नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में दो मई से शुरू हुए दिल्ली लिटरेचर फेस्टिवल 2025 में प्यार, धर्म और भारत-पाकिस्तान के रिश्ते सभी शामिल थे. हालांकि, कई कार्यक्रमों, चर्चाओं और किताबों के विमोचन के बावजूद, जो खासतौर से नदारद थे वह थे : दर्शक.
150-200 लोगों की बैठने की क्षमता वाले, दिल्ली के बीकानेर हाउस, जो कि इस कार्यक्रम का स्थल था, में ज़्यादातर सत्रों के दौरान केवल 20-30 लोग ही मौजूद थे.
पहलगाम आतंकी हमले के इर्द-गिर्द एक चर्चा में, विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव अमरेंद्र खटुआ ने भी इस पर ध्यान दिया.
चर्चा शुरू होने से पहले अपने बगल में बैठे एक व्यक्ति से उन्होंने पूछा, “दर्शकों की संख्या इतनी कम क्यों है?”
हालांकि, कुछ सेशन में दर्शकों की संख्या बढ़ी, जैसे कि भारतीय जनता पार्टी की सांसद बांसुरी स्वराज द्वारा जनसांख्यिकी, संवाद और विकास पर एक चर्चा. अन्य वक्ताओं में दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता, जिन्होंने महोत्सव का उद्घाटन किया, एनडीएमसी के अध्यक्ष केशव चंद्रा और यूनेस्को के नई दिल्ली कार्यालय के निदेशक और प्रतिनिधि टिम कर्टिस शामिल थे.
विजेंद्र गुप्ता ने कहा, “साहित्य केवल साक्षर लोगों के लिए नहीं है, बल्कि यह सभी का अधिकार है. यह समाज का आईना है और इस तरह के महोत्सव बताते हैं कि ज़िंदगी के सभी क्षेत्रों की आवाज़ सुनी जाए और उसे सेलिब्रेट किया जाए.”
केशव चंद्रा के लिए, दिल्ली और साहित्य का एक खास रिश्ता है.
उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि साहित्य एक ऐसी आवाज़ है जो सीधे आत्मा से जुड़ी होती है.” उन्होंने आगे कहा, “दिल्ली की हर सड़क, गली और इमारत में साहित्य है.”
इसके बाद चंद्रा ने डिजिटल युग में किताबें पढ़ने के महत्व पर जोर दिया और दर्शकों को कुछ सलाह भी दी.
उन्होंने कहा, “सिर्फ एग्जाम पास करने के लिए किताबों को मत पढ़िए. किताब को हाथ में लेने से बेहतर कुछ नहीं है. आप एक पेज से दूसरे पेज पर जा सकते हैं, चैप्टर को हाइलाइट कर सकते हैं, पेज को मार्क कर सकते हैं और जब चाहें वापस जा सकते हैं.
उन्होंने पीछे बैठी युवा पीढ़ी के दर्शकों से पढ़ने की मजबूत आदत लगाने करने का आग्रह किया.
भारत की विदेश नीति
इस उत्सव में लेखकों, साहित्यकारों और श्रोताओं को पहलगाम आतंकी हमले की निंदा करने के लिए एक मंच प्रदान दिया गया.
नेविगेटिंग द ग्लोबल टाइड्स नामक सत्र में जॉर्डन, लीबिया और माल्टा में भारत के पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत, लेखक हर्ष वी पंत, अमरेंद्र खटुआ, लेखक अशोक मोटवानी और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि के निलंबन पर चर्चा की.
‘इंडस वाटर्स स्टोरी: इश्यूज, कंसर्न्स, पर्सपेक्टिव्स’ के सह-लेखक मोटवानी ने कहा, “वक्त आ गया है कि बदलाव लाया जाए और जहां चोट लगे, वहां चोट पहुंचाई जाए. इसका उन (पाकिस्तान) पर लंबे समय तक असर होगा.” यह किताब भारत और पाकिस्तान के बीच संवेदनशील और लंबे समय से चले आ रहे जल-बंटवारे के विवाद पर प्रकाश डालती है.
इस चर्चा में भारत की विदेश नीति और देश भविष्य की चुनौतियों के लिए किस तरह तैयारी कर रहा है, इस पर भी चर्चा हुई.
त्रिगुणायत ने कहा, “हम जो बनना चाहते हैं, उसके लिए हमें राष्ट्रीय शक्ति का विकास करना होगा, जिसमें सैन्य और सॉफ्ट पावर दोनों तरह की पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता हो. भारत का लक्ष्य एक बड़ी सैन्य शक्ति बनना नहीं है, बल्कि एक ऐसी शक्ति बनना है जो खुद की रक्षा करने में सक्षम हो. यह हमेशा से हमारा प्राइमरी गोल रहा है.”
भारत पहलगाम हमले का जवाब देने में जल्दबाजी नहीं कर रहा है, क्योंकि उसका ध्यान एक अचूक, लंबे समय तक चलने वाला प्रभाव देने पर है, न कि केवल इस बार प्रतीकात्मक हमला करने के लिए सीमा पार करना. उन्होंने कहा, “भारत की विदेश नीति अधिक मजबूत, परिणाम-उन्मुख हो गई है.” उन्होंने जोर देकर कहा कि अब पाकिस्तान को नहीं बल्कि चीन को भारत के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता है.
महाभारत
महाभारत पर एक सत्र ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि महाभारत 2025: शून्य के रहस्य के लेखक दिव्यांश मुंद्रा ने बताया कि युवा पीढ़ी हमेशा महाकाव्य से क्यों सीख सकती है.
उन्होंने कहा कि महाभारत से बहुत से लोग परिचित हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि युद्ध के बाद क्या हुआ था.
महाभारत की कहानियों को दिखाने वाले इंस्टाग्राम रील बनाने वाले मुंद्रा ने कहा कि नई पीढ़ी को ऐसे महाकाव्यों को समझने के लिए एक आसान और दिलचस्प तरीका चाहिए.
उन्होंने कहा, “महाभारत भारतीय इतिहास का सबसे महान महाकाव्य है, आज के युवा भी इसके बारे में अधिक जानना चाहते हैं.”
नदारद दर्शक
साहित्य के दर्शकों में लगातार कमी आने के बारे में बात करते हुए कवि, गीतकार और लेखक प्रताप सोमवंशी ने कहा कि इस दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, “नए लेखकों और उनके नए दृष्टिकोण के साथ, नए पाठक भी साहित्य की ओर लौटेंगे.”
हालांकि, ऐसा नहीं है कि दिल्ली साहित्य महोत्सव में दर्शक पूरी तरह से गायब थे. वक्त-वक्त पर नए चेहरे दिखाई दिए, कुछ अपने पसंदीदा लेखकों को सुनने के लिए, तो कुछ बस उनके साथ सेल्फी लेने के लिए.
बुक स्टॉल पर खड़े पार्थ और रोहन किसी सेशन में शामिल होने या फेस्टिवल में शरीक होने नहीं आए थे, यह एक लेखक के साथ एक सेल्फी और उसका ऑटोग्राफ था जिसने उन्हें यहां खींचा.
पार्थ ने कहा, “हमने इंस्टाग्राम पर फेस्टिवल की एक रील देखी और एक युवा लेखक का नाम देखा, जिसे हम सोशल मीडिया पर फॉलो करते हैं. इसलिए हम उनके साथ सेल्फी लेने के लिए यहां आए.”
कुछ ग्रुप्स और परिवार हॉल में आए, लेकिन कुछ ही मिनटों में चले गए. अनिल पांडे, जो अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ फेस्टिवल में आए थे, जल्दी ही बाहर निकल गए और फिर कार्यक्रम स्थल के पास एक हरे-भरे, सुंदर क्षेत्र में बाहर तस्वीरें खिंचवाईं.
पांडे ने कहा, “हमने सोचा था कि बच्चों के साथ वीकेंड का आनंद लेने के लिए खाने-पीने के स्टॉल, कई तरह की किताबें और अन्य स्टेशनरी बूथ होंगे, लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं है, इसलिए हम बाहर जा रहे हैं.”
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