नई दिल्ली: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा रहस्यमयी सिंधु घाटी लिपि को डिकोड करने वाले को दस लाख डॉलर का इनाम देने की घोषणा के पांच महीने बाद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस विषय पर शोध पत्र आमंत्रित किए हैं.
यह प्राचीन भारतीय इतिहास की अनसुलझी पहेलियों में से एक है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) अब अगस्त में सिंधु लिपि को समझने पर तीन दिन का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करेगा. इसका शीर्षक है: Decipherment of Indus Script: Current status and Way Forward.
एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक प्रोफेसर आलोक त्रिपाठी ने दिप्रिंट के साथ प्रोग्राम के डिटेल्स शेयर करते हुए कहा, “सेमिनार का मकसद उन सभी लोगों को प्लेटफॉर्म देना है जो लिपि को समझना चाहते हैं और अपनी पर्सनल स्टडी और दावों पर रिसर्च को दिखाना चाहते हैं.”
एएसआई ने संस्कृति मंत्रालय के साथ मिलकर काम किया है और यह कार्यक्रम 20 अगस्त से 22 अगस्त तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय पुरातत्व संस्थान, ग्रेटर नोएडा में आयोजित किया जाएगा.
स्कॉलर्स, रिसर्चर्स और कोई भी ऐसा व्यक्ति को, जो अपनी मर्ज़ी से सिंधु लिपि के रहस्य को सुलझाने के लिए कोशिश कर रहे हैं उन्हें इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया है.
यह सेमिनार मुख्य रूप से ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरह से होगा.
एएसआई ने अपने बयान में कहा, “थिमेटिक सेशन इस फील्ड में रिसर्च के वर्तमान चरण के आधार पर डिज़ाइन किए जाएंगे. यह उम्मीद की जाती है कि सेमिनार की तारीख से पहले शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे. साथ ही इसने यह भी कहा है कि सेमिनार की कार्यवाही से इस क्षेत्र में वर्तमान और भविष्य के शोध के दायरे और मात्रा पर प्रकाश डाला जाएगा.
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सिंधु घाटी की लिपि का रहस्य
पिछले 100 साल में पुरातत्वविदों, भाषाविदों, पुरालेखविदों, इंजीनियरों, सिविल सेवकों, क्रिप्टोग्राफरों और इतिहासकारों ने सिंधु लिपि को समझने की कई नाकाम कोशिशें की हैं.
जनवरी में तीन दिन के सेमिनार में एमके स्टालिन ने सिंधु लिपि शोधकर्ताओं के लिए इनाम राशि की घोषणा की थी. सीएम ने कहा था, “हम कभी समृद्ध सिंधु घाटी की राइटिंग सिस्टम को साफ तौर पर समझ नहीं पाए हैं…राज्य सरकार की कोशिश देश के इतिहास में तमिलनाडु के लिए सही स्थान सुनिश्चित करना है.”
ब्रिटिश पुरातत्वविद् सर जॉन मार्शल को 1924 में सिंधु घाटी सभ्यता की खोज का श्रेय दिया जाता है. यह सभ्यता आधुनिक उत्तर-पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के बड़े हिस्से में लगभग दस लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी.
मोहनजोदाड़ो में खुदाई पर पहली आधिकारिक रिपोर्ट, जो 1931 में प्रकाशित हुई थी, उसमें सिंधु लिपि पर एक खंड शामिल था. इसमें खास चिह्नों को सूचीबद्ध किया गया था — ज्यादातर अमूर्त ज्यामितीय आकार, रेखाएं, तथा मानव या पशु रूपांकनों को — उनके रूपों के साथ.
एक सदी से भी ज़्यादा समय बाद, हड़प्पा काल की चीज़ों पर इन लेखन का अर्थ एक रहस्य बना हुआ है.
सिंधु घाटी स्थलों पर खुदाई से टेराकोटा की गोलियों, मुहरों और मिट्टी के बर्तनों पर ये लिपि चिह्न मिले हैं, लेकिन चिह्नों की सटीक संख्या पर कभी कोई सहमति नहीं बन पाई.
एएसआई के अनुसार, मुख्य चिह्नों का एक मोटा अनुमान इसे 400 से ज़्यादा बताता है. बयान में कहा गया है, “इससे कुछ शोधकर्ताओं ने यह अनुमान लगाया है कि सिंधु लिपि मुख्य रूप से लोगो-सिलेबिक है.”
दिप्रिंट ने पहले भी रिपोर्ट की थी कि पिछले 10 सालों में, दो भारतीयों — बहता मुखोपाध्याय और भरत राव उर्फ यज्ञदेवम ने इस मायावी लिपि को समझने की कोशिश की है.
मुखोपाध्याय, जो लिपि की संरचनात्मक और व्यापारिक जड़ों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, यज्ञदेवम से अलग हैं, जो क्रिप्टोग्राफिक विधियों का इस्तेमाल करते हैं.
मुखोपाध्याय ने कहा कि एएसआई द्वारा हाल ही में तीन दिवसीय सेमिनार की घोषणा एक अच्छी पहल है.
उन्होंने कहा, “यह विषय कई विद्वानों को आकर्षित करता है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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