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Tuesday, 8 April, 2025
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हरियाणा में गायों के लिए एक और हिंदू व्यक्ति की हत्या, गौरक्षक क्यों बन गए हैं नरभक्षक

ट्रक के गायों को ले जाने के लिए ज़रूरी कागज़ात दिखाने के बावजूद भी हरियाणा पुलिस गौरक्षकों को सूचना देती है, जैसा कि पलवल मामले में हुआ.

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नई दिल्ली: हरियाणा में गौरक्षकों के हाथों मारे गए अपने बेटे का अंतिम संस्कार करने के एक दिन बाद, राजस्थान के एक कट्टर हिंदू भवर लाल के चेहरे पर कभी गुस्सा तो कभी गम का भाव था.

राजस्थान के केसरीसिंहपुर के पास एक छोटे से गांव में अपने नए बने कंक्रीट के घर के आंगन में घंटों तक बैठे लाल ने कहा, “ये गौरक्षक नहीं हैं, ये नरभक्षी हैं.” उनके दो अन्य बेटे हिंदू परंपरा के अनुसार संदीप की अस्थियां लेकर हरिद्वार, उत्तराखंड जा रहे थे.

लाल के 28 वर्षीय बेटे संदीप की पलवल के पास गौरक्षकों के एक समूह ने हत्या कर दी, जब वह और उनका सहयोगी दो गायों को लखनऊ ले जा रहे थे. लाल को यह बात समझ में नहीं आई कि अपराध के लिए गिरफ्तार किए गए पांच लोग विशेष पुलिस अधिकारी द्वारा दी गई सूचना के आधार पर काम कर रहे थे.

वह एक पैंटर था, मुझे नहीं पता कि वह इस सब में कैसे फंस गया

बाइक सवार कुछ लोगों ने संदीप और उनके साथी बालकिशन के ट्रक को रोक लिया और उन्हें लाठी, तलवार और हथौड़ों से पीटा. दोनों को मरा हुआ समझकर गौरक्षकों ने शवों को 17 किलोमीटर दूर सोहना के हाजीपुर गांव के पास एक सीवेज नहर में फेंक दिया, लेकिन बालकिशन इस क्रूर हमले में बच गए, उन्होंने खुद को नहर से बाहर निकाला और पलवल पहुंचे, जहां उन्होंने मदद के लिए पुलिस से संपर्क किया.

अब तक पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 (हत्या और भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या), धारा 61 (आपराधिक साजिश), धारा 140 (हत्या के इरादे से अपहरण) और धारा 118 (गंभीर चोट) के तहत पांच संदिग्धों को गिरफ्तार किया है.

सीवेज नहर जहां संदीप और बालकिशन के शव फेंके गए थे. संदीप का शव डंपिंग स्थल से 15 किलोमीटर दूर मिला | फोटो: उदित हिंदुजा/दिप्रिंट
सीवेज नहर जहां संदीप और बालकिशन के शव फेंके गए थे. संदीप का शव डंपिंग स्थल से 15 किलोमीटर दूर मिला | फोटो: उदित हिंदुजा/दिप्रिंट

10 दिनों के तलाशी अभियान के बाद 2 मार्च को संदीप का शव बरामद हुआ. अब तक पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 103 (हत्या और भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या), धारा 61 (आपराधिक साजिश), धारा 140 (हत्या के इरादे से अपहरण) और धारा 118 (गंभीर चोट) के तहत पांच संदिग्धों को गिरफ्तार किया है.

पलवल-फरीदाबाद बेल्ट में छह महीने से भी कम समय में दूसरी बार हिंदू व्यक्ति की हत्या की घटना ने न केवल केसरीसिंहपुर गांवों में बल्कि पलवल में स्थानीय बजरंग दल के सदस्यों में भी गुस्से और बेचैनी की लहरें फैला दी हैं.

हरियाणा में बजरंग दल ने इस घटना से खुद को अलग करते हुए दावा किया है कि आरोपी किसी संगठन का हिस्सा नहीं हैं.

हरियाणा में बजरंग दल के राज्य संयोजक भारत भूषण ने कहा, “ये लोग (आरोपी) गौरक्षा का मतलब नहीं जानते. वह बस इसका नाम खराब कर रहे हैं.”

हरियाणा में गौरक्षक कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं. 2015 के एक अधिनियम द्वारा सशक्त, जो राज्य में गौ तस्करी, वध और गोमांस रखने या खाने पर प्रतिबंध लगाता है. फरवरी 2023 में, राजस्थान के निवासी नासिर और जुनैद के जले हुए शव हरियाणा के भिवानी में एक जले हुए वाहन में पाए गए थे. कथित तौर पर स्थानीय गौरक्षक समूहों द्वारा उनका अपहरण कर उनकी हत्या कर दी गई थी. अगस्त 2024 में, पश्चिम बंगाल के 25-वर्षीय कूड़ा बीनने वाले साबिर मलिक को कथित तौर पर गाय का मांस खाने के आरोप में भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला.

लिंचिंग को पहले मुसलमानों को निशाना बनाकर की जाने वाली सांप्रदायिक हिंसा के रूप में देखा जाता था, लेकिन अगस्त 2024 में यह बदल गया, जब 19-वर्षीय आर्यन मिश्रा की फरीदाबाद में गोली मारकर हत्या कर दी गई. हत्यारे ने दावा किया कि उन्होंने मिश्रा को मुस्लिम समझ लिया था और उनको ब्राह्मण की हत्या का पछतावा है.

भवर लाल के घर के पास एक खाट पर बैठे ग्रामीण, गौरक्षा को अपने धर्म का कर्तव्य मानते हैं और इसके कारण अपने एक बेटे को खोने की दर्दनाक सच्चाई से जूझ रहे हैं.

गांव के निवासी संजय पवार ने कहा, “गाय हमारे लिए माता हैं, लेकिन वह (आरोपी) इस तरह से लोगों की हत्या नहीं कर सकते. हमने इन अपराधियों के कारण अपना बेटा खो दिया है.”


यह भी पढ़ें: हरियाणा कैसे बन रहा — गौरक्षकों और धार्मिक उन्माद के अपराधों का गढ़


पुलिस ने दी सूचना

22 फरवरी की रात को संदीप और बालकिशन हरियाणा के पलवल के पास एक पुलिस चौकी पर रुके और रास्ता पूछा. वह लखनऊ का रास्ता भटक गए थे.

एक विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) ने यह मानकर कि वह लोग वध के लिए गायों को ले जा रहे हैं, पहले उन्हें रास्ता दिखाया और फिर स्थानीय गौरक्षकों को फोन किया.

पलवल में अपराध जांच एजेंसी (सीआईए) के एक निरीक्षक ने, जो जांच का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्होंने कहा, “एक उचित पुलिस अधिकारी और एसपीओ के बीच अंतर होता है. एसपीओ नियमित पुलिसिंग में मदद करते हैं — सामान्य ड्यूटी, सड़क अवरोध. यह एसपीओ चौकी पर हुआ और अधिकारी वाहन चला रहे थे.”

सीआईए अधिकारियों ने जांच का नेतृत्व किया और 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया. बाकी तीन अभी फरार हैं | फोटो: उदित हिंदुजा/दिप्रिंट
सीआईए अधिकारियों ने जांच का नेतृत्व किया और 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया. बाकी तीन अभी फरार हैं | फोटो: उदित हिंदुजा/दिप्रिंट

निरीक्षक ने नाम न बताने की शर्त पर स्पष्ट किया कि ड्यूटी पर मौजूद पुलिस अधिकारियों को इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि एसपीओ ने गौरक्षकों को फोन किया था. उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू होने के नाते एसपीओ ने सोचा कि गायों को गौशाला पहुंचाकर वह सही काम कर रहा है, लेकिन उन्हें किसी हिंसा की उम्मीद नहीं थी.

पिकअप ट्रक को छह गौरक्षकों ने रोका, तीन आगे से और तीन पीछे से.

इंस्पेक्टर के अनुसार, गौरक्षकों ने फिर अपने ‘गुरु’ को बुलाया, जो हरियाणा के सोहना के पास रहने वाले एक व्यक्ति हैं. ‘गुरु’, जो खुद को स्थानीय गौरक्षक समूह का नेता मानता है, अपने एक दोस्त और तलवारों और हथौड़ों सहित हथियारों के साथ आया.

संदीप और बालकिशन को पलवल से 17 किलोमीटर दूर हाजीपुर गांव के पास एक नहर पर ले जाया गया. उन्हें हथियारों से पीटा गया और उनके शवों को नहर में फेंक दिया गया.

बालकिशन, जो तैरना जानता था, अपनी चोटों के बावजूद ज़िंदा बच गया.

डीएसपी (क्राइम) मनोज वर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “बालकिशन पहले सोहना थाने गया, जहां उसे पूछताछ के बाद कहा कि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र का नहीं है. उसे पलवल के कैंप थाने ले जाया गया, जहां 23 फरवरी को एफआईआर दर्ज की गई.”

संदीप की तलाश में 10 दिन लग गए. राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) की मदद से पलवल पुलिस ने हर दिन नहर के 2-3 किलोमीटर हिस्से की तलाशी ली.

सीआईए इंस्पेक्टर ने कहा, “नहर में मुख्य रूप से सीवेज का पानी है. यह गंदा है और इसमें साफ-साफ देखना बहुत मुश्किल है. इस वजह से तलाशी अभियान में समय लगा. आखिरकार हमें शव उस जगह से 15 किलोमीटर दूर मिला, जहां उसे फेंका गया था.”

शव की तलाश के दौरान पुलिस ने संदिग्धों को भी गिरफ्तार करना शुरू कर दिया. कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) और एसपीओ के ज़रिए, जिसने सबसे पहले गौरक्षकों से संपर्क किया था, पुलिस पांच लोगों को गिरफ्तार करने और हत्या के हथियार बरामद करने में सफल रही.

सीआईए इंस्पेक्टर ने तलाशी जारी रखने से पहले कहा, “यह केवल वक्त की बात है हम उन तीन संदिग्धों को भी पकड़ लेंगे.”


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धर्म के नाम पर

हरियाणा पुलिस का स्थानीय गौरक्षक समूहों के साथ जटिल और कभी-कभी तनावपूर्ण संबंध रहा है, जब से राज्य ने हरियाणा गौवंश संरक्षण और गौसंवर्धन (एचजीएसजी) अधिनियम पारित किया है, पुलिस को गौरक्षकों के साथ मिलकर काम करना पड़ रहा है और उन्हें अपनी सीमाओं का उल्लंघन करने से रोकना भी पड़ता है.

डीएसपी मनोज वर्मा ने कहा, “पहले ये लोग (गौरक्षक) अनधिकृत नाके लगाते हैं और खुद ही गाड़ियां रोकते थे. हमने उन्हें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (संज्ञेय अपराध की रोकथाम) की धारा 168 के तहत नोटिस भेजा.”

बजरंग दल के राज्य संयोजक भूषण ने जोर देकर कहा कि असली गौरक्षकों ने गायों की रक्षा के लिए पुलिस और स्थानीय सरकार के साथ सहयोग किया है.

उन्होंने कहा, “मैंने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी एकतरफा कार्रवाई नहीं कर सकता.” लेकिन फिर, उन्होंने स्वीकार किया कि जब भीड़ गाय को ले जाते हुए देखती है, तो वह भड़क जाते हैं. भूषण ने बढ़ती हिंसा के लिए अवैध आवाजाही को जिम्मेदार ठहराया.

“भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सत्ता में है. उसे गायों के अवैध तस्करी को नियंत्रित करना है, लोगों को नहीं.”

इनमें से कोई भी बात पुलिस को गौरक्षकों को सूचना देने से नहीं रोक पाई, तब भी जब ट्रक उन्हें गायों को ले जाने के लिए ज़रूरी कागज़ात दिखाते हैं, जैसा कि संदीप और बालकिशन के मामले में हुआ.

सीआईए इंस्पेक्टर ने कहा, “दो तरह के गौरक्षक हैं. वह जो अच्छे काम करते हैं और गायों की सच्ची देखभाल करते हैं और दूसरे वह जो यह भी नहीं जानते कि उन्हें गौ रक्षा के नाम पर क्या करना है.”

उनके अनुसार, यह बाद वाला समूह था जिसने संदीप की हत्या की. खुद को ‘ग्वाल सेना’ कहने वाला यह समूह अपंजीकृत था और इसमें मुख्य रूप से पलवल के युवा पुरुष शामिल थे, जो सोशल मीडिया और भर्ती पहलों से प्रभावित थे.

डीएसपी वर्मा के अनुसार, ग्वाल सेना और वैध, पंजीकृत गौ रक्षा संगठनों के बीच अंतर मानसिकता है. उन्होंने कहा, “कोई अपराधी अपराध करने के लिए कोई कारण नहीं ढूंढता.”

सीआईए इंस्पेक्टर इस बारे में थोड़ा अलग सोचते हैं. उन्होंने कहा कि गोहत्या तो हमेशा से होती रही है, लेकिन जब से हिंदू-प्रधान सरकार सत्ता में आई है और उसने इसे रोकने के लिए कानून बनाया है, तब से लोगों ने धर्म को अपनी आस्तीन पर पहनना शुरू कर दिया है. भैंसों को भी काटा जाता है. उनके लिए कोई आवाज़ नहीं उठाता.

अनसुलझे सवाल, बेचैन मन

पुलिस ने ही गौरक्षकों को बुलाया था,

भवर लाल के घर के आंगन में महिलाएं अलग-अलग समूह में बैठी हैं, पुरुष संदीप की मौत के बारे में बात करते समय आंखें नीचे झुकाए हुए हैं. गांव के पेट्रोल पंप पर काम करने वाले लाल के पास कई अनसुलझे सवाल हैं और वे अभी तक बालकिशन से संपर्क नहीं कर पाए हैं.

भवर लाल ने कहा, “उसका रोका (सगाई) हो चुका था.” उन्होंने कहा कि संदीप की शादी मई और जून के बीच तय की गई थी. “वह एक पैंटर था, मुझे नहीं पता कि वह इन सब में कैसे फंस गया.”

बालकिशन संदीप से लगभग 10-12 किलोमीटर दूर दूसरे गांव में रहते थे. वे गांव में आकर युवाओं को छोटे-मोटे काम देते थे, मुख्य रूप से परिवहन और ड्राइविंग से जुड़े काम.

भवर लाल के अनुसार, बालकिशन और संदीप एक-दूसरे को अच्छी तरह से नहीं जानते थे, लेकिन संदीप ने शादी से पहले अपनी कमाई बढ़ाने के लिए यह काम स्वीकार किया होगा.

केसरीसिंहपुर नगरपालिका के सदस्य और दैनिक भास्कर के पत्रकार सोमनाथ नायक ने कहा कि पुलिस को संदीप और उसके साथी की सुरक्षा के लिए और अधिक कोशिश करनी चाहिए थी.

नायक ने दिप्रिंट से कहा, “पुलिस ने ही गौरक्षकों को बुलाया था. उन्हें ट्रक के साथ सुरक्षाकर्मी भी भेजने चाहिए थे ताकि कुछ भी न हो. इस मामले में पुलिस की लापरवाही साफ है.”

नायक ने आगे कहा कि उन्हें गौरक्षकों के काम जारी रखने से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन जिस तरीके से उन्होंने काम किया वह गलत था. इसकी वजह से एक घर की खुशियां खत्म हो गई हैं.

पूरे गांव में यह भावना है कि गायों की सुरक्षा के लिए गौरक्षक महत्वपूर्ण हैं. ज्यादातर लोगों को मुसलमानों की लिंचिंग से जुड़े मामले याद हैं, खासकर राजस्थान के अलवर में 2017 का मामला. पहलू खान नामक डेयरी किसान की गौरक्षकों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी, जब उसके हमलावरों ने उस पर वध के लिए गायों की तस्करी करने का आरोप लगाया था, जबकि उसके दस्तावेज़ में ऐसा कुछ नहीं था.

केसरीसिंहपुर नगरपालिका के अध्यक्ष जवाहर अग्रवाल ने कहा, “अगर अब हिंदू भी पीड़ित बन रहे हैं, तो यह अब धर्म का मामला नहीं है. यह अराजकता का मामला है. भीड़ का न्याय पुलिस की जगह नहीं ले सकता.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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