नई दिल्ली: दीप्ति कुमारी फिर से निशाना साध सकती हैं. कई वर्षों तक, 26 वर्षीय अंतर्राष्ट्रीय तीरंदाज़ को बिना धनुष के रहना पड़ा था. उन्होंने मदद के लिए सभी दरवाजे खटखटाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उनका परिवार इतना गरीब था कि उन्होंने मदद के लिए चाय बेचना शुरू कर दिया था.
लंबा इंतजार अब खत्म हुआ. रक्षाबंधन से एक दिन पहले दीप्ति को एक फोन आया जिसमें उन्हें रांची लोकसभा सांसद संजय सेठ के कार्यालय पहुंचने का निर्देश दिया गया.
सांसद के कार्यालय पहुंचने पर सेठ ने उन्हें एक नया, चमकदार रिकर्व धनुष भेंट किया. अनमोल उपहार पकड़ते ही दीप्ति की आंखों में आंसू आ गए. सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल), जो कि झारखंड में प्रमुख उपस्थिति वाला एक सार्वजनिक उपक्रम है, ने अपने सीएसआर फंड का उपयोग लगभग 5 लाख रुपये का धनुष प्रदान करने के लिए किया था.
दिप्रिंट को यह रिपोर्ट किए हुए 9 महीने हो गए हैं कि कैसे दीप्ति रांची के अरगोड़ा चौक पर चाय की दुकान खोलने के लिए मजबूर थीं. हमारी टीम उनके घर गई और उनके माता-पिता से भी बात की और उनकी उपलब्धियों पर भी प्रकाश डाला.
दीप्ति भारी कर्ज में डूबी हुई थीं क्योंकि उनकी मां ने 2012 में एक स्वयं सहायता समूह से 7 लाख रुपये लिए थे और धनुष खरीदने के लिए 4.5 लाख रुपये का इस्तेमाल किया था.
दीप्ति की किस्मत ने करवट तब ली जब उसी साल अमेरिका के दौरे के दौरान उनका धनुष टूट गया. हालांकि उसके बाद उन्होंने कुछ दिन बांस के धनुष के साथ प्रैक्टिस की पर इसका मतलब था कि वह अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए पात्र नहीं थी.
जनवरी में, दीप्ति अपनी मां द्वारा लिए गए ऋण को चुकाना चाहती थीं, लेकिन इससे भी अधिक वह तीरंदाजी फिर से शुरू करना चाहती थीं और उसके लिए उन्होंने सरकार से अपील की कि वह उसे एक अंतरराष्ट्रीय मानक धनुष दिलाने में मदद करे. अनुरोध का अब उत्तर दिया गया है.
दीप्ति ने दिप्रिंट से फोन पर कहा, “मुझे नहीं पता था कि मुझे धनुष मिलने वाला है, उन्होंने मुझे राखी का उपहार दिया और अब मैं आगामी प्रतियोगिताओं के लिए तैयारी करूंगी.”
नए धनुष से लैस, दीप्ति सभी अवसरों का लाभ उठाना चाह रही है, लेकिन पैसा एक बड़ी बाधा बनी हुई है क्योंकि वह सालों से निष्क्रिय पड़े अपने तीरंदाजी कौशल को निखारने की कोशिश कर रही है.
दीप्ती ने कहा, “मैं एक अकादमी में शामिल होना चाहती हूं लेकिन यह बहुत महंगी है, मैं अभी इसे वहन नहीं कर सकती.”
अकादमी की फीस, जिसमें भोजन और छात्रावास शुल्क शामिल है, 10,000 रुपये प्रति माह है, यह उनकी आय से कहीं अधिक है. दिप्रिंट की कहानी के बाद, कई लोग कई तरह से उसकी मदद करने के लिए आगे आए. उनके बैंक खाते में पैसे आये, लेकिन वह भी पर्याप्त नहीं थे.
उनकी चाय की दुकान को भी मार्च में हटा दिया गया क्योंकि रांची के सिविक अधिकारी मार्च में जी20 प्रतिनिधियों के स्वागत के लिए बहुत ज़ोर-शोर से तैयारियां चल रही थीं. जिस चाय की दुकान के लिए उन्होंने अपने दोस्तों से 60,000 रुपये का कर्ज लिया था, उसके बिना उनके पास कमाई का और कोई जरिया नहीं था.
अप्रैल में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ज्ञापन देने के बाद जून में दीप्ति को झारखंड के मुख्यमंत्री कार्यालय से फोन आया. मुख्यमंत्री ने 2 लाख रुपये का चेक, उन्हें सौंप दिया जिससे उन्हें काफी राहत मिली.
यह पैसा उसके ऋण को चुकाने में काम आया, लेकिन उनका सपना ओग्डेन, यूटा की तरह फिर से भारत का प्रतिनिधित्व करना और अपने देश को गौरवान्वित करना है. “मैं इसे अकेले नहीं कर सकती, मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहती हूं जिन्होंने किसी भी तरह से मदद की है. मुझे लंबा रास्ता तय करना है. अब से, मैं अभ्यास शुरू कर दूंगी.”
तीरंदाजी प्रतियोगिताएं दीप्ति का अगला पड़ाव है. फिलहाल वह लोहरदगा स्थित अपने घर के पास खाली मैदान में प्रैक्टिस करती हैं. वह विभिन्न तीरंदाजी स्पर्धाओं में भाग लेने के लिए कैलेंडर पर ट्रायल की तारीखें अंकित कर रखी हैं.
फिलहाल दीप्ति के लिए लक्ष्य साफ है. वह कहती हैं कि “मुझे उम्मीद है कि मैं अपने देश को गौरवान्वित करूंगी. धनुष का सपना सच हो गया है; मैं अब और अधिक सपने जीने के लिए उत्सुक हूं.”
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