हरियाणा: व्हाट्सएप पर एक मैसेज ही काफी है. जींद के लोचब गांव की धुंध भरी सड़कों पर सरपंच मुकेश के नेतृत्व में लाठी लिए एक दर्जन युवक दिखाई दे रहे हैं. कुछ ही मिनटों बाद, एक संदिग्ध को घेर लिया गया उसकी जेबों की तलाशी लेने के बाद उन्हें खाली कर दिया गया. शॉल उतार दी गई. वह लोग चिट्टा, चरस या लाल परी की तलाश कर रहे हैं.
लोचब में निगरानी रखने वालों ने नशे के खिलाफ जंग छेड़ दी है. गांव में प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति की तलाशी ली जाती है और आधार कार्ड दिखाने को कहा जाता है. हर रात, मुकेश और उसका समूह एक ही मिशन के साथ सड़कों पर गश्त करता है: नशे के सौदागरों को पकड़ना और उन्हें समाज के सामने शर्मिंदा करना.
मुकेश ने कहा, “जब प्रशासन कोई कदम नहीं उठा रहा है, तो हमें ही मामले को अपने हाथों में लेना पड़ेगा.” उनकी सतर्क आंखें उनके फोन की स्क्रीन को देख रही थीं.
हरियाणा नशे के संकट की चपेट में है और लोचब जैसे गांव नियंत्रण खो रहे हैं. पूरे राज्य में सतर्कता की लहर चल रही है, जिसमें अस्थायी समूह, समितियां और ‘नशा रोको’ पंचायतें नशे की लत को रोकने के लिए काम कर रही हैं.
एक और जब राज्य प्रगति का दावा कर रहा है, दूसरी ओर इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं. हरियाणा के 40 प्रतिशत से अधिक गांवों को ‘नशा मुक्त’ घोषित किया जा चुका है और मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कसम खाई है, “हरियाणा में नशा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.” जनवरी से नवंबर 2024 के बीच, हरियाणा राज्य नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (HSNCB) और जिला पुलिस ने ड्रग तस्करों के खिलाफ 3,051 मामले दर्ज किए, जिसके परिणामस्वरूप 4,652 गिरफ्तारियां हुईं.
हालांकि, ग्रामीणों के लिए समस्या अभी खत्म नहीं हुई है. यह जातिगत पूर्वाग्रह से भी रंगा हुआ है. सतर्कता दल अक्सर जाति के आधार पर नशीली दवाओं के व्यापार को परिभाषित करते हैं, जिसमें पूर्वाग्रहों के कारण यह तय होता है कि किसे दुकानदार या किसे ग्राहक माना जाए. इस बीच, कई परिवार नशीली दवाओं की जगह शराब की ओर रुख कर रहे हैं.
हरियाणा में नशीली दवाओं के प्रसार का श्रेय पंजाब की सीमा से लगे जिलों — कुरुक्षेत्र, कैथल, अंबाला और सिरसा को जाता है. ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे नशा विरोधी संगठनों का कहना है कि ट्रांसपोर्टरों का एक स्थापित नेटवर्क पंजाब से हरियाणा में नशीली दवाओं को ले जाता है, जहां स्थानीय डीलर उन्हें गांवों और झुग्गी-झोपड़ियों तक पहुंचाते हैं, जबकि पंजाब में प्रीगैबलिन के दुरुपयोग में बड़ी वृद्धि देखी गई है, हरियाणा की प्राथमिक लड़ाई चिट्टा (हेरोइन) से है, जिसने स्थानीय युवाओं पर गहरी पकड़ बना ली है.
हेरोइन अक्सर पंजाब से सीधे आती है या हरियाणा पहुंचने से पहले दिल्ली के रास्ते आती है.
उन्होंने कहा, “नशीले पदार्थों का सेवन सबसे ज़्यादा उन गांवों में होता है जहां बेरोज़गारी बहुत ज़्यादा है – चाहे मौके मिलने की कमी के कारण हो या इसलिए कि लोग विदेश जाने के लिए अपना सब कुछ बेच चुके हैं. यह लोग अक्सर पैसे कमाने के लिए नशीली दवाओं की तस्करी करते हैं या खुद भी इसके उपभोक्ता बन जाते हैं.”
ड्रग तस्करों को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया गया, उनकी तस्वीरें ली गईं और उनकी तस्वीरें “वांटेड ड्रग पेडलर” जैसे कैप्शन के साथ व्हाट्सएप पर वायरल की गईं.
यह भी पढ़ें: गंदे कमरे, नशे में धुत ‘मालिक’ — बिहार में छापेमारी में हुआ नाबालिग डांसर लड़कियों की ज़िंदगी का खुलासा
जाति और नशीली दवाओं की लड़ाई
हरियाणा के गांवों में अक्सर नशीली दवाएं बेचने वाले दबंग जाति के लोगों को बचाया जाता है, जबकि दलित ग्राहकों को सार्वजनिक रूप से दोषी ठहराया जाता है और उन्हें शर्मिंदा किया जाता है.
अशरफगढ़ में सरपंच के घर पर, भगत सिंह युवा समूह के सदस्यों ने इस बात पर जोशीली चर्चा की कि उनके गांव से नशीली दवाओं को कैसे दूर रखा जाए. समूह का दावा है कि उन्होंने अशरफगढ़ में नशीली दवाओं की समस्या पर 80 प्रतिशत तक काबू पा लिया है, लेकिन उन्हें डर है कि यह फिर से उभर सकती है और समुदाय को तबाह कर सकती है.
वह कहते हैं कि इसका दोष “नीची जाति” पर है.
समिति सदस्य और सरपंच की पत्नी ने खाट पर बैठते हुए अपने बालों को संवारते हुए कहा, “जब तक ये निचली जाति के लोग गांव में हैं, तब तक नशीली दवाओं की समस्या खत्म नहीं होगी.” उनके चारों ओर कुर्सियों पर बैठे पांच लोगों ने सहमति में सिर हिलाया.
समूह के सदस्यों ने जोर देकर कहा कि उनके आरोप असली हैं.
बड़ी ज़मीन वाले उच्च जाति के लोग जो आसानी से पैसा कमाना चाहते हैं, वह नशीले पदार्थ बेचते हैं और उन्हें पूरे गांव का समर्थन मिलता है…इस बीच, निचली जाति के लोगों को गांव में बदनाम किया जाता है और सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा भी किया जाता है
— राहुल कुमार, एंटी-ड्रग एक्टिविस्ट
समिति के सदस्य 46-वर्षीय सत्यवान यादव ने कहा, “यह सिर्फ बेरोज़गारी ही नहीं है, बल्कि वह जिस वर्ग और समुदाय से आते हैं, उसकी भी वजह है.”
नवंबर 2023 में अशरफगढ़ में फैली नशीली दवाओं की समस्या से निपटने के लिए भगत सिंह युवा समूह का गठन किया गया था. यादव ने याद किया कि कैसे डीलर दिनदहाड़े नशीली दवाएं बेच रहे थे.
उन्होंने कहा, “हर गली में एक युवक हेरोइन के नशे में दीवार के सहारे लेटा हुआ था.”
गांव वालों ने तय किया कि अब बहुत हो गया. उन्होंने 28 सीसीटीवी कैमरे लगाए, फुटेज को समूह के सदस्यों के स्मार्टफोन से जोड़ा और रात में गश्तें लगाईं. पंचायतें की गईं और सजाएं सुनाई गईं — ड्रग्स बेचने पर 51,000 रुपये और सेवन करने पर 5,100 रुपये का जुर्माना. इन पंचायतों के दौरान, अनुसूचित जाति के सांसी समुदाय को अलग रखा गया. अगर एक भी सदस्य ड्रग्स का सेवन या बिक्री करते पाया गया तो पूरे परिवार को गांव से निकाल दिए जाने की धमकी दी गई.
समूह के एक अन्य सदस्य ओम प्रकाश बेनीवाल ने कहा, “पहले यह गांजा तक ही सीमित था, लेकिन निचली जाति के ये लोग गांव में हेरोइन लेकर आए. हम ऊंची जाति के लोग ऐसी गतिविधियों में शामिल नहीं होते.”
यह कहानी सिर्फ अशरफगढ़ तक ही सीमित नहीं है. पूरे हरियाणा में दलित पुरुषों पर अक्सर ड्रग्स फैलाने का आरोप लगाया जाता है.
करनाल जिले के गांवों में जागरूकता अभियान चलाने वाले कार्यकर्ता राहुल कुमार के अनुसार, आर्थिक विभाजन इस दोषारोपण के खेल को बढ़ावा देता है.
यह एक ऐसा तंत्र है जिसमें प्रमुख जाति के ड्रग विक्रेताओं को क्लीन चिट मिल जाती है और हाशिए पर पड़े ग्राहकों को बदनाम किया जाता है. कुमार लोगों को ड्रग को जाति से अलग करने के बारे में जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि यह राज्य के सामाजिक ताने-बाने में गहराई से समाया हुआ है.
नशा मुक्ति केंद्रों में काम करने वाले कुमार ने कहा, “बड़ी ज़मीन वाले उच्च जाति के लोग जो आसानी से पैसा कमाना चाहते हैं, वह नशीले पदार्थ बेचते हैं और उन्हें पूरे गांव का समर्थन मिलता है…इस बीच, निचली जाति के लोग जो ज्यादातर मज़दूर हैं और जिनके पास नौकरियां नहीं हैं, इन नशीली दवाओं का सेवन करते हैं उन्हें गांव में बदनाम किया जाता है और सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा भी किया जाता है.”
हरियाणा के गांवों में ड्रग की जगह शराब का चलन व्यापक है.
कार्रवाई और समुदाय की स्वीकारोक्ति
जब मनोहरपुर के ग्रामीणों ने देर रात सूखे तालाब के पास लग्जरी कारों — बीएमडब्ल्यू, फॉर्च्यूनर और एसयूवी — को खड़ा देखा, तो उन्हें पता चल गया कि कुछ गड़बड़ है. इन कारों में सवार लोग देहाती नज़ारों को निहारने के लिए नहीं बल्कि गांव में सप्लायर से चिट्टा और गांजा खरीदने के लिए वहां आए थे.
जैसे ही 2023 में सरपंच प्रीति को इस मुद्दे के बारे में पता चला, उन्होंने पंचायत की बैठक बुलाई और सप्लायर पर कार्रवाई करने के लिए एक टीम बनाई. ग्रामीणों के अनुसार, यह जींद में गठित पहला एंटी-ड्रग निगरानी समूह था.
जल्द ही, स्थानीय पुलिस को भी सरपंच ने निगरानी समूह के साथ सहयोग करने के लिए सूचित किया और “एक दो, एक दो, नशे की लत को छोड़ दो” जैसे नारे सड़कों पर गूंजने लगे.
प्रीति ने कहा, “हम नशे की समस्या के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए घर-घर गए. गांव में जाने वाली सड़कों पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे.”
नशा करने वाले समूह ने ड्रग्स का सेवन करने वालों को जबरन नशा मुक्ति केंद्रों में भेजा. ड्रग पेडलर्स को सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया गया, उनकी तस्वीरें ली गईं और उसे “वांटेड ड्रग पेडलर” जैसे कैप्शन के साथ व्हाट्सएप पर वायरल किया गया. इसके बाद ही उन्हें पुलिस को सौंप दिया गया. पिछले दो साल में समूह ने 48 युवाओं को उनकी लत से उबरने में मदद करने का दावा किया है.
मनोहरपुर के मॉडल ने आस-पास के गांवों जैसे अशरफगढ़ और लोचब को इसी तरह की पहल अपनाने के लिए प्रेरित किया, लेकिन सिस्टम में एक खामी थी — कई पेडलर्स अपनी गिरफ्तारी के अगले दिन ही सड़कों पर वापस आ गए.
लोचब गांव के सरपंच मुकेश ने कहा, “छोटी मात्रा में ड्रग्स के लिए तस्करों को लंबे समय तक हिरासत में नहीं रखा जाता है. समय के साथ, उन्हें एहसास हो गया है कि 5-6 ग्राम चिट्टा या गांजा ले जाने पर उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. उन्हें बस चेतावनी दी जाती है, रात भर हिरासत में रखा जाता है और फिर छोड़ दिया जाता है. यही कारण है कि वह बड़ी मात्रा में ड्रग्स रखने से बचते हैं.”
हरियाणा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने माना कि छोटे-मोटे अपराधियों पर मुकदमा चलाना मुश्किल है. छोटी मात्रा में हेरोइन (चिट्टा) आमतौर पर बीड नामक छोटे-छोटे पन्नी के पैकेट में बेचा जाता है, जिसकी हैंडलिंग और सैंपलिंग करना मुश्किल होता है.
अधिकारी ने कहा, “ग्राम चिट्टा 20 बीड में बंटा होता है. नशे के आदी लोगों को तुरंत हेरोइन की ज़रूरत होती है. वह पन्नी खोलते हैं, उसे चपटा करते हैं और पदार्थ को जलाकर धुएं को अंदर लेते हैं.”
अधिकारी ने बताया कि कानून के अनुसार, दो सैंपल लिए जाते हैं — एक को फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) में भेजा जाता है और दूसरा अदालत द्वारा ज़रूरी होने पर दोबारा जांच के लिए सुरक्षित रखा जाता है, लेकिन इतनी कम मात्रा में सैंपल लेना मुश्किल हो जाता है.
हमारे पास न तो नौकरी है, न ही अवसर, न ही संसाधन. ड्रग्स ने कम से कम हमें यह भ्रम तो दिया कि सब कुछ ठीक है
— मनोहरपुर निवासी अमित जो नशे की लत से उबर रहा है
यही कारण है कि पुलिस ट्रांज़िट में ड्रग्स को रोकने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जहां बड़ी मात्रा में या “व्यावसायिक मात्रा” में ड्रग्स पाए जाने की सबसे अधिक संभावना है.
अधिकारी ने कहा, “जब वह आगे बढ़ रहे होते हैं, तो हम उन्हें रोकने की कोशिश करते हैं. इस तरह हम सैंपल ले सकते हैं और उनके खिलाफ एक मज़बूत मामला दर्ज कर सकते हैं, जिससे उन्हें सालों तक जेल में रहना पड़ सकता है. बहुत कम मामलों में ड्रग्स को स्थानीय स्तर पर संग्रहीत किया जाता है.”
ज़्यादातर हेरोइन की आपूर्ति पंजाब से शुरू होने वाले मार्गों से दिल्ली में होती है, जो हरियाणा और कभी-कभी राजस्थान से होकर गुज़रती है.
अधिकारी ने कहा, “अपराधी मौकापरस्त होते हैं. हम एक रास्ते पर गश्त करते हैं, वह दूसरा ढूंढ़ लेते हैं.”
इस साल गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा कमीशन की गई क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (QCI) की एक रिपोर्ट में हरियाणा में मादक पदार्थों की जब्ती में तेज़ वृद्धि देखी गई. जनवरी से 30 नवंबर 2024 तक, राज्य में वाणिज्यिक मात्रा में नशीली दवाओं की जब्ती के 411 मामले दर्ज किए गए — 2023 में इसी अवधि के दौरान 295 मामलों की तुलना में 40 प्रतिशत की वृद्धि है.
हरियाणा राज्य नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (HSNCB) के अनुसार, वाणिज्यिक मात्रा में सबसे अधिक जब्ती सिरसा, अंबाला, कुरुक्षेत्र, गुरुग्राम और फरीदाबाद से हुई.
2024 में 3,114 गांवों को नशा मुक्त घोषित किए जाने के साथ, पुलिस और प्रशासन अपने जागरूकता अभियानों और एंटी-ड्रग प्रोग्राम को इसका श्रेय दे रहे हैं. इनमें नमक — लोटा अभियान भी शामिल है, जिसके तहत छोटे-मोटे तस्कर और सेवन करने वाले गांव के बुजुर्गों और पंचायतों के सामने सार्वजनिक रूप से नशीली दवाओं का त्याग करते हैं.
सामुदायिक हस्तक्षेप के अलावा, नशीली दवाओं की तस्करी से निपटने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण का उपयोग किया जाता है, जिसमें नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत निवारक हिरासत शामिल है.
एक अन्य एसपी स्तर के अधिकारी ने कहा, “हम इस प्रावधान के तहत किसी को एक साल तक हिरासत में रख सकते हैं. हम पी-एनडीपीएस अधिनियम के तहत मामला बनाते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि व्यक्ति कितने मादक पदार्थों के तस्करों से जुड़ा है. अगर पर्याप्त सबूत मिलते हैं, तो मामला दर्ज करना आसान हो जाता है.”
यह भी पढ़ें: ‘न नमक, न महिलाएं और 41 दिन की कड़ी तपस्या’ — पानीपत में पुरुष कैसे बनते हैं हनुमान
‘ड्रग्स की जगह शराब’
मनोहरपुर के 28-वर्षीय मनीष को उसकी सरपंच प्रीति ने नशा मुक्ति केंद्र भेजा था, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ. पिछले साल तीन बार जाने और रेगुलर काउंसलिंग सेशन के बावजूद मनीष कुछ महीनों के लिए नशा छोड़ देता था, लेकिन फिर से इसी लत में पड़ जाता था. तभी उसके परिवार ने उसकी नशे की लत को शराब से बदल दिया.
नशा मुक्ति केंद्र से आखिरी बार लौटने के बाद, उन्होंने उसे अपनी निगरानी में शराब पीने की अनुमति दी. एक या दो महीने के भीतर ही नशे के प्रति उसकी दीवानगी कम होने लगी.
मज़दूरी करने वाले उसके बड़े भाई आशीष ने कहा, “हमारा विचार उसकी नशे की लत को छुड़ाना था. वह कमज़ोर हो गया था और इसीलिए हमने शराब पीना शुरू कर दिया क्योंकि यह यह कम खतरनाक तो है.”
नशे की जगह शराब पीने का चलन हरियाणा के गांवों में काफी ज्यादा है. लंबे समय से नशे की लत में फंसे लोगों के लिए, नशे की तलब को शांत करने के लिए अक्सर शराब को विकल्प के तौर पर पेश किया जाता है.
हालांकि, जींद के मनोचिकित्सक संकल्प कुमार चेतावनी देते हैं कि यह केवल एक लत को दूसरे से बदल देता है.
उन्होंने कहा, “यह दृष्टिकोण ज्यादातर उन मामलों में देखा जाता है जहां मरीज़ भारी दवाओं का उपयोग नहीं करते हैं. शराब को अक्सर एक विकल्प के रूप में माना जाता है जो वैसा ही सुरूर देती है, लेकिन वैज्ञानिक रूप से, यह भी गलत है.”
कुमार ने कहा कि शराब की कानूनी स्थिति ठीक होने वाले नशेड़ी लोगों के बीच वैधता की झूठी भावना को मजबूत करती है.
सरकारी नशा मुक्ति केंद्र में काम करने वाले कुमार ने कहा, “शराब एक कानूनी दवा है और सूखा नशा महंगा है, जबकि शराब तुलनात्मक रूप से सस्ती है, लेकिन एक चेतावनी है – शराब पीना समय के साथ बढ़ता जाता है, जिससे लीवर और किडनी खराब होते हैं. यह सरासर मूर्खता है.”
लेकिन मनोहरपुर के अमित के लिए शराब उसका उद्धारकर्ता बन गई है. वह शायद ही कभी अपने घर से बाहर निकलता है, लेकिन जब वह निकलता है, तो लोगों को नशा न करने के लिए कहता है.
हालांकि, वह खुद पूरी तरह से आश्वस्त नहीं दिखता.
उसने खांसते हुए कहा, “क्या यह काफी है? हमारे पास न तो नौकरी है, न ही अवसर, न ही संसाधन. नशे ने कम से कम हमें यह भ्रम तो दिया कि सब कुछ ठीक है.” जबकि उसका बड़ा भाई उसके सिर पर थपकी देकर हंस रहा था.
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: हरियाणा कैसे बन रहा — गौरक्षकों और धार्मिक उन्माद के अपराधों का गढ़