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Friday, 22 November, 2024
होमफीचरगैर-कानूनी ढंग से US, कनाडा का रुख कर रहे गुजराती युवा, लेकिन जिंदा पहुंचना सबसे बड़ी चुनौती

गैर-कानूनी ढंग से US, कनाडा का रुख कर रहे गुजराती युवा, लेकिन जिंदा पहुंचना सबसे बड़ी चुनौती

गांधीनगर के कलोल में ट्रैवल एजेंट वर्षों से अवैध रूप से युवा लोगों को फंसा रहे हैं. अब तक उनके ग्राहक बॉडी बैग्स में वापस आने लगे हैं.

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गांधीनगर: अहमदाबाद से महज 45 किलोमीटर दूर डिंगुचा गांव में एक चाय की दुकान पर 22 साल का युवक बेसब्री से बैठा है. वे अपने ट्रैवल एजेंट से जवाब का इंतज़ार कर रहा है, जिसने उसे आईईएलटीएस (इंटरनेशनल इंग्लिश लैंगवेज टेस्टिंग सिस्टम) के 6-7 बैंड स्कोर और कनाडा के लिए टूरिस्ट वीजा देने का वादा किया है. संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और कनाडा में अवैध रूप से युवाओं को फंसाने वाले एजेंटों पर हाल ही में पुलिसिया कार्रवाई से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता. डिंगुचा गांव और भारत छोड़ने की उसकी हताशा, उस जोखिम से अधिक है.

डिंगुचा, गुजरात के गांधीनगर के कलोल तालुका में नारदीपुर, मनासा, मोखासन, इसंद और नंदरी जैसे आसपास के गांवों के साथ, ट्रैवल एजेंटों का एक संपन्न केंद्र है, जो 60 लाख रुपये की शुरुआती कीमत पर न्यूनतम कागज़ी कार्रवाई के साथ वीजा का वादा करते हैं.

एजेंट दशकों से इन गुजराती गांवों के युवाओं को अवैध रूप से अवैध रूप से फंसा रहे थे—अब तक जब उनके ग्राहक बॉडी बैग में वापस आने लगे हैं और रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस इस बात की पड़ताल में जुटी है कि आखिर माजरा है क्या. राज्य के कथित स्थानीय मानव तस्करी नेटवर्क की जांच करने के लिए कनाडा के दो अधिकारियों ने गांधीनगर और अहमदाबाद का दौरा किया.

यह जालसाजों और धोखेबाजों का एक सुस्थापित जाल है.

जनवरी 2022 में अधिकारियों को पहली बार कलोल की अवैध आप्रवासन समस्या के बारे में पता चला, जब डिंगुचा गांव के जगदीश और वैशाली पटेल और उनके दो बच्चे – (एक 11 वर्षीय बेटी और तीन साल का बेटा) अमेरिका और कनाडा सीमा के निकट बर्फ में जमें हुए पाए गए. यह मामला तीन महीने पहले एक बार फिर सुर्खियों में आया जब कलोल गांव के एक व्यक्ति की अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर दीवार फांदने की कोशिश के दौरान मौत हो गई.

हालांकि, इस कार्रवाई के खतरे से स्थानीय एजेंट और दलालों की कोशिशें नहीं डगमगा रहीं. डिंगुचा में बाज़ार के चारों ओर की दीवारों पर ट्रैवल एजेंटों के बड़े-बड़े पोस्टर लगे हुए हैं, जिसमें तुरंत अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा में भेजने का वादा किया गया है. इन पोस्टरों में बड़े-बड़े फॉन्टस में एजेंटों के हवाले से लिखा है- ‘कोई आईईएलटीएस, किसी डिग्री की ज़रूरत नहीं’.

Elderly men outside Dingucha village gram panchayat | special arrangement
डिंगुचा ग्राम पंचायत के बाहर बुजुर्ग पुरुष | स्पेशल अरेंजमेंट

इससे थोड़ी दूर पर, बुजुर्गों का एक समूह इस बात पर चर्चा कर रहा है कि कैसे गांव के सभी युवा जिनके पास ज़मीन थी या पैसे खर्च करने के साधन पहले ही भारत छोड़ चुके हैं या छोड़ने की कोशिश में हैं.

पुलिस अधिकारियों ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, बहुत सारे प्रकरण में अवैध कारनामे तभी पकड़े जाते हैं जब यात्रा करने वाले लोगों के साथ कुछ अनहोनी हो जाती है.

गुजरात पुलिस की अपराध शाखा के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) चैतन्य मंडली ने कहा, “हम राज्य में काम करने वाले सभी एजेंटों का औपचारिक रजिस्ट्रेशन कराने के लिए राज्य सरकार से गुज़ारिश करने की प्रक्रिया में हैं. इन एजेंटों के पास किताबें या रजिस्टर नहीं होते हैं, जिससे मानव तस्करी के ऐसे मामले सामने आ सकते हों.”

जिस तरह से कलोल में पटेल कथित तौर पर अपना कारोबार चला रहा था, उससे क्राइम ब्रांच को अंदाज़ा हो गया है कि ये कथित दलाल कैसे काम करते हैं.


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पुलिस की फटकार

स्थानीय एजेंट को गिरफ्तार करने में पुलिस को लगभग 10 महीने लग गए, जिसने कथित तौर पर पटेलों को कनाडा भेजा था. अपराध शाखा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि भरत उर्फ बॉबी पटेल, जो कई वर्षों से अपनी एजेंसी चला रहा था, उसके नाम पर लगभग 25 पासपोर्ट थे और वो अहमदाबाद में जुए का अड्डा चलाता था.

स्टेट मॉनिटरिंग सेल के एक अन्य अधिकारी ने दावा किया कि बॉबी पटेल को 98 पासपोर्ट के साथ पकड़ा गया. सभी को दो महीने की समयावधि में उपयोग के लिए बनाया गया था.

नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा, “बॉबी पिछले आठ सालों से सक्रिय था. यहां तक कि अगर वो हर साल 6 महीने काम करता है, तो क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि उसने कितने लोगों की तस्करी की होगी?”

पुलिस ने उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत हत्या के प्रयास, गैर इरादतन हत्या के लिए सजा, गैर इरादतन हत्या के प्रयास और आपराधिक साजिश के तहत मामला दर्ज किया गया था, लेकिन गिरफ्तारी के बमुश्किल तीन हफ्ते बाद इस साल जनवरी में उसे ज़मानत पर रिहा कर दिया गया.

गुजरात पुलिस के अनुसार, तस्करी के मौजूदा तौर-तरीकों में चार स्तर हैं जिनमें स्पेशल स्किल वाले एजेंट शामिल हैं. प्रथम स्तर का एजेंट समाज में उन निवासियों की पहचान करता है जो विदेश यात्रा करना चाहते हैं. कलोल के हर गांव का अपना एक अलग एजेंट है और आसपास के गांवों के लोग मदद मांगने के लिए इन एजेंटों के पास आते हैं. ‘कबूतरबाज’ कहे जाने वाले ये एजेंट संपर्क के पहले बिंदु हैं. आमतौर पर ये इस समुदाय के ही लोग होते हैं.

दूसरा एजेंट, फिर तय करता है कि अतिरिक्त दस्तावेज़ की ज़रूरत है और किस प्रकार का वीजा व्यक्ति की यात्रा के लिए उपयुक्त होगा.

गुजरात पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि कभी-कभी बैंक स्टेटमेंट, निवास प्रमाण और जन्म प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज को पात्र बनाने के लिए जाली बना दिया जाता है. सबसे ऊपर वो एजेंट हैं जिनके पास जाली दस्तावेज़ और नकली आईईएलटीएस स्कोर हासिल करने के लिए कनेक्शन हैं.

पैसा स्थानीय बैंकों में खातों के माध्यम से भेजा जाता है.

कलोल में एक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के एक कर्मचारी ने बताया, “हमें आमतौर पर महीने में कम से कम दो ऐसे मामले मिलते हैं, जहां एक छात्र- जो स्पष्ट रूप से अंग्रेजी में बात भी नहीं कर सकता या अच्छे अंक नहीं ला सकता है-अमेरिका में एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश पाने की जद्दोजहद करता है. वो बैंक के विदेशी मुद्रा विभाग के माध्यम से अपनी फीस जमा कराने आते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, ”यह सब कानूनी है. एक या दो महीने बाद, परिवार का कोई सदस्य कॉलेज द्वारा लौटाई गई राशि वापस लेने ज़रूर आता है. छात्र अपना प्रवेश रद्द करवा देता है, लेकिन वो कभी (बैंक में या देश में) वापस नहीं लौटता है.”

अधिकार क्षेत्र से बाहर

न्यूजर्सी में रहने वाली 42-वर्षीय शिखा पटेल ने बताया, ”बिना कानूनी दस्तावेज़ के अमेरिका में अपना रास्ता खोजने में उन्हें कई साल लग गए. उन्होंने पहली बार 2003 में मैक्सिको के लिए फ्लाईट ली, फिर एक नाव ली और फिर ”मेक्सिको के जंगलों” से होकर अमेरिकी सीमा तक पहुंचीं. अहमदाबाद से अमेरिका पहुंचने में उन्हें दो महीने का समया लगा.”

उन्होंने बताया कि 2003 में ट्रंप वॉल नहीं हुआ करती थी. “वहां स्थानीय और भारतीय एजेंट हैं जो आपको दूसरी तरफ ले जाते हैं. हमें सख्त हिदायत दी गई कि पकड़े जाने पर आपको क्या कहना है. उस समय, सीमा पार करना अब की तुलना में बहुत आसान था.”

लेकिन उसके समूह को सीमा पुलिस ने पकड़ लिया और हिरासत में ले लिया. उसका बेटा, जो अब वयस्क हो गया है, कैद में पैदा हुआ था.

उन्होंने कहा, ”जैसा कि वो अमेरिका में पैदा हुआ था, वह तुरंत वहां का नागरिक बन गया. उसके एक साल का होने के बाद, अनिश्चितता के कारण, मैंने उसे एक पारिवारिक मित्र के साथ गुजरात में अपने परिवार के पास वापस भेज दिया, जो भारत लौट रहे थे, लेकिन जिस पल उन्हें अपने दस्तावेज़ मिल गए और वो अमेरिका में काम करने लगीं, उन्होंने अपने बेटे को वापस बुला लिया.”

हालांकि, ऐसे ऑपरेशन अब जोखिम भरे हैं. कलोल के बृज यादव (32) की पिछले साल दिसंबर में अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर ट्रंप की दीवार फांदने के दौरान मौत हो गई थी.

राज्य के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “यादव घर पर मुश्किल से 15,000 रुपये महीने कमाता था. वह (एजेंट की) फीस कैसे वहन कर सकता था? हमें संदेह है कि सस्ते श्रम प्राप्त करने के लिए सीमा पार के लोग इन अभियानों को वित्तपोषित कर रहे हैं.”

गुजरात पुलिस ने यह भी पाया कि यादव ने तुर्की के अधिकारियों को कनाडा के लिए टूरिस्ट वीजा मांगने के लिए जो बैंक दस्तावेज जमा किए थे, वो फर्जी थे. अधिकांश अवैध प्रवासन तुर्की के माध्यम से होता है. भारत से तुर्की के लिए एक टूरिस्ट वीज़ा, फिर तुर्की से कनाडा के लिए एक और टूरिस्ट वीज़ा प्राप्त किया जाता है, इसके बाद समुद्र या भूमि मार्ग से अवैध रूप से सीमा पार की जाती है.

मामले से जुड़े पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, “हम तुर्की दूतावास पहुंचे और वहां संबंधित सरकारी विभाग से संपर्क किया. उनके विभाग द्वारा एक फर्जी दस्तावेज को मंजूरी दे दी गई थी.”

लेकिन इन सभी मामलों को या तो किसी व्यक्ति के मरने के बाद या सीमा पर हिरासत में लिए जाने के बाद उठाया गया. पुलिस का कहना है कि यह मामला पेचीदा है. क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी ने कहा, “ऐसे मामले हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं और ऐसे मामलों में लागू होने वाले कानून पहले स्पष्ट नहीं थे.”


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‘जोखिम के काबिल’

सलाहकार जिन्होंने गोटा, अहमदाबाद में दुकान स्थापित की है, इसका तेज़ कारोबार करते हैं. वे कलोल के दलालों से जुड़ना नहीं चाहते हैं और दावा करते हैं कि उनका व्यवसाय पूरी तरह से कानूनी है. उनका ज्यादातर कारोबार यूके और कनाडा में चलता है उनकी एजेंसियों का नेटवर्क है जो भारतीयों को रोजगार देने के इच्छुक हैं.

एक एजेंट ने यूके और यूएस भेजे गए लोगों के वीजा के प्रिंटआउट को सॉफ्ट बोर्ड पर लगाया. इसमें छह महीने के बच्चे की वीजा कॉपी भी है. यह विज्ञापन का सर्वोत्तम रूप है.

एजेंट अपने ऑफिस में पास के गांव से आए परिवार के साथ बैठता है. बाहर, 20-वर्षीय एक युवा छात्र अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा है. गुजरात यूनिवर्सिटी से 5 और उससे अधिक सीजीपीए के साथ, कंप्यूटर एप्लीकेशन में ग्रेजुएट ये छात्र दो साल के पाठ्यक्रम के लिए 35 लाख रुपये का भुगतान करने को तैयार है.

वे नहीं जानता कि वो किस कॉलेज में जाना चाहता है या क्या पढ़ना चाहता है, लेकिन उसे यकीन है कि वो ब्रिटेन जाना चाहता है और कभी देश में लौटना नहीं चाहता. उसने आईईएलटीएस का एग्जाम पास करने की भी कोशिश नहीं की है.

उसने आत्मविश्वास से कहा, “कोर्स पूरा करने के बाद मुझे अपने एजेंट की मदद से आसानी से वर्क स्पॉन्सरशिप पोस्ट मिल जाएगी और फिर मैं स्थाई नागरिकता के लिए आवेदन करूंगा.”

नाम न छापने की शर्त पर एक एजेंट ने कहा, नौकरी मिलने में मुश्किल नहीं आएगी. भारतीय स्वामित्व वाली एजेंसियां हैं जो भारतीयों को रोजगार देने के लिए तैयार हैं, लेकिन इसके लिए भारी शुल्क देना पड़ता है.

उन्होंने आगे कहा, “गुजरात के अधिकांश भारतीय छात्रों को बीमार या बुजुर्ग लोगों के देखभाल करने वालों के रूप में काम पर रखा जाता है और उन्हें न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाता है. डॉलर में कमाई होगी, वो अच्छा पैसा कमाएंगे.”

डिंगुचा में वापस लौटे 22-वर्षीय वैभव, जिसने अपना पूरा नाम बताने से इनकार किया ने कहा, हर कोई फीस नहीं दे सकता. भारत छोड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता. उदास मन से उसने कहा, “यह केवल उन लोगों के लिए है जिनके पास खेत हैं.”

उसने कहा, “मेरा परिवार 65 लाख रुपये के कर्ज से नहीं बचेगा.” वैभव एक स्थानीय दवा कंपनी के साथ काम करता है.

उसने कहा, “मेरे जैसे लोगों को इस बात से समझौता करना होगा कि हम अपने जीवनकाल में 20-30,000 रुपये का वेतन अर्जित करेंगे. यहां करने के लिए और कुछ नहीं है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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