कटरा: स्वाति कुमारी कटरा में अपने होटल के कमरे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कश्मीर के लिए पहली वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाने का लाइव स्ट्रीम देख रही थीं. यह उनके हनीमून का पहला पड़ाव था. कुछ ही मिनटों में उन्होंने अपना मन बना लिया.
उन्होंने अपने पति शुभम से कहा, “चलो टिकट बुक करते हैं. हमें जाना है.”
7 जून की दोपहर तक, कुमारी और शुभम चमचमाती, भगवा रंग की ट्रेन में सवार हो गए — वह घाटी की यात्रा करने वाले पहले यात्रियों में से थे.
बिहार की रहने वाली कुमारी ने कहा, “मैं बहुत उत्साहित हूं. अब, यह हनीमून जैसा लग रहा है और कश्मीर करीब लग रहा है.” जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ रही थी, उद्घाटन के दिन से सूखे, मुरझाए हुए गेंदे के फूलों की मालाएं हवा में धीरे-धीरे हिल रही थीं. कुमारी खिड़की से बाहर झांकती रहीं, हरे-भरे नज़ारों को देखती रहीं.
दंपति का हनीमून प्रोग्राम आसान था: सबसे पहले कटरा में माता वैष्णो देवी मंदिर जाना, फिर अमृतसर जाना, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के वीडियो ने उनके लिए सब कुछ बदल दिया.
कुमारी ने मुस्कुराते हुए कहा, “जब मोदी जी भारतीय ध्वज लहराते हुए चेनाब पुल पर चले, तो मुझे तसल्ली हुई. इससे मुझे आत्मविश्वास मिला.”

इस ट्रेन का उद्घाटन पहलगाम आतंकी हमले के एक महीने बाद हुआ है, जिसमें 26 पर्यटक मारे गए थे. इससे दहशत फैल गई और बड़े पैमाने पर यात्राएं रद्द कर दी गईं, जिससे घाटी इस मौसम में वीरान हो गई, लेकिन यहां कुमारी ट्रेन में थीं — उनकी उपस्थिति सामान्य स्थिति के लिए एक शांत वोट थी.
उद्घाटन के कुछ घंटों बाद, कश्मीर जाने वाली वंदे भारत एक्सप्रेस की सभी 572 सीटें बिक गईं. अधिकांश यात्री वैष्णो देवी मंदिर जाने वाले टूरिस्ट थे जो अब घाटी की यात्रा पर निकल रहे थे. कुछ जम्मू क्षेत्र के निवासी थे —उधमपुर, कटरा और जम्मू.
272 किलोमीटर लंबी उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लाइन अपनी पहली परिकल्पना के 42 साल बाद पूरी हुई. जम्मू और उधमपुर के बीच पहला 55 किलोमीटर का हिस्सा अप्रैल 2005 में पूरा हुआ था, लेकिन पूरे मार्ग को चालू करने में दो दशक और लग गए. यह उस इलाके से होकर गुज़रता है जिसने कश्मीर में तीन दशकों के संघर्ष को परिभाषित किया है और रेल कॉरिडोर के संघर्ष की कहानी को सुविधा और कनेक्शन में बदल दिया है.
कश्मीर यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और राजनीति विज्ञानी नूर बाबा ने कहा, “न केवल टूरिस्ट, दुकानदारों, फल बेचने वालों और कश्मीर के आम लोगों को इस रेल मार्ग से फायदा होगा. यह रणनीतिक महत्व भी रखता है क्योंकि यह एलएसी और एलओसी के सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना को संचालन में सहायता करेगा, जहां हाल के वर्षों में गतिविधि बढ़ी है. कश्मीरी लंबे समय से इस सुविधा का इंतज़ार कर रहे थे.”

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हर कोई व्लॉगर
तीन घंटे की यात्रा के दौरान यात्रियों के बीच भाईचारे की भावना थी, सभी घाटी में पर्यटन को बचाए रखने के एक बड़े उद्देश्य से एकजुट थे. ट्रेन अंदर से बाकी वंदे भारत जैसी ही दिख रही थी, जिसमें इसकी खास नीली सीटें थीं. जो अलग था वह था अंदर का माहौल. अजनबी लोग सबसे अच्छे दोस्त बन गए, पहले यात्री होने की साझा भावना से जुड़े. जब ट्रेन पहाड़ों और घाटियों से गुज़री तो उन्होंने वाह-वाह की और दुनिया के सबसे ऊंचे रेलवे आर्क — चिनाब पुल को देखकर खुशी मनाई.
जैसे ही ट्रेन पुल के पास पहुंची, स्पीकर से एक आवाज़ गूंजी, “आप चिनाब पुल के पास पहुंच रहे हैं”. आर्च ब्रिज दुनिया का सबसे ऊंचा है, जो नदी के तल से 359 मीटर ऊपर है — यहां तक कि एफिल टॉवर से भी ऊंचा. नीचे, तेज़ हवा वाली चिनाब नदी सीमा पार पाकिस्तान में बहती है.
चेनाब पुल पर आगे बढ़ने पर ट्रेन की गति धीमी हो गई. गलियारे और बीच की सीटों पर बैठे यात्री तुरंत उठ खड़े हुए, ऊंची आवाज में “वाह” कहते हुए और फोटो और वीडियो लेने के लिए खिड़कियों की ओर भागे. यहां तक कि वेटर और हाउसकीपिंग स्टाफ भी पुल को देखने के लिए खिड़की के पास खड़े थे. उन कुछ मिनटों के लिए, हर कोई व्लॉगर बन गया.

50-वर्षीय राजेश जोशी ने अपने फोन पर पुल का वीडियो बनाते हुए कहा, “यह मोदी जी की वजह से संभव हुआ है.”
पंजाब के पठानकोट के निवासी जोशी छह दोस्तों के साथ सिर्फ चेनाब पुल देखने आए थे.
जोशी ने कहा, “उद्घाटन के ठीक बाद, मैंने और मेरे दोस्तों ने पुल देखने के लिए टिकट बुक कर लिए. हम कश्मीर में एक रात रुकेंगे, शिकारा की सवारी करेंगे और अगले दिन दोपहर को वापस लौटेंगे.”
पुल पार करते ही यात्री “भारत माता की जय”, “वंदे मातरम” और “जय शेरा वाली दा” के नारे लगाने लगे.
उत्साह ने माहौल को ठंडा कर दिया, बातें होने लगी. एक यात्री ने कहा, “देखिए पहाड़, लोग यहां कैसे रहते हैं?” दूसरे ने कहा, “हर दो मिनट के बाद एक सुरंग है. मैं पहाड़ों को कैप्चर भी नहीं कर पा रहा हूं.” श्रीनगर पहुंचने के लिए ट्रेन को 36 सुरंगों को पार करना पड़ता है.
उनकी बातचीत में सिर्फ वेटरों ने ही बाधा डाली जो उन्हें खाना और पानी दे रहे थे.
गुप्त यात्रा
कुमारी की कश्मीर यात्रा टिकट रद्द होने, परिवार के विरोध और पहलगाम आतंकी हमले की खबरों से प्रभावित हुई.
11 अप्रैल को कुमारी और उनके पति शुभम कुमार ने कश्मीर के लिए टिकट बुक किए — कटरा तक ट्रेन से यात्रा और फिर घाटी तक सड़क मार्ग से यात्रा. बिहार के मुंगेर जिले में सरकारी प्राइमरी स्कूल की टीचर कुमारी की मुलाकात जनवरी में एक मैट्रिमोनियल साइट पर हुई, जो लगभग 200 किलोमीटर दूर भागलपुर में एक हाई स्कूल टीचर हैं. दोनों की मुलाकात लगभग तुरंत ही हो गई. दो महीने के भीतर ही दोनों की शादी हो गई.
कुमारी ने शुभम का हाथ पकड़ते हुए कहा, “शादी की तारीख स्कूल की गर्मियों की छुट्टियों के आधार पर तय की गई थी — ताकि हम इस छुट्टी में हनीमून मनाने जा सकें.” लंबी दूरी के रिश्ते में होने के कारण, हनीमून ही एकमात्र ऐसा समय था जब वह लंबे समय तक साथ रह सकते थे.

और कश्मीर ही वह जगह है जहां वह जाने की योजना बना रहे थे. ट्रेन टिकट कन्फर्म होने के बाद शुभम ने एक टूर ऑपरेटर के साथ हनीमून पैकेज बुक किया. बुकिंग के तुरंत बाद, कुमारी और शुभम ने इंस्टाग्राम पर कश्मीर की रील शेयर करते हुए अपना पूरा दिन बिताया.
ऐसे ही एक वीडियो में अभिनेता सुनील शेट्टी कह रहे थे, “हमें उन्हें दिखाना चाहिए. कश्मीर हमारा था और हमेशा हमारा रहेगा.”
लेकिन बुकिंग के 11 दिन बाद ही खबर आई: आतंकवादियों ने पहलगाम की बैसरन घाटी में पर्यटकों पर हमला किया था। कुमारी और शुभम टूट गए.
शुभम ने ट्रेन में चाय बनाते हुए कहा, “उन्होंने जोड़ों पर हमला किया था. यह हम पर भी हो सकता था. ऐसा लगा जैसे हमारा सपना टूट गया.”
शुभम ने ज़्यादा इंतज़ार नहीं किया. उन्होंने उसी रात ट्रैवल एजेंसी को लिखा, “माफ कीजिए, मैं नहीं आ सकता. कृपया हमारी बुकिंग रद्द कर दीजिए.”
नई हनीमून प्लानिंग में कटरा, अमृतसर, दिल्ली और आगरा शामिल थे. कश्मीर को हटा दिया गया.
लेकिन श्रीनगर के लिए ट्रेन की खबर ने सब कुछ बदल दिया. इससे सुविधा और घाटी से दूरी घटने का एहसास हुआ. वंदे भारत एक्सप्रेस में टिकट बुक करने के बाद शुभम ने टूर कंपनी को लिखा, “हम आ रहे हैं. हमें होटल के ऑप्शन भेजिए.”
इस जोड़े के कार्यक्रम में पहलगाम, सोनमर्ग और डल झील शामिल हैं, लेकिन उनके परिवारों को इसकी जानकारी नहीं है.
कुमारी ने कहा, “अगर हमारे परिवारों को पता चल गया कि हम कश्मीर जा रहे हैं. तो वह घबराकर हमें वापस बुला लेंगे.” उनके माथे पर सिंदूर फैल रहा था.
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सावधानी बरकरार
श्रीनगर के लिए वंदे भारत का टिकट बुक करने से पहले 43 साल के नरेंद्र कुमार ने यूट्यूब पर घंटों बिताए. उनकी एक खोज थी: “पहलगाम हमले के बाद क्या कश्मीर में घूमना सुरक्षित है?”
आखिरकार 6 जून की रात को उन्होंने अपने पांच सदस्यीय परिवार के लिए टिकट बुक किए.
बिहार के मूल निवासी कुमार ने कहा, “हम डरे हुए थे, लेकिन यूट्यूब वीडियो देखने और कटरा में कुछ स्थानीय लोगों से बात करने के बाद, मुझे राहत मिली. रेलवे स्टेशन पर सुरक्षा व्यवस्था काफी मज़बूत थी.”

कटरा से ट्रेन के रवाना होते ही कुमार की पत्नी पिंकी ने हाथ जोड़कर कुछ मंत्र पढ़े.
दंपति खुद को ट्रेवलर कहते हैं. वह मेघालय, शिलांग और शिमला की यात्रा कर चुके हैं, लेकिन यह उनका कश्मीर में पहला दौरा था. हालांकि, डर की भावना उन्हें ज़्यादा देर तक नहीं रहने दे रही है.
पिंकी ने अपने फोन से पहाड़ की तस्वीरें क्लिक करते हुए कहा, “हम सिर्फ दो दिन रुकेंगे और सिर्फ श्रीनगर में ही जगहों पर जाएंगे. हम कहीं दूर नहीं जाना चाहते.”
तीन लाइन बाद, छत्तीसगढ़ के रायपुर से योगेश वर्मा अपने माता-पिता और बहन के साथ बैठे हैं, उनकी नज़रें गुज़रते हुए नज़ारे पर टिकी हैं. पिछले दो महीनों से वह वंदे भारत एक्सप्रेस के उद्घाटन के इंतज़ार में ख़बरों पर नज़र रखे हुए थे.
उधमपुर-श्रीनगर-बारामुल्ला रेल लिंक का उद्घाटन पहले 19 अप्रैल को होना था, लेकिन खराब मौसम के कारण इसमें देरी हुई. कुछ दिनों बाद, पहलगाम हमले के कारण इसे फिर से स्थगित करना पड़ा. वर्मा दूसरे यात्रियों के लिए चलता-फिरता गूगल बन गए हैं, जो पुलों, रेल मार्ग और इसके इतिहास के बारे में तथ्य साझा करते हैं.

कश्मीर घूमने का उनका उत्साह इतना ज़्यादा था कि उन्होंने अपनी पत्नी को कटरा में ही छोड़ दिया — वह हवन में बैठना चाहती थीं — और अपने माता-पिता और बहन के साथ ट्रेन में सवार हो गए.
वर्मा के लिए यह ट्रिप सिर्फ पर्यटन के बारे में नहीं थी. उन्होंने कहा, “मैं हमेशा से कश्मीर जाना चाहता था, लेकिन हाल ही में हुए आतंकी हमले ने मुझे हिलाकर रख दिया. मुझे यहां आने की इच्छा हुई — लगभग विद्रोह की तरह.”
उन्होंने कहा, “वह (पाकिस्तान) नहीं चाहते कि हम कश्मीर जाएं, लेकिन हम जाएंगे. कश्मीर और कश्मीरी हमारे हैं.”
पूरा कोच तालियां बजाने लगता है.
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