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Tuesday, 3 December, 2024
होमफीचरअसम में चल रही है वॉलीबॉल की क्रांति, स्थानीय विजेता एक के बाद एक गांव में कर रहे हैं रैलियां

असम में चल रही है वॉलीबॉल की क्रांति, स्थानीय विजेता एक के बाद एक गांव में कर रहे हैं रैलियां

पूर्व भारतीय कप्तान अभिजीत भट्टाचार्य की ब्रह्मपुत्र वॉलीबॉल लीग ने इस साल असम के 144 गांवों की 390 टीमों के साथ अपने चौथे एडिशन की शुरुआत की.

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दिल्ली/मोरीगांव: असम के मोरीगांव जिले के कम प्रसिद्ध गांव चिकाबोरी में लगभग 80किशोर लड़के और लड़कियां अपने स्पाइक्स, ब्लॉक और सर्व की प्रैक्टिस कर रहे हैं. उनके पास अच्छे जूते या घुटने और कोहनी के पैड नहीं हैं, लेकिन उन्हें कभी-कभार लगने वाली चोट से कोई फर्क भी नहीं पड़ता. उनका ध्यान केवल बॉल पर है. यह क्रिकेट, फुटबॉल या बास्केटबॉल नहीं है जिसने उनका ध्यान खींचा है — बल्कि वॉलीबॉल ने.

ब्रह्मपुत्र वॉलीबॉल लीग (बीवीएल) नामक घरेलू पहल की बदौलत इस खेल ने पूरे असम में चिकाबोरी और अन्य गांवों और कस्बों पर कब्ज़ा जमा लिया है और यह सब असम के पूर्व भारतीय वॉलीबॉल कप्तान 44-वर्षीय अभिजीत भट्टाचार्य के कारण है, जिन्होंने 1995-2005 के बीच सौ से अधिक मैचों में देश का प्रतिनिधित्व किया था.

भट्टाचार्य बीवीएल के माध्यम से असम के खेल के प्रति प्रेम को प्रसारित कर रहे हैं और लीग को असम में एक शांत क्रांति के जरिए बदल रहे हैं, जब से उन्होंने 2019 में पहल शुरू की, ‘आंदोलन’ ने जोर पकड़ लिया, जिसमें कोच, प्रशिक्षकों और स्वयंसेवकों के साथ 160 बीवीएल ट्रेनिंग केंद्रों में हज़ारों बच्चे शामिल हो गए.

भट्टाचार्य, असम में सबसे बड़े घरेलू खेल क्रांति का नेतृत्व करने के साथ-साथ ओएनजीसी के नई दिल्ली कार्यालय में 9-5 की नौकरी भी करते हैं, ने कहा, “हमने कहा, खेल खेलने के लिए अपने घर से बाहर आओ और वह खेल वॉलीबॉल हो, लेकिन कम से कम अपने घर से बाहर आएं.”

सोनितपुर जिले के बहबरी केंद्र में एक ट्रेनिंग सेशन के दौरान अभिजीत भट्टाचार्य छोटे बच्चों को निर्देश दे रहे हैं | फोटो: फेसबुक/अभिजीत भट्टाचार्य

इस साल अक्टूबर में जब बीवीएल का चौथा सीज़न शुरू हुआ, तो 158 गांवों से 390 टीमें थीं. लीग के पहले एडिशन में शामिल होने वाले 35 गांवों की 50 टीमों से यह संख्या बढ़ गई थी. फिर भी, ये आंकड़े केवल एक अंश हैं, जो केवल लीग खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. टूर्नामेंट के बाहर, बीवीएल केंद्रों पर हर दिन 10,000 से अधिक बच्चे पसीना बहाते हैं.

सिंथेटिक कोर्ट और चमकदार रोशनी वाले कोई फैंसी इनडोर स्टेडियम नहीं हैं जैसा कि टेलीविज़न वॉलीबॉल खेलों में देखा जाता है. बीवीएल ट्रेनिंग केंद्र सामुदायिक मैदान या किसी के घर के पीछे खाली जगह या खेतों की ज़मीन पर बने अस्थायी कोर्ट हैं, लेकिन जिस तेज़ी से यह खेल खेला जाता है वह प्रोफेशनल टूर्नामेंटों से एकदम मेल खाता है.

चित्रण: सोहम सेन/दिप्रिंट

चिकाबोरी के निवासी 34-वर्षीय रंजीत दास ने कहा, “हमारे गांव में वॉलीबॉल काफी लोकप्रिय है, लेकिन हम सुविधाओं से वंचित रह गए. जब बीवीएल ने हमसे संपर्क किया, तभी हम इस केंद्र को शुरू कर पाए.”

वह प्रगति वॉलीबॉल कोचिंग सेंटर के प्रभारी हैं, जिसमें नामघर (प्रार्थना घर) के बगल में दो आयताकार कोर्ट हैं और बीवीएल इसका पोषण करता है. इस साल प्रगति के 36 खिलाड़ी ब्रह्मपुत्र वॉलीबॉल लीग-4 का हिस्सा हैं और अब राज्य खेल प्रतियोगिता, खेल महरान में मोरीगांव जिले का प्रतिनिधित्व करते हुए फाइनल में पहुंचे हैं.

यह सब कॉर्पोरेट प्रबंधन से अछूता और आकर्षक मार्केटिंग से रहित, व्यवस्थित रूप से सामने आ रहा है. असम में वॉलीबॉल केवल एक खेल नहीं है — यह राज्य के ग्रामीण परिदृश्य में गहन सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को प्रेरित कर रहा है.

केवल 14,000 रुपये की मामूली राशि में कोई भी व्यक्ति एक टीम का मालिक बन सकता है, जिसमें खिलाड़ियों की किट, यात्रा और विविध खर्च शामिल होंगे.


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100 गेंदें, 100 खिलाड़ी, 100 ट्रेनिंग केंद्र

मोरीगांव से 150 किलोमीटर से अधिक दूर, दर्रांग जिले के एक अन्य गांव हज़ारीपाका में दिसंबर की शुरुआत धमाकेदार रही. इस साधारण गांव में किसी और ने नहीं बल्कि ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता और वॉलीबॉल की दुनिया में एक जीवित किंवदंती ब्राजील के गिबा ने दौरा किया.

चमकते कैमरों और उपयुक्त गणमान्य व्यक्तियों के बजाय, यह अवसर एक अलग तरह की ऊर्जा से गूंज उठा — तीन वॉलीबॉल महान खिलाड़ियों की उपस्थिति. गिबा के अलावा दो अन्य ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता, क्यूबा के मिरेया लुइस और सर्बिया के व्लादिमीर ग्रबिक ने भट्टाचार्य द्वारा आयोजित फेडरेशन इंटरनेशनेल डी वॉलीबॉल (एफआईवीबी) और बीवीएल के बीच एक ज्ञान-हस्तांतरण कार्यक्रम के हिस्से के रूप में इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

Volleyball in Assam
मोरीगांव जिले के चिकाबोरी गांव में प्रगति वॉलीबॉल कोचिंग सेंटर में प्रैक्टिस करते हुए युवा वॉलीबॉल खिलाड़ी | फोटो: करिश्मा हसनत/दिप्रिंट

हालांकि, भारत की राष्ट्रीय टीम के लिए खेलते हुए भट्टाचार्य 10-12 वर्षों तक असम से दूर रहे, फिर भी भट्टाचार्य ने अपने गृह राज्य से कभी संपर्क नहीं तोड़ा.

उन्होंने कहा, “जब मैंने खेल से संन्यास लिया, तो मैं 2008-09 में वहां (असम) चला गया. इस तरह समुदाय और वॉलीबॉल प्रमोशन के साथ मेरा जुड़ाव शुरू हुआ.”

रिटायरमेंट से पहले ही तेज़पुर में अपने घर की अचानक यात्रा के दौरान, उन्होंने अपने जिले के एक गांव में वॉलीबॉल की लोकप्रियता के बारे में सुना. वह युवाओं के बीच खेल के प्रति जुनून से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आठ भाग लेने वाली टीमों के साथ एक ज़मीनी स्तर के टूर्नामेंट का आयोजन करने के लिए अपनी छुट्टियां बढ़ा लीं.

यह लीग एक ऐसा मंच है, जहां अगर आपके पास टैलेंट है तो आप एक टीम ला सकते हैं और उसका प्रदर्शन कर सकते हैं

— अभिजीत भट्टाचार्य, बीवीएल संस्थापक

भट्टाचार्य ने कहा, “शाम को जब एक टीम जीतने लगी, तो उस गांव के लोग खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाने के लिए उनके पास इकट्ठा होने लगे. उन्हें कुछ करने को मिला. वो एक शुरुआत थी.”

उन्होंने महसूस किया कि स्थिति “हर जगह एक जैसी” थी. जल्द ही, उन्होंने कुछ पूर्व खिलाड़ियों के साथ मिलकर एक अकादमी शुरू की और मेहनती खिलाड़ियों की तलाश की. हालांकि, दस साल तक तो उनकी कोशिशें सोनितपुर जिले तक ही सीमित रहीं.

बीवीएल के लिए बीज 2018 में बोए गए थे जब भट्टाचार्य ने असम के पूर्व खिलाड़ियों के साथ मिलकर असम वॉलीबॉल मिशन 100 नामक एक परियोजना शुरू की थी.

लक्ष्य आश्चर्यजनक रूप से सरल था: बच्चों को सौ गेंद दी जाएं. वहां से, इसका विस्तार 100 नए वॉलीबॉल खिलाड़ियों को खोजने और फिर 100 ट्रेनिंग सेंटर शुरू करने तक हुआ.

शुरुआती दिनों में उनके पास पैसे और स्पष्ट दिशा की कमी थी. भट्टाचार्य को याद है कि उनके दोस्तों ने उनसे राज्य के वॉलीबॉल संघ में शामिल होने और बदलाव शुरू करने के लिए इसके सचिव या अध्यक्ष का पद संभालने के लिए कहा था, लेकिन वह अपनी बात पर अड़े रहे.

चिकाबोरी गांव के लगभग 150 घरों में से प्रत्येक में एक या दो बच्चे प्रगति कोचिंग सेंटर में वॉलीबॉल खेलते हुए | फोटो: करिश्मा हसनत/दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “मैं उन पदों को लेने में कभी भी सहज नहीं था. मैंने कहा, अगर आप वॉलीबॉल का समर्थन करना चाहते हैं, तो आइए कुछ बहुत ही बुनियादी और छोटी चीज़ से शुरुआत करें- जैसे कि गेंद.”

इस दृष्टिकोण ने खेल की सामर्थ्य और लोकप्रियता के साथ मिलकर क्रांति को बढ़ाने की शुरुआत तेज़ कर दी.

बीवीएल के लिए भट्टाचार्य का दृष्टिकोण कोर्ट से दूर तक फैला हुआ है. वह सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए भी इस मंच का उपयोग कर रहे हैं. मासिक धर्म स्वच्छता सहित संवेदनशील विषयों को सीधे तौर पर निपटाते हैं.


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विस्तृत नेटवर्क, गहरे बंधन

भट्टाचार्य को सिर्फ वॉलीबॉल का शौक नहीं है, वह एक मास्टर कहानीकार हैं. एक्स (ट्विटर), इंस्टाग्राम, फेसबुक, लिंक्डइन और यहां तक कि व्यक्तिगत प्रस्तुतियों के दौरान उनकी प्रेरक कहानियों ने समर्थकों और प्रायोजकों दोनों को इकट्ठा करने में मदद की है.

मैचों के प्रसारण के लिए बांस की तिपाई बनाने वाले ग्रामीणों, शादी के बाद महिला उद्यमियों द्वारा बीवीएल केंद्र खोलने और महामारी के दौरान ज़ूम के जरिए से बच्चों को वॉलीबॉल सिखाने की उनकी व्यक्तिगत कहानियां – ये वे हैं जो प्रायोजकों को लाती हैं और लीग को चालू रखती हैं.

एक एकल लिंक्डइन पोस्ट ने सिग्निफाई (पूर्व में फिलिप्स लाइटिंग) को बीवीएल के लाइट प्रायोजक के रूप में उतारा और मार्च में FIVB अधिकारियों के साथ 15 मिनट की बैठक का स्लॉट 1.5 घंटे की चर्चा में बदल गया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः तीन ओलंपिक दिग्गजों ने असम की यात्रा की.

जब आप गांवों में जाते हैं, तो जब आप छोटे बच्चों को इतनी लगन के साथ खेलते हुए देखते हैं, तो यह दिल को छू लेता है. यह बहुत बढ़िया क्रांति है

— शैलेश शर्मा, बीवीएल टीम के मालिक

इन साल में उन्होंने बैडमिंटन आइकन अपर्णा पोपट और प्राइम वॉलीबॉल लीग के सीईओ जॉय भट्टाचार्य से लेकर सिंगापुर, अमेरिका और मध्य पूर्व में असमिया समुदायों तक योगदान देने वालों के एक प्रभावशाली समूह को एकजुट किया है. केवल 14,000 रुपये की मामूली राशि में कोई भी व्यक्ति एक टीम का मालिक बन सकता है, जिसमें खिलाड़ियों की किट, यात्रा और विविध खर्च शामिल होंगे.

यहां तक कि एक बीवीएल वेबसाइट भी है, हालांकि, भट्टाचार्य ने कहा कि यह अभी शुरू नहीं हुई – वह आह भरते हुए कहते हैं…समय की थोड़ी कमी है.

ऐसा इसलिए है क्योंकि दो बच्चों के पिता और कार्यालय कर्मचारी सब कुछ खुद कर लेते हैं. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “सोशल मीडिया की कोई टीम नहीं है, कोई डिजिटल टीम नहीं है. मैंने बैनर डिज़ाइन किया, वीडियो बनाए. मैं सब कुछ अपने मोबाइल पर करता हूं.”

जब तीनों ओलंपियनों ने तीन गांवों का दौरा किया और कोचों को ट्रेनिंग दी, तो भट्टाचार्य ने साजो-सामान संबंधी विवरण संभाले.

ओलंपियन मिरेया लुइस (बीच में) और व्लादिमीर ग्रबिक के साथ अभिजीत भट्टाचार्य | फोटो: इंस्टाग्राम/@bvl_assam

उनका तूफानी कार्यक्रम जारी है. दिल्ली में दिसंबर की शुरुआत में ओएनजीसी कार्यालय कैफेटेरिया में वह फोन-पे के सीईओ समीर निगम के साथ बातचीत कर रहे थे. चर्चा के विषयों में से एक: अगले दिन मुंबई में वॉलीबॉल मैच के लिए निगम के लिए जर्सी लेना था. इस मैच में मुंबई मेटियर्स – एक प्राइम वॉलीबॉल लीग टीम थी, जिसे फोनपे के निगम और राहुल चारी ने अधिग्रहीत किया था; भट्टाचार्य टीम के मेंटर हैं.

भट्टाचार्य के संबंध गहरे हैं और बीवीएल उल्लेखनीय दर से प्रशंसक जुटा रहा है.

ऑल-असम प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष और बीवीएल टीम के मालिक शैलेश शर्मा ने कहा, “जब आप गांवों में जाते हैं, जब आप छोटे बच्चों को लगन से खेलते हुए देखते हैं, तो यह दिल छू जाता है. यह बहुत बड़ी क्रांति है.”

भट्टाचार्य बीवीएल की सफलता के लिए मौखिक प्रचार और सोशल मीडिया को क्रेडिट देते हैं, लेकिन यह अपनी चुनौतियों के साथ आया है. उनका कहना है कि सीज़न 2 तक वह टीम के सभी मालिकों को व्यक्तिगत रूप से जानते थे. उन्होंने कहा, “अब यह इतना बड़ा हो गया है, मैंने सारा नियंत्रण खो दिया है. मुझे इन सबके समन्वय के लिए एक टीम की ज़रूरत है, जो मेरे पास नहीं है!”

इसमें पूरा गांव जुटता है

चिकाबोरी गांव में प्रगति वॉलीबॉल कोचिंग सेंटर दो साल पहले केवल एक कोच, एक गेंद और एक नेट के साथ शुरू हुआ था, लेकिन यह कोई एकल प्रयास नहीं था – पूरा गांव एकजुट हो गया था.

वॉलीबॉल का ग्रामीणों के दिलों में हमेशा एक विशेष स्थान रहा है, इसलिए जब 31-वर्षीय कोच राहुल कुमार नाथ ने बीवीएल की ओर से उनसे संपर्क किया, तो उन्होंने तुरंत इस काम में खुद को झोंक दिया. पुरुषों ने कोर्ट की घेराबंदी कर दी और महिलाओं ने रातों-रात 10 मीटर लंबा वॉलीबॉल जाल तैयार कर दिया.

केंद्र में फील्ड प्रभारी 28 वर्षीय उडेस्ना दास ने कहा, “राहुल सर ने हमें सामान दिया और हमने इसे बुना.”

चिकाबोरी की महिलाओं ने कोचिंग सेंटर के लिए रिकॉर्ड समय में बुना वॉलीबॉल नेट | फोटो: करिश्मा हसनत/दिप्रिंट

बीवीएल ने हाल ही में दस फ्लड लाइटें प्रदान कीं, लेकिन सेंटर शुरू करना एक सामुदायिक मामला था — कोई विशेष तकनीशियनों को काम पर नहीं रखा गया था और ग्रामीणों ने सब कुछ खुद से किया. पिछले महीने वे फ्लडलाइट को ठीक करने के लिए बांस के खंभे उठाने के लिए एक साथ आए और जब बच्चे खेलते हैं, तो गांव के बुजुर्गों को मैदान प्रभारी बना दिया जाता है, जो समय का ध्यान रखते हैं और खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन करते हैं.

नाथ जो, 15 किलोमीटर दूर नुआगांव गांव में रहते हैं, ने कहा, “ग्रामीणों का समर्थन अभूतपूर्व रहा है. अब, हमारे पास चिकाबोरी और आसपास के गांवों में तीन कोर्ट हैं. मानसून के दौरान, यह थोड़ा मुश्किल हो जाता है — लेकिन बच्चों को खेत सूखने के लिए सूरज की रोशनी का इंतजार करते देखना सुखद लगता है.

एक साल तक प्रैक्टिस करने के बाद हमें जिला स्तर पर खेलने का मौका मिला है

— विश्वजीत बसुमतारी, चिकाबोरी निवासी

वॉलीबॉल का बुखार यहां चमक रहा है. गांव के लगभग 150 घरों में से प्रत्येक में एक या दो बच्चे यह खेल खेलते हैं. केंद्र न केवल स्कूल के स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग देता है, बल्कि ऐसे युवा पुरुषों और महिलाओं को भी ट्रेनिंग देता है, जिनमें जिला और राष्ट्रीय स्तर पर खेलने की संभावनाएं नज़र आती हैं.

23-वर्षीय बिस्वजीत बासुमतारी ने कहा, “हमने बचपन से वॉलीबॉल खेला है. जब से हम राहुल सर से मिले और उनके अंडर ट्रेनिंग शुरू की, हमें खेल के बारे में बहुत सारी जानकारी मिली है. एक साल तक प्रैक्टिस करने के बाद, हमें जिला स्तर पर खेलने का मौका मिला है.” वो और उनका 19-वर्षीय दोस्त बिष्णु राम पातर चिकाबोरी में वॉलीबॉल खेलने के लिए निकटवर्ती कुस्तोली गांव से हर दिन 20 किलोमीटर से अधिक साइकिल चलाते हैं.

जिंटू दास (20) ने कहा, “कॉलेज के बाद, हम प्रैक्टिस के लिए यहां आते हैं. इससे पहले कि हम खेलना शुरू करें, हम युवाओं को कुछ घंटों के लिए ट्रेनिंग देते हैं.” दास दोपहर के दो बजे से रात आठ बजे तक छह घंटे दोस्तों के साथ प्रैक्टिस करते हैं.

चिकाबोरी में देर शाम वॉलीबॉल खेल | फोटो: करिश्मा हसनत/दिप्रिंट

इस साल मार्च में उन्हें नीदरलैंड के चार खिलाड़ियों से मिलने का मौका मिला, जिन्होंने भट्टाचार्य के साथ चिकाबोरी का दौरा किया था.

42-वर्षीय मुकुता बोरदोलोई ने कहा, “सेंटर खुलने से पहले भी बच्चे वॉलीबॉल खेलते थे, लेकिन बीवीएल कोचिंग सेंटर की स्थापना के बाद से उन्होंने अधिक रुचि ली. हमारे बच्चे प्रतिभाशाली हैं, लेकिन सरकार ने उतना साथ नहीं दिया, जितना देना चाहिए था.”

सिर्फ एक खेल की क्रांति नहीं

बीवीएल के लिए भट्टाचार्य का दृष्टिकोण कोर्ट से परे तक फैला हुआ है. वह सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए भी इस मंच का उपयोग कर रहे हैं. मासिक धर्म स्वच्छता, खुले संवाद को प्रोत्साहित करने और टैबू को तोड़ने जैसे संवेदनशील विषयों को सीधे तौर पर निपटाते हैं.

उन्होंने कहा, “जब भी हमारे पास फंड्स होते हैं, हम अंडर-16 डिवीजन में खेलने वाली लड़कियों को सैनिटरी नैपकिन देने की कोशिश करते हैं.” हालांकि, असम के ग्रामीण इलाकों में आमतौर पर एक पुरुष प्रभारी द्वारा संचालित खेल केंद्र में सैनिटरी पैड वितरित करना एक बहुस्तरीय मुद्दा है.

उन्होंने कहा, “इसके (माहवारी) बारे में खुले में बात करना, सैनिटरी पैड वितरित करना एक बड़ी चुनौती है. लोग शर्म महसूस करते हैं. मैं चाहता था कि वे बोलें, क्योंकि ये लड़कियां खेलने आ रही हैं, उन्हें बेझिझक अपने कोच से इस बारे में बात करनी चाहिए.”

बीवीएल के ट्रेनिंग सेंटर जुनून से चलते हैं, कागजी कार्रवाई से नहीं. भट्टाचार्य प्रभारी के लिए ट्रेनिंग सर्टिफिकेट पर जोर नहीं देते

भट्टाचार्य ने एक घटना का ज़िक्र किया जहां एक सेंटर के प्रभारी ने शिकायत की जब किसी ने व्हाट्सएप पर सैनिटरी पैड वितरित किए जाने की तस्वीरें पोस्ट कीं. प्रभारी ने शिकायत की कि खुले में ऐसा करना उचित नहीं है.

भट्टाचार्य ने कहा, “मैंने यह कहते हुए हस्तक्षेप किया कि आपको यह इसी तरह करना चाहिए, खुलकर देना चाहिए, खुलकर बात करनी चाहिए. फिर लड़कियां खुलेंगी. यह कोई वर्जित बात नहीं है.”

एक अन्य उदाहरण में किसी ने खिलाड़ियों की जानकारी ऑनलाइन अपडेट करने पर चिंता जताई और दावा किया कि कुछ मुस्लिम परिवारों के पास मोबाइल फोन नहीं हैं. इससे भट्टाचार्य परेशान हो गए. उन्होंने कहा, “मैंने जवाब दिया कि हो सकता है कि आपके पास मोबाइल न हो, कोई बात नहीं, लेकिन आपको यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि यह मुस्लिम समुदाय के लिए उपलब्ध नहीं है.”


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जनता के लिए, जनता द्वारा

बीवीएल के ट्रेनिंग सेंटर जुनून से चलते हैं, कागजी कार्रवाई से नहीं. भट्टाचार्य प्रभारी के लिए ट्रेनिंग सर्टिफिकेट पर जोर नहीं देते हैं. वॉलीबॉल के प्रति सच्चा प्यार और नई प्रतिभाओं की तलाश करने की प्रतिबद्धता वाला कोई भी व्यक्ति सामुदायिक स्वामित्व और जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देते हुए एक केंद्र शुरू कर सकता है. बच्चों से कोई फीस नहीं ली जाती है.

भट्टाचार्य ने कहा, “जब वे आते हैं, तो स्वामित्व की भावना के साथ अपने केंद्र के बारे में बात करते हैं. यह लीग एक ऐसा मंच है जहां, अगर आपके पास टैलेंट है, तो आप एक टीम ला सकते हैं और उसका प्रदर्शन कर सकते हैं.”

अभिजीत भट्टाचार्य सोनितपुर जिले के बाहबरी केंद्र में सिग्नीफाई द्वारा प्रदान की गई फ्लड लाइट वितरित कर रहे हैं | फोटो: फेसबुक/अभिजीत भट्टाचार्य

पिछले सीजन में छह महीने के दौरान 740 मैच हुए थे. भट्टाचार्य ने दिल्ली में बैठकर एक बड़ी एक्सेल शीट पर गेम चार्ट बनाया. उन्हें टूर्नामेंट का सूक्ष्म प्रबंधन करने की ज़रूरत नहीं है, सब कुछ ऑटो-मोड में होता है. उन्होंने कहा, “समुदाय मैचों के फैसला स्वामित्व लेता है; हम मैच का दिन तय नहीं करते. यह काम करने का विकेंद्रीकृत तरीका है.”

डिब्रूगढ़ जिले के सत्रजीत चुटिया सीज़न 2 में एक लीग टूर्नामेंट के रेफरी के रूप में अपने अनुभव से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने गांव, लैंगरी में एक सेंटर शुरू करने का फैसला किया.

33-वर्षीय स्कूल शिक्षक ने कहा, “मेरा हमेशा से अपने गांव के बच्चों को आगे ले जाने का सपना था.” केंद्र अब 80 से अधिक युवा खिलाड़ियों-36 लड़कियों और 47 लड़कों- का पोषण करता है, अपने पहले सीज़न में उनकी तीन टीमें प्रतिष्ठित सुपर लीग चरण में पहुंचीं.

उन्होंने कहा, “बीवीएल से पहले हमारे पास खेल को आगे बढ़ाने के लिए कोई मंच नहीं था. पुरुषों के वॉलीबॉल के दो या तीन मैच होंगे लेकिन महिलाओं के लिए कुछ नहीं हो रहा था. अब, छोटे बच्चों को बहुत अधिक ध्यान और भविष्य के लिए एक ठोस आधार मिल रहा है.”

पिछले साल भट्टाचार्य ने सेंटर का दौरा किया था – जिसे सत्रजीत “एक शानदार दिन” बताते हैं.

उन्होंने याद करते हुए कहा, “हम इतने प्रोत्साहित हुए कि भारतीय टीम के पूर्व कप्तान हमसे मिलने आए.”

स्कूल शिक्षक स्वीकार करते हैं कि पारिवारिक ज़मीनों पर चलने वाले उनके सेंटर का हर बच्चा स्टार खिलाड़ी नहीं बनेगा, लेकिन, इस घरेलू वॉलीबॉल टीम के लिए जीत केवल ट्रॉफियों से नहीं मापी जाएगी.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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