scorecardresearch
Tuesday, 7 May, 2024
होमफीचरकचरा बीनने में न बीते जीवन और नशे के लती न बन जाए बच्चे, दिल्ली पुलिस ने शुरू की 'चौकी में पाठशाला'

कचरा बीनने में न बीते जीवन और नशे के लती न बन जाए बच्चे, दिल्ली पुलिस ने शुरू की ‘चौकी में पाठशाला’

दिल्ली के सीमापुरी इलाके की दो पुलिस चौकी की जगहों पर कचरा बीनने वाले और इधर उधर घूमने वाले बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. सीमापुरी के ई और एफ ब्लॉक में खोले गए इन स्कूल का नाम 'चौकी में पाठशाला' रखा गया है.

Text Size:

“मैं पढ़-लिखकर एक पुलिस ऑफिसर बनूंगा और अपने देश की रक्षा करूंगा. जब मैं पुलिस वाला बन जाऊंगा तो मैं सीमापुरी से नशा खत्म कर दूंगा. मुझे बड़े होकर विनय यादव सर जैसा बनना है और अच्छा काम करना है.”

दिल्ली के सीमापुरी इलाके में दो पुलिस चौकी में कूड़ा चुनने वाले और पूरे दिन इधर उधर भटकने वाले बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. सीमापुरी के ई और एफ ब्लॉक में खोले गए इन दोनों स्कूलों का नाम ‘चौकी में पाठशाला’ रखा गया है क्योंकि इलाके के पुलिस ने स्कूल न जाने वाले बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए चौकी की जगह पर इन बच्चों के लिए स्कूल चलाया रहा है.

ये स्कूल बच्चों की पसंद इसलिए भी है क्योंकि यहां पुलिस वाले अंकल डंडे नहीं मारते हैं बल्कि इन नौनिहालों की मांग भी पूरी करते हैं..पिछले दिनों जब सात साल के अशरफ ने पुलिस वाले अंकल से आइस्क्रीम की डिमांड की तो देखते ही देखते पूरी क्लास के बच्चों को मनपसंद आइस्क्रीम खिलाई गई.

बच्चों की फरमाइशें यहीं खत्म नहीं होती हैं अच्छे अच्छे कपड़ों से लेकर, बढ़िया चप्पल और पंखे तक ये बच्चे अपने पुलिस वाले अंकल से मांग करते हैं और उनकी मांगे पूरी भी की जाती हैं.

सीमापुरी पुलिस थाना के एसएचओ विनय यादव कहते हैं, “हमारे इलाके में किसी भी प्रकार की कोई ओपन लाइब्रेरी नहीं है, चौकी में पाठशाला खुलने से यहां कभी भी कोई भी बच्चा आकर पढ़ सकता है. किसी भी प्रकार के एग्जाम की तैयारी कर सकता है. वो आगे बताते हैं कि चौकी में स्कूल जाने वाले बच्चों के साथ साथ ऐसे भी बच्चे आते है जो स्कूल नहीं जाते हैं और ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां टीचर्स भी हैं.”

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

एसएचओ विनय कहते हैं इलाके में स्कूल होने के बावजूद इन पाठशालाओं को खुलवाने का मकसद यह है कि घर के पास होने के कारण बच्चे यहां कभी भी आ जा सकते हैं और अपनी पढ़ाई कर सकते हैं. उन्होंने कहा एग्जाम की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए भी यह एक बेहतर जगह है जहां वो अपने समय के मुताबिक आकर पढ़ाई और तैयारी कर सकते है.

पाठशाला से जुड़े जिजीविषा एनजीओ की फाउंडर और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पूजा शर्मा कहती हैं ‘चौकी में पाठशाला’ खुलने में दिल्ली पुलिस और खासतौर पर विनय यादव का बहुत बड़ा हाथ है क्योंकि उन्हीं की वजह से ये जगह मिली है जहां आज बच्चें पढ़ रहे हैं.

विनय यादव अक्सर इन बच्चों से मिलने जाते हैं और उस वक़्त उनके हाथ किताबो, कपड़ों, कभी टॉफी तो कभी आइसक्रीम से भरे हुए होते हैं. विनय यादव अपनी तरह से इन बच्चों को गाइड करते हैं और यहां तक की यहां पढ़ने वाले हर बच्चे का नाम तक उन्हें याद हैं.

बता दें कि एक साल से कम समय में ही इस स्कूल में 200 से अधिक बच्चे पढ़ने आने लगे हैं वहीं आस पास के निजी स्कूल भी बच्चों की पढ़ाई में मदद कर रहे हैं. इन स्कूलों ने करीब 10,000 से अधिक किताबें चौकी की पाठशाला को दी हैं वहीं बच्चों के बैठने के लिए बेंच भी दी हैं.


यह भी पढ़ें: ‘होमस्कूलिंग से लेकर कई एंट्री-एग्जिट प्वाइंट्स तक’, UGC के नए क्रेडिट फ्रेमवर्क में हुए कई रिफॉर्म


रैग-पिकर्स और नशेड़ियों का इलाका

22 वर्षीय रिहाना एफ ब्लॉक में स्तिथ चौकी की पाठशाला में बच्चों को पढ़ाती हैं. दिप्रिंट से बात-चीत में रुबीना ने कहा कि सीमापुरी रैग-पिकर्स और नशेड़ियों का इलाका माना जाता है और बच्चे अपने आस पास जैसा देखते हैं वो वैसा ही सीखने लगते हैं. इन पाठशालाओं के खुलने के बाद से अब बच्चे यहां आने लगे हैं और हम उन्हें पढ़ाते हैं.

विनय यादव कहते हैं कि हमारे इस इनिशिएटिव से अचानक से कोई बड़ा बदलाव तो नहीं आएगा लेकिन हां हमारे और कुछ एनजीओ द्वारा गाइड किये जाने के बाद, कई बच्चों के नशे के लत से पीछा छूटा है. उन्होंने बताया कि पुलिस द्वारा किये गए इस पहल के बाद इलाके के लोगों के बीच पुलिस के प्रति विश्वास बढ़ा हैं. अब लोग हमसे अपनी परेशानियों और दिक्कतों के बारे में खुलकर बात करने लगे है.

12 वर्षीय राशिद की पढ़ाई पांचवी क्लास के बाद छूट गई और अब वो पढ़ने के लिए चौकी की पाठशाला में आता है. राशिद ने कहा, “पांचवीं के बाद मुझे दूसरे स्कूल में जाना था लेकिन मुझे टीसी नहीं मिली. मेरे पापा गांव में रहते हैं, मम्मी ने तीन-चार बार टीसी के लिए चक्कर लगाया फिर छोड़ दिया.”

पूजा शर्मा कहती हैं, “हमने यहां आने वाले ऐसे बहुत सारे बच्चों का एडमिशन स्कूल में कराया है जो स्कूल नहीं जाते या फिर जिनकी पढ़ाई किसी कारण से छूट गयी है. हम जल्द ही राशिद का भी एडमिशन कराने वाले है.”

पूजा आगे कहती हैं कि कई बार मां पाप अपने साथ बच्चों को भी कूड़ा बीनने के लिए ले जाते हैं, लेकिन अब घर के पास स्कूल खुलने के बाद वो इन्हें पढ़ने के लिए यहां भेज देते है.

चौकी में पाठशाला | फोटो: अलमिना खातून | दिप्रिंट

पढ़ाई भी एक्टिविटी भी

रिहाना ने बताया कि ज्यादातर बच्चे सुबह और स्कूल की छुट्टी के बाद यहां पढ़ने आते हैं और यहां पहली से लेकर आठवीं क्लास तक के बच्चे पढ़ने आते हैं.

एफ ब्लॉक के पाठशाला में अभी लगभग 150 बच्चे पढ़ने आते हैं वहीं ई ब्लॉक में सुबह से शाम तक लगभग 80 से 90 बच्चे पढ़ने आते हैं. पाठशाला में बच्चों को गर्मी से बचाने के लिए पंखे भी लगाए गए हैं साथ ही उनके बैठने के लिए बेंच भी लगवाई गई हैं. दोनों ही पाठशालाओं में बच्चों के पढ़ने के लिए बुक्स भी रखवाई गई हैं.

चौकी की पाठशाला में बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ अलग अलग एक्टिविटी भी करवाई जाती है. उन्हें क्लास के बीच बीच में गेम्स भी खिलवाया जाता है.

‘चौकी में पाठशाला’ में गेम्स खेलते बच्चे | फोटो: अलमिना खातून | दिप्रिंट

पाठशाला में पढ़ रही आफरीन कहती हैं, “मुझे यहां आकर बहुत अच्छा लगता है. यहां की सारी मैडम बहुत अच्छी हैं. हमें अच्छे से पढ़ाती है और गेम्स भी खिलाती है.”

महिला पंचायत

विनय यादव ने दिप्रिंट से बात-चीत में बताया कि पाठशाला का उपयोग केवल बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि यहां की महिलाएं भी इस जगह का इस्तेमाल ‘महिला पंचायत’ लगाने के लिए करती है. उन्होंने कहा, “महिलाएं यहां पंचायत लगा कर विभिन्न समस्याओं का समाधान निकालती है साथ ही हायजीन एवं अन्य विषयों पर चर्चा भी करती हैं.”

उन्होंने आगे कहा कि अभी ये पाठशालाएं केवल दो ब्लॉक पर ही लेकिन यदि जरुरत पड़ी और जगह मिल गयी तो हम इस पहल को आगे भी जारी रखेंगे.

रिहाना कहती हैं कि सीमा पुरी इलाके में झपटमार बहुत हैं साथ ही बहुत लोग नशा भी करते हैं जिसकी वजह से यहां के बच्चे बहुत जल्दी बिगड़ जाते है और नशा करने लगते है. यहां आने वाले कई बच्चे स्कूल तो जाते हैं लेकिन उन्हें अपना नाम तक लिखना नहीं आता है इसलिए हम उन्हें सबसे पहले बेसिक चीज़ें लिखना और पढ़ना सिखाते है.

सीमापुरी इलाके में कई एनजीओ हैं जो सफाई- सुरक्षा और बच्चों के वेलफेयर के लिए काम कर रहे हैं और यही एनजीओ इन पाठशालाओं को भी चला रहे है. एनजीओ द्वारा इन बच्चो को किताबे, टिफ़िन, बैग भी दिए जाते है. पूजा बताती है कि इन बच्चों से फीस के तौर पर 50 रुपये लिए जाते है क्योंकि एनजीओ के पास फंड की कमी है और थोड़े पैसे लेने के बाद मां-पाप भी बच्चों को स्कूल भेज ही देते है.


यह भी पढ़ें: भुलाए गए हीरोज की कहानियां, मातृभाषा पर जोर और गणित का फोबिया – NCF ड्राफ्ट में बच्चों के लिए क्या है


share & View comments