बस्तर/हरियाणा: लंबे इंतज़ार के बाद हरियाणा में नवंबर 2022 में पंचायत चुनाव हुए, तब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा था कि लोकतंत्र पंचायतों से शुरू होता है. आज नई ई-टेंडर नीति को लेकर पंचायत प्रमुखों की खट्टर सरकार से जंग चल रही है.
राज्य के करनाल जिले के बस्तर गांव के प्रतिनिधियों ने दिसंबर 2022 में महत्वाकांक्षी योजना तैयार की थी, जल निकासी पाइपलाइनों को तत्काल स्थापित करने की आवश्यकता थी, श्मशान घाटों के लिए चारदीवारी का निर्माण किया जाना था, सरकारी स्कूलों को चमकाना था और नए सामुदायिक केंद्र खोले जाने थे. कुछ परिवार अपने पेंशन और राशन कार्ड बनवाने के लिए भी कतार में लगे थे.
लेकिन, अब सारी योजनाएं अधर में लटकी हुई हैं क्योंकि खट्टर ग्राम पंचायतों से भ्रष्टाचार खत्म करना चाहते हैं. बड़े पैमाने पर सार्वजनिक कार्यों के लिए ठेकेदारों की ई-टेंडरिंग उनका नया मंत्र है. पुरानी संरक्षण प्रणाली का पालन करने वाले और ज्ञात ठेकेदारों के साथ काम करने वाले ग्राम प्रधानों का कहना है कि उनके पदों का अब कोई वास्तविक अर्थ नहीं रह गया है.
4 मार्च को पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने से पहले पंचकूला-चंडीगढ़ सीमा पर हरियाणा के सरपंच एसोसिएशन (एसएएच) के अध्यक्ष रणबीर सिंह समैन ने कहा, “एक इंजीनियर हमें बताएगा हमारे काम कैसे किए जाएं? वो हमारी स्वायत्तता पर हमला करके और हमारे संवैधानिक अधिकारों को छीनकर हमारा मज़ाक बना रहे हैं एक गांव में कितनी जातियां होती हैं और सरपंच से बेहतर कौन जानता है कि गली या नाली कहां बनानी हैं?”
ई-टेंडर की बारी
खट्टर ने पंचायती राज संस्था (पीआरआई) अधिनियम के तहत नियम 134 में संशोधन के साथ फरवरी 2021 में ई-निविदा नीति पेश की लेकिन उस समय किसी ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया क्योंकि पंचायत का कार्यकाल उसी महीने समाप्त हो गया था और कोविड-19 महामारी और महिलाओं और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण से संबंधित अन्य कानूनी पेचीदगियों के कारण कोई चुनाव नज़र नहीं आ रहा था.
जवाबदेही, पारदर्शिता और गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की दिशा में काम करने के नीति के दावों को दो महीने पहले तक नजरअंदाज किया गया था, जब नए सरपंच सत्ता में चुने गए थे वो खट्टर सरकार द्वारा उनसे किए गए वादे के अनुसार धनराशि देने के लिए तैयार थे आखिरकार, मुख्यमंत्री ने “सर्वसम्मति से निर्वाचित प्रतिनिधियों” के लिए 300 करोड़ रुपये और विकास कार्यों के लिए पीआरआई के खातों में 1,100 करोड़ रुपये के हस्तांतरण की घोषणा की.
विडंबना यह है कि इन घोषणाओं को करते हुए, 12 जनवरी को सीएम कार्यालय से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में ई-टेंडरिंग का कोई उल्लेख नहीं किया गया था, इसमें लिखा था, “यह निर्णय लिया गया है कि पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद हर साल अपना खुद का बजट तैयार कर सकेंगे और अपने क्षेत्र के विकास के लिए स्वयं धन का उपयोग कर सकेंगे सरकार इस काम में दखल नहीं देगी.”
बाद में, जब सरपंचों ने योजना बनाना शुरू किया, तो उन्हें पता चला कि ई-निविदा से उनकी खर्च करने की शक्ति कितनी तेजी से सीमित हो जाएगी, नीति के तहत एक सरपंच एक परियोजना को तभी क्रियान्वित कर सकता है, जब उसकी लागत 2 लाख रुपये से कम हो इससे अधिक लागत वाली कोई भी परियोजना ई-टेंडरिंग प्रक्रिया के माध्यम से की जाएगी.
बस्तर गांव के सरपंच सुरेश कुमार फौजी ने तीन महीने में नीति का समर्थन करने से लेकर इसका विरोध करने तक के अपने विचार बदल दिए.
फौजी ने दिप्रिंट को बताया, “शुरू में, मैंने नीति का समर्थन किया लेकिन जब मैंने अपने गांव के लिए तीन ई-टेंडर जारी किए और समस्याओं का सामना किया, तो मैंने अपना रुख बदल लिया.”
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असंतोष
जनवरी से लेकर पूरे फरवरी तक, सरपंचों ने खट्टर सरकार के खिलाफ हथियार उठाने के लिए ब्लॉक और जिला स्तर पर बैठकें आयोजित कीं. गांव-गांव नागरिकों को लामबंद करना शुरू कर दिया और विरोध पूरे हरियाणा में फैल गया. ग्रामीण हरियाणा में असंतोष की सर्दी वसंत ऋतु में एक बड़े पैमाने पर आंदोलन में बदल गई, 1 मार्च को फौजी सहित सरपंचों के निकाय ने गुस्से में आकर विरोध करने के लिए चंडीगढ़ में सीएम आवास की ओर कूच किया.“कमीशन खोरी” हरियाणा सरकार और सरपंच निकाय दोनों के लिए जुमला बन गया – ई-निविदा नीति के माध्यम से इसे खत्म करना चाहते हैं और दूसरे का कहना है कि इसे पहल के माध्यम से पेश किया जाएगा.
पुलिस ने जवाब में लाठीचार्ज किया, एसएएच से जुड़े 1,000 से अधिक सरपंचों ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया, जो पंचकुला-चंडीगढ़ सीमा पर फैल गया उन्हें जबरन बेदखल कर दिया गया; कुछ को अदालत के आदेश के बाद हिरासत में लिया गया.
सरपंच अपने गांव लौट गए हैं, लेकिन कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के समर्थन से उन्होंने संकल्प लिया है कि जब तक बीजेपी सरकार ई-टेंडरिंग नीति वापस नहीं ले लेती, तब तक वे अपना आंदोलन नहीं छोड़ेंगे 9 मार्च की घटनाएं भविष्य की कार्रवाई तय करेंगी – यह वह समय है जब खट्टर और एसएएच के प्रतिनिधि एक संवाद शुरू करेंगे.
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सत्ता का लोप?
फौजी के घर से कुछ मीटर की दूरी पर ट्रैक्टर और जेसीबी गांव के एक प्रमुख तालाब की खुदाई कर रहे हैं लेकिन यह तालाब उन ग्रामीणों के लिए सबसे कम प्राथमिकता वाला है, जो चाहते हैं कि फौजी पहले खराब जल निकासी व्यवस्था से निपटे.
फौजी ने कहा, “यह परियोजना 2 लाख रुपये के बजट के अंतर्गत है, इसलिए मैं इसे आगे बढ़ा सकता हूं,” लेकिन वो जानते हैं कि इससे उन्हें वोट देकर सत्ता में लाने वाले ग्रामीणों से कोई लाभ नहीं होगा.
फौजी बताते हैं, “दो प्रमुख जल निकासी पाइपलाइन समय की जरूरत हैं, लेकिन मैं परियोजना शुरू नहीं कर सकता क्योंकि वे ई-निविदा नीति में फंस गए हैं.” गांव में पहले तीन परियोजनाओं को पूरा करने में विफल रहने पर सरपंच को फिर से ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया शुरू करनी पड़ी.
कुरुक्षेत्र के दाऊ माजरा गांव में बलजीत कौर ने अपनी सारी बचत अपने चुनाव अभियान में “निवेश” कर दी और ये जुआ रंग लाया – उन्होंने प्रतिष्ठित सरपंच सीट जीती, लेकिन, फौजी की तरह, वो उदास, मोहभंग और असंतुष्ट हैं- ई-टेंडर नीति ने ग्राम प्रधानों के रूप में उनकी भूमिकाओं को कमजोर कर दिया है.
वे कहती हैं, “हमारे पास यह तय करने की शक्ति नहीं है कि किस गली को सड़कों की ज़रूरत है और किसे जल निकासी की ज़रूरत है.”
एसएएच का कहना है कि ई-निविदा नीति ग्रामीण संस्कृति के खिलाफ एक युद्ध है जो उनके पारंपरिक तरीकों को अस्थिर कर देगी पंचकुला विरोध में मुख्य मांगों में से एक थी “गांव देहात बचाओ मुहिम.”
ग्राम प्रधान एक अन्य मुद्दे के बारे में आशंकित हैं – एक राज्य सरकार द्वारा नियुक्त इंजीनियर यह तय करता है कि उन्हें परियोजनाओं के लिए धन कहां और कैसे निर्देशित करना चाहिए समैन ने सत्ता के केंद्रीकरण के रूप में इसकी निंदा की द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में, उन्होंने बताया कि इस नीति के साथ, सरकार को “लगभग 6,200 ग्राम पंचायतों की संपूर्ण निविदा प्रणाली को नियंत्रित करने के लिए राज्य के 22 जिलों के 22 कार्यकारी इंजीनियरों को विश्वास में लेने की आवश्यकता है”
एक अन्य प्रदर्शनकारी ने पीआरआई के लिए खट्टर द्वारा किए गए 1,100 करोड़ रुपये के वादे पर नज़र रखने के लिए सरकार को “चोर” कहा.
जींद जिले के एक ग्राम प्रधान सुधीर बुआना का आरोप है, “अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें अपने राजनीतिक अभियान के लिए फंड की जरूरत है, इसलिए उन्हें अपने लोगों को विकास परियोजनाओं में लाने की जरूरत है”
हालांकि, हरियाणा के विकास एवं पंचायत मंत्री देवेंद्र सिंह बबली इन आरोपों को ‘निराधार’ बताते हैं. उनका कहना है कि सरकार ने एक ऑनलाइन पोर्टल बनाया है जहां ग्राम प्रधानों को विकास परियोजनाओं का विवरण अपलोड करना होगा.
उनका कहना है कि विभिन्न गांवों में 2 लाख रुपये से कम लागत के लगभग 2,900 विकास कार्य पहले ही शुरू किए जा चुके हैं.
उन्होंने कहा, “लगभग 600 ठेकेदारों को पोर्टल पर पंजीकृत किया गया है हमने काम में तेजी लाने के लिए 55 दिन की समयसीमा को घटाकर कुल 21 दिन कर दिया है.”
तब बनाम अब
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, मेवा सिंह (60), जिन्होंने 2016 और 2021 के बीच बस्तर गांव के सरपंच के रूप में कार्य किया, इन विरोधों को एक तमाशा कहते हैं उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एक पानी की टंकी, बैंक्वेट हॉल, एक पार्क और पंचायत भवन का निर्माण किया.
“पहले, ग्राम प्रधान कम से कम विकास कार्यों में 30-40 प्रतिशत कमीशन लेता था इसलिए, अगर यह 20 लाख रुपये की परियोजना है, तो वह 8-10 लाख रुपये खाएंगे,” वह कहते हैं, विरोध को ग्रामीणों के बीच कोई समर्थन नहीं है
पुरानी व्यवस्था में ऐसी किसी जवाबदेही या पारदर्शिता की आवश्यकता नहीं थी सरपंच परियोजनाओं के लिए मजदूरों और ठेकेदारों को चेरी से चुनते थे- कोई वस्तुनिष्ठ मेट्रिक्स नहीं थे
उन्होंने कहा, “अगर मुझे ग्राम पंचायतों में बैंक्वेट हॉल बनाना होता, तो मैं अपने गांव के मजदूरों को रोज़गार देता मैं अपने परिचित ठेकेदार को लाऊंगा सर्वश्रेष्ठ होने के लिए कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी.”
जबकि ई-निविदा नीति स्थानीय श्रमिकों की नौकरियां नहीं लेगी, यह वस्तुनिष्ठ और प्रतिस्पर्धी मानकों को स्थापित करेगी सरपंचों का कहना है कि प्रक्रिया के बड़े पैमाने पर डिजिटल होने से उनकी शक्ति और अधिकार प्रभावित होंगे.
नई ई-टेंडर नीति एक खुला और निष्पक्ष खेल होगा जिसमें कोई भी भाग ले सकता है ई-टेंडरिंग प्रक्रिया में एक ओपन-बिड प्लेटफॉर्म होगा जहां कोई भी पंजीकृत उपयोगकर्ता भाग ले सकता है; सबसे अच्छा प्रस्ताव परियोजना के अधिकारों को जीतेगा.
पूर्व में करनाल जिले में कई सरपंचों के साथ काम कर चुके एक ठेकेदार बजिंदर सिंह नई व्यवस्था से भ्रमित हैं, लेकिन कहते हैं कि इसका मतलब काम का नुकसान नहीं है.
वे आगे कहते हैं, “हम अभी भी पोर्टल पर खुद को पंजीकृत कर सकते हैं और पंचायत में काम पा सकते हैं यह उस सरपंच के लिए नुकसान है जिसका कमीशन काटा जा रहा है.”
अजराहेड़ी गांव में आज भी कार्यालयों और भवनों की दीवारों पर चुनावी पोस्टर चिपकाए गए हैं प्रचारकों की हाथ जोड़कर वोट मांगने की रंगीन तस्वीरें महीनों से फीकी पड़ी हैं और आस-पास के दुर्गंधयुक्त नाले बढ़ते तापमान के रूप में शक्तिशाली हो गए हैं.
(संपादनः फाल्गुनी शर्मा)
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