लखनऊ: कुंभ का जोश सिर्फ भक्तों तक ही सीमित नहीं है. लखनऊ के आकांक्षा मसाला मठरी केंद्र में काम करने वाली महिलाएं अब प्रयागराज के महाकुंभ मेले में नई मेहमान बनकर गई हैं, लेकिन इस बार वे वहां भक्त नहीं, बल्कि उद्यमी बनकर गई हैं.
आकांक्षा, एक महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम, 1987 में तत्कालीन यूपी के मुख्य सचिव की पत्नी श्यामला कल्याण कृष्णन द्वारा शुरू किया गया था. यह शुरू में आईएएस अधिकारियों की पत्नियों के लिए एक साधारण चैरिटी पहल थी. लेकिन पिछले एक साल में यह एक मजबूत उद्यम बन गया है, जिसमें अहम बदलाव और विस्तार हुए हैं. यह ट्रांस्फोर्मेशन भारत में सिविल सेवाओं में हो रहे बदलावों की तस्वीर को दिखाते हैं, जहां यूपीएससी परीक्षाओं में चुनी जाने वाली महिलाओं का प्रतिशत 1997 में 3% से बढ़कर 2022 में 34% हो गया है.
यूपी में आईएएस ऑफिसर्स वाइव्स एसोसिएशन (IASOWA) अब किसी आईएएस अधिकारी की पत्नी के नेतृत्व में नहीं है. जुलाई 2024 में, 2007 बैच की एजीएमयूटी (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और संघ शासित क्षेत्र) कैडर की आईएएस अधिकारी रश्मि सिंह इसकी अध्यक्ष बनीं हैं. वह जम्मू-कश्मीर की रेजिडेंट कमिश्नर हैं और यूपी के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की पत्नी भी हैं. इस तरह उन्होंने IASOWA की कमान संभाली है.
मसाला और मठरी बनाने के लिए लंबे समय से प्रसिद्ध आकांक्षा अब बेहतर बदलावों से गुजर रही है. एक आईएएस अधिकारी के नेतृत्व में, ध्यान अब पेशेवरता, प्रक्रियाओं और प्रदर्शन पर केंद्रित हो गया है. लखनऊ स्थित इस उद्यम ने अपनी गतिविधियों को डिजिटाइज कर दिया है और आगरा में अपनी उपस्थिति दर्ज की है, साथ ही नोएडा में विस्तार की योजना भी बनाई है. यह लड्डू, चिकी, बैग, हैंडक्राफ्ट और अन्य क्षेत्रों में भी विविधतापूर्ण हो गया है.
“मेरी यादों में, ये [IASOWA] एसोसिएशन मुख्य रूप से सामाजिक स्थान था, जहां आईएएस अधिकारियों की पत्नियां लंच, चाय, योगा और हल्की-फुल्की बातचीत के लिए इकट्ठा होती थीं,” रिटायर्ड सिविल सेविका शैलजा चंद्रा ने कहा. “जब एक आईएएस अधिकारी इस भूमिका को अपनाता है, तो यह स्वाभाविक रूप से एक अलग दृष्टिकोण लाता है—जो रणनीति और जनसेवा में निहित होता है,” उन्होंने कहा.
महाकुंभ में जा रहे हैं
रश्मि सिंह का फोन लगातार बजता रहता है. वह दिल्ली और जम्मू ऑफिस के साथ-साथ लखनऊ की IASOWA सचिव के कॉल्स के बीच सामंजस्य बनाती हैं. यह आकांक्षा टीम के लिए काफी व्यस्त समय है. उन्होंने नवंबर में अपने प्रोडक्ट का पहला बड़ा हाट (मेला) आयोजित किया. इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक मुख्य अतिथि थे. सीएम योगी ने इस समूह के परिवर्तन की भरपूर सराहना की.
योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी ने आकांक्षा के कर्मचारियों और IASOWA सदस्यों को प्रेरित किया. कई लोगों के लिए यह पहली बार था जब उन्होंने मुख्यमंत्री को सामने से देखा.
“कई महिलाओं ने पहली बार सीएम योगी को देखा और यहां तक कि पहली बार अपने घरों से बाहर निकलीं. यह सिर्फ पैसे कमाने की बात नहीं है; किसी दूसरे राज्य में जाकर नए लोगों से मिलना और अपना काम दिखाना आपको कई तरह से सशक्त बनाता है,” रश्मि सिंह ने कहा.
दो-दिवसीय कार्यक्रम में कई वक्ताओं ने हिस्सा लिया और चर्चाएं कीं. IASOWA के सदस्यों के अनुसार, इस कार्यक्रम के दौरान आकांक्षा और राज्य सरकार के बीच चार समझौतों पर साइन किए गए, जो प्रोडक्ट और बाजार से जुड़ाव बढ़ाने में मदद करेंगे.
“पहले दिन, एक महिला ने मुझसे कहा कि उसने केवल 2,000 रुपये कमाए और वह निराश थी. लेकिन कार्यक्रम के अंत तक, उसने 30,000 रुपये कमा लिए और बार-बार मुझे धन्यवाद दिया,” IASOWA उत्तर प्रदेश की सचिव प्रतिभा ने बताया.
52 वर्षीय हलीमा, जो पिछले एक दशक से आकांक्षा से जुड़ी हैं, कश्मीर की महिलाओं से मिलकर काफी उत्साहित थीं. उन्होंने आपस में कहानियां साझा कीं और कुंभ मेले में फिर से मिलने की उम्मीद जताई.
अब, हाट के बड़े धमाके के बाद, उनका अगला कदम महाकुंभ में होगा. प्रयागराज में 20 बिक्री स्टॉल तैयार करने के लिए लखनऊ के आकांक्षा केंद्र में तैयारियां जोरों पर हैं.
रश्मि सिंह कच्चे माल की खरीद पर चर्चा करते हुए समय सीमा तय कर रही हैं और अगले जूम मीटिंग की योजना बना रही हैं.
“आकांक्षा मेरे लिए सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं है. मैं इस संस्थान, स्वयं सहायता समूहों, एनजीओ और सरकारी संस्थानों के बीच बाजार और सप्लाई लिंक बनाने की कोशिश कर रही हूं,” सिंह ने कहा. “पुराने तरीकों को बदलने में समय लगा क्योंकि लोग उन्हीं पर अटके हुए थे.”
वह हर हफ्ते विस्तार योजनाओं पर बैठकें करती हैं, आकांक्षा के लखनऊ स्टोर्स में भंडारण और प्रदर्शन को सुव्यवस्थित किया है और सभी कार्यों को डिजिटल कर दिया है. टीम ने अपने उत्पादों के लिए सोशल मीडिया अकाउंट भी बनाए हैं. पिछले हफ्ते उनके इंस्टाग्राम पर पहली पोस्ट एक तस्वीर थी जिसमें गुलाबी एप्रन पहने महिलाएं लखनऊ के आकांक्षा स्टोर के बाहर खड़ी थीं. कैप्शन था: “मिलिए आकांक्षा समिति की रॉक स्टार्स से, हमारी अद्भुत टीम जो बाधाओं को तोड़ रही है और बदलाव ला रही है.”
अब ये रॉक स्टार्स महाकुंभ में हैं.
“मैंने कभी लखनऊ से बाहर कदम नहीं रखा था. अब कुंभ जाने का ख्याल मुझे बेहद गर्व महसूस कराता है, खासकर इसलिए क्योंकि मैं वहां काम के लिए जा रही हूं,” 48 वर्षीय गुड्डी ने कहा, जो आकांक्षा लखनऊ में काम करती हैं. उन्होंने केंद्र में कच्चे माल को छांटते हुए यह बात कही.
दायरा बढ़ाना
रश्मि सिंह के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण काम अपने ऑफिस के दौरान उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में उत्पादन केंद्र और स्टोर खोलना होगा. लेकिन यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल. इसे पूरा करने के लिए उन्हें हर जिले में IASOWA को सक्रिय करना होगा. और यहीं पर समस्या है: IASOWA के वर्तमान संविधान के अनुसार, इसका नेतृत्व और प्रबंधन हमेशा लखनऊ और जिलों में एक आईएएस अधिकारी की पत्नी द्वारा किया जाएगा. हालांकि, अब कई जिलों में महिला मजिस्ट्रेट हैं.
सिंह IASOWA के चार्टर में बदलाव करने की दिशा में भी काम कर रही हैं.
“मैंने देखा कि कुछ जिलों के सामने खाली जगह या NIL लिखा हुआ था,” उन्होंने कहा.
“जब तक मैं चीजों को पूरी तरह से बदल नहीं सकती, मैंने यह नियम बनाया है कि महिला जिला मजिस्ट्रेट अपने क्षेत्रों में IASOWA को प्रबंधित करने के लिए किसी और को नामांकित कर सकती हैं, या उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (SDM) और जजों की पत्नियों को शामिल किया जा सकता है.”
IASOWA के लिए रश्मि सिंह के रणनीतिक रोडमैप को सिविल सेवा समुदाय से व्यापक समर्थन मिला है, और कई सदस्यों ने इसे एक क्रांतिकारी कदम बताया है.
फोकस बदलना
भारत में यूपी के IASOWA के पैमाने और प्रभाव की बराबरी करने वाले बहुत कम संगठन हैं. हालांकि, उनका काम अक्सर ज़रूरी होता है लेकिन उसमें लंबे समय की सोच और योजना की कमी होती है. असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में संघ आमतौर पर सांस्कृतिक गतिविधियों या गरीबों के लिए स्वास्थ्य शिविरों में कंबल और दवाइयां बांटने जैसे परोपकारी कार्यों पर केंद्रित रहते हैं.
2022 में, असम IASOWA चैप्टर ने एक बैठक आयोजित की जिसमें सभी को फूलों के प्रिंट वाले कपड़े पहनने का निर्देश दिया गया. उसी साल, सदस्यों ने गुवाहाटी के वृद्धाश्रमों का दौरा किया और चेक दान किए. 2016 में, दिल्ली चैप्टर ने मॉकटेल बनाने की कला पर एक कार्यशाला आयोजित की.
इसके विपरीत, यूपी का IASOWA आजीविका में सक्रिय योगदान और हाशिए पर रहने वाली महिलाओं के लिए अवसर पैदा करने के मॉडल का पालन करता है. उनके पहले के क्लब-शैली की बैठकों – जैसे डांडिया नाइट्स और हेयर स्टाइल व कॉस्मेटिक सर्जरी कार्यशालाएं – अब लगभग खत्म हो चुकी हैं.
“जब मैं IASOWA की अध्यक्ष थी, तब मैं हर महीने कम से कम दो कार्यक्रम आयोजित करती थी,” 2014 से 2016 तक IASOWA की अध्यक्ष रही सुरभि रंजन ने कहा. उनके कार्यकाल के दौरान सक्रिय सदस्यों की संख्या 2014 में केवल 25-30 से बढ़कर 90 हो गई. “मैंने मसाले पीसने की एक मशीन लगाई. इससे केंद्र की उत्पादकता बढ़ गई,” उन्होंने बताया.
रंजन ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए, यहां तक कि बॉलीवुड अभिनेत्री ऐश्वर्या राय के मेकअप आर्टिस्ट को लखनऊ में एक प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया. उन्होंने बताया कि इनमें बड़ी संख्या में लोग उत्साहपूर्वक शामिल हुए.
“मेरे कार्यकाल (2016) के बाद, ऐसे कार्यक्रम ज्यादा नहीं हुए,” रंजन ने जोड़ा.
अब ध्यान अधिक संकीर्ण हो गया है.
“जब एक आईएएस अधिकारी नेतृत्व करता है, तो यह एक अहम बदलाव लाता है. वे संरचना को समझते हैं और जानते हैं कि संगठन के माध्यम से लोगों की मदद करने के लिए संसाधनों को कैसे जुटाया जाए,” शैलजा चंद्रा ने कहा.
पहले बनाम अब
आईएएस रश्मि सिंह ने जुलाई 2024 में यूपी IASOWA की अध्यक्षता संभाली. केवल छह महीनों में, उन्होंने इस संगठन को नई दिशा दी है और इसे राष्ट्रीय महिला आयोग और दृष्टि और सॉविट (साउथ एशियन वीमेन इन टेक्नोलॉजी) जैसी संस्थाओं से जोड़कर एक रोडमैप तैयार किया है.
रश्मि सिंह ने युवा अधिकारियों की पत्नियों को एसोसिएशन से जोड़ने के लिए एक युवा विंग भी शुरू किया है.
सिंह ने बताया, “संगठन में भी एक तरह की हैरार्की (पदानुक्रम) व्यवस्था थी, और मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसमें शामिल करना चाहती थी ताकि मदद की जा सके. इसलिए मैंने युवा विंग शुरू की.”
युवा विंग की स्थापना केवल एक महीने पहले हुई है, और अभी भी लोगों को जोड़ने के प्रयास जारी हैं.
“हमने कभी ऐसा दृष्टिकोण नहीं देखा जो रश्मि सिंह इस संगठन में लेकर आई हैं – चाहे वह आकांक्षा मसाला मठरी केंद्र को अधिक जिलों से जोड़ना हो, हाट आयोजित करना हो, या आगे बढ़ने की योजनाएं बनाना हो,” राधा मोहन, यूपी IASOWA की उपाध्यक्ष ने कहा.
लखनऊ स्थित आकांक्षा मसाला मठरी केंद्र में बिल प्रिंट करने के लिए तीन कंप्यूटर काउंटर और नामित रैक हैं, जिन्हें हर दो घंटे में भरा जाता है क्योंकि ग्राहक लगातार सामान खरीदते रहते हैं. अब सभी कच्चे माल और स्टॉक्स का एक औपचारिक डिजिटल रिकॉर्ड भी रखा जाता है.
आकांक्षा स्टोर का दरवाजा सुबह 11 बजे ठीक समय पर खुलता है. भीड़ जमा हो जाती है. कुछ आइटम स्पष्ट रूप से सबसे ज्यादा बिकते हैं – समोसा, ढोकला, चना वड़ा. ट्रे भरते ही खाली हो जाती हैं.
“हमारी सुबह की चाय आकांक्षा के स्नैक्स के बिना अधूरी है,” एक ग्राहक ने मुस्कुराते हुए कहा.
रश्मि सिंह इसे भोजन और मसालों से आगे ले जाने के मिशन पर हैं.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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