नई दिल्ली: जामा मस्जिद से करीब 500 मीटर दूर चांदनी चौक में एक मंदिर के प्रांगण में 100 से अधिक बकरों ने विवेक जैन को घेर लिया. 30-वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट ने ईद-उल-अजहा (बकरीद) के दौरान 124 बकरों को बलि होने से बचाने के लिए 15 लाख रुपये इकट्ठा किए और अब वे उन्हें शांत करने के लिए स्पीकर से मंत्रों का जाप कर रहे थे.
उन्होंने एक मिमियाते बकरे को शांत करते हुए कहा, “यह शांति और सकारात्मकता लाने वाला एक शक्तिशाली जैन मंत्र है. ये बकरें इसलिए डर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें वध के लिए इकट्ठा किया गया है. उन्हें नहीं पता कि हमने उन्हें नई ज़िंदगी दी है.”
धर्मपुर इलाके में नया जैन मंदिर ईद से पहले बकरा बाज़ारों की तरह ही गुलज़ार था. हालांकि, यहां उत्साह कसाई के ब्लेड से बकरों को “बचाने” को लेकर था. चांदनी चौक में रहने वाले जैन लोगों के लिए यह बकरा दर्शन का दिन था. बकरों की झलक पाने के लिए लोग मंदिर में उमड़ रहे थे. कुछ ने उनके चारे के लिए पैसे दान किए, दूसरों ने गर्व से उन्हें दुलारा और कुछ ने अपने धर्म के गुणों का बखान किया.
शाकाहार और क्रूरता पर मुख्य बहस के बीच जो हर साल मुस्लिम त्योहारों के दौरान छिड़ जाती है, दिल्ली में जैन समुदाय अपनी नई पॉपुलैरिटी का लुत्फ उठा रहा था. वो पुरानी दिल्ली में गॉसिप का नया मुद्दा हैं और ऑनलाइन भी टॉप ट्रेंड्स में थे, हैशटैग “जैन” एक्स पर 21,000 से अधिक पोस्ट के साथ ट्रेंड कर रहा था. सभी — हिंदू, मुस्लिम और सिख — को इस कम लोकप्रिय जैन मंदिर के बारे में पता चल गया, जो पुरानी दिल्ली की गलियों में छिपा हुआ है, जिसने इन बकरों को “बचाने” के लिए लाखों खर्च किए.
जैन ने लोगों को बकरों को दिखाने के लिए प्रांगण में ले जाते हुए कहा, “हमें खुद पर गर्व है. देश भर से हमारे समुदाय के सदस्यों के योगदान ने इसे संभव बनाया है. हम इसे सामाजिक कल्याण कहते हैं और यही हमारा धर्म हमें सिखाता है. यह चांदनी चौक के जैन समुदाय के लिए एक ‘ऐतिहासिक पल’ है. यह हमारा पहला मौका था और हम यहां से आगे ही बढ़ेंगे.”
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थोपने का दिखावा
28-वर्षीय चिराग जैन याद करते हैं कि इसकी शुरुआत उनके गुरु संजीव के फोन कॉल से हुई. संजीव ईद पर बकरों के वध से परेशान थे.
चिराग ने कहा, “वे इस बारे में कुछ करना चाहते थे और तभी यह तय हुआ कि हम सभी बकरों को तो नहीं बचा सकते, लेकिन जितना हो सके उतनों को बचा लें.”
हम इसे सामाजिक कल्याण कहते हैं और यही हमारा धर्म हमें सिखाता है. चांदनी चौक के जैन समुदाय के लिए यह एक ‘ऐतिहासिक पल’ है
— 30-वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट विवेक जैन जिन्होंने 15 लाख रुपये जुटाए
जल्द ही योजना बनाई गई. 15 जून की शाम को जैन समुदाय के 25 लोगों की एक टीम बनाई गई. पैसे के लिए व्हाट्सएप पर मैसेज भेजे गए. इसके बाद टीम ने उन इलाकों का सर्वे किया जहां बकरों को बेचा जा रहा था.
चिराग ने कहा, “हमने उनके (मुस्लिम) समुदाय के सदस्य बनकर बकरों की कीमत पूछी. हमने बकरा मंडियों का भी सर्वे किया.”
16 जून को टीम गुप्त रूप से जामा मस्जिद, मीना बाज़ार, मटिया महल और चितली कबर जैसे पुरानी दिल्ली के इलाकों में अलग-अलग बकरा बाज़ारों में फैल गई. सभी सदस्यों को निर्देश दिया गया कि वे कुर्ता पहनें और इस तरह से बात करें कि वे बकरे खरीदते समय किसी भी मुश्किल से बचने के लिए लोगों के बीच घुलमिल सकें.
हमने (मुस्लिम) समुदाय के सदस्य बनकर बकरों की कीमत पूछी. हमने बकरा मंडियों का सर्वे किया.
विवेक ने कहा, “हमें डर नहीं था, लेकिन हम नहीं चाहते थे कि खरीदार हमारी भावनाओं से खेलें. अगर उन्हें पता होता कि हम गैर-मुस्लिम हैं, तो वे हमें बकरे ज़्यादा कीमत पर बेचते और हम ज़्यादा से ज़्यादा बकरियों को बचाना चाहते थे.”
खरीद प्रक्रिया में कई बार कड़े मोलभाव की ज़रूरत पड़ी, लेकिन आखिरकार बकरों को औसतन 10,000 रुपये प्रति बकरे की कीमत पर खरीदा गया.
विवेक पुरानी दिल्ली की मंडियों में इन बकरियों के साथ जिस तरह से व्यवहार किया जाता था और उन्हें बेचा जाता था, उससे हैरान थे.
उन्होंने कहा, “ऐसा लगा जैसे हम किसी स्ट्रीट वेंडर से कपड़े खरीद रहे हैं. बकरों को एक साथ ठूंसा गया था और उन्हें ठीक से संभाला तक नहीं जा रहा था. इन जीवित, सांस लेने वाले जीवों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं थी.”
इस बीच, मंदिर की धर्मशाला के प्रांगण को जिसका इस्तेमाल आमतौर पर शादियों और धार्मिक आयोजनों के लिए किया जाता है, बचाए गए बकरों को रखने के लिए खाली किया गया. जब शाम को टीमें बकरों को लेकर मंदिर लौटीं, तो वहां इंतज़ार कर रहे अन्य समुदाय के सदस्यों ने उनकी सफलता पर खुशी जताते हुए उनका स्वागत किया.
विवेक ने मुस्कुराते हुए कहा, “आखिरकार, हम 100 से ज़्यादा बकरों को बचाने में कामयाब रहे. इतनी खुशी थी.”
उन्होंने बताया कि उन्होंने गुजरात, हैदराबाद, केरल, पंजाब और महाराष्ट्र के जैन समुदाय के सदस्यों से 15 लाख रुपये जुटाए थे. उसी शाम, विवेक, चिराग और अन्य लोगों ने बची हुई रकम का इस्तेमाल भिंडी और पालक जैसे चारे को खरीदने में किया, जिसकी बोरियां प्रांगण के बाहर रखी हुई थीं.
‘हमें कोई आपत्ति नहीं’
व्हाट्सएप और फेसबुक ग्रुप पर मैसेज में अपील की गई, “कृपया इस नेक काम में योगदान दें ताकि हम कुछ जानवरों को वध होने से बचा सकें. हम इन बकरों को जैन द्वारा संचालित गौशालाओं और बकराशालाओं में भेज देंगे.”
विवेक ने स्वीकार किया कि उन्होंने नहीं सोचा था कि वो बकरों को खरीद पाएंगे, लेकिन उनकी अपील ने जैन समुदाय के लोगों को प्रभावित किया, दान के लिए अनुरोध आने लगे, जिससे उन्हें एक दिन में 15 लाख रुपये जुटाने में मदद मिली.
फिर बड़ा सवाल आया — 124 “बचाए गए” बकरों को रखा कहां जाए?
चांदनी चौक में हैंडलूम की दुकान चलाने वाले अमन जैन ने कहा कि बागपत में जैन द्वारा संचालित बकरी आश्रय को दो दिनों के भीतर उन्हें रखने के लिए चिन्हित किया गया है.
यह उनका धर्म है और अगर जानवरों (जैसे बकरियों) को बचाना इसका हिस्सा है, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है. सभी को वो करना चाहिए जिससे उन्हें सवाब मिले
— चांदनी चौक निवासी 50-वर्षीय मुश्ताक
बागपत के अमीनगर सराय में 40-वर्षीय मनोज जैन नए बकरों के लिए बाड़े का निर्माण कर रहे थे, जिन्हें दूसरों के साथ घुलने-मिलने से पहले 15 दिनों के लिए अलग रखा जाएगा. आठ साल पहले, बकरों को वध से बचाने के लिए मजबूर होने के बाद मनोज ने बकराशाला शुरू की थी. उनके आश्रय में वर्तमान में 615 बकरियां हैं, जिन्हें पूरे भारत में ईद के जश्न से बचाया गया था.
“अहिंसा परमो धर्म” के सिद्धांत पर चलने वाले आश्रय गृह ने पिछले साल बकरीद के दौरान 250 बकरे खरीदे थे.
मनोज जैन ने फोन पर बताया, “याद रखें, ये सभी नर (बिली) बकरे हैं, मादाएं नहीं. इस त्यौहार के दौरान नर बकरों का वध किया जाता है. हमारे आश्रय ने अंत तक इन बकरों की देखभाल की जिम्मेदारी ली है.”
उन्होंने कहा कि आश्रय गृह पूरी तरह से भारत भर के समुदाय के सदस्यों के योगदान पर चलता है.
ईद की बधाई देने के लिए निकले बुजुर्ग मुस्लिम इमरान और मुश्ताक जैन मंदिर में रुके. इमरान ने बताया, “यह वो मंदिर है, जिसमें सभी बकरें रखे गए हैं.”
इमरान ने रविवार को जैन लोगों को बकरों को ले जाते हुए देखा, लेकिन उन्हें इसका कारण तब समझ में आया, जब सोमवार सुबह इंटरनेट पर घटना के वीडियो और खबरें छा गईं.
45-वर्षीय इमरान ने कहा, “हमारा धर्म हमें बकरीद पर बकरों की बलि देने के लिए कहता है, जो हम खुदा की इबादत के लिए करते हैं. हम इसे मजबूर नहीं करते या बढ़ावा नहीं देते.”
उनके दोस्त मुश्ताक ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह उनका धर्म है और अगर जानवरों (जैसे बकरों) को बचाना इसका हिस्सा है, तो हमें कोई आपत्ति नहीं है. सभी को वो करना चाहिए, जिससे उन्हें सवाब मिले.”
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