लखनऊ: दो दशक पुराने सनसनीखेज मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के बारे में सवालों के जवाब देने के लिए अपने नोट्स के पन्ने पलटते हुए मधुमिता की बहन निधि शुक्ला कहती हैं कि न्याय के लिए उनकी लड़ाई ने उनमें पत्राचार की एक आदत विकसित कर ली है.
मधुमिता के हत्यारे अमरमणि त्रिपाठी को उत्तरप्रदेश सरकार ने रिहा कर दिया है लेकिन निधि की पत्र-याचिकाएँ थकने का नाम नहीं ले रही हैं.
वह हर पखवाड़े यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्य सचिव (गृह), आईजी (जेल), यूपी के पुलिस महानिदेशक और गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखती हैं और शिकायत करती हैं कि उन्होंने कैसे काम किया है. निधि का तर्क है कि अदालत के आदेशों का मखौल उड़ाया गया.
वह कहती हैं. “कभी-कभी, मैं रात-रात भर नहीं सोती और बस सरकारी अधिकारियों को पत्र लिखती रहती हूं. जब मैं डाकघर जाती हूं, तो कतार में लगे लोग मेरे लिए रास्ता बनाते हैं क्योंकि वहां हर कोई मुझे जानता है.”
पिछले 20 सालों में निधि ने उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली में पांच अलग-अलग अदालतों के बीच चक्कर लगाया है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि मधुमिता के हत्यारों को सजा मिले, वह यूपी पुलिस, आपराधिक जांच विभाग और अपराध शाखा (सीबी-सीआईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के समक्ष गवाही दी है.
निधि कहती हैं, “लेकिन अब, ऐसा लगता है कि सबकुछ व्यर्थ चला गया है और मुझे लगता है कि बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी से जुड़े बाहुबली नेता त्रिपाठी का प्रभाव कानून पर भी हावी हो गया है.”
अब उसकी लड़ाई को भी बदलना होगा.
निधि ने कहा, “अब तक, मैं अपनी बहन के न्याय के लिए लड़ रही थी लेकिन अब मैं जेल में बंद हजारों दोषियों के लिए लड़ूंगी, जो सच में बीमार हैं और उन्हें अपनी सजा में छूट की जरूरत है.” निधि मृत कवयित्री की छोटी बहन हैं, जिनकी 9 मई 2003 की शाम को उनके दो कमरे के फ्लैट में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब वह सात महीने की गर्भवती थीं.
वह आगे कहती हैं, “मेरी बहन के शरीर से इतना झाग निकला कि वह झाग के एक कुंड में पड़ी हुई थी जो उसके शरीर के नीचे बन गया था. हत्यारों ने सबसे पहले उसके स्तन में गोली मारी- जो महिला के शरीर का सबसे संवेदनशील हिस्सा होता है और यह सुनिश्चित करने के लिए उसका गला भी घोंटा ताकि वह मदद के लिए चिल्ला न सके.” वह उस दिन को याद करते हुए दिप्रिंट से कहती हैं, जिसने उनके जीवन को उलट-पुलट कर दिया. उस दिन से वह बहन के न्याय के लिए लड़ रही है.
निधि कहती हैं, “जब मैं उसके मुंह से निकले झाग को साफ कर रही थी, तो मैंने फैसला किया कि मैं उसके हत्यारों को नहीं छोड़ूंगी.” वह लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में घटना स्थल पर पहुंचने वाली परिवार की पहली सदस्य थीं.
उत्तराखंड से गोरखपुर
एक उभरती हुई कवयित्री 19 वर्षीय मधुमिता शुक्ला, जो यूपी के साहित्यिक हलकों में धीरे-धीरे काफी प्रसिद्ध हो रही थी, अमरमणि त्रिपाठी के साथ रिश्ते में थी और उसके बच्चे की मां बनने वाली थी. लगातार दबाव के बावजूद गर्भपात नहीं कराने के चलते त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी ने उसे खत्म करने की साजिश रची थी, जो इस मामले की सीबीआई जांच के साथ समाप्त हो गई थी.
बीस साल बाद, यूपी के राज्यपाल ने त्रिपाठी और उनकी पत्नी की समयपूर्व रिहाई का आदेश दिया.
लेकिन निधि के लिए, रिहाई का आदेश अचानक से कोई झटका नहीं था.
जब त्रिपाठी ने 16 साल की कैद के बाद पात्र आजीवन कैदियों को रिहा करने के अदालत के निर्देश के बाद राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की, तो अदालत ने फरवरी में कहा कि यूपी सरकार उनकी याचिका की समीक्षा कर सकती है.
वह कहती हैं, “उस दिन, मुझे एहसास हुआ कि वह अब आज़ाद होकर घूमेगा.”
त्रिपाठी 2003 में मायावती कैबिनेट और उससे पहले कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह सरकार में भी एक शक्तिशाली मंत्री थे. वह सरकारें बनाने और बिगाड़ने के लिए जाने जाते थे.
दंपति को दो अन्य लोगों के साथ 2007 में उत्तराखंड की एक सीबीआई अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. त्रिपाठी मार्च 2012 तक हरिद्वार जेल में ही कैद रहे. उसके बाद, उन्हें गोरखपुर जेल ट्रांसफर कर दिया गया.
सजा के एक साल से कुछ अधिक समय बाद दिसंबर 2008 में मधुमणि त्रिपाठी को गोरखपुर जेल लाया गया.
हालांकि, निधि का आरोप है कि हरिद्वार जेल में कैद के दौरान भी अन्य मामलों की सुनवाई के चलते त्रिपाठी कई दिनों के लिए गोरखपुर आते-जाते रहते थे.
मीडिया रिपोर्ट्स में दिखाया गया है कि हरिद्वार के पुलिसकर्मी अन्य मामले की सुनवाई के लिए त्रिपाठी के साथ वातानुकूलित डिब्बों में गोरखपुर जाते थे और वह काफी “अच्छा समय” बिताते थे.
लेकिन गोरखपुर पहुंचने के तुरंत बाद, त्रिपाठी को 27 फरवरी 2013 को बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया और उनकी पत्नी ने 15 दिन बाद ऐसा किया और वे क्रमशः कमरा नंबर 8 और 16 के विशेष निवासी बन गए.
वह कहती हैं, “उसने जेल के अंदर भी अपनी गुंडागर्दी जारी रखी, जहां वह नियमित रूप से अपना जनता दरबार लगाता था. कभी-कभी, वह मेडिकल कॉलेज से लापता हो जाता था, और उसे गोरखपुर में अपने एक पेट्रोल पंप के पास देखा जाता था. वह हम पर दबाव बनाते रहे, गवाहों को धमकियां देते रहे, जिनमें से दो मुकर गए और जबकि पत्रकार कानून के इस मजाक के बारे में लिखते रहे, लेकिन उसने मेडिकल कॉलेज से अपनी जागीर चलाई.”
अच्छे आचरण के लिए रिहा किया गया
दिप्रिंट के पास मौजूद जेल विभाग के 24 अगस्त के रिहाई आदेश में त्रिपाठी और उनकी पत्नी की रिहाई के आधारों में से एक के रूप में “अच्छे आचरण” का उल्लेख है.
निधि के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि गोरखपुर जेलर त्रिपाठी के अच्छे आचरण की पुष्टि कैसे कर सकते हैं, जबकि वह वहां केवल 16 महीने रहे थे.
वह कहती है, “मैंने यह सवाल सीएम और राज्यपाल से पूछा है क्योंकि राज्यपाल ने सीएम की सिफारिश पर रिहाई का आदेश दिया है. वह केवल 16 माह तक गोरखपुर जेल में कैद रहे. गोरखपुर जेलर ने जेल में उसके अच्छे आचरण की पुष्टि करते हुए एक रिपोर्ट दी है. ऐसा कैसे हुआ जब वह पहले जेल में ही नहीं रहे?”
निधि ने अब भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी सहित अन्य को पत्र लिखा है. उनका आरोप है कि रिहाई आदेश के बावजूद त्रिपाठी और उनकी पत्नी अस्पताल में रुके हुए थे. निधि का दावा है कि वे “फर्जी मेडिकल रिकॉर्ड बना रहे हैं और अस्पताल के रिकॉर्ड जलाए जा रहे हैं”. उन्होंने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक मेडिकल टीम का गठन किया जाए, जो मीडिया निगरानी में त्रिपाठी और मधुमणि की जांच कर सके क्योंकि उनका दावा है कि यह दंपति शायद पत्रकारों से बच रहा है.
दंपति के बेटे अमनमणि त्रिपाठी ने पिछले हफ्ते मीडियाकर्मियों को बताया कि उनके पिता तंत्रिका संबंधी विकार और रीढ़ की हड्डी की बीमारी से पीड़ित हैं, जिससे उनके लिए चलना मुश्किल हो जाता है और उनकी मां अवसाद से पीड़ित हैं. हालांकि, निधि इसे एक तमाशा बताती हैं.
वह कहती हैं, “वास्तव में, उन्हें कोई चिकित्सीय समस्या नहीं है. असली मुद्दा यह है कि अब जब वे न्यायिक हिरासत से रिहा हो गए हैं, तो वे मीडिया के ध्यान से बचना चाहते हैं. पत्रकार उनका पीछा कर रहे हैं और लोग गोरखपुर और नौतनवा में उनके आवास के बाहर लाइन लगा रहे हैं. अमरमणि उनका सामना कैसे करेंगे और उन्हें कैसे संबोधित करेंगे जब उन्होंने दावा किया है कि वह चलने में असमर्थ हैं?”
पूछने पर, निधि ने बताया कि 1996 में उसके पिता की मृत्यु उसके जीवन का पहला झटका थी और कैसे उसकी माँ तब तक सहारा बनी रही जब तक कि बीमारी ने उसे घेर नहीं लिया.
निधि कहती हैं, “मेरी मां ने एलएलबी किया था और हमेशा हमें पढ़ाई में अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करती थीं. हर बच्चे को उनके जैसी मां मिलनी चाहिए लेकिन वह अब कमजोर हो गई हैं और अब 70 साल की हो गई हैं. मैं उसे तनाव से दूर रखती हूं और इसलिए, वह दूसरे घर में रहती है. शुरुआती दिनों में वह मेरी सबसे बड़ी मार्गदर्शक थीं.”
मधुमिता और निधि के बड़े भाई विजय शुक्ला कहते हैं कि यह देखकर बहुत दुख होता है कि राज्यपाल, जो एक महिला हैं, के कार्यालय से ऐसा आदेश आया.
उन्होंने पिछले हफ्ते कहा था, “एक महिला मर गई. दूसरी महिला 20 साल तक संघर्ष करती रही और आज, हत्यारों को उनके अच्छे आचरण के आधार पर रिहा किया जा रहा है. निधि ने इस देश में न्याय के लिए लड़कर बहुत बड़ी गलती की है.”
छोटी सी किशोरी निधि, जिसके जीवन की दूसरी सबसे बड़ी त्रासदी उसकी बहन की मृत्यु के रूप में सामने आई, निधि अब एक महिला है, जो दुखों और अथक संघर्ष से थक चुकी है. वह कहती हैं, “मैंने सोचा था कि लड़ाई खत्म हो सकती है, लेकिन ऐसा लगता है कि मुझे अपनी जिंदगी के 20 साल और इस मकसद के लिए बिताने होंगे.”
वह अभी भी लखीमपुर खीरी के मिश्राना इलाके में अपने एक मंजिला घर में रह रही हैं, जहां दोनों बहनों ने अन्य चीजों के अलावा लखनऊ में कवि सम्मेलनों में शामिल होने से पहले अपना बचपन बिताया था.
निधि ने मधुमिता द्वारा लखीमपुर खीरी और अन्य जगहों पर काव्य पाठ के लिए जीते गए कई पुरस्कार और शील्ड को संभालकर रखा है. एक समय ऐसा भी था जब उन्होंने मधुमिता के मेकअप किट, कपड़े और सैंडल तक रख लिए थे.
वह कहती हैं, “उसका व्यक्तित्व ऐसा था कि मैं आज भी उससे मंत्रमुग्ध हूं. वह एक प्रतिभाशाली बच्ची और एक उभरती हुई कवित्री थी, जो कविता सुनाने के लिए नोट्स का उपयोग नहीं करती थी. उसके ऊपर मां सरस्वती का हाथ था (उसे देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त था). वह बहादुर, बुद्धिमान और दयालु थी. बचपन से ही दूसरों के गलत कामों को माफ कर देने की उसकी आदत थी. वह बस अमरमणि के चक्कर में फंस गई.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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