और महान शासक थे.”

तिवारी का दावा है कि भविष्य पुराण में भी विक्रमादित्य का उल्लेख मालवा के शासक के रूप में हुआ है — जो आज के पश्चिमी मध्य प्रदेश और दक्षिण-पूर्वी राजस्थान का हिस्सा है — और उज्जैन को उनकी राजधानी बताया गया है.

लेकिन उनके अस्तित्व पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं. उदाहरण के लिए, जर्मन विद्वान मैक्स मूलर ने यह देखा कि विक्रमादित्य के शासन का कोई दस्तावेज़ी सबूत मौजूद नहीं है. इतिहासकार भी इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं.

प्रसिद्ध इतिहासकार डी.सी. सरकार ने अपनी किताब एंशियंट मालवा एंड दि विक्रमादित्य ट्रेडिशन (1969) में सुझाव दिया कि विक्रमादित्य की कथाएं शायद गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय से प्रेरित हैं, खासकर उज्जैन में शक आक्रमणकारियों पर उनकी जीत से.

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय इतिहास के रिटायर्ड प्रोफेसर डी.पी. दुबे ने कहा, “विक्रमादित्य की ऐतिहासिकता कहीं भी सिद्ध नहीं हुई है. विरासत को सामने लाने के नाम पर इतिहास से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.”

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लाल किले में लगी प्रदर्शनी में विक्रमादित्य से जुड़े सिक्के, मिट्टी के बर्तन और दूसरी पुरानी चीजें दिखाई गईं। फोटो: कृष्ण मुरारी | दिप्रिंट

लेकिन हर बीतते साल के साथ, जैसे-जैसे विक्रमादित्य की वीर गाथाएं और भव्य होती जा रही हैं, ये चेतावनियां पीछे छूटती जा रही हैं.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मध्यकालीन इतिहास के प्रोफेसर सैयद अली रिज़वी ने कहा, “यह इतिहास को मिथक से बदलने की कोशिश है. मिथकों के पीछे कोई ठोस आधार नहीं होता. मौजूदा राजनीतिक ताकत इतिहास को अपनी पसंद के मुताबिक ढाल रही है. लेकिन इतिहास गर्व करने के लिए नहीं, बल्कि सीखने के लिए होता है. बीजेपी जो कर रही है, उसे ‘इच्छित इतिहास’ कहा जाता है.”

जो बात उन्हें “निंदनीय” लगती है वह है भारत के इतिहास को हिंदू-मुस्लिम खांचे में बांटना. अतीत किसी एकरेखीय सीमा में नहीं बंधता.

शिवाजी के सेनापति मुस्लिम थे. राणा सांगा के साथी हसन खान मेवाती और महमूद लोदी भी मुस्लिम थे.

रिज़वी ने कहा, “सांगा की बहादुरी पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि उन्हें किसी मुस्लिम ने नहीं, बल्कि राजपूतों ने ज़हर देकर मारा था. शिवाजी पर भी हिंदू राजा मिर्जा राजा जय सिंह ने पुरंदर संधि के लिए दबाव डाला था.”

लाल किले पर हुए नाटक में विक्रमादित्य से एक और चौंकाने वाली उपलब्धि जोड़ दी गई — अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण. आज के राम मंदिर उत्साह के माहौल में, यह बात शायद हिंदुत्व की भावना के लिए सबसे अहम है. विक्रमादित्य द्वारा राम मंदिर बनाए जाने का कोई सबूत नहीं है, लेकिन फिर भी यह कहानी आम जनता के बीच पहुंच चुकी है. इसे अयोध्या राम मंदिर केस की सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में भी ज़िक्र किया गया.

नाटक के दौरान उद्घोषक की आवाज़ गूंजी, “विक्रमादित्य भगवान राम को मानते थे और उन्होंने अयोध्या में एक मंदिर बनवाया था, जिसे 1528 में बाबर के सेनापति ने तोड़ दिया.”

एक छह साल का बच्चा यह नाटक आश्चर्य से देख रहा था. और जब विक्रमादित्य सफेद घोड़े पर मंच पर आए, तो वह खुशी से तालियां बजाने लगा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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