पटना: गोपाल खेमका की मौत के 10 दिन बाद, 4 जुलाई के दिन पटना में उनके घर पर तेहरवी की तैयारियां चल रही थीं, तो उनके छोटे भाई किशन खेमका एक कोने में चुपचाप बैठे थे. आंखों में थकान, चेहरे पर गुस्सा और मन में डर साफ झलक रहा था. उन्होंने कहा, “अब पुलिस सुरक्षा भी काफी नहीं है.” फिर कुछ सेकंड रुककर उन्होंने आगे कहा, “2018 में गोपाल के बेटे को भी गोली मार दी गई थी. अब हम अगली पीढ़ी को यहां नहीं रख सकते. उन्हें बिहार से बाहर भेजने का फैसला ले लिया गया है.”
एक शांत लहजे में कही गई ये बात पटना के कारोबारियों के उस डर को बयां करती है, जो अब धीरे-धीरे गुस्से में बदल रहा है.
गोपाल खेमका के गांधी मैदान के पास स्थित घर में लगातार व्यापारी आकर संवेदना जता रहे थे. किशन चुपचाप बैठे थे, थके हुए लेकिन इस बात को लेकर बिल्कुल स्पष्ट कि बिहार में अब सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं बची.
उन्होंने कहा, “हम अगली पीढ़ी को यहां नहीं रहने देंगे. उन्हें बाहर भेज देंगे.”
पटना के व्यापारियों में यह डर लगातार बढ़ रहा है. कई व्यापारी अब निजी सुरक्षाकर्मी रख रहे हैं, पुराने बंदूक लाइसेंस के फाइल फिर से खोल रहे हैं और “योगी स्टाइल” में अपराधियों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.
गोपाल खेमका की हत्या ने कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. 65 साल के खेमका की बैंकिपुर क्लब से लौटते वक्त हत्या के कुछ ही दिन बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) किसान मोर्चा नेता सुरेंद्र केवट की भी बाइक सवार बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी जिसने आम लोगों में दहशत और बढ़ा दी.
विधानसभा चुनावों में कुछ ही महीने बाकी हैं और नीतीश कुमार सरकार के लिए यह एक बड़ा इम्तहान का वक्त है. सरकार ना तो बड़े उद्योग ला पाई और अब जो उद्योग लगे हैं, वे भी डर के साए में हैं क्योंकि व्यापारी अब खुलकर निशाने पर हैं. एक नया रंगदारी रैकेट सक्रिय हो चुका है, जिससे लोगों को 1990 के दशक की याद आने लगी है. तब के राजद शासन को ‘जंगल राज’ कहा जाता था, लेकिन अब यह शब्द नीतीश कुमार और बीजेपी-जेडीयू सरकार के लिए इस्तेमाल हो रहा है. यही शब्द अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चुनावी मंचों से विपक्ष पर हमला करने में इस्तेमाल कर रहे हैं.

हत्या के बाद पुलिस ने तीन टीमें बनाईं — स्पेशल टास्क फोर्स (STF), CID और स्थानीय थाना पुलिस. चार दिन में शूटर्स में से एक उमेश यादव को गिरफ्तार कर लिया गया. 8 जुलाई को दूसरा आरोपी विकास उर्फ राजा एक एनकाउंटर में मारा गया और मुख्य साजिशकर्ता, लोहे के व्यापारी अशोक साव को गिरफ्तार किया गया. पुलिस का कहना है कि हत्या की वजह ज़मीन का विवाद था.
लेकिन परिवार इस थ्योरी से संतुष्ट नहीं है.
गोपाल के भाई शंकर खेमका ने हत्या के अगले दिन कहा, “लोग कहते थे कि लालू यादव के समय जंगल राज था, लेकिन अब जो हो रहा है वो उससे भी बदतर है. पुलिस थाने रंगदारी के मामलों में उलझे हैं, राज्य खुद संगठित अपराध को बढ़ावा दे रहा है. आम नागरिक परेशान हैं और अपराधी आसानी से बच निकलते हैं.”
पिछले एक दशक से बिहार पुलिस शराब बंदी लागू करने में लगी रही, जबकि गंभीर अपराध लगातार बढ़ते रहे. 2005 में जब नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने, तो बिहार में 1.04 लाख संगीन अपराध दर्ज हुए थे. 2020 तक यह आंकड़ा दोगुना होकर 2.5 लाख तक पहुंच गया. मई 2025 तक ही राज्य में 1.5 लाख से ज़्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं — यानी आधा साल बाकी होते हुए भी आंकड़ा तेज़ी से बढ़ रहा है.

बिहार पुलिस मुख्यालय में अतिरिक्त महानिदेशक (ADG) कुंदन कृष्णन का कहना है कि अपराध की दर बढ़ने की वजह सामाजिक और आर्थिक दबाव हैं. उन्होंने कहा, “बिहार में देश में सबसे ज्यादा जनसंख्या घनत्व और प्रजनन दर है. बेरोज़गारी भी बहुत ज़्यादा है, इसलिए युवा अपराध की तरफ झुकते हैं.”
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक और स्थानीय नागरिकों का मानना है कि असली वजह भ्रष्टाचार है, जो पुलिस समेत हर प्रशासनिक स्तर पर फैला हुआ है.
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हत्याओं की लहर
पटना के कारोबारी जगत में खेमका परिवार पिछले 75 सालों से जाना-पहचाना नाम है. परिवार के मुखिया विश्वनाथ खेमका आज़ादी के बाद राजस्थान से आए थे, पटना में कागज़ का कारोबार शुरू किया और बाद में बिहार का पहला प्राइवेट मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल स्थापित करने में मदद की. 1990 के दशक के “जंगल राज” में भी उन्होंने और उनके चार बेटों ने हालात झेले और संभले, लेकिन बीते सात सालों में यह स्थिरता दो बार बुरी तरह टूटी है.
दिसंबर 2018 में विश्वनाथ के पोते और गोपाल खेमका के बेटे गुंजन खेमका की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई. वे हाजीपुर के इंडस्ट्रियल एरिया स्थित फैक्ट्री के बाहर खड़े थे. तब भी राज्य में नीतीश कुमार की जेडीयू-बीजेपी सरकार थी और अब, गोपाल खेमका की हत्या ने एक बार फिर उसी दर्दनाक इतिहास को दोहरा दिया है.
4 जुलाई को पटना में गोपाल खेमका की हत्या के साथ ही बिहार में हिंसा की लहर दिखी. सिवान में दर्जनों हथियारबंद लोगों ने पांच लोगों पर तलवार और कुल्हाड़ियों से हमला कर तीन को मार डाला. पीड़ितों में से एक, कन्हैया सिंह, ने कुछ दिन पहले ही पुलिस को खत लिखकर अपनी जान को खतरा बताया था.
6 जुलाई को पूर्णिया जिले में करीब 250 लोगों की भीड़ ने डायन होने के शक में एक परिवार के पांच सदस्यों को पीटा, महिलाओं समेत सभी को ज़िंदा जला दिया. अगले दिन मुजफ्फरपुर में जूनियर इंजीनियर मोहम्मद मुमताज़ को उनके ही घर में चाकू मारकर मार डाला गया.

ना दौलत काम आई, ना रसूख. बीजेपी के सुरेंद्र केवत की भी खेत में काम करते वक्त गोली मारकर हत्या कर दी गई. 27 मई को छपरा में अमरेंद्र सिंह और उनके सहयोगी की हत्या कर दी गई और 13 जुलाई को, पटना में वकील जितेंद्र कुमार महतो की चाय ब्रेक के बाद लौटते वक्त गोली मारकर हत्या कर दी गई — उस दिन 24 घंटे में चार हत्याएं दर्ज की गईं.
रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी और बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद ने कहा, ‘‘बिहार में हर सेकंड जो असली अपराध हो रहा है, वह है भ्रष्टाचार और घूसखोरी. बस कंडक्टर से लेकर एसएचओ और सीनियर अफसर तक, हर स्तर पर सड़ांध फैली है. अच्छा शासन अब सिर्फ एक भ्रम है, जिसकी पोल खुल चुकी है.’’
इस बढ़ते अपराध पर बिहार की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं.
तेजस्वी यादव ने एक्स पर लिखा, ‘‘अगर बिहार में गिरती कानून व्यवस्था और बेलगाम भ्रष्टाचार से किसी को गुस्सा नहीं आता, तो समझिए उस व्यक्ति का इंसाफ और इंसानियत में यकीन मर चुका है.’’
कांग्रेस नेता विक्रांत भूरिया ने सोमवार को मीडिया से कहा, ‘‘बिहार में अब कोई भी सुरक्षित नहीं है. पूर्णिया की घटना में पहले लोगों को पीटा गया, हाथ-पैर तोड़े गए, फिर अधजला किया गया और अंत में पेट्रोल-डीजल डालकर उन्हें पूरी तरह जला दिया गया. एक पीड़ित जान बचाने के लिए पानी में कूदा, लेकिन उसे मछली पकड़ने वाले कांटे से खींचकर फिर से आग में झोंक दिया गया.’’

शराबबंदी भी सवालों के घेरे में है. कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल को गांव में शराब की खाली बोतलें मिलीं. भूरिया ने कहा, ‘‘इन सभी हमलावरों ने शराब पी रखी थी. बिहार में शराबबंदी सिर्फ कागज़ों में है.’’
दिसंबर 2024 में कार्यभार संभालने वाले बिहार पुलिस के डीजीपी विनय कुमार ने इन आरोपों को खारिज किया.
उन्होंने कहा, ‘‘कुल अपराधों की संख्या बढ़ना यह नहीं दर्शाता कि कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है. इसका मतलब है कि हमारा आपराधिक न्याय तंत्र सक्रिय है और हम मामलों को दबाते नहीं, दर्ज करते हैं.’’
लेकिन इस बात से सभी सहमत नहीं. जनता और विशेषज्ञ मानते हैं कि सिस्टम की विफलता ने अपराधियों को और बेखौफ बना दिया है.
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पुलिस पर से उठता भरोसा
बिहार की सड़कों पर आज लोगों को सबसे ज़्यादा डर अपराधियों से नहीं, बल्कि वर्दी में घूमते उन पुलिसवालों से है जो हर मोड़ पर नज़र गड़ाए खड़े रहते हैं. चौराहों और ट्रैफिक सिग्नलों पर हेलमेट चेक किया जाता है, हाइवे पर गाड़ियां रोककर शराब या कागज़ों की जांच की जाती है. आम लोगों का कहना है कि यह सुरक्षा नहीं, बल्कि खुलेआम उगाही है.
पटना के दुकानदार सज्जन अग्रवाल ने कहा, ‘‘जो सिस्टम सुरक्षा देने के लिए बना था, अब वही शिकार करने वाला तंत्र बन गया है.’’
उन्होंने बताया कि उनके एक कारोबारी साथी की स्कूटी चोरी हो गई तो एफआईआर दर्ज कराने और बीमा प्रक्रिया शुरू करने के लिए एसएचओ ने रिश्वत मांगी.
उन्होंने कहा, ‘‘थानों में खुल्लमखुल्ला लूट मची है.’’
पटना निवासी और ड्राइवर बबलू कुमार ने कहा कि ये ‘‘उत्पीड़न’’ अब हद से आगे निकल चुका है.
कुमार ने कहा, ‘‘बिहार पुलिस का नारा ‘हर वक्त सेवा में’ अब ‘हर वक्त फेरा में’ हो गया है – यानी हर समय रिश्वत के फेर में.’’
एक सीनियर आईपीएस अधिकारी ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर कहा, ‘‘पहले स्थानीय थानेदार की भी इतनी साख होती थी कि अपराधी खुले में गोली चलाने से पहले सोचते थे. अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि अपराधी खुलेआम गोलियां दागते हैं और पुलिस कुछ नहीं कर पाती.’’
आज लोगों में यह धारणा गहराई से बैठ गई है कि ‘‘सही कीमत’’ पर पुलिस किसी भी तरफ से आंखें मूंद लेती है. पिछले तीन सालों में 50 से ज़्यादा थानेदारों को रिश्वतखोरी के आरोप में सस्पेंड या लाइन हाज़िर किया गया है — इनमें बालू और शराब माफिया से पैसे लेने के मामले शामिल हैं.
24 मई को, सचिवालय और पुलिस मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर, दो युवकों ने पटना की व्यस्ततम सड़क बोरिंग रोड पर बाइक से आते हुए हवा में दो फायर किए. पूरी घटना सीसीटीवी में कैद हुई और क्लिप वायरल हो गया.
एक आईपीएस अधिकारी ने कहा, ‘‘ये इस बात का सबूत है कि अपराधियों को अब पुलिस का कोई डर नहीं रहा. उन्होंने दो थानों की हदें पार कीं, लेकिन उन्हें किसी ने रोका तक नहीं.’’

हालांकि, सीनियर पुलिस अधिकारी अब यह दावा कर रहे हैं कि व्यवस्था में बदलाव लाने की कोशिशें जारी हैं.
सराहना और फटकार
बिहार पुलिस मुख्यालय में अब चीज़ों को पटरी पर लाने की नई कोशिश चल रही है. शनिवार शाम जब दिप्रिंट डीजीपी विनय कुमार के दफ्तर पहुंचा, तब 38 ज़िलों के एसपी को चिट्ठियां भेजी जा रही थीं—कुछ को सराहना मिली, तो कुछ को फटकार.
विनय कुमार ने कहा, “मेरी प्राथमिकता कानून-व्यवस्था बनाए रखना और केसों की सुनवाई में तेज़ी लाना है.” उन्होंने बताया कि आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज मामलों को सबसे पहले निपटाया जा रहा है.
एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने माना कि काम करने के तरीके में बदलाव की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, “सिस्टम थोड़ा ढीला और सुस्त हो गया था. एडीजी शाम 5 बजते ही ऑफिस छोड़ देते थे.”
पिछले पांच सालों में बिहार पुलिस के शीर्ष पदों पर काफी उथल-पुथल हुई है. इस दौरान चार डीजीपी बदले—गुप्तेश्वर पांडेय (2019), संजीव कुमार सिंघल (2020–22), आर.एस. भट्टी (2022), और आलोक राज (2024). इन सभी के कार्यकाल या तो कथित भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे रहे या प्रशासनिक सुस्ती के आरोप लगे.
बिहार पुलिस मुख्यालय के एडीजी कुंदन कृष्णन ने कहा, “एनकाउंटर कोई मज़बूत न्याय व्यवस्था की पहचान नहीं है. हम उस सोच से सहमत नहीं हैं. हमने अब तक सिर्फ 10 बार ही पैरों में गोली मारी है. यूपी ने ये काम शायद 500 बार किया हो.”
नीतीश सरकार अब डीजीपी विनय कुमार और एडीजी कुंदन कृष्णन पर भरोसा कर रही है, जो दिसंबर 2024 में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे हैं. सरकार चाहती है कि ये दोनों मिलकर बिगड़ती स्थिति को पटरी पर लाएं.
एडीजी कुंदन कृष्णन की निगरानी में मुंगेर बेल्ट में गैंगस्टरों पर सख्त कार्रवाई हुई है. पिछले छह महीनों में यहां छह एनकाउंटर हो चुके हैं. पिछले महीने मुज़फ्फरपुर में हुए बलात्कार केस में, आरोपी फरार था. दबाव बनाने के लिए प्रशासन ने उसका घर और सड़क किनारे की दुकान गिरा दी.

हालांकि, एडीजी कृष्णन उत्तर प्रदेश के पुलिस मॉडल से तुलना किए जाने को खारिज करते हैं.
उन्होंने कहा, “एनकाउंटर कोई मज़बूत न्याय प्रणाली की पहचान नहीं है. हम उस सोच से सहमत नहीं हैं. हमने अब तक सिर्फ 10 बार ही पैरों में गोली चलाई है. यूपी में शायद ये संख्या 500 के करीब हो.”
कुछ रिटायर्ड अफसर नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल को याद करते हैं, जब ‘जंगल राज’ की छवि धीरे-धीरे खत्म होनी शुरू हुई थी.
दीपक प्रकाश, 1994 बैच के रिटायर्ड सब-इंस्पेक्टर, बताते हैं कि 1,640 अफसरों की उस बैच ने बिहार की पुलिसिंग को बदलने में अहम भूमिका निभाई थी.
ये अफसर लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में भर्ती हुए थे और हरियाणा, पंजाब और झारखंड में ट्रेनिंग ली थी. बाद में इन्होंने नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल (2005-2010) में थानाध्यक्ष (SHO) के रूप में काम करते हुए पुलिस सुधारों की नींव रखी. इन्हीं की मदद से नीतीश की ‘सुशासन बाबू’ वाली छवि बनी थी—जो अब धीरे-धीरे धुंधली हो रही है.

समय के साथ, 1994 बैच के सब-इंस्पेक्टरों में से कई प्रमोट होकर इंस्पेक्टर और डीएसपी बन चुके हैं. इसके बाद अगली भर्ती 2009 में हुई. दीपक प्रकाश ने बताया कि आज उसी बैच के अधिकारी बिहार के करीब 99% थानों की कमान संभाल रहे हैं. वर्तमान में राज्य में 19,838 कांस्टेबल पदों पर भर्ती प्रक्रिया चल रही है.
दीपक प्रकाश, जो बाद में एसटीएफ (STF) में शामिल हुए, ने कहा, “पुलिसिंग के निचले स्तर पर ज़्यादा बदलाव नहीं हुआ है. असली बदलाव तो लीडरशिप और राजनीतिक माहौल में आया है.”
उन्होंने आगे कहा, “हत्या जैसे अपराध हमेशा रोके नहीं जा सकते, लेकिन अगर लूट, गैंग वॉर, खुलेआम फायरिंग, चार्जशीट में देरी या गिरफ्तारी जैसी घटनाएं बढ़ी हैं, तो ये पुलिस की नाकामी ही है.”
इस माहौल में जनता की प्रतिक्रिया भी तीखी हो रही है.
बिहार के एक व्यापारी, प्रदीप पंसारी ने कहा, “आप या तो इन (अपराधियों) के पैरों में गोली मारिए या फिर उनके घर पर बुलडोज़र चलाइए.”
कुछ पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, बीते दशक में पुलिस व्यवस्था की विफलता की एक बड़ी वजह आंतरिक अनुशासन का कमजोर होना है. सस्पेंशन या विभागीय जांच अब डर पैदा नहीं करते और शराबबंदी ने अफसरों के लिए गलत कमाई के नए रास्ते खोल दिए हैं.
वर्तमान में तैनात एक अधिकारी ने बताया, “अब सस्पेंड होने का डर खत्म हो गया है. सब-इंस्पेक्टर से लेकर डीएसपी तक, शराबबंदी की आड़ में इतनी कमाई हो रही है कि जांच भी मैनेज हो जाती है और आखिर में ज़्यादातर लोग बेकसूर दिखते हैं.”
इन आरोपों के बीच, डीजीपी विनय कुमार का कहना है कि इकोनॉमिक ऑफेन्सेस यूनिट (EOU) पुलिस महकमे के भीतर भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है.
उन्होंने कहा, “हाल ही में बक्सर में हमारी टीम ने तीन ट्रेनी कांस्टेबल और एक मौजूदा अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. इन लोगों ने मेडिकल फिटनेस क्लियरेंस में गड़बड़ी के लिए घूस ली थी.”
डीजीपी ने गोपाल खेमका हत्याकांड में हुई त्वरित कार्रवाई का भी ज़िक्र किया.
उन्होंने कहा, “पटना एसएसपी कार्तिकेय शर्मा ने कुछ ही दिनों में शूटर और साजिशकर्ता दोनों को गिरफ्तार कर लिया, साथ ही हथियार, वाहन, कपड़े और अन्य फॉरेंसिक सबूत भी बरामद कर लिए.”
विनय कुमार ने ये भी बताया, “गोपाल खेमका के बेटे गुंजन खेमका के केस में कोर्ट ने पिछले सात सालों में सिर्फ एक बार सुनवाई की है. हमने चार्जशीट दाखिल कर दी है, और अब मामला प्रॉसिक्यूशन डायरेक्टोरेट के पास है.”
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व्यापारी समुदाय में खौफ
बिहार के व्यापारी सिर्फ कानून-व्यवस्था की हालत से ही परेशान नहीं हैं, उन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर भी चिंता सता रही है. राज्य भर में दर्जनों व्यापारी हैं जिनके आर्म्स लाइसेंस की अर्ज़ियां जिलाधिकारियों के पास अटकी पड़ी हैं.
ऑल इंडिया ट्रेडर्स कॉन्फेडरेशन के बिहार अध्यक्ष अशोक कुमार वर्मा ने नाराज़गी जताते हुए कहा, “आप राजनीतिक पहुंच वाले मुखिया को तरजीह देते हैं, व्यापारियों की कोई सुनवाई नहीं होती. या तो ऐसी कानून-व्यवस्था बना दो कि हमें लाइसेंस की ज़रूरत ही न पड़े, या फिर हमें अपनी रक्षा खुद करने दो.”
60-वर्षीय वर्मा ने बताया कि पिछले साल उन्होंने अन्य प्रतिनिधियों के साथ मिलकर तत्कालीन डीजीपी आलोक राज से मुलाकात की थी ताकि व्यापारियों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई जा सके. गोपल खेमका की हत्या के बाद उन्होंने वर्तमान डीजीपी विनय कुमार से भी मिलकर केस की त्वरित सुनवाई और सुरक्षा की मांग की.
उन्होंने कहा, “व्यापारियों के बीच डर तेज़ी से फैल रहा है. शुरुआत मुज़फ्फरपुर से हुई, फिर ये छपरा पहुंचा और अब सीवान तक आ गया है. ज्वैलर्स तो खासतौर पर निशाने पर हैं.”

गोपाल के भाई किशन खेमका ने बताया, “हमें तीन सुरक्षाकर्मी जरूर दिए गए हैं, लेकिन मेरे आर्म्स लाइसेंस की फाइल छह साल से पेंडिंग है. हम सिर्फ यही जानना चाहते हैं कि उन्हें मारा क्यों गया? हमें closure चाहिए.”
जब एक तरफ परिवार जवाबों का इंतज़ार कर रहा है, व्यापारी वर्ग का एक बड़ा हिस्सा अब उत्तर प्रदेश की तरह एनकाउंटर आधारित पुलिसिंग की मांग करने लगा है.
बिज़नेसमैन प्रदीप पंसारी, जो खेमका परिवार के घर प्रार्थना करने पहुंचे थे, ने कहा, “इनको या तो पैर में गोली मारो या फिर इनके घर पर बुलडोज़र चलाओ.”
व्यापारियों ने एक दिन का बंद बुलाया, हालांकि, खेमका परिवार ने इसमें शामिल नहीं होने का फैसला किया ताकि जनता को परेशानी न हो. उधर, राजद (RJD) ने भी कानून-व्यवस्था की बिगड़ती हालत को लेकर भारत बंद का आह्वान किया.
अशोक वर्मा ने सवाल उठाया, “राज्य क्या संदेश देना चाहता है? क्या हम सिर्फ टैक्स भरने और चुनाव में चंदा देने के लिए हैं?”
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