scorecardresearch
शुक्रवार, 4 जुलाई, 2025
होमफीचर'ब्राह्मणों का बहिष्कार करो, सिर्फ यादव कथावाचक होंगे' — इटावा में जातीय संघर्ष ने लिया नया रूप

‘ब्राह्मणों का बहिष्कार करो, सिर्फ यादव कथावाचक होंगे’ — इटावा में जातीय संघर्ष ने लिया नया रूप

दादरपुर के आरोपियों को ब्राह्मण समुदाय से सहानुभूति और सुरक्षा मिल रही है. यादव कथावाचक अपने गांवों से फरार हो गए हैं.

Text Size:

इटावा: टेंट लगा हुआ था, निमंत्रण पत्र बंट चुके थे, हलवाई बुक हो चुके थे. लेकिन पुलिस के एक कॉल ने गंगाराम यादव के गढ़ी भगवंत गांव में भागवत कथा आयोजित करने के सपने को चकनाचूर कर दिया. कारण: उन्होंने कथा के लिए एक ब्राह्मण पुजारी को आमंत्रित किया था. यह इटावा के यादव बनाम ब्राह्मण कथावाचक लड़ाई के नया अवतार है.

अभी एक सप्ताह पहले, 21 जून को, दादरपुर में भागवत कथा का पाठ करने पर ब्राह्मणों द्वारा दो यादवों पर हमला किया गया था. और अब, एक वायरल वीडियो और सपा बनाम भाजपा जातिगत आरोपों के बाद, विरोध के कारण ब्राह्मण कथावाचकों (हिंदू महाकाव्यों और ग्रंथों के कथावाचक) का बहिष्कार किया जा रहा है.

ऊपरी तौर पर, दोनों जातियों में ऐसी कोई हिंसा नहीं है. लेकिन सन्नाटे, छिपी हुई निगाहों, पोस्टरों और पुलिस की तैनाती में दरार साफ दिखाई देती है. कई यादव ब्राह्मणों के बहिष्कार का आह्वान कर रहे हैं और पहले से निर्धारित कार्यक्रम रद्द किए जा रहे हैं. कुछ लोगों का कहना है कि यहां केवल यादव कथावाचक ही कथा करेंगे. ब्राह्मण पुरुषों ने घटना के राजनीतिकरण पर दुख जताया और कहा कि वे जाति में विश्वास नहीं करते.

राजनीतिक रूप से सक्रिय यादव ओबीसी जाति पीछे नहीं हट रही है. उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की एकजुटता हाल ही की घटना है और 2020 में गैंगस्टर विकास दुबे की मुठभेड़ में हत्या के बाद यह काफी हद तक अनियमित रही है.

कार्यक्रम के आयोजक, गंगाराम यादव ने पहले ही तैयारियों पर 3 लाख रुपये से अधिक खर्च कर दिए थे. उन्होंने कहा, “तब से आस-पास के गांवों में माहौल और खराब हो गया है. ब्राह्मणों का बहिष्कार करने की बात हो रही है—उन्हें पूजा या सामुदायिक कार्यक्रमों में आमंत्रित नहीं किया जा रहा है. लेकिन यहां, किसी ने इस कथा पर आपत्ति नहीं जताई. यह पुलिस ही थी जिसने हमें विवाद से बचने की सलाह दी.”

Gangaram Yadav’s tent being dismantled | By special arrangement
गंगाराम यादव का तंबू हटाया जा रहा है | विशेष व्यवस्था

उत्तर प्रदेश के इटावा गांव में ब्राह्मणों द्वारा यादव कथावाचक पर हमले के बाद से तनाव बढ़ गया है, जो पारंपरिक रूप से समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है. यादवों और ब्राह्मणों के बीच बहिष्कार की जंग चल रही है. बिजली के खंभों पर लटके बोर्ड पर अब लिखा है, “हम ब्राह्मणों द्वारा पूजा नहीं करवाएंगे.” स्थानीय मीडिया की सुर्खियों ने मामले को तूल दिया—‘ब्राह्मणों को न बुलाएं’, ‘ब्राह्मणों द्वारा पूजा प्रतिबंधित है’—और सोशल मीडिया पर भड़की नाराज़गी ने मामले को शांत नहीं होने दिया. ये सब एक वायरल वीडियो के बाद हुआ जिसमें ब्राह्मण बहुल इलाके में धार्मिक सभा के दौरान दो यादव कथावाचकों को पीटा गया, उनका सिर मुंडवाया गया और उन्हें ब्राह्मणों के पैर छूने के लिए मजबूर किया गया.

सपा नेता अखिलेश यादव से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ तक इस मामले में कूद पड़े हैं. सीएम ने कहा कि वोट बैंक के लिए जाति की राजनीति करने वाले लोग समाज को बांट रहे हैं. और यूट्यूबर तनावग्रस्त दादरपुर गांव से स्ट्रीमिंग कर रहे हैं.

गंगाराम यादव ने दादरपुर से 90 किलोमीटर दूर अपने गांव में टेंट हटाने के लिए मजदूरों को निर्देशित करते हुए कहा, “मैंने इस आयोजन पर 3 लाख रुपए खर्च किए हैं. यह आयोजन हमले से बहुत पहले ही तय हो चुका था. अभी मैं पैसों को लेकर चिंतित नहीं हूं, लेकिन इस घटना ने ब्राह्मणों और यादवों को कैसे विभाजित कर दिया है, इसकी चिंता है. मेरे गांव में ब्राह्मणों और यादवों दोनों के कथा करने की परंपरा रही है.”

दादरपुर अभी भी उस रात के सदमे से उबर रहा है, जिसने चार ब्राह्मण युवकों को जेल में डाल दिया और गांव को शर्मसार कर दिया. ब्राह्मणों का यह बहुल गांव यादव बहुल जिले में बसा है. लेकिन यह काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा है, भले ही जातिगत संबंध कभी भी स्वस्थ नहीं रहे हैं. यादवों को समाजवादी पार्टी से मजबूत राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, जिसने ब्राह्मणों में नाराजगी को बढ़ाया है. लेकिन यह पहली बार है जब दादरपुर गांव में इतने हिंसक तरीके से तनाव सामने आया है.

अब गांव के आरोपियों को बाकी ब्राह्मण समुदाय की सहानुभूति और संरक्षण मिल रहा है. ब्राह्मण युवा गांव के ऐंट्री गेट पर पहरा देते हैं, बच्चे घर के अंदर रहते हैं और आरोपी ब्राह्मण परिवार अब लगातार समर्थकों, राजनेताओं और स्थानीय जाति के नेताओं का अड्डा बन गया है. यादव कथावाचक अपने गांवों से फरार हो गए हैं. सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट करने के लिए अगले दिनों में राज्य भर से लगभग 20 और लोगों को हिरासत में लिया गया, जिनमें से ज़्यादातर यादव थे. भगवान कृष्ण की कहानियों को हारमोनियम और ढोलक के साथ सुनाने का जो एक साधारण, नियमित कार्यक्रम होना चाहिए था, उसने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नाज़ुक सामाजिक ताने-बाने को तहस-नहस कर दिया है.

पड़ोसी मरही गांव के 60 के दशक के अंत में पहुंचे बुजुर्ग राणा प्रताप सिंह चौहान ने कहा, “इस क्षेत्र में जातिगत तनाव हमेशा से रहा है. चाहे वह सपा हो या भाजपा, हर पार्टी ने जाति का इस्तेमाल विभाजन और लामबंदी के लिए किया है. इस मामले में, दोनों ही पार्टियां दोषी हैं. उन्हें अपनी पहचान नहीं छिपानी चाहिए. कथावाचक के साथ जो हुआ वह बहुत बुरा है. दादरपुर में जो हुआ वह एक समुदाय के बारे में नहीं है—यह इस बारे में है कि कैसे नेताओं ने राजनीतिक लाभ के लिए नफ़रत को सामान्य बना दिया है.” चौहान स्थानीय पत्रकार रहे हैं और इटावा के लोग उन्हें क्षेत्र में तनाव के विशेषज्ञ के तौर पर मानते हैं.

तनाव चरम पर

दादरपुर गांव में सन्नाटा पसरा है. ब्राह्मणों के घरों के दरवाजे कसकर बंद हैं, लेकिन परिवार के सदस्य सड़क पर होने वाली गतिविधियों और आने-जाने वालों पर नज़र रखने के लिए खिड़की से झांकते हैं. डर साफ झलकता है. पुलिस दुकानों पर पहरा दे रही है. एक महिला कांस्टेबल रेणु और जय प्रकाश तिवारी के घर पर है, जिन्होंने कार्यक्रम से पहले कथावाचकों की मेज़बानी की थी. उन्होंने कलाकारों के लिए दोपहर का भोजन उपलब्ध कराने की पेशकश की क्योंकि उनका घर उस मंदिर से 150 मीटर दूर है जहां कार्यक्रम होना था.

26 जून को तनाव तब बढ़ गया जब अहीर रेजिमेंट नामक यादव समूह के नेतृत्व में 500 से अधिक लोगों ने गांव में घुसने की कोशिश की और पुलिस पर पत्थर फेंके साथ ही पुलिस वाहनों को नष्ट कर दिया. ब्राह्मण युवा अब गांव में प्रवेश करने वाले हर विजिटर की तलाशी लेते हैं.

छह अन्य लोगों के साथ खड़े मोनू तिवारी ने कहा, “यूट्यूबर्स और पत्रकारों ने पहले ही काफी नुकसान कर दिया है. उन्होंने रेणु तिवारी को गलत बातें कहने के लिए बढ़ावा दिया और अब उनके खिलाफ़ भी शिकायत दर्ज की गई है. इसलिए हमें देखना होगा कि गांव में कौन आ रहा है और किस उद्देश्य से आ रहा है.”

रेणु तिवारी का नाम सोशल मीडिया पर कई पोस्ट में बेहद आपत्तिजनक चीजें करने के आरोप में उछाला गया. यूट्यूब वीडियो में उन्हें यह कहते हुए सुना जा सकता है, “कथावाचक के परिवारों की महिलाओं को नंगा करके सड़क पर घुमाया जाना चाहिए.” अब, उनके पास पूरे राज्य से ब्राह्मण समर्थकों का तांता लगा हुआ है, जो एकजुटता दिखा रहे हैं. इन विजिटर्स के स्वागत के लिए उनके घर के बरामदे में जूट की चारपाई, प्लास्टिक की कुर्सियां और पानी का जग रखा गया है. पानी पीते हुए एक पड़ोसी ने कहा, “जो हो गया सो हो गया, और जिसने भी कुछ गलत किया है, वह जेल में है. मामले को क्यों बढ़ा रहे हैं.”

Water cooler at the Tiwari house for the visitors | Nootan Sharma | ThePrint. 
आगंतुकों के लिए तिवारी के घर पर वाटर कूलर | नूतन शर्मा | दिप्रिंट.

यहां 103 ब्राह्मण घर हैं, जो बहुसंख्यक हैं. यहां ठाकुर और दलित परिवार भी हैं. यह घटना गांव के एक छोर पर स्थित मंदिर में हुई. इस मंदिर की देखभाल रामस्वरूप दास करते हैं. पिछले महीने गांव वालों ने भागवत कथा आयोजित करने का फैसला किया और इसके लिए पैसे दान करने शुरू कर दिए. मंदिर के पास खाली मैदान की ओर इशारा करते हुए रेणु के पति जय प्रकाश तिवारी ने कहा, “कथा वहीं हो रही थी.” उस शाम लगभग 80 लोग, जिनमें से लगभग सभी ब्राह्मण थे, कथा सुनने के लिए एकत्र हुए थे. मैदान में एक मंच बनाया गया था.

उन्होंने दावा किया कि न तो गांव वालों को और न ही उनके परिवार को कथावाचकों के यादव होने से कोई समस्या थी. समस्या यह थी कि उन्होंने अपनी पहचान के बारे में झूठ बोला था, यहां तक कि अग्निहोत्री उपनाम वाले नकली आधार कार्ड भी साथ रखे थे. जय प्रकाश तिवारी ने कहा, “अगर वे यादव थे तो मुझे कोई समस्या नहीं है. समस्या यह थी कि उन्होंने अपनी पहचान छिपाई थी, पूजा ठीक से नहीं कर पाए थे, इसलिए पकड़े गए. यह झूठ बोलने की बात थी, जाति की नहीं.”

उन्होंने कहा कि उनके बाल नहीं काटे जाने चाहिए थे.

बहिष्कार का आह्वान

मुकुट मणि और संत सिंह यादव के गांवों में भी यही सन्नाटा पसरा है. लोगों में गुस्सा है. और ब्राह्मणों के बहिष्कार का आह्वान किया जा रहा है. लोगों का एक वर्ग यह भी मान रहा है कि कथावाचकों को अपनी पहचान नहीं छिपानी चाहिए थी. लेकिन अधिकांश यादव नेता इस मामले में और गिरफ्तारियों की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि पुलिस ने अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाया.

समाजवादी पार्टी के जिला प्रमुख गोपाल यादव ने कहा, “पुलिस ने शुरू में अच्छा काम किया, लेकिन बाद में उन्होंने कुछ खास नहीं किया. उन्होंने केवल चार लोगों को गिरफ्तार किया है. और गिरफ्तारियां होनी चाहिए. जो कुछ हुआ, उसकी समाज के हर वर्ग को निंदा करनी चाहिए. जहां तक लोगों का यह कहना है कि वे ब्राह्मणों के साथ पूजा नहीं करेंगे—यह उनकी निजी पसंद है.”

इस घटना ने जाति और हिंदू धर्म से जुड़े बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं. पड़ोसी यादव गांव के लोग अब धार्मिक व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं. क्या केवल ब्राह्मणों को ही हिंदू कथाएं पढ़नी चाहिए और पूजा करनी चाहिए? उनका कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब ब्राह्मणों के गांवों में यादवों ने कथाएं करवाई हों.

पीड़ित कथावाचक मुकुट मणि के रिश्तेदार हुकुम सिंह ने कहा, “यह यादवों के मुंह पर करारा तमाचा है. हम पूरे भारत में इसका विरोध करेंगे. भागवत किसी जाति के लिए नहीं है, इसे हर कोई पढ़ सकता है. अगर यह सिर्फ ब्राह्मणों के लिए है, तो नियम बनाइए कि कोई और इसे न पढ़ सके.”

सोशल मीडिया बहिष्कार वाली पोस्ट से भरा पड़ा है. मोहन यादव ने फेसबुक पर स्क्रॉल करते हुए कहा, “मैंने कल एक फेसबुक पोस्ट देखी, जिसमें सभी यादवों से एकजुट होने और ब्राह्मणों का बहिष्कार करने के लिए कहा गया था. इसमें कहा गया था कि ‘हमें उन्हें किसी भी पूजा में आमंत्रित नहीं करना चाहिए और उनसे कुछ भी नहीं खरीदना चाहिए’ और गांवों में बहुत से लोग इसका समर्थन कर रहे हैं.”

वह इटावा के सैफई के निवासी हैं, जो अखिलेश यादव का पैतृक गांव है.

घटना वाली रात 

यह सब बहुत शांतिपूर्ण तरीके से शुरू हुआ.

तनाव की एक फुसफुसाहट भी नहीं थी. यह एक सामान्य भागवत कथा थी जो गांव में नियमित रूप से होती है. पिछली बार 2023 में हुई थी. इसकी तैयारी दो महीने पहले शुरू हुई थी और यादव कथावाचकों—संत सिंह यादव और मुकुट मणि—के साथ डेढ़ महीने पहले ही डील पक्की हो गई थी. उन्हें ब्राह्मण मंदिर के पुजारी रामस्वरूप ने काम पर रखा था. कथावाचकों को सात दिनों तक चलने वाली कथा के लिए 25,000 रुपये दिए गए थे. आयोजन के लिए धन ग्रामीणों ने जुटाया. जय प्रकाश और रेणु तिवारी ने भी योगदान दिया.

ग्रामीणों के अनुसार, पुजारी ने पहले भी कई भागवत कथाओं के लिए कथावाचकों को रखा था और उन्हें लगता था कि वे ब्राह्मण हैं. 22 जून को मारपीट का वीडियो वायरल होने के बाद से ही रामस्वरूप फरार है.

Jay Prakash Tiwari, sitting on his verandah | Nootan Sharma | ThePrint
अपने बरामदे पर बैठे जय ​​प्रकाश तिवारी | नूतन शर्मा | दिप्रिंट

कथित विवाद तब हुआ जब यादव कथावाचकों ने रेणु तिवारी के घर पर दोपहर का भोजन किया. भोजन के दौरान, कथावाचकों ने कथित तौर पर रेणु से मांग की कि वे उन्हें अपने हाथों से खाना खिलाएँ. जय प्रकाश ने याद करते हुए कहा—”सात दिनों तक मेरी अच्छी तरह से सेवा करो, तुम्हें पुण्य मिलेगा.”

हालाँकि यह तिवारी परिवार को अजीब लगा, जय प्रकाश तिवारी ने कहा कि दूसरी बार अजीब तब लगा जब कथावाचक बाहर निकले. उन्होंने कहा, “उनके आधार कार्ड उनके बैग से गिर गए. हमने देखा कि एक सेट कार्ड पर अग्निहोत्री उपनाम था और दूसरे सेट पर अलग उपनाम था.”

तभी ग्रामीणों को पहली बार संदेह हुआ कि वे अपनी पहचान छिपा रहे हैं. लेकिन फिर भी दोनों कथावाचकों को मंच पर जाने और अपना काम शुरू करने की अनुमति दी गई. यह लगभग आधे घंटे तक चला. वे एक श्लोक ही पढ़ पाए थे कि श्रोताओं ने हंगामा शुरू कर दिया. एक ब्राह्मण ने उन पर श्लोक गलत पढ़ने का आरोप लगाया और दूसरे ने कहा—”वह चमार (एससी) है, तो उसे यह सब कैसे पता होगा.”

जल्द ही, अफ़वाह फैल गई कि वे दलित हैं. कार्यक्रम को रोक दिया गया और कथावाचकों से उनकी जाति के बारे में पूछा गया. उन्होंने कसम खाई कि वे दलित नहीं हैं और उन्होंने गांव वालों से अपने रिश्तेदारों को फ़ोन करके पुष्टि करने के लिए कहा. जब ब्राह्मण गांव वालों में से एक ने कथावाचकों द्वारा दिए गए नंबर पर डायल करना शुरू किया, तो ट्रूकॉलर नोटिफिकेशन ने पहचान की कि वह नंबर यादव का है.

हालांकि माहौल गुस्से से भरा हुआ था, लेकिन गांव वालों ने दावा किया कि उस समय कोई हिंसा नहीं हुई थी. कथावाचकों को गांव छोड़ने के लिए कहा गया. जय प्रकाश तिवारी ने कहा कि जब दो यादव पुरुष जा रहे थे, तो उन्हें युवा ब्राह्मण पुरुषों के एक समूह ने पकड़ लिया. इस झड़प के वीडियो वायरल हो गए हैं.

जय प्रकाश तिवारी ने कहा, “उन्होंने उन्हें पकड़ लिया और उन पर अपनी जाति के बारे में झूठ बोलने का आरोप लगाना शुरू कर दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि कथावाचक दलित थे. उन्होंने सवाल किया कि ब्राह्मणों के गांव में घुसने की उनकी हिम्मत कैसे हुई. वे इस बात से भी परेशान थे कि कथावाचकों ने मेरी पत्नी, जो एक ब्राह्मण महिला है, को अपने पैर छूने और उन्हें खाना खिलाने के लिए मजबूर किया.”

उन्होंने दावा किया कि वह और उनकी पत्नी रेणु उस समय सो रहे थे. वीडियो में, पुरुषों के एक समूह को कथावाचकों में से एक का सिर मुंडवाते हुए देखा जा सकता है, जबकि दूसरे कथावाचक को रेणु नाम की एक महिला के पैरों से अपनी नाक छूने के लिए मजबूर किया जा रहा है. जय प्रकाश तिवारी ने जोर देकर कहा, “गांव के कुछ लड़कों ने उनके बाल काट दिए. हमें इससे कुछ नहीं लेना-देना है.” कथावाचक चुपचाप गांव से चले गए और ब्राह्मण युवकों द्वारा रिकॉर्ड किए गए वीडियो को फेसबुक पर पोस्ट कर दिया गया. किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि वीडियो वायरल हो जाएगा.

अगले दिन, दादरपुर में भागवत कथा करने के लिए आजमगढ़ से एक ब्राह्मण कथावाचक सुखदेव मिश्रा को बुलाया गया. सुबह जब कथा की तैयारियां शुरू हुईं तो अपेक्षाकृत शांति थी, लेकिन प्रदर्शन के लिए एकत्र होने वाले ग्रामीणों की संख्या में भारी कमी आने से तनाव स्पष्ट था. मिश्रा ने अपना प्रदर्शन शुरू किया, लेकिन बीच में ही रुक गया. पिछली रात के वीडियो वायरल हो गए थे और ग्रामीण घबरा गए थे.

23 जून को कथावाचकों में से एक संत सिंह यादव ने उन ग्रामीणों के खिलाफ मामला दर्ज कराया जिन्होंने उन पर हमला किया था. वीडियो के आधार पर दादरपुर में पुलिस की छापेमारी शुरू हुई और चार ब्राह्मण लोगों को गिरफ्तार किया गया. यादव की एफआईआर में रेणु तिवारी का नाम नहीं था. एक हफ्ते बाद, जब अखिलेश यादव ने कथावाचकों को लखनऊ आमंत्रित किया, तो जय प्रकाश तिवारी ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई. उन पर फर्जी आधार कार्ड का इस्तेमाल करने और अपनी जाति छिपाने के लिए धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया है.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “बाद में मेजबान रेणु तिवारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और पुलिस ने ऑनलाइन आंदोलनकारियों के खिलाफ एनएसए के तहत मामला दर्ज किया. कम से कम 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से चार की पहचान शुरुआती हमले के लिए और सोलह अन्य भड़काऊ सोशल मीडिया पोस्ट के लिए की गई है.”

दादरपुर से चालीस किलोमीटर दूर मुकुट मणि के गांव में लोग गुस्से में हैं. मुकुट मणि और उनका परिवार अब वहां नहीं है. पुलिस उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर की जांच करने वहां गई थी, लेकिन वे अपने घर पर नहीं मिले. झांसी पुलिस के एक सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “हम उन्हें ढूंढ नहीं पाए. हम उनसे इस घटना के बारे में और जानकारी लेने गए थे. संत सिंह अपने घर पर नहीं हैं और मुकुट मणि भी वहां नहीं हैं.”

राजनीतिक आक्रोश

गांव स्तर का विवाद बाद में एक बड़े राजनीतिक तूफान में बदल गया. मारपीट के वीडियो वायरल होने के बाद सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी समाजवादी पार्टी दोनों के नेता मैदान में कूद पड़े. दादरपुर का जाति संघर्ष आरोप-प्रत्यारोप, प्रतीकवाद और वोट बैंक संदेश के युद्धक्षेत्र में बदल गया.

पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 26 जून को यादव कथावाचकों को लखनऊ आमंत्रित किया और मारपीट के लिए उन्हें 51,000 रुपये का मुआवजा दिया. अखिलेश यादव ने लिखा, “आज लखनऊ में ‘इटावा कथावाचक पीडीए अपमान कांड’ के पीड़ितों को सम्मानित किया गया और उनके नुकसान की भरपाई के लिए आर्थिक सहायता दी गई तथा जिस अंधे कलाकार की ढोलक छीन ली गई थी, उसे भी नया ढोल दिया गया.”

‘इटावा कथावाचक पीडीए अपमान कांड’ उन चंद दबंग और प्रभुत्वशाली लोगों की वजह से हुआ है, जिन्होंने कथावाचन को भावना के बजाय व्यवसाय बना लिया है. अगर इन लोगों को पीडीए समुदाय से इतनी ही नफरत है, तो उन्हें यह घोषणा कर देनी चाहिए कि परंपरागत रूप से कथा कहने वाले प्रभुत्वशाली लोग पीडीए समुदाय द्वारा दिए गए प्रसाद, दान और दान को कभी स्वीकार नहीं करेंगे.

उन्होंने हिंदी में लिखा, “प्रभु लोग समय-समय पर पीडीए समुदाय को परेशान और अपमानित करते हैं. कभी उनके घरों को गंगाजल से धुलवाते हैं, कभी मंदिर धुलवाते हैं, अब तो वे अपना सिर भी मुंडवा रहे हैं.” समाजवादी पार्टी द्वारा गढ़ा गया एक राजनीतिक शब्द पीडीए—पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक को संदर्भित करता है.

A statue of BR Ambedkar at the entry of the Dadarpur village | Nootan Sharma | ThePrint
दादरपुर गांव के प्रवेश द्वार पर बीआर आंबेडकर की मूर्ति | नूतन शर्मा | दिप्रिंट

राजनीतिक तीखे तेवर देखने को मिले हैं. बीजेपी के मंत्रियों ने अखिलेश पर अवसरवादी जातिवाद का आरोप लगाया, जबकि अखिलेश ने पलटवार करते हुए बीजेपी की निगरानी में “बाहरी लोगों” द्वारा सुनियोजित अशांति का आरोप लगाया और योगी सरकार को “हृदयहीन और अलोकतांत्रिक” करार दिया.

यूपी के पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने लखनऊ में प्रेस से बात करते हुए कहा, “अखिलेश यादव समाज को बांटने और राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस घटना को जातिवादी रंग दे रहे हैं. राज्य सरकार ने तुरंत कार्रवाई की—चार लोगों को गिरफ्तार किया गया और 15 को हिरासत में लिया गया. लेकिन अखिलेश लोगों को गुमराह करके अशांति फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.”

इस क्षेत्र में यादवों और ब्राह्मणों के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है. 2013 में जब समाजवादी पार्टी सत्ता में थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, तब एक ब्राह्मण परिवार पर हमला किया गया था.

इटावा के संतोषपुरा गांव में एक ब्राह्मण लड़के को एक यादव लड़की से प्यार हो गया और वह उसके साथ भाग गया. जब यह बात सामने आई तो यादव परिवार ने ब्राह्मण परिवार पर हमला किया. उन्होंने ब्राह्मणों को जूतों की माला पहनाई और पूरे गांव में घुमाया. अब लोग दोनों घटनाओं को जोड़ रहे हैं.

चौहान ने कहा, “जब वे सत्ता में थे, तब भी उन्होंने ब्राह्मणों पर हमला किया था और अब वे सत्ता में नहीं हैं, इसलिए उन पर हमला हो रहा है. दोनों घटनाएं नहीं होनी चाहिए थीं, लेकिन यह आदर्श दुनिया नहीं है.”

जिस जगह पर कभी भगवान कृष्ण का नाम लोगों को एक साथ लाता था, वहां हर दरवाजे पर संदेह की स्थिति पैदा हो जाती है.

अपनी चाय की दुकान पर नजर रख रहे 60 वर्षीय राणा प्रताप सिंह चौहान ने कहा, “यह पहली बार नहीं है जब जाति ने हमारे क्षेत्र में किसी पवित्र चीज को तोड़ा है. और दुख की बात है कि यह आखिरी भी नहीं होगा.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: Noida@50: स्पोर्ट्स सिटी कैसे बनी घोटाले, अदालती मामलों और सीबीआई जांच का घर


share & View comments