नई दिल्ली: दक्षिण दिल्ली के महरौली में कुतुब कॉम्प्लेक्स से बमुश्किल आधे किलोमीटर की दूरी पर स्थित अनंग ताल झील को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किए एक साल से अधिक का वक्त बीत चुका है लेकिन अब तक किसी ने इसकी सुध नहीं ली है. लगभग एक हजार साल का इतिहास समेटे यह झील तोमर राजवंश की कहानी कहता है, जिसे सबसे पहले दिल्ली शहर बसाने का श्रेय दिया जाता है.
लेकिन ये विरासत अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है और शायद ही दिल्ली की बड़ी आबादी को मालूम हो कि दिल्ली शब्द की उत्पत्ति की आखिर कहानी क्या है. तोमर राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय की विरासत को पुनर्जीवित करना, शहर को औपनिवेशनक इतिहास से मुक्त करने, इसके मुगल अतीत पर अत्यधिक जोर को कम करने और इसके हिंदू इतिहास को पुनः प्राप्त करने की नरेंद्र मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना का यह हिस्सा है. पुराना किला में चल रही पुरातात्विक खुदाई एक ऐसा ही प्रयास है.
राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (एनएमए) ने बीते कुछ वर्षों में अनंग ताल पर कई हेरिटेज वॉक कराए और अनंगपाल तोमर पर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन भी किया. 18 अप्रैल 2022 को विश्व विरासत दिवस के अवसर पर आयोजित हेरिटेज वॉक का नेतृत्व राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बीआर मणि ने किया.
मणि ने पिछले साल कहा था, “मैंने एएसआई के लिए साइट की खुदाई की. अनंग ताल में अभी भी कुछ पानी बचा है लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे ये छोटी झील सिकुड़ गई है.”
उन्होंने हेरिटेज वॉकर्स को समझाया कि जब तक झील को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाता, आने वाले वर्षों में इसका कोई निशान तक नहीं बचेगा.
एनएमए के अध्यक्ष रहे तरुण विजय का यह ड्रीम प्रोजेक्ट है जिसमें दिल्ली के हिंदू-सिख इतिहास को सामने लाना मूल मकसद है, जो इस्लामिक आक्रमणकारियों के कारण सामने नहीं आ पाया.
विजय ने कहा कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख बिबेक देबरॉय ने भी अनंग ताल का दौरा किया था. उन्होंने कहा, “पीएमओ को भी इसकी जानकारी है.”
एनएमए के अध्यक्ष के रूप में, विजय ने कुतुब मीनार का दौरा किया और पाया कि इस जगह का इतिहास अनंगपाल तोमर से जुड़ा हुआ है. विजय ने कहा, “हमें कुतुब मीनार के पास एक विशाल तालाब मिला, जिसे अनंगपाल तोमर ने बनवाया था. एएसआई और डीडीए दोनों को इसके बारे में सूचना दी गई. दो साल के प्रयास के बाद, इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया. फिलहाल तालाब एक सीवर बना हुआ है. यह दिल्ली के लिए पानी का एक बड़ा स्रोत हो सकता है.”
डाउन टू अर्थ में शहरी जल निकाय विशेषज्ञ रितु राव ने लिखा, “इस छोटे पारंपरिक जल भंडार का बड़े पैमाने पर जीर्णोद्धार दिल्ली की जल सुरक्षा की खोज में समुद्र में एक बूंद की तरह होगा.”
कुतुब मीनार से कुछ मीटर दूर संजय वन के घने जंगलों के बीच अनंग ताल एक हजार साल का इतिहास लिए अभी भी मौजूद है. 783 एकड़ में फैले आरक्षित संजय वन के संकरे रास्तों पर सैकड़ों की संख्या में बंदरों की उठापटक देखी जा सकती है वहीं मोर से लेकर नीलगाय यहां-वहां घूमते नज़र आ जाते हैं. और इन सबके बीच डीडीए द्वारा लगवाए गए लकड़ी से बने साइनबोर्ड अनंग ताल तक जाने की दिशा दिखाते हैं.
हालांकि, अनंग ताल को देखकर सिर्फ निराशा ही महसूस की जा सकती है. पूरे तालाब में सिर्फ हरी घास और पत्थर ही नजर आते हैं जो कीकर के पेड़ों से घिरा है.
22 अगस्त 2022 को संस्कृति मंत्रालय द्वारा जारी गजट अधिसूचना के जरिए अनंग ताल को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया था. अधिसूचना के अनुसार, “केंद्र सरकार की राय है कि प्राचीन टीला, अनंग ताल, तहसील महरौली, जिला दक्षिणी दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली… एक प्राचीन स्थल है और राष्ट्रीय महत्व रखता है.”
डीडीए साइनबोर्ड के अनुसार, 11वीं शताब्दी के तोमर शासक को अपने गढ़ लाल कोट के आसपास, ढिल्लिकापुरी नामक दिल्ली के पहले शहर को बसाने का श्रेय भी दिया जाता है, जो शहर का सबसे पुराना किला है.
लौह स्तंभ पर मिले एक शिलालेख के अनुसार, तोमर राजवंश ने 8वीं और 12वीं शताब्दी के बीच वर्तमान दिल्ली और हरियाणा के कुछ हिस्सों पर शासन किया था और अनंगपाल तोमर ने 1052 ईस्वी के आसपास ढिल्लिकापुरी की स्थापना की थी.
विजय ने बताया कि 2021 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय सहित 12 विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों के साथ एएसआई सभागार में अनंगपाल तोमर पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया था.
सेमिनार की संक्षिप्त रिपोर्ट के अनुसार तोमर राजा द्वारा दिल्ली के पहले शहर की स्थापना शहर के इतिहास में एक गौरवशाली अध्याय है. अनंगपाल द्वितीय ने दिल्ली पर शासन किया, जिसे तब ढिल्ली या ढिल्लिका कहा जाता था.
राष्ट्रीय सेमिनार के संयोजक रहे बीआर मणि ने बताया, “देश भर से लोग आए थे. जैन साहित्य से लेकर लाल कोट की खुदाई तक की जानकारी पर चर्चा हुई. लोगों ने उस आदमी को भुला दिया जिसने दिल्ली बसाई. तोमर ने सबसे पहले दिल्ली को एक गढ़वाले शहर के रूप में स्थापित किया था, फिर धीरे-धीरे इस शहर का विस्तार होता चला गया.
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अनंग ताल के जीर्णोधार पर किसी का ध्यान नहीं
पिछले साल अप्रैल से जून के बीच केंद्रीय संस्कृति मंत्री से लेकर डीडीए के शीर्ष अधिकारी तक सभी ने अनंग ताल का दौरा किया था. केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने अधिकारियों से झील की सफाई का काम पूरा करने और इसे तुरंत राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित करने को कहा था. वह दिल्ली की शुरुआत का प्रतीक रहे एक विरासत स्थल की जीर्ण-शीर्ण स्थिति देखकर आश्चर्यचकित थे.
नई दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने भी निर्देश दिया कि झील को दो महीने के भीतर पुनर्जीवित किया जाए.
लेकिन 14 महीने से अधिक का समय बीत चुका है और जीर्णोद्धार का कोई भी काम शुरू नहीं हो पाया है.
मई 2022 में अनंग ताल का दौरा करने वाली डीडीए की टीम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमने अनंग ताल का दौरा किया था और इसके राष्ट्रीय महत्व को जानना चाहा था. चूंकि यह जमीन डीडीए के अधिकार क्षेत्र में आती है, इसलिए इसकी सफाई की पहली जिम्मेदारी हमारी है. लेकिन कुछ प्रयासों के बाद भी यह शुरू नहीं हो सका है. हम कोशिश कर रहे हैं कि जल्द ही इस पर काम किया जाए.”
गजट अधिसूचना में आपत्तियां और सुझाव भी मांगे गए थे. अनंग ताल को संरक्षित स्थल घोषित करने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव के दो महीने के भीतर, तीन आपत्तियां दायर की गईं, एक एनजीओ द्वारा और दूसरी दो व्यक्तियों द्वारा.
एएसआई के अधिकारियों ने पुष्टि की कि भूमि स्वामित्व और राजस्व रिकॉर्ड के कारण, अनंग ताल के जीर्णोधार का काम शुरू नहीं हो सका.
एएसआई के संयुक्त महानिदेशक टीजे अलोने ने भी कहा कि अनंग ताल मामले में जमीन का मुद्दा सामने आया है, इसलिए संरक्षण कार्य शुरू नहीं किया जा सका है. उन्होंने कहा, “इसे निपटाना राज्य सरकार और डीडीए की जिम्मेदारी है. उसके बाद ही एएसआई काम शुरू करेगा.”
अलोने का मानना है कि अनंग ताल दिल्ली के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. उन्होंने कहा, “हम अनंग ताल के ऐतिहासिक महत्व को नकार नहीं सकते.”
अनंग ताल और अनंगपाल तोमर को लेकर भले ही पिछले कुछ सालों में जनता के बीच चर्चा शुरू हुई हो लेकिन एएसआई ने इनका इतिहास तलाशने का काम बहुत पहले ही शुरू कर दिया था. मणि ने किले के चारों ओर बसावट के पैटर्न को जानने और टीले के पूर्वी हिस्से में विशाल डिप्रेशन की संरचनात्मक अवधारणा की पुष्टि करने, जिसे अनंग के नाम से जाना जाता है- इस उद्देश्य से लाल कोट और अनंग ताल में चार साल तक खुदाई की थी जिसकी शुरुआत साल 1992 में हुई थी.
उत्खनन के परिणामों से पता चला कि टैंक की शीर्ष योजना पूर्ण वर्गाकार या आयताकार नहीं बल्कि कुछ हद तक तिरछी थी. मणि ने 1994-95 में झील पर ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वेक्षण भी किया था.
मणि ने अपनी किताब दिल्ली, थ्रेशोल्ड ऑफ द ओरिएंट: स्टडीज इन आर्कियोलॉजिकल इन्वेस्टिगेशन्स में इसके बारे में विस्तार से लिखा है, जो 1998 में प्रकाशित हुई थी. उन्होंने लिखा, “ऐसा माना जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी के समय अलाई मीनार के निर्माण के दौरान मोर्टार बनाने के लिए पानी अनंग ताल से ही लाया गया था.”
किताब के अनुसार, टैंक की उल्लेखनीय विशेषता पत्थर के ब्लॉक और स्लैब पर राजमिस्त्री के नक्काशीदार निशान की मौजूदगी थी, जिनका उपयोग जलाशय के निर्माण में किया गया था.
राजमिस्त्री चिह्नों में स्वस्तिक, त्रिशूल, चार भागों में विभाजित वृत्त, ढोल, अंक, अक्षर, बिच्छू और धनुष-बाण के प्रतीक प्राप्त हुए हैं. ये निशान उसी काल के भोजपुर (अब मध्य प्रदेश में) के मंदिर में पाए गए राजमिस्त्री के निशानों के साथ-साथ कुतुब मीनार के पास कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में पुन: उपयोग किए गए पत्थर के स्लैब से साम्यता रखते हैं.
मणि के अनुसार, अनंग ताल शाही महल के लिए पानी का एक बड़ा स्रोत था, जिसका डिप्रेशन 50*50 मीटर था. उन्होंने कहा, “जब हमने खुदाई की तो हमें एक स्थायी तालाब के पत्थर से बने होने के प्रमाण मिले. और उन पत्थरों पर नागरी अक्षर दिखे जो 11वीं शताब्दी के थे, इसलिए यह स्पष्ट हो जाता है कि इसे अनंगपाल तोमर ने बनवाया था और पुरातात्विक साक्ष्य भी इसकी पुष्टि करते हैं.”
फिलहाल खुदाई के दौरान मिली वस्तुएं एएसआई के दिल्ली सर्किल में रखी हुई हैं. मणि ने कहा कि अनंग ताल के पास ही एक संग्रहालय बनाया जा सकता है ताकि इन वस्तुओं को वहां रखा जा सके. उन्होंने कहा, “अभी तक लोग मुगल इतिहास को ही दिल्ली का इतिहास मानते आए हैं. राजपूत काल का इतिहास कहीं नजर नहीं आता.”
2021 में मोदी सरकार ने तोमर राजा की विरासत को लोकप्रिय बनाने के लिए ‘महाराजा अनंगपाल तोमर द्वितीय स्मारक समिति‘ का गठन किया. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर समिति के वर्तमान अध्यक्ष हैं और विजय इसके संयोजक हैं.
विजय ने कहा, “दिल्ली के मध्य में अनंगपाल तोमर की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की जानी है. साथ ही अनंग ताल के पास उनकी प्रतिमा स्थापित होगी. और दिल्ली के स्कूलों के पाठ्यक्रम में अनंगपाल तोमर के बारे में एक अध्याय शामिल करने के लिए एलजी से बातचीत चल रही है.” उन्होंने कहा कि केंद्रीय शहरी एवं आवासन मंत्री हरदीप सिंह पुरी से प्रतिमा के लिए स्थान आवंटित करने का अनुरोध भी किया गया है.
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अनंगपाल तोमर की विरासत
संस्कृति मंत्रालय ने पिछले साल एक बयान में कहा था कि एनएमए विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किए गए पूर्व-इस्लामिक स्मारकों के गौरव को वापस लाने के लिए पिछले दो वर्षों से प्रयास कर रहा है.
पीएम मोदी ने 2021 में कहा था, “इतिहास लेखकों द्वारा इतिहास निर्माताओं के खिलाफ किए गए अन्याय को अब सुधारा जा रहा है.”
अनंगपाल तोमर की मृत्यु 1081 ई. में हुई थी. उन्होंने 29 साल, 6 महीने और 18 दिन तक दिल्ली पर शासन किया.
विजय ने कहा, “आजादी के बाद वामपंथियों ने इतिहास लेखन और आख्यान पर इस तरह कब्जा कर लिया था कि उनका मूल उद्देश्य वास्तविक इतिहास, हिंदू गौरव के इतिहास को दबाना था. और इस तरह, यह दिखाया गया कि दिल्ली पर खिलजी, तुगलक और इल्तुतमिश का शासन था.”
विजय ने तर्क दिया कि दिल्ली को कब्रों का शहर बना दिया गया ताकि यह दावा किया जा सके कि उनमें दफन किए गए ‘आक्रमणकारियों’ से पहले कोई मौजूद ही नहीं था.
उन्होंने कहा, “दिल्ली कब्रों का शहर नहीं है, बल्कि यह उत्सव, कला, संस्कृति का एक महान शहर है.”
पिछले साल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र पांचजन्य ने एक कवर स्टोरी प्रकाशित की थी जिसका शीर्षक था: दिल्ली किसकी. इसमें दावा किया गया कि दिल्ली ढिल्लिकापुरी थी, जिसे एक हिंदू राजा ने स्थापित किया था और आरोप लगाया कि शहर के वास्तविक इतिहास को वामपंथी इतिहासकारों ने सही ढंग से सामने नहीं आने दिया.
इतिहासकार स्वप्ना लिड्डल ने भी कहा कि दिल्ली का नाम अनंगपाल तोमर के शासनकाल के दौरान रखा गया था. इससे पहले, शहर को योगिनीपुर कहा जाता था. उन्होंने कहा कि जब दिल्ली पर अनंगपाल तोमर का शासन था तो उस वक्त इस शहर का कोई खास राजनीतिक महत्व नहीं था.
लिड्डल ने कहा, “उस समय यह कोई बहुत बड़ा शहर नहीं था. सल्तनत काल में इसका महत्व बढ़ गया. फिर मुगल और ब्रिटिश काल में भी दिल्ली एक बहुत बड़ा शहर बन गया. और दिल्ली का महत्व इस तरह बढ़ गया जो पहले नहीं था.”
हालांकि, लिड्डल यह नहीं मानती कि दिल्ली के इतिहास को जानबूझकर या किसी साजिश के तहत दबाया गया.
उन्होंने कहा, “तोमर के समय को सल्तनत और मुगल काल के दौरान की दिल्ली से तुलना करना गलत है.”
विजय ने बताया कि एएसआई के पहले महानिदेशक और ब्रिटिश इंजीनियर अलेक्जेंडर कनिंघम, जिन्होंने 1861 में संगठन की स्थापना की थी, ने अपनी खुदाई से पता लगाया था कि दिल्ली को कभी ढिल्लिकापुरी के नाम से जाना जाता था. खुदाई में 1912 के बाद नई दिल्ली के निर्माण के दौरान पालम, नारियाना और सरबन में पत्थर के शिलालेख मिले.
लेकिन दिल्ली के नाम के बारे में एक और प्रसिद्ध कहानी है जिसे ‘ढिल्ली किल्ली‘ कहानी कहा जाता है. मणि की पुस्तक के अनुसार, यह संभव है कि शहर को इसका नाम लौह स्तंभ (किल्ली) से मिला, जो तोमर राजा द्वारा इसे रीफिक्स किए जाने के बाद ढीला (ढिल्ली) रह गया हो.
मणि अपनी किताब में लिखते हैं कि कनिंघम ने शिलालेखों का हवाला देते हुए कहा है, “किल्ली तो ढिल्ली भई, तोमर भाया मत हीन“.
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राजपूत, गुर्जर, जाट- हर किसी की दावेदारी
जैसे-जैसे अनंगपाल तोमर की विरासत को लोगों तक ले जाने की कोशिश की जा रही है, वैसे-वैसे जातीय संघर्ष भी छिड़ता जा रहा है.
तोमर समुदाय मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में रहता है.
राजपूत, जाट और गुर्जर तोमर राजा की विरासत पर दावा कर रहे हैं और वे सभी हर साल 8 अगस्त को भव्य समारोह कर उनकी जयंती मनाते हैं. 20 जुलाई को, सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों ने पहली बार पलवल में एक रैली निकाली और दावा किया कि तोमर राजा जाट समुदाय के थे.
इसी साल 8 अगस्त को दिल्ली के चौहान पट्टी गांव में घोड़े पर बैठे अनंगपाल तोमर की विशाल सुनहरे रंग की मूर्ति का अनावरण किया गया. पिछले कुछ वर्षों में तोमरों के बीच गांवों में अनंगपाल की मूर्ति स्थापित करना एक चलन बन गया है.
रैली के आयोजक तपस चौधरी ने कहा कि पलवल क्षेत्र में तोमर राजा को लेकर विवाद ज्यादा है. इसलिए इसी साल एक स्थानीय समिति का गठन किया गया जिसमें रैली आयोजित करने का निर्णय लिया गया.
चौधरी ने कहा, “मेरठ, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान से सैकड़ों लोग इसमें शामिल हुए. जब रैली के पोस्टर सोशल मीडिया पर डाले गए तो यह वायरल हो गए. रैली में तोमर से जुड़े गाने बजाए गए और अनंगपाल तोमर के बड़े फ्लैक्स लहराए गए.”
चौधरी ने कहा कि पलवल क्षेत्र में तोमर उपनाम जाट समुदाय का है. उन्होंने कहा, “इसलिए हम युवाओं को जागरूक कर रहे हैं कि अनंगपाल तोमर हमारे हैं, राजपूतों और गुर्जरों के नहीं.”
बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह ने पिछले साल जून में एक समारोह के दौरान अनंगपाल तोमर को जाट राजा बता दिया था. राजपूत समुदाय इससे नाराज हो गया और लोगों ने उनका पुतला फूंक दिया.
8 अगस्त 2021 को हरियाणा के फरीदाबाद के अनंगपुर गांव में गुर्जर समुदाय द्वारा गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के मिहिर भोज और अनंगपाल तोमर की मूर्तियों के अनावरण के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. लेकिन राजपूत समुदाय इसके खिलाफ खड़ा हो गया.
कार्यक्रम के समन्वयक चौधरी शीशपाल भड़ाना ने बताया कि भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने 2021 में उनके गांव का दौरा किया और कहा कि अनंगपाल तोमर एक राजपूत थे, जिससे गुर्जर समुदाय खफा हो गया. उन्होंने कहा, “इसके बाद ही गुर्जर समुदाय द्वारा अनंगपाल तोमर की मूर्ति स्थापित करने का निर्णय लिया गया.”
मध्य प्रदेश करणी सेना की प्रवक्ता दीप्ति रायसिंह तोमर ने कहा कि जाट और गुर्जर समुदाय राजनीतिक लाभ लेने के लिए तोमर राजा पर दावा करने की कोशिश कर रहा है.
उन्होंने कहा, “चाहे वह अनंगपाल तोमर हों, महाराणा प्रताप हों, पृथ्वीराज चौहान हों या राजा मिहिर भोज हों, लोगों ने महान राजपूत शासकों को अपनी जाति का बताने का चलन बना लिया है.” “सवाल यह नहीं है कि वह किसी विशेष जाति के हैं. नहीं, बिल्कुल नहीं, वह पूरे भारत के हैं. उनके विचार और अभिव्यक्ति देश की विरासत हैं. लेकिन जाति के नाम पर उन्हें अपना कहना ऐसा ही है, जैसे नफरत फैलाना और इतिहास के साथ छेड़छाड़ करना.”
मई 2022 में, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा (एबीकेएम) ने पीएम मोदी से नए संसद भवन का नाम दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान या शहर के संस्थापक अनंगपाल तोमर के नाम पर रखने की भी अपील की थी.
तोमर की विरासत धीरे-धीरे युद्ध का मैदान बनता जा रहा है जहां हर कोई इन दिनों शामिल होना चाहता है. यह संघर्ष ऐतिहासिक अतीत से लेकर वर्तमान की चौखट तक आ चुका है, जो हमारे समय का बड़ा सवाल खड़ा करता है: आखिर यह इतिहास है किसका?
अनंगपाल तोमर के इतिहास को सामने लाने की जद्दोजहद में लगे विजय ने व्यंगात्मक ढंग से कहा, “क्या सत्य की खोज करना पुनरुद्धार है? और सत्य को दफनाना क्या धर्मनिरपेक्षता थी?”
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