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Sunday, 13 October, 2024
होमफीचर'एक नई महामारी', आज भारत में हर कोई एक थेरेपिस्ट है- इंफ्यूलेंसर्स, डेंटिस्ट, होम्योपैथिक डॉक्टर

‘एक नई महामारी’, आज भारत में हर कोई एक थेरेपिस्ट है- इंफ्यूलेंसर्स, डेंटिस्ट, होम्योपैथिक डॉक्टर

भारत के सामने मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एक नई चुनौती है कि एक अच्छे और सही थेरेपिस्ट का चुनाव कैसे करे. साथ ही खर्च के बारे में चिंता करना दूर करे.

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नई दिल्ली: गुवाहाटी की एक 36 वर्षीय हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेटर ने शादी की तारीख से एक महीने पहले अपनी शादी तोड़ दी. उसने इसके लिए खुद को दोषी ठहराया. उसे इस कठिन दौर में सहायता और मार्गदर्शन के लिए किसी की आवश्यकता थी. मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में मौजूद समस्याओं से लड़ते हुए उसने एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से थेरेपी कराने का फैसला किया. वह एक मोबाइल ऐप के माध्यम से एक गुमनाम ‘थेरेपिस्ट’ से जुड़ी.

लेकिन ‘थेरेपिस्ट’ के साथ फ्री चैट सेशन में ही उसकी हालत और खराब हो गई. तथाकथित काउंसलर ने अपने ही ब्रेकअप की कहानियां उसे सुनाना शुरू कर दिया. भारत में थेरेपी उद्योग काफी फलफूल रहा है. लेकिन परामर्शदाता का यह अनुचित व्यवहार इस क्षेत्र में विनियमन, योग्यता, प्रशिक्षण और मानकों की पूरी तरह से चिंताजनक है और कमी को उजागर करता है.

उस महिला ने दिप्रिंट को बताया, “उसने कहा कि वह रिश्ता खत्म होने के बाद आत्महत्या करना चाहता है और अपनी जिंदगी खत्म करना चाहता है. उसकी कहानी सुनने के बाद मैं तुरंत सत्र ख़त्म करना चाहती थी. इन समयों में आप कोई भी दुखभरी कहानी नहीं सुनना चाहेंगे. मुझे लगता है कि वह नहीं जानते था कि ‘आत्महत्या’ जैसे शब्द किसी ऐसे व्यक्ति पर काम नहीं करते जो पहले से ही जीवन में बहुत कुछ झेल रहा हो.” 

दो दिन बाद, उसे ऐप से एक मैसेज मिला जिसमें उससे पूछा गया कि क्या वह खुद काउंसलर बनना चाहेगी.

थेरेपी आज समाज में अधिक सुलभ और स्वीकार्य है जो लंबे समय से मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सार्वजनिक चर्चा से दूर रहा है. आज के समय थेरेपी के ऑनलाइन सत्रों में सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई है. कई फ़ोन ऐप्स, इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक, यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म, व्यक्तिगत वेबसाइटें और क्लीनिक परामर्श सेवाएं प्रदान करते हैं. यहां तक कि प्रभावशाली लोग भी स्वयं को थेरेपिस्ट के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं.

परामर्श व्यवसाय, जहां ढोंगी थेरेपिस्ट लोगों से बात करते हैं, उन्हें जीवन जीने के तरीके के बारे में बताते हैं, का काफी विस्तार हो रहा है और यह तेजी से आगे बढ़ रहा है. मानसिक बीमारियों के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण इन सेवाओं की मांग बढ़ गई है. लेकिन चिकित्सा पेशे के विपरीत, परामर्श क्षेत्र अभी खतरनाक रूप से आगे बढ़ रहा है और इसमें उचित परिवर्तन की जरूरत है. मास्टर डिग्री या शार्ट टर्म कोर्स करने के बाद कोई भी व्यक्ति थेरेपिस्ट बन सकता है, जिसके कारण इस क्षेत्र में अयोग्य व्यक्तियों की एंट्री होती है, जो खुद को परामर्शदाता कहते हैं.

यहां तक कि मनोविज्ञान में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री वाले लोगों के लिए भी अभी यह आकलन करने की कोई व्यवस्था नहीं है कि उन्हें असली रोगियों के साथ काम करने के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है या नहीं. दिप्रिंट द्वारा साक्षात्कार किए गए विशेषज्ञों के अनुसार, मनोविज्ञान में शिक्षा की गुणवत्ता में मानकीकरण का काफी अभाव है, और अधिकांश युवा परामर्शदाताओं को पाठ्यपुस्तकों से परे काफी कम ट्रेनिंग मिलती है. 

आकांक्षा चंदेले, मनोथेरेपिस्ट और आई एम वेलबीइंग संगठन की संस्थापक, जो नोएडा और दिल्ली में अपना सेंटर चलाती हैं, कहती हैं, “सिस्टम काफी ख़राब है. पहले थोड़ा अंतराल था, लेकिन अब इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया की वजह से हर दूसरा व्यक्ति खुद को थेरेपिस्ट होने का दावा कर रहा है. यह तो और भी बुरा है. मैं ऐसे लोगों को जानती हूं जो अयोग्य थेरेपिस्टों के पास गए हैं और अब चिकित्सा के लिए वापस उनके पास नहीं जाना चाहते हैं.”

2021 में, स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस क्षेत्र को विनियमित करने के लिए नेशनल कमीशन फॉर अलाइड एंड हेल्थकेयर प्रोफेशन एक्ट पारित किया. अधिनियम का उद्देश्य परामर्श मनोविज्ञान में शिक्षा के मानकों को स्थापित करना, संस्थानों का मूल्यांकन करना और उनके कौशल और दक्षताओं का आकलन करने के बाद पेशेवरों का एक केंद्रीय रजिस्टर बनाए रखना है.

हालांकि, अधिनियम अभी भी लागू नहीं किया गया है. इस बीच, निरीक्षण की कमी का मतलब है कि मानसिक स्वास्थ्य रोगियों को अयोग्य और अप्रशिक्षित परामर्शदाताओं के हाथों में छोड़ दिया गया है जो अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं और उनके ठीक होने की राह में बाधा डाल सकते हैं.

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह प्रवृत्ति इस क्षेत्र को कई साल पीछे ले जा रही है.


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हर कोई एक थेरेपिस्ट है

कोरोना महामारी और उसके कारण लगाए गए लॉकडाउन के बाद, लोगों को योग्य मनोवैज्ञानिकों से जोड़ने वाले एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म मीटकाउंसलर के संस्थापक कृष्ण कुमार नायर ने अपने संगठन से मदद मांगने वाले व्यक्तियों की संख्या में 400 प्रतिशत की वृद्धि देखी. उनका कहना है कि महामारी मानसिक स्वास्थ्य देखभाल उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, क्योंकि इसने लोगों को पेशेवर सहायता लेने के महत्व को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया.

नायर कहते हैं, “लोग अब यह कहने के लिए आगे आ रहे हैं कि हां, मैं उदास हूं. मुझे मदद की ज़रूरत है.”

थेरेपी की मांग आसमान छू गई, और घर से काम करने की जीवनशैली में बदलाव ने परामर्शदाताओं तक पहुंचने में भौगोलिक बाधाओं को खत्म कर दिया. व्यक्ति अब विभिन्न एग्रीगेटर वेबसाइटों (जैसे प्रैक्टो, क्लिनिक स्पॉट्स, लाइब्रेट), सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और मोबाइल ऐप्स के माध्यम से मनोवैज्ञानिकों को ऑनलाइन ढूंढ सकते हैं, जिससे उन्हें किसी को बताए बिना सेशन बुक करने की इजाजत मिलती है कि वे आसानी से अपनी थेरेपी करवा सकते है.

हालांकि, मांग में इस वृद्धि और शहरी आबादी के लिए परामर्श सेवाओं की बढ़ती पहुंच ने अयोग्य और अप्रशिक्षित मनोवैज्ञानिकों की एक बड़ी भीड़ को भी जन्म दिया. सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर, जीवन प्रशिक्षकों, श्रोताओं, ध्यान और योग थेरेपिस्टों और प्रभावशाली लोगों के कई प्रोफाइल सामने आए, जो पैसे लेकर सामाजिक चिंता, तनाव और अवसाद के मुद्दों पर मार्गदर्शन देते हैं.

हालांकि इनमें से कई व्यक्ति स्वयं को परामर्श देने वाले मनोवैज्ञानिक नहीं कहते हैं, लेकिन वे जो सेवाएं प्रदान करते हैं वे पेशेवर परामर्शदाताओं के ही समान हैं. पिछले साल अक्टूबर में एक इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर के खिलाफ कथित तौर पर खुद को वेलनेस थेरेपिस्ट बताने के लिए धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज की गई थी. जवाब में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सरकार को इंस्टाग्राम पर झूठे थेरेपिस्टों के प्रसार को विनियमित करने का निर्देश दिया.

मनोवैज्ञानिक और फेटल काउंसलिंग के सह-संस्थापक प्रतीक शेट्टी कहते हैं, “जो लोग खुद को ‘लाइफ कोच’ या ‘श्रोता’ कहते हैं, उनमें अक्सर काउंसलर बनने की योग्यता की कमी होती है.”

इन व्यक्तियों के पास आमतौर पर बड़ी संख्या में अनुयायी होते हैं और सकारात्मकता बेचने की कोशिश करते हैं. फिर ऐसी वेबसाइटें भी हैं जहां लोग व्यक्तिगत कहानियां साझा करते हैं और नीचे यह संकेत देते हैं कि वे “अवसाद से निपट रहे हैं” या “ब्रेकअप से निपट रहे हैं”. शेट्टी के अनुसार, आम जनता के लिए, ये व्यक्ति अक्सर लाइसेंस प्राप्त थेरेपिस्टों की तुलना में अधिक सुलभ होते हैं.

नायर बताते हैं कि जब श्रोता समस्याओं के समाधान और सलाह देना शुरू करते हैं, तो वे एक नाजुक क्षेत्र में प्रवेश करते हैं. उन्होंने कहा, “अगर कोई व्यक्ति कन्फ़ेशन बॉक्स में एक पुजारी की तरह बैठा है और सुन रहा है, तो कोई समस्या नहीं है. लेकिन समस्याएं तब उत्पन्न होती हैं जब वे उस व्यक्ति के साथ बातचीत करना शुरू कर देते हैं और उत्तेजक शब्दों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं. कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि सुनना एक मानसिक स्वास्थ्य सेवा है.”

शेट्टी का कहना है कि अपने अभ्यास में, उनका सामना ऐसे कई रोगियों से होता है, जिन्हें ऐसे इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स के साथ नकारात्मक अनुभव हुआ है, जिसके कारण ये रोगी अपने दायरे में वापस आ जाते हैं. उदाहरण के लिए, बचपन में दुर्व्यवहार झेलने वाले एक मरीज ने अपने आघात को एक इन्फ्लुएंसर्स के साथ साझा किया, जिसने इंस्टाग्राम पर एक श्रोता होने का भी दावा किया था. उचित सहायता प्रदान करने के बजाय, इन्फ्लुएंसर्स खुद रोने लगा. जब मरीज ने इस बात को लेकर उससे बात की तो उसने अचानक से कॉल कट कर दी. 

शेट्टी कहते हैं, “उसके रोने से मरीज़ असहज हो गया. जब लोग ये बातें साझा करते हैं तो वे पहले से ही असहज हो जाते हैं. और यदि आप इस तरह प्रतिक्रिया देते हैं, तो आप उन्हें शर्मिंदा कर रहे हैं. जब आप कॉल काटते हैं, तो यह इस ओर इशारा करता है कि आप इससे निपट नहीं सकते. एक रोगी के लिए, इस अनुभव के बाद वह महीनों पिछे जा सकता है, जो उन्होंने हिम्मत जुटाई वह काफी टूट सकता है.” 

ट्रॉमा थेरेपिस्ट चंदेले को भी अपने अभ्यास में इसी तरह के कई मामलों का सामना करना पड़ा है. वह थेरेपिस्टों को कठोर प्रशिक्षण से गुजरने की आवश्यकता पर जोर देती है जिसे लगातार ताजा और पर्यवेक्षण किया जाता है.

योग्य लेकिन अप्रशिक्षित

सबसे आम निदानों में से एक जिसके लिए ग्राहक चंदेल के पास जाते हैं, वह व्यक्तित्व विकार है. हालांकि, वह अक्सर पाती है कि उनकी समस्याएं निदान की गई स्थिति के बजाय अंतर्निहित आघात से उत्पन्न होती हैं.

वह कहती है, “कई ग्राहक कहते हैं कि वे बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर की दवा ले रहे हैं. वास्तव में जो हो रहा था वह यह था कि उन्हे कुछ बड़ा धक्का लगा था और और उनका शरीर इसका सामना कर रहा था. दवा का पूरा उद्देश्य उपचार के लिए होता है, लेकिन इसके विपरीत हो रहा था.” 

चंदेले के अनुसार, भारत में कॉलेजों से लेकर मनोवैज्ञानिकों को तैयार करने की पूरी प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है. मनोविज्ञान की बढ़ती मांग को देखते हुए, कॉलेजों ने अधिक पाठ्यक्रम पेश करना और सीटों की संख्या बढ़ाना शुरू कर दिया है. भारत में, मानसिक बीमारियों के लिए मनोविज्ञान को मुख्य रूप से दो धाराओं में विभाजित किया गया है: नैदानिक मनोविज्ञान और परामर्श मनोविज्ञान. नैदानिक मनोवैज्ञानिक मानसिक बीमारियों का निदान करने और परीक्षण करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं. अक्सर अस्पतालों में इस तरह से ही काम होते हैं. दूसरी ओर, परामर्श मनोवैज्ञानिक अपना स्वयं का अभ्यास स्थापित कर सकते हैं या वरिष्ठ परामर्श मनोवैज्ञानिकों के अधीन काम कर सकते हैं और बातचीत या चिकित्सा सत्रों के माध्यम से रोगियों को परामर्श दे सकते हैं.

एक त्वरित ऑनलाइन सर्च से दंत चिकित्सा, होम्योपैथिक चिकित्सा में डिग्री और जीवन प्रशिक्षक या श्वास और एरोबिक तकनीकों में विशेषज्ञ के रूप में प्रमाणन वाले व्यक्तियों के प्रोफाइल का पता चलता है, जिन्होंने ओपेन यूनिवर्सिटी या किसी अनजान प्राइवेट कॉलेजों से मनोविज्ञान में एमए या एमएससी की डिग्री की है. वे अवसाद, अनिद्रा, भय, व्यसनों और अन्य गंभीर मानसिक बीमारियों का इलाज करने का दावा करते हैं. कुछ लोग वित्तीय, आध्यात्मिक और भावनात्मक कल्याण के साथ-साथ शैक्षणिक और करियर परामर्श में भी मदद की पेशकश करते हैं. फिर स्वयं-घोषित थेरेपिस्ट भी हैं जो परामर्श मनोविज्ञान में डिग्री होने का उल्लेख करते हैं, बिना उस विश्वविद्यालय या कॉलेज के बारे में बताए, जिसमें उन्होंने भाग पढ़ाई की है.

हालांकि, केवल थ्योरी सीखने और मनोविज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त करने से छात्र सक्षम परामर्शदाता बनने के लिए तैयार नहीं हो जाते हैं. साइकोलॉजी एसोसिएशन ऑफ इंडिया की सदस्य, विज्डम मैटर्स की परामर्शदाता और सह-संस्थापक शाल्मली गाडगिल का कहना है कि एक अच्छा परामर्शदाता बनने के लिए पेशेवरों के तहत कठोर प्रशिक्षण और निरंतर प्रैक्टिस की जरूरत होती है. 

चंदेले कहते हैं, “मनोविज्ञान का अभ्यास करना एक अलग खेल है. अधिकांश भारतीय विश्वविद्यालय और पाठ्यक्रम परामर्श मनोवैज्ञानिकों को अभ्यास के लिए सुसज्जित नहीं करते हैं. सैद्धांतिक समझ अभी भी पश्चिमी सिद्धांतों पर आधारित है जो कई साल पहले दिए गए थे. इसका कोई भारतीय संदर्भ नहीं है. इसके बावजूद, छात्र अपनी मास्टर डिग्री पूरी करने के तुरंत बाद अभ्यास शुरू कर देते हैं.”

व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए, स्नातक छात्रों को वरिष्ठ मनोवैज्ञानिकों की देखरेख और चिकित्सा से गुजरना पड़ता है. इसके अलावा, आघात या अवसाद के लिए चिकित्सा प्रदान करने के लिए विशेष पाठ्यक्रम आवश्यक हैं.

अमेरिका और ब्रिटेन में, परामर्शदाता मनोवैज्ञानिकों या थेरेपिस्टों को पंजीकृत होना चाहिए और वास्तविक रोगियों को देखने से पहले कठोर मॉक थेरेपी सत्रों और परीक्षणों के बाद अपना लाइसेंस प्राप्त करना चाहिए. अधिक संरचित स्वास्थ्य प्रणालियों वाले देशों में, डिग्री पाठ्यक्रम आमतौर पर लगभग चार साल तक चलते हैं, और परामर्शदाता के रूप में अभ्यास करने के लिए अल्पकालिक-डिप्लोमा या प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम अपर्याप्त हैं.

अमेरिका में, मानसिक बीमारियों को भी बीमा द्वारा कवर किया जाता है, जो बाजार से अयोग्य या अपंजीकृत थेरेपिस्टों को बाहर निकालने में मदद करता है. थिंक टैंक सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ, लॉ एंड पॉलिसी के निदेशक सौमित्र पठारे कहते हैं, ”अगर आप किसी अपंजीकृत थेरेपिस्ट के पास जाते हैं तो बीमा कंपनियां आपको भुगतान नहीं करेंगी. हालांकि, भारत में, जहां स्वास्थ्य देखभाल पर 80 प्रतिशत खर्च जेब से होता है, बीमा मॉडल काम नहीं करता है.” 

विशेषज्ञों के अनुसार, वर्षों के अनुभव पर विचार करने और प्रति सत्र उच्च शुल्क लेने का फॉर्मूला भी हमेशा गुणवत्ता की गारंटी नहीं देता है.

रोशिनी ने दिप्रिंट के साथ अपना अनुभव साझा किया, जहां वह जिस काउंसलर के पास गई थी वह विचलित दिख रहा था और “कमरे में चीजों के साथ खिलवाड़ करता रहा”. वह कहती हैं, “उसने पानी गिराया और फिर उसे साफ़ करना शुरू कर दिया. मैंने पूछा कि क्या मुझे बात करना बंद कर देना चाहिए लेकिन उसने मुझसे फिर भी बात जारी रखने को कहा. मैं व्यक्तिगत विवरण साझा कर रहा थी और वह मुझ पर अपना पूरा ध्यान भी नहीं दे पा रही थी.”

रोशिनी ने उस परामर्शदाता के साथ आगे नहीं जाने का निर्णय लिया. कुछ दिनों बाद, उसे एक टास्क मिला और सुझाव दिया गया कि विवाह उसकी सभी समस्याओं का समाधान होगा.

आशा की किरण

मनोवैज्ञानिक खराब चिकित्सा के हानिकारक प्रभावों के बारे में चिंता व्यक्त करते हैं. उनका कहना है कि एलाइड एंड हेल्थकेयर प्रोफेशन एक्ट 2021 उद्योग की सफाई की उम्मीद जगाता है.

अधिनियम में बिना पंजीकरण के प्रैक्टिस करने वाले व्यक्तियों के लिए 50,000 रुपये का जुर्माना निर्धारित है. वर्तमान में, किसी थेरेपिस्ट की चिकित्सा परिषद को रिपोर्ट करने की कोई व्यवस्था नहीं है, जैसा कि डॉक्टरों द्वारा चिकित्सा लापरवाही की रिपोर्ट करने के मामले में होता है.

पथारे कहते हैं, “संबद्ध स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर वर्तमान में अनियमित हैं. यह अधिनियम स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर पारिस्थितिकी तंत्र के गैर-डॉक्टर हिस्से के लिए कुछ विनियमन लाएगा. एक बार लागू होने के बाद, यह स्पष्ट रूप से बता देगा कि कौन थेरेपिस्ट बन सकता है, कौन नहीं.”

विनियमन और पंजीकरण की कमी का मतलब है कि देश में अभ्यास करने वाले परामर्शदाताओं की संख्या के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. वर्तमान में, केवल नैदानिक मनोवैज्ञानिक ही भारतीय पुनर्वास परिषद (आरसीआई) के तहत पंजीकृत हैं.

गाडगिल कहते हैं, “हमें निश्चित रूप से पुनर्गठन की आवश्यकता है. आरसीआई संरचना सीमित है और नृत्य चिकित्सा या कला चिकित्सा जैसे चिकित्सा के वैकल्पिक रूपों के लिए जिम्मेदार नहीं है.”

दिप्रिंट ने टिप्पणियों के लिए कॉल और ईमेल के माध्यम से स्वास्थ्य मंत्रालय से संपर्क किया, लेकिन अधिकारियों की ओर से इसको लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

2016 में मंत्रालय के अपने आकलन से पता चला कि भारत में 13 करोड़ लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता है. इसने मानसिक विकारों के इलाज में बड़े पैमाने पर अंतर को भी उजागर किया, जो विभिन्न विकारों में 70 प्रतिशत से लेकर 92 प्रतिशत तक है. उपचार का अंतर मानसिक बीमारी वाले उन व्यक्तियों के प्रतिशत को संदर्भित करता है जो उपचार प्राप्त नहीं कर रहे हैं.

जिम्मेदारी किसकी?

पठारे कहते हैं, परामर्श क्षेत्र में पंजीकरण की कमी के कारण, जिन पेशेवरों से वे चिकित्सा चाहते हैं, उनकी योग्यताओं को सत्यापित करने की जिम्मेदारी ग्राहकों पर आ जाती है. विशेषज्ञों का सुझाव है कि समीक्षाओं की जांच करना और संदर्भ मांगना प्रभावी फ़िल्टर के रूप में काम कर सकता है.

रिया जैसे व्यक्तियों के लिए, अपने साथियों के साथ थेरेपी के बारे में चर्चा करना अभी भी एक कलंक हो सकता है. हालांकि थेरेपी से पहले रिया को मदद मिली थी, लेकिन उसे अपनी मां को क्लिनिक में जाने की अनुमति देने के लिए मनाना पड़ा.

रिया ने कहा, “मैंने उसे आश्वासन दिया कि काउंसलर केवल मुझसे बात करेगा और कुछ नहीं करेगा. मैं अपनी पहचान छिपाने के लिए मास्क, धूप का चश्मा और टोपी पहनकर [सत्र में] गई थी.”

हालांकि, मोबाइल ऐप पर, वह किसी को बताए बिना मदद मांग सकती थी. उसे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि खुद को थेरेपिस्ट बताने वाला व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर लोगों की मदद करने के लिए अयोग्य हो सकता है.

रिया ने कहा, “उन्होंने सुझाव दिया कि मैं बेहतर महसूस करने के लिए दक्षिण भारतीय फिल्में देखूं.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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