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Thursday, 21 November, 2024
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बिलकिस बलात्कार मामला: दोषी लापता नहीं, परिवारों ने कहा — ‘वकील से सलाह और आत्मनिरीक्षण’ कर रहे हैं

बलात्कार के 11 दोषियों की रिहाई पर गुजरात के गांवों में जश्न का माहौल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद गमगीन हो गया है, लेकिन मुस्लिम परिवारों के लिए प्रतिशोध का डर लौट आया है.

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दाहोद: गुजरात का रणधीकपुर गांव उत्सव और डर के बीच सहज रूप से झूलता रहता है. इसके 60 से अधिक मुस्लिम परिवारों के लिए बिलकिस बानो मामला इसका कारण है. उनका यहां से जाना और वापिस लौटना मामले के उतार-चढ़ाव के साथ मेल खाता है. पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट द्वारा 11 बलात्कारियों को वापस जेल भेजने के आदेश के बाद परिवारों ने एक बार फिर गांव छोड़ना शुरू कर दिया. हालांकि, वो लौट आए हैं, लेकिन यहां कम रहेंगे. उनका अगला प्रस्थान 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के साथ तय है.

बिलकिस के एक रिश्तेदार जो शुक्रवार को यहां परिवार के साथ लौटे हैं, ने कहा, “हमें डर लगता है.” इसलिए जब भी कोई समाचार या त्योहार होता है तो हम हमेशा देवगढ़ बैरिया के लिए निकल जाते हैं. पुरुष भी साथ जाते हैं, लेकिन ज़्यादातर बच्चे और महिलाएं वहां 2-3 दिन रुकते हैं और फिर लौट आते हैं. कोर्ट के फैसले के बाद भी ऐसा ही था.”

8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने अपने अगस्त 2022 के आदेश को पलट दिया, जिसने गुजरात सरकार को बलात्कारियों की माफी याचिका पर अनुकूल कार्रवाई करने की अनुमति दी, जिससे उन्हें 15 साल जेल की सजा के बाद रिहा किया गया था.

लेकिन 16 महीने पहले का जश्न का माहौल, जब 11 बलात्कारियों को रिहा किया गया था, मालाओं और मिठाइयों के साथ उनका स्वागत किया गया था, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दो सप्ताह के भीतर जेल लौटने का आदेश देने के बाद उदासीनता में तब्दील हो गया. साथ ही, फैसले से गुजरात के दाहोद जिले के एक साधारण गांव रणधीकपुर की तंग गलियों में प्रतिशोध का डर लौट आया है, जहां किसी भी सड़क संकेत के अभाव में पहुंचना मुश्किल है. मुस्लिम परिवार रणधीकपुर को अपने ‘सुरक्षित क्षेत्र’— गांव से एक घंटे की दूरी पर देवगढ़ बारिया शहर में राही-महद रिलीफ कॉलोनी — के लिए छोड़ देते हैं और कुछ दिनों बाद वापस लौट आते हैं.

गुजरात के दाहोद जिले में केंद्र में एक मंदिर के साथ रणधीकपुर गांव का केंद्र बिंदु | फोटो: मोनामी गोगोई/दिप्रिंट

एक अन्य रिश्तेदार ने उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन का ज़िक्र करते हुए कहा, “हम 22 जनवरी से पहले वापस जाएंगे, शायद 17 या 18 तारीख के आसपास. उस दिन बहुत बड़ा आयोजन होने वाला है, न?” संयोग से दोषियों के लिए अदालत के दो हफ्ते के नोटिस अवधि 22 जनवरी को समाप्त हो रही है.


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लापता या इंतज़ार?

रणधीकपुर गांव, जिसे सिंगवाड के नाम से भी जाना जाता है, जहां 11 दोषी और उनके परिवार रहते हैं, सुप्रीम कोर्ट द्वारा सब कुछ बदल देने तक सामान्य दिनचर्या में लौट आया था. सज़ा में छूट के बाद से “सामान्य ज़िंदगी” का आनंद ले रहे 11 दोषियों में से कम से कम नौ लोग कथित तौर पर ‘लापता’ हो गए हैं. मीडियाकर्मी दोषियों के ठिकाने के बारे में पूछताछ करने पहुंचते रहते हैं.

कुछ पड़ोसियों ने दोषियों के परिवारों के दावों का खंडन किया है कि वो लोग हफ्तों या महीनों पहले यहां से चले गए थे. इलाके के कई दुकानदारों ने अदालत के फैसले से एक दिन पहले, 7 जनवरी तक दोषियों को देखने का दावा किया, कम से कम एक ग्रामीण ने कथित तौर पर कहा, “अब आप उन्हें नहीं ढूंढ पाएंगे. वो सभी अपने घरों में ताला लगाकर चले गए.”

हालांकि, पुलिस ने इन दावों को खारिज किया है. एक अधिकारी ने मीडिया की उन खबरों का खंडन किया, जिसमें कहा गया था कि दोषी लापता हो गए हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, “कोई भी लापता नहीं है. दोषियों को कोर्ट का नोटिस ज़रूर मिला होगा. हमें कोई आधिकारिक पत्र नहीं मिला है. हमारा कर्तव्य शांति बनाए रखना है, जो हम कर रहे हैं.”

गुजरात के दाहोद जिले के रणधीकपुर गांव में एक बिजली के खंभे पर ‘जय श्री राम’ लिखा झंडा लटका है | फोटो: मोनामी गोगोई/दिप्रिंट

लेकिन पिछले दो दिनों में किसी भी गांव में कोई भी किसी दोषी को देखने की पुष्टि नहीं कर सका.

दोषियों के परिवारों की तरह रणधीकपुर थाने के अधिकारियों का भी कहना है कि वो सभी 11 के खुद लौटने का इंतज़ार कर रहे हैं.

पुलिस के एक अन्य अधिकारी ने कहा, “वो पहले ही बहुत कुछ झेल चुके हैं. नोटिस की अवधि समाप्त होने के बाद रिपोर्ट न करके अपने लिए और मुश्किलें क्यों खड़ी करना चाहेंगे?”

हालांकि, धालोद के एसपी राजदीप ज़ाला ने दिप्रिंट के कॉल और मैसेज का जवाब नहीं दिया.


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परिवारों की सामान्य ज़िंदगी

दोषी राधेश्याम शाह और राजूभाई सोनी के परिवार अपनी-अपनी दुकानों पर ग्राहकों में व्यस्त रहते हैं. वे पहले भी मीडियाकर्मियों से बात कर चुके हैं और दोषियों के ठिकाने के बारे में किसी भी सवाल से इनकार कर चुके हैं.

शाह की दुकान, भगवान दास कंगन स्टोर, मंदिर चौराहे से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है, जो गुलाबी फाइबर में लिपटे पतंग के मांझे की चरखियों से सजी है, जहां शाह की भाभी चूड़ियां, रोजमर्रा की चीज़ें और किराने का सामान बेचती हैं.

दोषी शाह के बारे में पूछे जाने पर भाभी ने संक्षिप्त जवाब में कहा, “वह यहां नहीं है; बाहर गए हैं.”

सोनी की दुकान में जो उनकी एक मंजिला इमारत के नीचे स्थित है, दोषी का बेटा एक बूढ़ी महिला से बात कर रहा है जो अपनी सोने की बालियां बेचना चाहती हैं. पास बैठीं उनकी दादी को कोर्ट के फैसले के बारे में नहीं बताया गया है.

दोषी राजूभाई सोनी के बेटे की ज्वेलरी की दुकान | फोटो: मोनामी गोगोई/दिप्रिंट

बेटे ने कहा, “यह फैसला एक झटका था. फिलहाल, मेरे पिता (सोनी) अपने सामाजिक कर्तव्य निभा रहे हैं. वह आत्मनिरीक्षण कर रहे हैं कि आगे क्या करना है.”

बेटे ने कहा कि पिता को वापस जेल में रिपोर्ट करने में अभी भी 10 दिन बाकी हैं, परिवार अपने वकीलों से सलाह ले रहा है.

इस बात पर जोर देते हुए कि पिता के साथ अन्याय हुआ है, बेटे ने कहा, “चारों ओर देखिए, लोगों से बात कीजिए, देखिए कि उनका क्या कहना है. हम सभी अच्छे समुदायों के लोग हैं.”

उनके पड़ोसी भी उनकी बेगुनाही की पुष्टि करते हैं. शाह की दुकान के बगल के एक दुकानदार ने भी ऐसा ही जवाब दिया.

नाम बताने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा, “जब घटना घटी, तो बहुत अफरा-तफरी थी. कोई दावा कैसे कर सकता है कि वही असली अपराधी हैं?”

शाह और सोनी के वकील ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि उनके मुवक्किल दो हफ्ते की अवधि समाप्त होने से पहले आत्मसमर्पण कर देंगे. कानूनी लड़ाई जारी रहने के बीच, मल्होत्रा ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर करने की योजना बना रहे हैं.

दिप्रिंट ने बिलकिस बानो की वकील शोभा गुप्ता से संपर्क किया था, लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका.


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कम से कम बातचीत

मंदिर चौक के ठीक आगे वाली गली, जहां मुस्लिम परिवार रहते हैं, चुंदरी रोड में यह बिल्कुल अलग नज़ारा है. बिलकिस बानो के कुछ रिश्तेदार अब भी यहीं रहते हैं.

जबकि शहर का चौक व्यस्त है, सड़कें लोगों और वाहनों से भरी हैं, इस मामले पर यहां सन्नाटा छाया हुआ है. दोषियों को लेकर दुकानदार चुप्पी साधे हुए हैं.

यहां का मुस्लिम समुदाय अपने हिंदू पड़ोसियों से दूरी बनाकर रखता है और हल्का सा भी डर का आभास होते ही पलायन कर जाता है. गांव के बाहर किसी से भी बातचीत करने पर रोक है. वो किसी नए व्यक्ति के साथ तभी गर्मजोशी से जुड़ते हैं जब देवगढ़ शहर में परिचित लोग दोनों पक्षों का परिचय कराते हैं.

गुजरात के दाहोद जिले के रणधीकपुर गांव में चुंदरी रोड के पीछे मुस्लिम परिवार | फोटो: मोनामी गोगोई/दिप्रिंट

मुस्लिम इलाकों में घुसने के रास्ते ज़रा संकरे हैं. घर शुरू होने से पहले बकरियों और भैंसों के लिए जगह और सूखी लकड़ियों और घास के ऊंचे ढेर हैं. क्षेत्र के 50 मुस्लिम परिवारों में से अधिकांश और दोषी सोनी के घर के पास के 10 अन्य अपने हिंदू समकक्षों की तुलना में अपेक्षाकृत गरीब हैं.

20 साल के एक मुस्लिम निवासी ने कहा, “हम ज्यादातर दैनिक मज़दूरी का काम करते हैं. इसके लिए हम हिंदुओं के साथ बातचीत करते हैं, लेकिन अन्यथा हम अपने तक ही सीमित रहते हैं. हम उनकी दुकानों से सामान नहीं खरीदते; हमारे पास अपने लोग हैं जो (हमें सामान) बेचते हैं.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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