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Monday, 18 November, 2024
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UP से बाहर जाकर भी नहीं थमा अतीक अहमद का कारनामा, गुजरात की जेल से चलाया अपना साम्राज्य

यूपी के सबसे खूंखार बाहुबलियों में से 2 अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी को योगी अलग-अलग राज्यों में जेल भेजते रहे हैं, लेकिन फिर भी वह उनके माफिया राज को रोकने में नाकाम रहें.

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प्रयागराज के एक रियल एस्टेट व्यवसायी जीशान मोहम्मद के घर में पंद्रह हथियारबंद लोगों ने धावा बोल दिया और उनके परिवार के सदस्यों पर अपनी बंदूकें और राइफलें तान दीं. 

फिर उसमें से एक, मोहम्मद अली ने अपना फोन निकाला, स्पीड-डायल किया और जीशान पर चिल्लाया, ‘मेरे पिता अतीक अहमद से बात करो.’

यह सुनने के बाद सबके चेहरे डर से लाल हो गए. उस वक्त इलाहाबाद (अब प्रयागराज) का खूंखार माफिया अतीक गुजरात की साबरमती जेल में बंद था.

फोन पर आवाज आई, ‘मैं अतीक अहमद बोल रहा हूं.’ यह दिसंबर 2021 की घटना थी.

यह एक बॉलीवुड फिल्म के सीन की तरह था. अतीक अहमद ने जीशान से मोहम्मद अली के खाते में एक निश्चित राशि स्थानांतरित करने करने को कहा, वरना गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी.

जीशान ने कहा, ‘जब मैंने मना किया, तो उसने मेरे परिवार और मुझे मारने की धमकी दी. उन्होंने कहा या तो राशि भेजो या अपनी जमीन मेरी पत्नी के नाम पर स्थानांतरित करो.’ जीशान ने आरोप लगाया की अतीक साबरमती जेल से मुझसे बात कर रहा था. उसकी इजाजत के बिना इलाहाबाद में पत्ता भी नहीं हिलता. वह यह सब सलाखों के पीछे से करता है.

जब उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर से राजनेता या बाहुबली बने अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी को पहली बार गिरफ्तार किया गया, तो पुलिस, वकीलों और राजनेताओं ने इसे ‘स्थानीय अपराध नेटवर्क’ को तोड़ने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया था. उनका मानना था कि दो अपराधियों के सलाखों के पीछे होने से उनका जबरन वसूली और अपहरण का साम्राज्य खत्म हो जाएगा.

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (जेल) जीएल मीणा ने 2017 में कहा था, ‘सांठगांठ को तोड़ने के लिए, कैदियों को एक जेल से दूसरे जेल में स्थानांतरित कर दिया जाता है.’

लेकिन जब तक पिछले महीने उमेश पाल की हत्या को लेकर अतीक मुसीबत में नहीं पड़ा, जीशान जैसी घटनाओं ने दिखाया कि कैसे वह दूर रहकर भी अपराध में सक्रिय रहा. जेल और पुलिस नेटवर्क के माध्यम से उसका काम चलता रहा. 2005 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विधायक राजू पाल और उनके दो सुरक्षाकर्मियों की हत्या के मुख्य गवाह उमेश की 24 फरवरी को प्रयागराज के धूमनगंज में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. लगभग 200 ऑन-ग्राउंड हैंडलर अभी भी अतीक के आदेश का पालन करते हैं, शहर के शीर्ष व्यवसायियों और रियल एस्टेट एजेंटों से पैसे वसूलते हैं.

जेल से चल रहा है क्राइम रैकेट

उमेश पाल की हत्या ने उत्तर प्रदेश में माफिया व्यवस्था को खत्म करने के योगी आदित्यनाथ सरकार के दावों की पोल खोल दी है. पाल की हत्या के 24 घंटों के भीतर, अतीक अहमद के सहयोगियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चला दिया गया और पुलिस ने पाल की हत्या से जुड़े एक संदिग्ध को मुठभेड़ में मार गिराया. 

अगर इस घटना में अतीक अहमद वास्तव में शामिल था, तो यूपी सरकार की कार्रवाई के बीच यह एक नई समस्या है कि कानून के डर से दूर माफिया जेल में बैठकर अपना आपराधिक कारोबार चला रहे हैं. उनके लिए जेल अब चिंता का कारण नहीं है.

पाल की पत्नी की शिकायत के आधार पर धूमनगंज पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में अतीक अहमद का नाम दर्ज है. एक स्टेशन ऑफिसर ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, ‘हर कोई जानता है कि उसने हत्या को अंजाम दिया.’ 

पुलिस हलकों के अंदर, पाल की हत्या के बारे में चर्चा मृतक से अतीक अहमद की लंबे समय से चली आ रही दुश्मनी पर समाप्त नहीं होती है. मानना है कि वह अपने लुप्त हो रहे गैंग को दोबारा पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा है. नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को अहमद के घटते डर और जबरन वसूली की उसकी धमकियों के सामने लोगों के न मानने के बारे में बताया. दरअसल, अक्टूबर 2022 में लखनऊ की एक विशेष सीबीआई अदालत में पेश होने के बाद, अहमद ने सीएम आदित्यनाथ को ‘बहादुर और ईमानदार’ कहा था. कई लोगों ने इस कथन को उनकी कमजोर होती पकड़ के रूप में देखा.

लेकिन पुलिस अधिकारियों का कहना है कि पाल की हत्या अहमद की वापसी का खेल है.


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रिश्वत, विशेष उपचार

मऊ से पांच बार के विधायक मुख्तार अंसारी का मामला अलग नहीं हैं. लेकिन मऊ पुलिस का कहना है कि वह इस समय थोड़ा ज्यादा सावधान है, वह तभी हस्तक्षेप करता है जब उसके ऑन-ग्राउंड हैंडलर चीजों को सुलझाने में असमर्थ होते हैं.

2019 में जबरन वसूली के एक मामले में उन्हें पंजाब की रूपनगर जेल भेज दिया गया था, लेकिन यूपी में उनका आपराधिक साम्राज्य फलता-फूलता रहा. उनके बेटे, अब्बास अंसारी और अन्य लोगों ने उनके निर्देशों का पालन करते हुए उनके नाम पर कई अपराध किए.

मऊ के मानवाधिकार कार्यकर्ता छोटू लाल गांधी को अंसारी के गुर्गों से लगातार धमकियां मिल रही हैं. गांधी लगातार विरोध करके और प्रशासन को पत्र लिखकर अंसारी और उनके आदमियों के लिए बाधाएं खड़ी करते रहे हैं.

उन्होंने जोर देकर कहा, ‘मुख्तार अंसारी ने मऊ में सिर्फ गुंडागर्दी की है. उन्होंने गरीब लोगों की जमीन पर कब्जा कर लिया है.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि वह अंसारी की धमकियों के आगे झुकने से इनकार करते हैं.

अंसारी के बेटे अब्बास को नवंबर 2022 में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किए जाने के बाद चित्रकूट जेल में कैद किया गया था. उसने भी जेल अधिकारियों के साथ एक मधुर, अच्छा व्यवहार बनाने की कोशिश की थी.

फरवरी में एक औचक निरीक्षण के दौरान, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के विधायक को जेल में विशेष उपचार का आनंद लेते हुए पकड़ा गया था. 7 मार्च को चित्रकूट जेल अधीक्षक अशोक कुमार सागर, जेलर संतोष कुमार और वार्डर जगमोहन सिंह को इसी मामले में गिरफ्तार कर लिया गया.

बरेली पुलिस ने कहा, ‘जेल के तीनों अधिकारी नियमित रूप से अब्बास से रिश्वत लेते थे और उनकी पत्नी निकहत बानो और ड्राइवर को जेल के अंदर सेलफोन ले जाने की अनुमति देते थे.’

इसी तरह उनपर ‘विशेष उपचार’ के भी आरोप थे. मुख्तार अंसारी जब वह रूपनगर जेल में बंद था, तो उनपर परिवार के सदस्यों को बाहर से खाना मंगाने और सेलफोन मंगाने का आरोप था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर उन्हें 2021 में यूपी की बांदा जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था.

अदालत ने कहा था, ‘एक दोषी या एक अंडरट्रायल जो कानून की अवहेलना करता है, एक जेल से दूसरे जेल में अपने स्थानांतरण का विरोध नहीं कर सकता है, और जब कानून के शासन को चुनौती दी जा रही है तो अदालतें असहाय तमाशबीन नहीं हो सकती हैं.’ यह फैसला आदित्यनाथ सरकार द्वारा एक रिट याचिका दायर करने के बाद आया था जिसमें अंसारी को पंजाब से यूपी स्थानांतरित करने की मांग की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वह रूपनगर में अपने सेल से ‘अवैध आपराधिक गतिविधियों’ का संचालन कर रहा था. डेक्कन क्रॉनिकल की एक रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपी पुलिस को अंसारी ने 14 फरवरी 2019 और 14 फरवरी 2020 के बीच मधुमेह मेलेटस, त्वचा एलर्जी, उच्च रक्तचाप, पीठ दर्द, और गले का संक्रमण जैसी बीमारियों को लेकर 26 बार शिकायत की थी.

अंसारी ने कथित तौर पर जेलरों को धमकी भी दी है. 2003 में जेल अधिकारी को गाली देने और बंदूक तानने के आरोप को लेकर उन्हें 2022 में सात साल की सजा सुनाई गई थी. अंसारी ने जेलर एसके अवस्थी से मिलने आए लोगों को चेक करने पर जान से मारने की धमकी दी थी.

उनका जेल स्वैग अब पुलिस लोकगीत का हिस्सा है.

आनंद लाल बनर्जी, पूर्व डीजीपी (2014-2017), अंसारी को 2010 में गाजीपुर जेल में दी गई विलासिता के बारे में एक कहानी बताते है.

बनर्जी कहते हैं, ‘वह रात के खाने के लिए बाहर से लाई गई मछलियों को रखने के लिए जेल में तालाब का उपयोग करता था. वह मछली पकड़वाता था और जब भी उनका मन हुआ तो बनवा कर खा लेता था.’

वह कहते हैं कि केवल एकांत कारावास में अंसारी जैसे लोग शामिल हो सकते हैं, ‘लेकिन इसका निर्णय न्यायपालिका से आना है.’

जेल से चला रहा है आतंक का राज

2018 में, लखनऊ के एक रियल एस्टेट व्यवसायी मोहित जायसवाल को अतीक अहमद के संचालकों द्वारा कथित तौर पर अगवा कर लिया गया था और देवरिया जेल परिसर में ले जाया गया था, जहां अहमद उस समय बंद था. प्राथमिकी के अनुसार, जायसवाल को ‘पिटाई’ की गई और उसे गैंगस्टर के नाम पर 40 करोड़ रुपये की संपत्ति हस्तांतरित करने के लिए मजबूर किया गया.

शिकायतकर्ता के मुताबिक, पुलिस की पूरी जानकारी में ऐसा हुआ. इतना ही नहीं, जायसवाल के साथ अहमद की तीन घंटे की मुलाकात और पिटाई को भी जेल के सीसीटीवी कैमरों से हटा दिया गया.

जायसवाल ने कहा था, ‘मैं चिल्लाया, रोया, लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आया.’ इस घटना के बाद, अतीक अहमद को जनवरी 2019 में बरेली जेल, फिर अप्रैल में नैनी जेल और जून में वापस गुजरात की साबरमती जेल में स्थानांतरित कर दिया गया.

अहमद का आतंक बाहरी दुनिया तक ही सीमित नहीं है.  जेल के अंदर रखने पर भी डर बना ही रहता है. बरेली जेल में स्थानांतरित किए जाने के कुछ दिनों बाद, जिला प्रशासन ने यूपी सरकार को पत्र लिखकर अहमद को दूसरी जेल में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया. और यह इस तरह की पहली दलील नहीं थी. देवरिया जेल के अधिकारियों ने जुलाई 2017 में इसी तरह का अनुरोध किया था, जब अहमद के बैरक में एक औचक छापेमारी के दौरान सिम कार्ड, फोन, चाकू और पेन ड्राइव पाए गए थे.

अहमद के साथ अब साबरमती जेल में, उसका भाई अशरफ, जो जुलाई 2020 से बरेली जेल में कैद है, जबरन वसूली का धंधा चलाता है. हालांकि, यूपी पुलिस के एक शीर्ष सूत्र के अनुसार, अहमद की स्पष्ट अनुमति के बिना कुछ भी नहीं होता है.

धूमनगंज पुलिस ने 2007 में अहमद गिरोह को ‘अंतरराज्यीय गिरोह 227’ के रूप में सूचीबद्ध किया था. आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार, आज तक इसके लगभग 150 सदस्य हैं.

धूमनगंज पुलिस स्टेशन के एक हेड कांस्टेबल ने कहा, ‘उनके कई हैंडलर अभी भी बाहर हैं, जिनमें खालिद, मोहम्मद मिया, जावेद और अब्बुसद शामिल हैं. वे फरार हैं.’ अहमद के पांच बेटे हैं, जिनमें से दो-अली अहमद और उमर अहमद-जेल में हैं. अली नैनी जेल में है, जबकि उमर लखनऊ जिला जेल में है. उमेश पाल की हत्या का आरोपी उसका तीसरा बेटा असद अहमद फरार है.

जेल के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि ये गैंगस्टर जेल कर्मचारियों के परिवार के इतिहास को खोदते हैं और उन्हें धमकाने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं.

दिल्ली के तिहाड़ जेल में काम कर चुके एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘और इसी तरह रिश्वत व्यवस्था सामने आती है. वे जेल स्टाफ को रिश्वत देते हैं और अपना काम करवाते हैं. जो मना करते हैं उनके परिवार के सदस्यों को मार दिया जाता है.’

हालांकि, डीजीपी जेल (यूपी) आनंद कुमार इसे ‘अतीत की बात’ कहते हैं और कहते हैं कि जेल अब नई तकनीक से लैस हैं. उनका दावा है कि चीजें कैसे काम करती हैं, इसमें कई बदलाव हुए हैं.

कुमार कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश की हर जेल में औसतन 60-70 कैमरे होते हैं, जो आकार के आधार पर अलग-अलग होते हैं. हमारे पास एक वीडियो कॉल वॉल भी है, और निगरानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए की जाती है.’

हालाँकि, यह ‘सफलता’ असंगत है और कई चीजों पर काम हो ही रहा है.

जून 2007 और सितंबर 2009 के बीच यूपी डीजीपी के रूप में काम कर चुके विक्रम सिंह ने कहा, ‘मोबाइल जैमर और सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, लेकिन कई मामलों में वे खराब हैं. सरकार की भी मिलीभगत है. हमें बेहतर जेल सुधारों की आवश्यकता है. केवल बेदाग गरिमा वाले लोगों को ही जेल चलाने की अनुमति दी जानी चाहिए.’

8 मार्च को, यूपी पुलिस ने भुगतान के एवज में अहमद के भाई अशरफ और उसके सहयोगियों के बीच बैठकों को सुविधाजनक बनाने के लिए बरेली जेल से दो गिरफ्तारियां कीं – जेल प्रहरी शिवहरि अवस्थी और जेल कैंटीन से जुड़े एक दयाराम.

अधिकारियों के मुताबिक, दयाराम कैंटीन में सब्जियां सप्लाई करने के दौरान कैश और अन्य सामान ट्रांसफर करता था. अवस्थी और दयाराम ने यह सुनिश्चित किया कि अशरफ सप्ताह में दो बार एक ही आईडी पर एक दर्जन लोगों से मिल सके. पुलिस ने दो मोबाइल फोन बरामद किए हैं जिनका इस्तेमाल अशरफ कर रहा था.

एक जेल ने कहा, ‘आपको लगता है कि सरकार यह नहीं जानती है कि अशरफ और अतीक जेल से अपना साम्राज्य चला रहे हैं? यह ठीक उनकी नाक के नीचे हो रहा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यह एफआईआर और बुलडोज़र भड़कते हुए गुस्से को शांत करने के लिए एक कार्रवाई है. थोड़ी देर में यह फिर से शुरू हो जाएगा.’

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस फ़ीचर को अंग्रज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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