प्रयागराज: महाकुंभ से एक हफ्ते पहले एक नागा साधु मौज-मस्ती की खोज में डूबे थे. अमृत पुरी खाटू श्याम भंडारा करवा रहे थे, जिससे उन्हें हर महीने एक लाख रुपये मिलते थे, वे अपने पसंदीदा क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग की क्लिप्स देखते थे और इंस्टाग्राम रील पोस्ट करते थे — यह सब वे ग्रैंड ट्रंक रोड पर स्थित अपने नोएडा आश्रम से करते थे.
लेकिन प्रयागराज में महाकुंभ से एक दिन पहले 12 जनवरी को पुरी में बड़ा बदलाव आ गया. भगवा धोती-कुर्ता पहने साधु चले गए, उनकी जगह राख से लिपटे नग्न साधु ने ले ली, जिनके बाल उलझे हुए थे. वे नदी के किनारे की ओर बढ़े और उस नागा साधु का अवतार ले लिया जिनके बारे में कहा जाता है — एक तपस्वी जिसने सभी आसक्तियों को त्याग दिया है, गुफाओं और हिमालय में रहता है, अपनी नग्नता के बावजूद चिलचिलाती गर्मी और कड़कड़ाती ठंड से अछूता रहता है.
नागा साधु कुंभ और रहस्यमय भारत के पोस्टर बॉय हैं. उनकी उग्र छवि कई कॉफी-टेबल बुक्ल की शोभा बनी है जो बर्फ से ढके पहाड़ों में उनकी ज़िंदगी को बताती है. उनके साथ एक लुप्तप्राय प्रजाति की तरह व्यवहार किया जाता है, लेकिन इस छवि के पीछे एक विरोधाभासी वास्तविकता है — जो प्राचीन को आधुनिक के साथ जोड़ती है.
उनके पास स्थायी पते, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड, आधार कार्ड, सोशल मीडिया अकाउंट, बैंक खाते, भरने के लिए बिल और यूपीआई हैं. कुछ के पास ओटीटी सब्सक्रिप्शन भी हैं. पुरी के फोन पर JioTv और SonyLiv, Flipkart और Meesho मौजूद हैं. वे महंगी एसयूवी, बोलेरो और स्कॉर्पियो में कुंभ स्थलों पर जाते हैं.
पुरी ने कहा, “यह गलत धारणा है कि हर नागा साधु जंगल या पहाड़ों में रहते हैं. यह हमारी ज़िंदगी का केवल एक हिस्सा है. बाकी समय हम समाज के बीच अपने आश्रमों में रहते हैं और धार्मिक कार्य करते हैं.” वे कभी-कभी स्क्रीन से अपनी आंखें हटा लेते हैं और लोगों को मोर के पंखों से बनी झाड़ू से आशीर्वाद देते हैं.
कुंभ के दौरान वे सेक्टर 20 में एक निर्दिष्ट क्षेत्र में 13 अखाड़ों में से एक में रहते हैं. यहां भक्तों और जिज्ञासु लोग उन्हें घेरे रखते हैं, कुछ नागा साधु इसका आनंद लेते हैं, जनता के लिए प्रदर्शन करते हैं. अन्य अपने चेहरे पर कैमरे को देखकर चिढ़ जाते हैं.
मूल रूप से मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के रहने वाले पुरी 2010 में हरिद्वार कुंभ में नागा साधु बन गए. अब वे नोएडा के छपरौला में एक आश्रम चलाते हैं.
उन्होंने कहा, “लोग सोचते हैं कि सभी नागा नग्न रहते हैं और कंदमूल खाते हैं, लेकिन यह सच नहीं है.” वह एक आकर्षक व्यक्तित्व के धनी हैं, उनके पहनावे में सिर्फ एक रुद्राक्ष की माला, सिर पर एक टोपी और एक अकेली चांदी की अंगूठी शामिल है. महानिर्वाणी अखाड़े के बाहर छोटे से खुले तंबू के चारों ओर टिमटिमाती रोशनी में उनका राख से सना शरीर चमक रहा था.

पुरी ने कहा, “नोएडा में मैं एक आम ज़िंदगी जीता हूं. मैं क्रिकेट खेलता हूं, भक्तों से मिलता हूं, उनकी समस्याओं का समाधान करता हूं और अपने खाली समय में सहवाग के वीडियो देखता हूं. सहवाग ने सच में क्रिकेट को बदल दिया.”
कपड़ों से आग तक
यज्ञ गिरी (52) को उत्सुक दर्शकों और इन्फलुएंसर्स के आगे काफी कम धैर्य है, जो अपनी रील्स के लिए उनकी बाइट लेने को आतुर रहते हैं. वे लोगों के एक समूह पर अपने मोर के पंख की झाड़ू को उग्रता से लहराते हैं.
लकड़ियों और जलते हुए कोयले के अंगारों से भरे ईंटों और मिट्टी से बने अग्नि कुंड की ओर लौटने से पहले वे चिल्लाते हैं, “यहां दोबारा आने की हिम्मत मत करना”.
नागा साधुओं द्वारा लोगों की पिटाई और उनके साथ दुर्व्यवहार करने की बहुत सारी तस्वीरें और रील हैं. यज्ञ ने कहा, “लोग हमें उकसाते हैं.” वे बार-बार एक ही सवाल पूछे जाने से थक गए हैं: आप नागा साधु कैसे बने? नागा साधु बनने से पहले आपकी ज़िंदगी कैसी थी?
यज्ञ का जीवन कपड़े से आग तक एक अपरंपरागत मार्ग पर चला. नागा साधु बनने का फैसला करने से पहले, वे दिल्ली के गांधी नगर में एशिया के सबसे बड़े कपड़ा बाज़ार में दर्जी यज्ञ देव थे, जो 8,000 रुपये प्रति माह कमाते थे.
यज्ञ ने कहा, “एक दिन मेरे मन में संन्यास लेने का विचार आया और मैंने सिलाई का काम और अशोक नगर में अपना घर छोड़ दिया.” 2010 में हरिद्वार में हुए कुंभ के दौरान, अपने गुरु की 12 साल की सेवा के बाद, वे नागा साधु बन गए.

आज, अहमदाबाद में उनका एक आश्रम है, 50 से ज़्यादा भक्त हैं और एक टीवीएस बाइक है. उनके घर में एक मध्यमवर्गीय घर की सारी सुविधाएं हैं — एक एसी, टीवी, गीजर, हीटर और वाई-फाई.
उन्होंने कहा, “नागा बनने की पहली शर्त त्याग है.”
यज्ञ ने रील बनाने और गर्लफ्रेंड फोटो एडिटर, वाटरफॉल फोटो फ्रेम, गार्डन फोटो फ्रेम जैसे ऐप से फोटो एडिट करने की कला में महारत हासिल की है. फेसबुक पर अपनी एक तस्वीर में वे रे बैन का चश्मा लगाए हुए राइफल थामे खड़े हैं.
“मुझे पुराने हिंदी गाने पसंद हैं. मुझे जुबिन नौटियाल भी पसंद हैं, खासकर उनके भजन जैसे कि प्रेम प्रभु का बरस रहा है.” एक रील में, वे 1967 की हिंदी फिल्म उपकार के गाने मेरे देश की धरती की धुन पर खेत खोदते हुए दिखाई दे रहे हैं.
उन्होंने कहा, “प्रौद्योगिकी अच्छी भी है और बुरी भी. यह इस बात पर निर्भर है कि व्यक्ति इसका उपयोग कैसे कर रहा है.” पिछले महीने उन्होंने ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट मीशो से भगवा पत्ता खरीदा था.

यज्ञ को लगातार आने वाले भक्तों से प्रतिदिन 25,000 रुपये से अधिक की कमाई होती है. वह अपनी परेशानियों को लेकर उनके पास आते हैं — शादी न हो पाना या नौकरी न मिल पाना, पारिवारिक कलह. वे उनकी बात सुनते हैं, उन्हें अपने हवन कुंड की राख देते हैं और कहते हैं, “इससे आपकी सभी समस्याएं हल हो जाएंगी.” भारत में कुंभ नामक पुस्तक के लेखक और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर धनंजय चोपड़ा के अनुसार, इन साधुओं के प्रति सामूहिक आकर्षण है. “लोग उनके साथ समय बिताना चाहते हैं और जब वे चलते हैं, तो कई लोग उनके चरण रज (पैरों के नीचे पड़ी मिट्टी) को उठाकर अपने पास रख लेते हैं.”
कई नागा साधु इस पूजा-अर्चना का आनंद लेते हैं और दर्शकों के लिए अच्छा प्रदर्शन करते हैं. कुछ अपने टेंट में बड़े-बड़े स्पीकर से शिव भजन बजाते हैं. कुंभ क्षेत्र के सेक्टर 20 में स्वास्तिक द्वार के पास एक नागा साधु अपनी बोलेरो कार के बोनट पर बैठकर लोगों के साथ सेल्फी ले रहे हैं. कई के सिर पर हज़ारों रुद्राक्ष की माला है, कुछ ने उन मालाओं पर एलईडी लाइट लगाई है और कई ने चमकदार चश्मा पहना है. अन्य अपने लिंग के साथ करतब दिखाते हैं. अधिकांश नशे में धुत रहते हैं.
जूना अखाड़े के गेट पर एक नागा साधु ने अपने लिंग में कुल्हाड़ी घुसा रखी थी. दूसरे ने अपने लिंग पर ताला लगा रखा था. दोनों ने ही भारी भीड़ और सामान इकट्ठा किया.
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नागा साधु बनने की राह पर तेज़ी
27 जनवरी को मौनी अमावस्या के स्नान से पहले, गंगा के तट पर, हरियाणा के जींद से आए 15-वर्षीय नितेश गिरि, वयस्क होने के लिए तैयार थे. कुछ ही घंटों में, वे इस कुंभ में सबसे कम उम्र के नागा साधुओं में से एक बन गए.
किशोरों का नागा साधु बनना दुर्लभ है, कुछ दशक पहले तक तो ऐसा सुनने में भी नहीं आता था. यज्ञ गिरि ने अपना घर छोड़ दिया और अहमदाबाद में एक गुरु से जुड़ गए, उन्हें दर्शनशास्त्र, सनातन धर्म, नागा साधु का इतिहास और तलवार चलाने का प्रशिक्षण लेने में 12 साल का वक्त लगा, उसके बाद उन्होंने सभी स्तरों को पार किया और उन्हें नागा साधु के रूप में स्वीकार किया गया.
लेकिन नितेश ने जूना अखाड़े में केवल 5 साल तक सेवा की — उन्होंने 10 साल की उम्र में घर छोड़ दिया — उसके बाद उन्हें नागा साधु बनने के लिए तैयार माना गया.

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने कहा कि अखाड़ों ने युवा प्रशिक्षुओं के प्रशिक्षण को ‘तेज़ी से आगे बढ़ाना’ शुरू कर दिया है. यह उनकी घटती संख्या को बढ़ाने और नकली नागा साधुओं के उदय का मुकाबला करने का एक प्रयास है. नागा साधु बनने के लिए, एक दीक्षार्थी को तीन चरणों से गुज़रना पड़ता है — ब्रह्मचारी, महापुरुष और अवधूत.
सूर्यास्त के समय नारंगी रंग के आसमान के नीचे, नितेश ने लगभग 2,000 दीक्षार्थियों के साथ गंगा के तट पर पवित्र दीक्षा अनुष्ठान में भाग लिया. दो पंडितों ने इस प्रक्रिया की देखरेख की और सैकड़ों दर्शकों ने हर हर महादेव और सनातन धर्म की जय का नारा लगाया.
आटे से 17 पिंड (भोजन प्रसाद) बनाते समय नितेश ने कहा, “मैंने नागा बनने के लिए अपना पिंडदान भी कर लिया है. यह घोषणा है कि अब मेरा भौतिक दुनिया से कोई संबंध नहीं है.” पंडित ने पूछा कि क्या उन्हें कोई दूसरा विचार है.
एक पंडित ने कहा, “अगर कोई अभी भी नागा नहीं बनना चाहता है, तो हमें बताएं. हम आपको आपके गुरु के पास ले जाएंगे और उन्हें बताएंगे कि यह व्यक्ति अभी संन्यास के लिए तैयार नहीं है, लेकिन अंतिम पिंडदान के बाद सामान्य जीवन में लौटने का कोई रास्ता नहीं है.” और इस दौरान कोई भी पीछे नहीं हटा.

तांग तोड़े नामक समारोह के अंतिम चरण में एक पंडित दीक्षा लेने वाले व्यक्ति के लिंग की चमड़ी को खींचते हैं.
दीपक कुमार सेन ने अपनी किताब “द डिवाइन कुंभ: इकोज ऑफ इटरनिटी: गंगा, शिप्रा, गोदावरी, एंड संगम” में लिखा है कि यह तीन बार किया जाता है, “बलपूर्वक, नीचे की झिल्ली को तोड़ते हुए, जो इसे रोकती है”, “इस अनुष्ठान के बाद ही एक संन्यासी पूरी तरह से नागा बनने के योग्य होता है.”
रवींद्र पुरी के अनुसार, प्रत्येक गुरु को अपने शिष्यों के नाम अखाड़ों को सौंपने होते हैं, साथ ही कुछ हज़ार रुपये तक की फीस भी देनी होती है. फिर प्रत्येक आवेदक की जांच की जाती है, उनकी पृष्ठभूमि की जांच की जाती है, ताकि किसी भी “अस्पष्टता” जैसे कि विवाह, आपराधिक रिकॉर्ड आदि की जांच की जा सके. जिन लोगों ने अपना अतीत छिपाने की कोशिश की है या गलत विवरण प्रस्तुत किया है, उन्हें तुरंत सूची से हटा दिया जाता है.
पुरी ने कहा, “कुंभ के दौरान केवल वही लोग नागा साधु बनते हैं जो हमारे नियमों को पूरा करते हैं.” 13 अखाड़ों में से सात शैव अखाड़े हैं, लेकिन उनमें से छह में नागा साधु के रूप में दीक्षा दी जाती है.
इस साल 5,000 से ज़्यादा दीक्षार्थी नागा साधु बने.
रवींद्र पुरी ने कहा, “ये लोग सनातन संस्कृति के योद्धा हैं.”
अखाड़े की सीढ़ी चढ़ना
कॉर्पोरेट जगत की तरह ही और यहां तक कि शिक्षा जगत में भी वरिष्ठता, अनुभव और वरीयता के आधार पर ‘बेहतरीन पदों’ के लिए होड़ मची रहती है. कुछ को कोतवाल बनाया जाता है जो अखाड़े की निगरानी करते हैं. भंडारी रसोई के काम की देखरेख करते हैं, जबकि महंत नए साधुओं को प्रशिक्षित करते हैं और अखाड़े के कामकाज की देखरेख करते हैं.
उन्हें पैसे भले ही न मिले, लेकिन कुछ पदों के साथ शक्ति और प्रतिष्ठा भी मिलती है. हालांकि, अब सैनिकों की ज़रूरत नहीं है, लेकिन सभी को लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.
नागा साधु दर्शन गिरि (52) ने कहा, “हम युद्ध नहीं लड़ते क्योंकि भारत के पास अपनी खुद की मजबूत सेना है. सबसे बड़ा पद सचिव का है.” वे इसे अखाड़े के प्रधानमंत्री होने जैसा मानते हैं.

दर्शन 2004 में उज्जैन कुंभ मेले के दौरान नागा साधु बनने के बाद से ही निरंजनी अखाड़े से जुड़े हुए हैं. दीक्षा समारोह कहां हुआ, यह भी प्रतिष्ठा का विषय है.
दर्शन ने कहा, “प्रयाग में नागा बनने वाले को राज राजेश्वर, हरिद्वार में नागा बनने वाले को बर्फानी, उज्जैन में नागा बनने वाले को खूनी और नासिक में नागा बनने वाले को खिचड़ी नागा कहा जाता है.” प्रयाग सबसे प्रसिद्ध कुंभ है, उसके बाद हरिद्वार आता है.
बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अपने वादों को पूरा करने के बाद पिछले कुछ सालों में नागा साधुओं में उद्देश्य की नई भावना आई है. काशी विश्वनाथ मंदिर गलियारे का जीर्णोद्धार और राम मंदिर का निर्माण दर्शन के जीवन के सबसे सुखद पलों में से कुछ थे.
दर्शन ने कहा, “मोदी सनातन धर्म के लिए काम कर रहे हैं. ऐसा पहले किसी ने नहीं किया. हर क्षेत्र में विकास हो रहा है और हर कोई सनातन धर्म के बारे में जानने के लिए उत्सुक है.”
नागा साधुओं का इतिहास
हर नागा साधु अपने युद्धों, किंवदंतियों और विद्या में डूबे रहते हैं, जो 8वीं शताब्दी ई.पू. से चली आ रही हैं. यहीं से वह अपने संस्थापक, शैव संत आदि शंकराचार्य के बारे में सीखते हैं. अद्वैत दर्शन के समर्थक, उन्होंने उन्हें हिंदू सनातन धर्म की रक्षा के लिए एक सेना के रूप में देखा जाता है.

दीपक सेन ने अपनी किताब द डिवाइन कुंभ में लिखा है, “शास्त्र (ज्ञान) के साथ-साथ शस्त्र (हथियार) की ज़रूरत को समझते हुए, आदि शंकराचार्य ने आचार्यों के लिए शास्त्र को संरक्षित किया और शास्त्र को नागाओं का आभूषण बनाया. नागा दशनामी तपस्वियों (अखाड़ों) का हिस्सा हैं, जो उग्र शैव हैं.”
वह 10 धार्मिक संप्रदायों से संबंधित हैं: अरण्य, आश्रम, भारती, गिरि, पर्वत, पुरी, सरस्वती, सागर, तीर्थ और वन.
लेकिन इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब “ए हिस्ट्री ऑफ दशनामी नागा सन्यासियों” में इस दृष्टिकोण का खंडन किया है कि नागा साधुओं की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी.
सरकार ने लिखा, “यह मानना अधिक सही होगा कि शंकर दशनामी संप्रदायों के वास्तविक निर्माता के बजाय प्रेरक थे.” किताब की प्रस्तावना में, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ केएम मुंशी ने नागा साधुओं को जिम्नोसोफिस्ट कहा है — नग्न दार्शनिक और तपस्वी जो “इतिहास की शुरुआत से बहुत पहले” मौजूद थे.
प्रशिक्षण अवधि के दौरान, दीक्षार्थियों को बड़ी लड़ाइयों और राजेंद्र गिरि गोसाईं और उनके शिष्य अनूप गिरि गोसाईं जैसे योद्धा साधुओं के बारे में सिखाया जाता है, जिन्होंने 18वीं शताब्दी के अंत में विशाल सेनाओं की कमान संभाली थी.
द एनार्की: द रिलेंटलेस राइज ऑफ द ईस्ट इंडिया कंपनी में, विलियम डेलरिम्पल ने बताया कि कैसे मुगल कमांडर मिर्जा नजफ खान, “अनूपगिरी गोसाईं के खूंखार नागाओं से जुड़ गए, जिन्होंने 6,000 नग्न योद्धाओं की कमान संभाली”.
18वीं शताब्दी में जब मुगल साम्राज्य की भारत पर पकड़ कमजोर पड़ने लगी, नागा साधु एक दुर्जेय शक्ति के रूप में उभरे. सरकार के अनुसार, तब तक वह उदयपुर, जयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, बड़ौदा, मारवाड़, भुज के महाराजाओं की सेवा में कार्यरत थे और कई मामलों में नियमित रूप से वेतन पाने वाली स्थायी सेना का हिस्सा थे.
दर्शन जैसे दीक्षार्थियों को आधुनिक युद्ध में नागा साधुओं की भूमिका के बारे में भी बताया जाता है, जैसे कि 1761 में पानीपत की लड़ाई और 1764 में बक्सर की लड़ाई. दोनों बार नागाओं ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की तरफ से लड़ाई लड़ी.
दर्शन ने कहा, “यह सब गुरुओं द्वारा मौखिक रूप से बताया जाता है.”

लेकिन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्राचीन इतिहास के रिटायर्ड प्रोफेसर डीपी दुबे, जिन्होंने पिछले 50 साल से कुंभ और उसके इतिहास को समझा जाना है, उन्होंने कहा कि नागा साधुओं ने सभी पक्षों से लड़ाई लड़ी.
डीपी दुबे ने कहा, “उस समय नागाओं के पास एक बड़ी और मजबूत सेना थी. इतिहास में ऐसी एकता कभी नहीं देखी गई, लेकिन समय-समय पर वह अपने राजनीतिक झुकाव बदलते रहे, जो भी उनका समर्थन करता था, उसके साथ जुड़ जाते थे. उन्होंने मराठों के खिलाफ पानीपत की लड़ाई में मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के लिए लड़ाई लड़ी. उन्होंने बक्सर की लड़ाई में अंग्रेज़ों से लड़ाई लड़ी.”
लेकिन जैसे-जैसे अंग्रेजों ने भारत पर अपना नियंत्रण बढ़ाया, नागा पृष्ठभूमि में चले गए. अंग्रेज़ों ने बुंदेलखंड में उनके गढ़ और उनकी बढ़ती शक्ति को व्यवस्थित रूप से खत्म कर दिया.
दुबे ने कहा, “भारत पर अंग्रेज़ों के पूर्ण प्रभुत्व के साथ, उनका राजनीतिक प्रभाव कम होने लगा.”
21वीं सदी का बदलाव
महाकुंभ में यज्ञ गिरि ने अहमदाबाद में अपने आश्रम के बारे में कॉल का जवाब दिया और अपने सैमसंग स्मार्टफोन पर नोटिफिकेशन और अपडेट के लिए फेसबुक और व्हाट्सएप को स्क्रॉल किया.
व्हाट्सएप के ज़रिए नागा साधु एक-दूसरे से संपर्क में रहते हैं. उदाहरण के लिए यज्ञ कनखल (हरिद्वार, उत्तराखंड) और हरियाणा के कुरुक्षेत्र में नागा साधुओं द्वारा चलाए जा रहे समूह का हिस्सा हैं. हर दिन, वे एक धमाकेदार मैसेज भेजते हैं — हिंदू भगवान की तस्वीर के साथ एक गुड मॉर्निंग टेक्स्ट या सुप्रभात.
“भारत में कुंभ” के लेखक धनंजय चोपड़ा ने कहा कि अब सभी नागा साधु तकनीक के जानकार हैं.
फेसबुक पर, जहां यज्ञ के 1,100 से ज़्यादा दोस्त हैं, वे भगवा वस्त्र पहने ट्रैक्टर पर सवार हैं. वे क्रिकेटर हार्दिक पांड्या, सचिन तेंदुलकर और शिखर धवन के पोस्ट को लाइक और शेयर करते हैं.
वे इंटरनेट से जुड़े हुए हैं — और दुनिया से भी. दूसरे अखाड़े में एक नागा साधु अपने स्मार्टफोन पर सजन रे झूठ मत बोलो सुन रहे हैं.
यज्ञ ने कहा, “मेरा पूरा दिन चाय और चर्चा में बीतता है. कुंभ हमारे लिए कर्मभूमि है, इसलिए हम यहीं अपने असली अवतार में दिखते हैं.”
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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