scorecardresearch
Tuesday, 17 December, 2024
होमफीचरचेन्नई के स्टार्टअप ने ‘ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स’ के लिए निकाला समाधान, अब ‘मां बनना’ सजा नहीं

चेन्नई के स्टार्टअप ने ‘ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स’ के लिए निकाला समाधान, अब ‘मां बनना’ सजा नहीं

पढ़ाई और नौकरी में प्रतिभाशाली महिलाओं को बच्चे को जन्म देने के बाद घर पर बैठने के लिए मजबूर किया जाता है. इसलिए चेन्नई की 30-वर्षीया महिला संकरी ने एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाया जो ‘मातृत्व दंड’ भुगतने वालीं महिलाओं को नौकरी देता है.

Text Size:

चेन्नई: इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) क्षेत्र में आठ साल तक काम करने के बाद संकरी ने अपने बच्चे की देखभाल के लिए करियर से ब्रेक ले लिया, लेकिन एक साल से थोड़े समय बाद, जब वे ऑफिस लौटने को तैयार थीं, तो उनके लिए कोई जगह नहीं थी. उन्हें सिर्फ एक और ‘गृहिणी’ बना दिया गया.

30-वर्षीया ने कहा, “मैं मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट हूं और मुझे डेटा एंट्री के लिए जॉब के ऑफर मिल रहे थे. अपने बच्चे को जन्म देने से पहले मैं आईटी सेक्टर में अपने करियर के चरम पर थी. मैं इससे कम पर समझौता क्यों करूंगी?” उनके मृदुभाषी व्यवहार में आक्रोश और गुस्सा झलक रहा था.

मां बनने का दंड स्वीकार करने को तैयार नहीं होने पर, संकरी ने अपने नेटवर्क का लाभ उठाया, अपने आईटी स्किल का इस्तेमाल किया और अपना खुद का जॉब पोर्टल, ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स लॉन्च किया. यह अगस्त 2021 था, तब से उन्होंने पांच लोगों को काम पर रखा है, 2,500 से अधिक महिलाओं को स्किल्ड बनाया है और 500 से अधिक महिलाओं को आईटी, हेल्थ सर्विस और अन्य क्षेत्रों में जॉब दिलाने में मदद की है. उनके पोर्टल पर वक्र फ्रॉम होम, फ्रीलांस वर्क और एकमुश्त पेमेंट को प्राथमिकता दी गई है, “जो महिलाओं को उनकी शक्ति वापस दिलाने में उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने का वादा करता है”.

लेकिन संकरी हर स्तर पर पूर्वाग्रह से लड़ रही हैं. जिन महिलाओं के बच्चे हैं उन्हें काम पर रखने, सैलरी और कथित योग्यता के मामले में नुकसान होता है. इसका अपना एक शब्द भी है — ‘मातृत्व दंड’. अमेरिका स्थित नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार, ‘मातृत्व दंड’ के परिणामस्वरूप दुनिया में औसतन एक चौथाई महिलाएं अपने पहले बच्चे के जन्म के एक साल में ही वर्किंग कल्चर से बाहर हो जाएंगी.

लैंगिक सामाजिक मानदंड श्रम बाज़ार में महिलाओं की भूमिका को प्रतिबंधित करते हैं. अगर महिला रोज़गार इसी स्तर पर रहा, तो आज से 20 साल बाद भी भारत में वेतनभोगी काम करने वाले कम लोग होंगे.

—विद्या महांबरे, अर्थशास्त्री और ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में प्रोफेसर

और भारत में ऐसा दबाव घर से ही शुरू होता है.

ग्रेट लेक्स इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, चेन्नई में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर और निदेशक (अनुसंधान) अर्थशास्त्री विद्या महांबरे ने कहा, “लिंग आधारित सामाजिक मानदंड जो पुरुषों को पारिवारिक वित्त के प्राथमिक प्रदाता होने और महिलाओं को बच्चों की देखभाल और घरेलू कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, श्रम बाज़ार में महिलाओं की भूमिका को प्रतिबंधित करते हैं.” इंस्टीट्यूट का अनुमान है कि 2022-23 में शहरी भारत में केवल 28 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत थीं. लैंगिक असमानता बहुत गंभीर है. महांबरे के अनुसार, 2022-23 में 25-54 वर्ष के प्रमुख आयु वर्ग के लगभग 96 प्रतिशत भारतीय पुरुष कार्यरत थे, लेकिन महिलाओं के लिए यह आंकड़ा केवल 37 प्रतिशत था.

2022 वर्ल्ड बैंक ग्लोबल स्टडीज़ के अनुसार, भारत में 15 साल से अधिक उम्र की केवल 24 प्रतिशत महिलाएं कामकाजी हैं.

उन्होंने कहा, “अगर महिला रोज़गार इसी स्तर पर बना रहा, तो दुनिया की सबसे बड़ी कामकाजी उम्र वाली आबादी होने के बावजूद, भारत में अब से 20 साल बाद भी सैलरी पर काम करने वाले बहुत कम लोग होंगे.”

एक सुबह एक अखबार की रिपोर्ट पढ़ते समय संकरी को “Eureka Moment” का सामना करना पड़ा, जिसमें कहा गया था कि भारत में ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स की संख्या सबसे अधिक है और तभी उन्होंने: महिलाओं को काम पर लौटने में मदद करने का फैसला लिया.

भारत में ऐसी नीतियों की कोई कमी नहीं है जो डिलीवरी के बाद महिलाओं को लाभ पहुंचाती हैं. मातृत्व लाभ अधिनियम में 2017 के संशोधन के बाद महिलाओं को छह महीने के लिए मातृत्व अवकाश मिलता है, जिसमें घर से काम या हाइब्रिड वर्क मॉडल भी शामिल हैं, लेकिन संकरी का कहना है कि बदलाव की शुरुआत घर से ही होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, “यह केवल नीति परिवर्तन के बारे में नहीं है बल्कि हमारे घर में पर्यावरण में बदलाव के बारे में भी है.” उनके परिवार ने उनके करियर को फिर से शुरू करने के फैसले का समर्थन किया, लेकिन फिर भी लोग उनसे पूछते थे, “अब क्यों?” आप इंतज़ार क्यों नहीं कर सकतीं?”

“वो नहीं समझ सकते कि मौका किसी का इंतज़ार नहीं करता.”

संकरी | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

कंपनियां इसे मुश्किल बनाती हैं

संकरी की नौकरी की तलाश जितनी निराशाजनक थी, उन्हें एहसास हुआ कि मातृत्व दंड भुगतने वालीं वे अकेली नहीं थीं.

संकरी, जिनका बेटा अब तीन साल का है, ने कहा, “मैंने अन्य महिलाओं से जुड़ने की कोशिश की जो पढ़ाई और अपनी नौकरियों में प्रतिभाशाली थीं, लेकिन मां बनने के बाद वे घर पर ही बैठी थीं. मैं हैरान थी, इसलिए मैंने एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाने का फैसला किया जो नौकरियां देता हो.”

वे जिन भी महिलाओं के पास पहुंची उन्हें एक जैसे अनुभव मिले, जो कॉर्पोरेट जगत के पूर्वाग्रह का प्रतिबिंब था. कागज़ पर एचआर की पॉलिसी महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण नहीं हैं और कंपनियां उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले लाभों की प्रशंसा करती हैं.

मैंने अन्य महिलाओं से जुड़ने की कोशिश की जो पढ़ाई और अपनी नौकरियों में प्रतिभाशाली थीं, लेकिन मां बनने के बाद वे घर पर ही बैठी थीं. मैं हैरान थी, इसलिए मैंने एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाने का फैसला किया जो नौकरियां देता हो.

—संकरी जो ‘ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स’ स्टार्टअप चलाती हैं

एक कंपनी की एचआर मैनेजर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “यह सच है कि जब महिलाएं मां बन जाती हैं, तो वे अपने करियर में ब्रेक ले लेती हैं, लेकिन आजकल ज्यादातर कंपनियों की पॉलिसी होती हैं. सरकार ने मैटरनिटी लीव को लेकर भी सख्त नियम बनाए हैं. जब महिलाएं वापस आती हैं तो मैं यह नहीं कहूंगी कि वे पीछे हैं. मातृत्व उन्हें मजबूत बनाता है, कमज़ोर नहीं.”

“हमें बच्चे और परिवार के कारण लीव की रिक्वेस्ट मिलती हैं, लेकिन यह स्थिति हर किसी के साथ आती है.”

लेकिन कई कंपनियां नियमों का पालन नहीं करती हैं और महिलाओं के गर्भवती होने से पहले ही उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ब्रिटेन में एक स्टडी ने निष्कर्ष निकाला कि लगभग पांच में से एक एचआर मैनेजर उन महिलाओं को काम पर नहीं रखते जो परिवार शुरू करने वालीं होती हैं.

मातृत्व लाभ अधिनियम 2017 के अनुसार, 50 से अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को डे-केयर सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए, लेकिन इसे व्यापक रूप से व्यवहार में नहीं लाया गया है.

संकरी ने कहा, “अगर एक मां फिर से काम करना शुरू करना चाहती है तो सबसे पहले उसे अपने परिवार से समर्थन की ज़रूरत पड़ती है, कई महिलाओं को यह नहीं मिलता है और अगर उन्हें यह मिलता भी है तो उन्हें नौकरी नहीं मिल पाती है क्योंकि कंपनियां उन्हें पर्याप्त सहायता नहीं देती हैं.”

लिंक्डइन पर महिलाएं लचीलेपन की कमी, डे-केयर सेंटर और लंबे काम के घंटों के बारे में बात करती हैं.

मेरे पास साथ देने के लिए मेरे पति हैं. मैंने सोचा कि यह मेरे लिए ठीक रहेगा, लेकिन छह महीने बाद भी मैं अपने बच्चे को नहीं छोड़ पाई और तभी मैंने काम से छुट्टी ले ली.

गर्भवती होने से पहले संकरी ने एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वालीं एक दोस्त को मां बनने के बाद संघर्ष करते देखा. वे सोचती थीं कि उन्हें ऐसा अनुभव कभी नहीं होगा, लेकिन जब वे मां बनीं तो उन्हें एहसास हुआ कि ‘दंड’ से बचना संभव नहीं है.

काम से छुट्टी लेने से कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि वे पहचान के संकट से जूझ रही थीं. उन्होंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल बंद कर दिया क्योंकि जब भी वे इंस्टाग्राम खोलती थीं, लोगों को पदोन्नति, नई नौकरियां मिल रही थीं और वे अपनी ज़िंदगियों में आगे बढ़ रहे थे, लेकिन संकरी को फंसा हुआ महसूस हुआ.

संकरी ने कहा, “मातृत्व एक अद्भुत चीज़ है, लेकिन मां को ही इस प्रक्रिया में हर चीज़ से समझौता करना पड़ता है. उसकी जिंदगी, उसके सपने, सब कुछ रुक जाता है. अपने बच्चे को जन्म देने के बाद मुझे खोया हुआ महसूस हुआ. मुझे लगा कि मेरे सामने पहचान का संकट है जैसे कि यह एक दंड था जो मैं मातृत्व के लिए चुका रही थी.”

संकरी के होम-ऑफिस में एक कॉफी मग जिस पर लिखा है, “If I can do it, so you can” । फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

सिंपल आइडिया, बड़ा बदलाव

शुरुआती महीनों में संकरी ने अपने करियर को फिर से शुरू करने के लिए कई विचारों पर चर्चा की और फिर खारिज किया.

“मैं कुछ सार्थक करना चाहती थी. मैं घर पर रहकर उदास हो रही थी.” एक सुबह एक अखबार की रिपोर्ट पढ़ते समय संकरी को “Eureka Moment”  का सामना करना पड़ा, जिसमें कहा गया था कि भारत में अयोग्य गृहिणियों की संख्या सबसे अधिक है और यही उन्होंने: महिलाओं को काम पर लौटने में मदद करने का फैसला लिया.

उन्होंने जानबूझकर “गृहिणियां” शब्द चुना और उन लोगों के खिलाफ तर्क दिया जिन्होंने यह कहकर उनकी आलोचना की कि यह अपमानजनक है. हाउस मेकर, हाउस मैनेजर, होम इकोनॉमिस्ट जैसे कुछ सुझाव थे, लेकिन वो इस पर टस से मस नहीं हुईं.

संकरी ने चेन्नई में नटेसन नगर में अपने होम-ऑफिस में अपने लैपटॉप पर वेबसाइट खोलते हुए कहा, “जब मैंने इस नाम के साथ जाने का फैसला किया, तो कुछ लोगों को बुरा लगा, लेकिन “गृहिणी” (संकेत) लोगों को एक स्पष्ट संदेश देती है और यह मेरे लिए काम कर रहा है.

हमें ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स ऑनलाइन मिलीं. हम प्रतिबद्ध और जिम्मेदार लोगों की तलाश में थे जो हमारे लिए काम कर सकें. हमने कैंपस का दौरा किया और प्लेसमेंट भी किए, लेकिन यह हमारे लिए अच्छा रहा

— शिव कुमार, चीफ ऑफ स्टाफ, द सोशल कंपनी

लोग जल्द ही उन्हें दूसरी महिलाओं की मदद करने वालीं महिला कहने लगे. उनके पड़ोसियों ने लोकल अखबारों और मैगज़ीन में उनके बारे में पढ़ना और तमिल में वीडियो इंटरव्यू देखने शुरू किए. उन्हें दीना थनाथी पत्रिका (‘महिलाओं को आत्म सम्मान प्रदान करने’) और जोश टॉक्स (‘संकरी को सुनो’) और दूरदर्शन जैसे तमिल प्रकाशनों में देखा गया. उन्होंने भारत की ग्रेजुएट महिलाओं के बीच शिक्षा और रोज़गार के बीच अंतर को पाटने के लिए ज़रूरी कदमों और नीतियों पर चर्चा करने के लिए शशि थरूर जैसे नेताओं के साथ मंच साझा किया, उन्हें गूगल की महिला टेकमेकर्स राजदूतों में से एक नामित किया गया था और अक्सर उन्हें कॉलेजों में लेक्चर देने के लिए बुलाया जाता है.

लेकिन यहां भी, वो खुद को चुप कराती हुई पाती हैं.

हाल ही में वे कामकाजी महिलाओं के बारे में बात करने के लिए एक कॉलेज में गईं और बताया कि कैसे बच्चे के जन्म के बाद काम करना जारी रखना मुश्किल होता है, लेकिन फिर उन्हें एक एचओडी से मोरल पुलिसिंग का सामना करना पड़ा.

संकरी ने कहा, “उन्होंने मुझसे कहा कि युवा महिलाओं के साथ यही समस्या है, ‘मैं 30 साल से काम कर रही हूं और सब कुछ मैनेज कर रही हूं’ वो नहीं समझ रही थीं कि समय बदल गया है और एकल परिवारों में सब कुछ प्रबंधित करने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है, लेकिन मैं उनसे कुछ नहीं कह पाई.”


यह भी पढ़ें: ‘नौकरी नहीं न्याय चाहिए’ : DU में जातिवाद के खिलाफ कैसे लड़ रहीं हैं एक दलित प्रोफेसर


WFH वरदान—लेकिन पूरी तरह से नहीं

संकरी कहती हैं कि उन्होंने चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहरों और यहां तक कि अमेरिका और जर्मनी में 600 व्यवसायों के साथ समझौता किया है. जब उन्होंने शुरुआत की, तो उन्होंने एचआर, एडमिन और डेटा एंट्री जॉब्स को ढूंढना शुरू किया. संकरी, जिन्होंने बिना किसी बाहरी इन्वेस्टमेंट के अपना बिजनेस शुरू किया, बताती हैं, “लेकिन, अब हमने 25 ऑप्शनों तक विस्तार किया है, जिसमें आईटी, कंटेंट लिखना, रियल एस्टेट और आतिथ्य सहित अन्य शामिल हैं”.

जिन महिलाओं को उन्होंने काम पर रखा है उनमें से अधिकांश स्किल लेवल और स्थिति के आधार पर 18,000 से 60,000 रुपये तक महीने की सैलरी कमाती हैं. संकरी ने कहा, “हम सालाना पैकेज राशि का 8.33 प्रतिशत कमीशन के रूप में व्यवसायों से लेते हैं, उम्मीदवारों से नहीं.”

अब, वे निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की अधिक महिलाओं की मदद करने के लिए ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स का दायरा बढ़ाना चाहती हैं.

“उच्च मध्यम वर्ग घरेलू नौकर रखने का खर्च उठा सकता है, इसलिए वे घर से काम करते हैं. मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग को सबसे अधिक परेशानी होती है. ज्यादातर मामलों में वे एक ही व्यक्ति की आय पर गुज़ारा करते हैं,” संकरी बताती हैं, जो अपने फोन पर मैसेज और अपने होम-ऑफिस से ईमेल को जल्दी से स्कैन करती हैं – जो उनके 3बीएचके अपार्टमेंट में एक वर्किंग रूम है.

हर कोई घर से काम करता है, जिसमें उनकी पांच कर्मचारियों की टीम भी शामिल है — वे महिलाएं जिन्हें ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स में से चुना गया था, लेकिन प्रोफेसर महांबरे वर्क फ्रॉम होम के प्रति सावधान करती हैं, खासकर कामकाजी मदर्स के लिए.

महिलाओं के लिए घर से काम करना तनाव और जलन बढ़ा सकता है क्योंकि वे लगातार दो भूमिकाएं निभाती हैं. इसके अलावा, वक्र फ्रॉम होम महिलाओं को अपने सामाजिक नेटवर्क और सहायता प्रणाली का विस्तार करने के मौके से वंचित करता है, जो ऑफिस में काम करने के दौरान मिलने वाले मुख्य दीर्घकालिक लाभों में से एक है.

— प्रोफेसर महांबरे

संकरी की वेबसाइट का इंटरफेस आसान है और संदेश सरल है: ‘महिलाओं को घर से काम पर वापस लाना.’ दो प्रवेश बिंदु हैं — एक नौकरी की तलाश कर रहे उम्मीदवारों के लिए और दूसरा उन व्यवसायों के लिए जो लोगों को नौकरी पर रखना चाहते हैं. संकरी कंपनियों को यह स्पष्ट कर देती हैं कि यह लचीले कार्य समाधानों पर निर्भर करता है.

द सोशल कंपनी के चीफ ऑफ स्टाफ शिव कुमार ने कहा, “हमें ऑनलाइन ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स मिलीं. हम प्रतिबद्ध और जिम्मेदार लोगों की तलाश में थे जो हमारे लिए काम कर सकें. हमने कैंपस का दौरा किया और प्लेसमेंट भी किए, लेकिन यह हमारे लिए अच्छा रहा.” चेन्नई स्थित निजी ब्रांडिंग एजेंसी ने ब्रांड एक्जीक्यूटिव, कंटेंट लीड और ऑपरेशंस लीड जैसी नौकरियों के लिए ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स में से 6 महिलाओं को काम पर रखा है.

कुमार ने कहा, “यह दोनों के लिए जीत की स्थिति है. वे यहां लंबी अवधि के लिए हैं, वे एक जगह से दूसरी जगह नहीं भागेंगी. वे असाइनमेंट पूरा करती हैं. हमारे पास एक ट्रैकिंग सिस्टम है जो दिखाता है कि वे क्या कर रही हैं. हम उन्हें अपनी टीम में पाकर खुश हैं.”

ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइफ के साथ साइन अप करने वाले हर एक संभावित उम्मीदवार की संभावित कंपनियों के साथ इंटरव्यू निर्धारित होने से पहले संकरी और उनकी टीम द्वारा जांच की जाती है. महिलाएं केवल कंटेंट राइटिंग, सोशल मीडिया, डिजाइन और एसईओ पर करियर काउंसलिंग और अप-स्किलिंग सेमिनार के लिए लगभग 199 रुपये प्रति सत्र के हिसाब से साइन अप कर सकती हैं.

मैं इन शांत समयों के दौरान अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाती हूं. मातृत्व ने मुझे समय का असली मूल्य सिखाया है और हालांकि, मुझे पहले इसे बर्बाद करने का पछतावा रहा होगा, लेकिन अब मेरे लिए हर पल कीमती है

—30 वर्षीय पवित्रा पेरास्वामी, जेनेटिक्स में मास्टर

इससे कम पर समझौता नहीं होगा

पेरियार यूनिवर्सिटी ने जिन महिलाओं को नौकरी दी है उनमें से कई के पास नैनी, रसोइया या ड्राइवर नहीं हैं. उन्हें सब कुछ मैनेज करना होता है — काम, बच्चे की देखभाल और घर. वर्किंग लाइफ में वापस स्वीकार किए जाने के लिए उन्हें एक्स्ट्रा मेहनत करनी होगी.

30-वर्षीया पवित्रा पेरास्वामी, जिनके पास जेनेटिक्स में मास्टर की डिग्री है और अपने बच्चे के पालन-पोषण के लिए एक साल का ब्रेक लेने से पहले उन्होंने बेंगलुरु के एक स्टार्ट-अप के लिए क्लिनिकल रिसर्च कोऑर्डिनेटर के रूप में काम किया, ने कहा, “मैंने अक्सर सी-सूट अधिकारियों के साथ बैठकों में शामिल होने के लिए खुद को अपने बच्चे को दूध पिलाते और सुलाते हुए पाया है, बिना किसी जिम्मेदारी से समझौता किए.”

उन्होंने कहा, “अगर आप सपने देखने वाली महिला हैं, तो आपको अपनी योग्यता से कम पर संतुष्ट होने की ज़रूरत नहीं है. हमें हमेशा बेहतरीन के लिए कोशिश करनी होगी, भले ही इसके लिए चुनौतियों का सामना करना पड़े और अपना आराम छोड़ना पड़े.”

पेरास्वामी को आनुवंशिकीविद् के रूप में अपने करियर से हटने का कोई अफसोस नहीं है. मातृत्व ने उन्हें ज़िंदगी का अलग नज़रिया दिया और उन्होंने फैसला किया कि वे लेखिका बनना चाहती हैं. पेरस्वामी, जो अब ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स के साथ साइन अप करने के बाद एक फ्रीलांस कंटेंट राइटर के रूप में काम करती हैं, ने कहा, “जब मेरा बच्चा तीन महीने का था, तब मैंने डिजिटल मार्केटिंग कोर्स किया था.”

उनका वर्क शेड्यूल उनके बच्चे के सोने के तरीके के इर्द-गिर्द घूमता है, या तो सुबह जल्दी या देर रात को. उन्होंने कहा, “मैं इस शांत समय के दौरान अपनी प्रोडक्टिविटी को बढ़ाती हूं. मातृत्व ने मुझे समय का असली मूल्य सिखाया है और हालांकि, मुझे पहले इसे बर्बाद करने का पछतावा होता होगा, लेकिन अब मेरे लिए हर पल कीमती है.” वे अपने पति के साथ मिल कर अपने बच्चे की देखभाल करती हैं.

डेटा विश्लेषक गायत्री नेपोलियन के लिए करियर ट्रैक पर वापस आने की कोशिश करना मातृत्व जितना ही मुश्किल था. बचपन में भी गायत्री को सपने आते थे. पेरियार यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट और मद्रास यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री लेने के बाद, उन्हें डेटा विश्लेषक की जॉब मिल गई. उन्होंने कहा, “यह एक संविदात्मक नौकरी थी, लेकिन यह मुझे आत्मविश्वासी और स्वतंत्र महसूस कराने के लिए काफी थी.”

अपने करियर को पटरी पर रखते हुए उन्होंने फरवरी 2021 में शादी कर ली और अक्टूबर में गर्भवती हो गईं. उन्होंने कहा, “यह पता चलना कि मैं मां बनने वाली हूं, मेरी ज़िंदगी के सबसे हसीन पलों में से एक था.”, लेकिन उन्होंने अपनी नौकरी खो दी और उनका करियर रुक गया. उन्होंने कहा, “एजेंसी मुझे घर से काम देने के लिए तैयार नहीं थी और मैं अपने बच्चे को घर पर अकेला नहीं छोड़ सकती थी.”

जैसे ही गायत्री ने मातृत्व के खट्टे-मीठे पलों का अनुभव किया, उन्होंने वित्तीय स्वतंत्रता की अपनी ज़रूरत के साथ इसे समेटने की कोशिश की.

गायत्री, जो एक स्वतंत्र लेखिका के रूप में काम करती हैं, ने कहा, “बचपन से ही मैंने एक स्वतंत्र लड़की बनने का सपना देखा है. मैंने इसके लिए अच्छे से पढ़ाई की, लेकिन मां बनने के बाद मुझे लगा कि मैं कुछ जुर्माना अदा कर रही हूं. मुझे अपने पति से पैसे मांगना अच्छा नहीं लगा. मैं नौकरी ढूंढती रही और तभी मुझे ओवरक्वालिफाइड हाउसवाइव्स मिलीं.”

किसी भी अच्छी व्यवसायी महिला की तरह संकरी अपनी विस्तार योजनाओं की रूपरेखा तैयार कर रही है. अधिक महिलाएं, अधिक नौकरियां, अधिक गति — बिल्कुल उनके व्हाट्सएप की वॉयस नोट स्पीड की तरह. वे कभी-कभी अपने बेटे के साथ रहने और घर के काम की निगरानी के लिए काम से छुट्टी लेती हैं, लेकिन वे अपना आउटपुट बढ़ाना चाहती हैं. वे 500 नहीं बल्कि एक लाख महिलाओं की मदद करना चाहती हैं.

संकरी ने कहा, “हम महिलाओं के स्किल अपग्रेड करने पर भी ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. बाज़ार बढ़ता जा रहा है और उन्हें उसी स्पीड के साथ तालमेल बिठाना होगा.”

व्हाट्सएप पर उनकी वॉयस नोट स्पीड 2x है.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: भारत के ग्रामीण परिदृश्य को कैसे बदल रही हैं ‘नमो ड्रोन दीदी’


 

share & View comments