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Saturday, 21 December, 2024
होमफीचर'104 साल, 5 पीढ़ियां', दिल्ली के इस परिवार में हैं 150 डॉक्टर, अब छठीं पीढ़ी के लोग कर रहे विद्रोह

‘104 साल, 5 पीढ़ियां’, दिल्ली के इस परिवार में हैं 150 डॉक्टर, अब छठीं पीढ़ी के लोग कर रहे विद्रोह

सभरवाल डॉक्टर डायनेस्टी की शुरुआत 1900 के दशक में लाहौर के स्टेशन मास्टर लाला जीवनमल के सपनों पर हुई थी, जो चाहते थे कि उनके चार बेटे डॉक्टर बनें. आज, उनके पास दिल्ली में 5 अस्पताल हैं.

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नई दिल्ली: नाम है समरवीर. डॉ. समरवीर. करोल बाग का 11 वर्षीय लड़का खुद को इसी तरह से पेश करता है. वह डॉक्टर बनेगा, डॉक्टर से शादी करेगा और सभरवाल परिवार की 104 साल पुरानी डॉक्टरी विरासत को जिंदा रखेगा.

पांच पीढ़ियों से, परिवार का हर सदस्य – 150 से ज़्यादा लोग – डॉक्टर रहे हैं. चाची, चाचा, पत्नियाँ, पति, दादा-दादी, बेटे और बेटियाँ सभी प्रसूति-स्त्री रोग विशेषज्ञ, रेडियोलॉजिस्ट, सर्जन, ऑर्थोपेडिस्ट, यूरोलॉजिस्ट, बाल रोग विशेषज्ञ और जनरल फिजीशियन हैं. आज, दिल्ली के सभरवाल परिवार के पास करोल बाग, आश्रम और वसंत विहार में पाँच अस्पताल हैं, जहाँ परिवार की अलग-अलग शाखाएँ काम करती हैं. यह एक ऐसा पेशा है जिस पर उन्हें बेहद गर्व है.

बचपन में, वे अस्पताल के गलियारों और प्रयोगशालाओं में पले-बढ़े. उन्होंने सर्जरी रूम में अपना होमवर्क पूरा किया और ऑपरेशन देखा. परिवार के एक सदस्य ने तो इतिहास पढ़ने से भी मना कर दिया क्योंकि उसका मेडिकल फील्ड से कोई संबंध नहीं था. लेकिन डॉक्टरों की जारी यह लंबी कतार सबसे कम उम्र और छठी पीढ़ी के साथ टूट रही है. समरवीर के विपरीत, जो जीवन में अपने लक्ष्य के प्रति आश्वस्त हैं, उनके कुछ बड़े चचेरे भाई अपनी स्वतंत्रता चाह रहे हैं. वे लेखक, क्रिकेटर, इंजीनियर बनना चाहते हैं.

परिवार के मुखिया 84 वर्षीय डॉ. सुदर्शन सभरवाल ने कहा, “हम अपने बच्चों को उनके जन्मदिन पर यह कहकर शुभकामनाएं देते हैं कि वे बड़े होकर डॉक्टर बनें और परिवार की विरासत को आगे बढ़ाएँ.” आश्रम में अपने पति, जो एक पूर्व लेप्रोस्कोपिक सर्जन हैं, के साथ रहने वाली सेवानिवृत्त स्त्री रोग विशेषज्ञ, अपने स्कूल और कॉलेज जाने वाले पोते-पोतियों को इस पेशे को अपनाने के लिए मनाने के लिए प्यार से लेकर उनके अंदर अपराधबोध तक की भावना भरने से नहीं चूकती हैं.

डॉक्टर डायनेस्टी की शुरुआत लाहौर के स्टेशन मास्टर लाला जीवनमल के सपनों पर हुई थी, जो 1900 के दशक में अपने चार बेटों को डॉक्टर बनाना चाहते थे. 1920 में परिवार को अपना पहला डॉक्टर मिला और टैगलाइन थी ‘बीमारों की सेवा ही ईश्वर की सेवा है’. पारिवारिक किंवदंतियों के अनुसार, जीवनमल हमेशा चाहते थे कि उनकी आने वाली पीढ़ियाँ डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करें.

सुदर्शन के भतीजे, 43 वर्षीय डॉ. अंकुश सभरवाल ने कहा, “हमारे परिवार की विरासत को आगे बढ़ाना हमें कभी बोझ जैसा नहीं लगा. यह पेशा और समाज की सेवा हमारी पहली प्राथमिकता है.”

Dr Ankush Sabharwal examining a patient at Jeewan Hospital, Karol Bagh | Photo: Manisha Mondal, ThePrint
करोल बाग के जीवन अस्पताल में एक रोगी की जांच करते डॉ. अंकुश सभरवाल । फोटोः मनीषा मोंडल

जीवनमल के निर्देश सिर्फ़ बच्चों के लिए ही नहीं थे, बल्कि उनके होने वाले जीवनसाथी के लिए भी थे. इस परिवार में जीवनसाथी का मिलान कुंडली से नहीं, बल्कि उनके पेशे से होता है.

सुदर्शन ने कहा, “जब भी हमारे बच्चे मेडिकल स्कूल में प्रवेश लेते हैं, तो हम उन्हें हमेशा बताते हैं कि वे केवल डॉक्टर के साथ ही डेट और शादी कर सकते हैं.”

डॉक्टरों का परिवार

सभरवाल परिवारों में खाने की मेज पर बातचीत उनके पेशे और मरीजों के इर्द-गिर्द घूमती है. इन दिनों, यह NEET-UG पेपर लीक और छात्रों के विरोध के बारे में है.

अमृतसर के सरकारी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करने वाले अंकुश ने कहा, “NEET पहले से ही सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है, जिसके लिए वर्षों की तैयारी की आवश्यकता होती है. ऐसी घटनाएं छात्रों के आत्मविश्वास को प्रभावित करती हैं और उनकी वर्षों की मेहनत को [कमजोर] करती हैं. स्थिति की उचित जांच की जरूरत है. सरकार को भी छात्रों की बात सुननी चाहिए.” परिवार के अन्य सदस्य सहमति में सिर हिलाते हैं.

हम अपने बच्चों को उनके जन्मदिन पर यह कहकर शुभकामनाएं देते हैं कि वे बड़े होकर डॉक्टर बनें और परिवार की विरासत को आगे बढ़ाएं – 84 वर्षीय डॉ. सुदर्शन सभरवाल

एक ही पेशे में सभी के होने से बातचीत आसान हो जाती है क्योंकि परिवार के लोग मरीजों, प्रक्रियाओं और प्रोटोकॉल पर चर्चा करते हैं. अस्पताल से आपातकालीन कॉल आने पर परिवार के किसी सदस्य को अचानक काम पर जाना पड़ता है, लेकिन इससे घर की दिनचर्या में शायद ही कोई व्यवधान आता है.

अंकुश की पत्नी और सभरवाल परिवार की पहली रेडियोलॉजिस्ट डॉ. ग्लॉसी (42) ने कहा, “कभी-कभी जब भी हमें कोई आपातकालीन कॉल आती है तो हम सीधे रसोई से भागते हैं, और चूंकि हमें ट्रैवेल नहीं करना पड़ता [क्योंकि परिवार अस्पताल के करीब है], तो यह प्रेशर लेना आसान हो जाता है.” उन्हें भी फैमिली डायनमिक्स के कारण वर्क-लाइफ बैलेंस बनाए रखना आसान लगता है.

Dr Glossy Sabharwal, the first radiologist of the family | Photo: Manisha Mandal, ThePrint
डॉ. ग्लॉसी सभरवाल, परिवार की पहली रेडियोलॉजिस्ट । फोटोः मनीषा मोंडल, दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “आपको ऐसी आपात स्थितियों के बारे में बताने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वे [परिवार] जानते हैं कि इस पेशे में आपका बहुत समय लगता है.”

ग्लॉसी आसानी से परिवार में घुलमिल गई – उन्होंने उनका खुले दिल से स्वागत किया. आखिरकार वह एक डॉक्टर है. लेकिन अस्पताल के ज़्यादा औपचारिक माहौल में अपने ससुराल वालों से घुलने-मिलने के लिए उसे समय लगा.

करोल बाग में परिवार के स्वामित्व वाले जीवन माला अस्पताल में काम करने वाली ग्लॉसी ने कहा, “घर पर वे मम्मी-पापा हैं. लेकिन काम पर मैं उन्हें डॉक्टर कहती हूं.”

Jeewan Mala Hospital, Karol Bagh | Photo: Manisha Mondal, ThePrint
करोल बाग में जीवन माला हॉस्पिटल । फोटोः मनीषा मंडल, दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “अभी भी, मैं कभी-कभी अस्पताल में उन्हें मम्मी-पापा कहती हूं.”

जब आप घर पर भी उन्हीं परिवार के सदस्यों को अनौपचारिक माहौल में देखते हैं, तो ऑपरेटिंग रूम या ऑफिस में उन्हीं को देखना परेशान करने वाला हो सकता है. एक्सटेंडेड फैमिली की एक और बहू, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शिवानी जो उसी अस्पताल में काम करती हैं, इस बात से सहमत हैं. वह लेबर रूम की आपात स्थितियों के लिए अपनी सास डॉ. मालविका के साथ मिलकर काम करती हैं.

43 वर्षीय शिवानी ने फोटो के लिए अपनी सास के बालों को ठीक करते हुए कहा, “अस्पताल और घर में वह दो अलग-अलग लोग हैं. वह बहुत सख्त डॉक्टर हैं और मरीज की देखभाल के मामले में कोई गलती पसंद नहीं करती हैं. लेकिन अस्पताल के बाहर, वह अलग हैं, बहुत समझदार और मददगार हैं.”

Left to right- Dr Ankush Sabharwal, Dr Glossy Sabharwal, Dr Malvika Sabharwal, Dr Vinay Sabharwal, Dr Shivani Sabharwal, Dr Arush Sabharwal at Shree Jeewan Hospital, Karol Bagh | Photo: Manisha Mondal, ThePrint
बाएं से दाएं- डॉ अंकुश सभरवाल, डॉ ग्लॉसी सभरवाल, डॉ मालविका सभरवाल, डॉ विनय सभरवाल, डॉ शिवानी सभरवाल, श्री जीवन अस्पताल, करोल बाग में डॉ आरुष सभरवाल | फोटो: मनीषा मंडल, दिप्रिंट

डॉक्टरों से ही शादी करने का नियम एक बार तब टूट गया जब 60 वर्षीय सुनल सभरवाल ने जीव विज्ञान की छात्रा शक्ति से शादी की. परिवार के एक सदस्य ने बताया, “परिवार में शादी करने के बाद, वह इस सवाल से तंग आ गई कि ‘वह डॉक्टर क्यों नहीं है?'” उन्होंने आगे बताया कि 59 वर्षीय शक्ति सभरवाल अब अमेरिका में डॉक्टर हैं.

विद्रोही

हर कोई शक्ति जितना मिलनसार नहीं होता. सभरवाल की छठी पीढ़ी के कई लोग इस पेशे के प्रति परिवार के जुनून पर सवाल उठा रहे हैं.

21 वर्षीय दीया सभरवाल ने कैलिफ़ोर्निया के स्टैनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी और कंप्यूटर विज्ञान में दोहरी डिग्री हासिल करने के लिए इमोशनल ब्लैकमेल का सामना करना पड़ा. वह लॉस एंजिल्स टाइम्स के लिए लिखती हैं और स्टैनफ़ोर्ड डेली में भी रेग्युलर कॉन्ट्रीब्यूटर हैं.

दीया ने व्हाट्सएप पर कहा, “मेडिसिन एक खूबसूरत क्षेत्र है, लेकिन मैं हमेशा अपने दिल में जानती थी कि यह मेरे लिए नहीं है. हालांकि यह बहुत रचनात्मक हो सकता है, लेकिन डॉक्टर बनने की प्रक्रिया अपने आप में बहुत कठिन है.” वह पांच साल के संयुक्त कार्यक्रम में अपनी स्नातक और मास्टर डिग्री पूरी कर रही हैं.

2018 में नौवीं कक्षा में बच्चों की किताब, ए नॉट सो साइलेंट नाइट प्रकाशित करने वाली दीया ने कहा,”मैं एक इंजीनियर और एक लेखक के रूप में अपना करियर बनाना चाहती हूँ. मैं प्रोडक्ट डिज़ाइन की दुनिया से विशेष रूप से उत्साहित हूं”

आज, उनके परिवार ने उनके फैसले को स्वीकार कर लिया है, लेकिन इसके लिए उन्हें कई सालों तक विरोध करना पड़ा.

इस तरह के दबाव का विरोध करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है, जो अंदर और बाहर दोनों तरफ से आता है. शिक्षक और अस्पताल के कर्मचारी स्वाभाविक रूप से युवा सभरवाल छात्रों से डॉक्टर बनने की उम्मीद करते हैं.

जनरल और लेप्रोस्कोपिक सर्जन और चौथी पीढ़ी के डॉक्टर 72 वर्षीय विनय सभरवाल कहते हैं, “स्कूल में जैसे ही लोग हमारा सरनेम सुनते थे, वे हमें बताते थे कि हम डॉक्टर बनेंगे.”

मेडिकल एक खूबसूरत क्षेत्र है, लेकिन मैं हमेशा अपने दिल में जानता था कि यह मेरे लिए नहीं है. हालांकि यह बहुत रचनात्मक हो सकता है, लेकिन डॉक्टर बनने की प्रक्रिया अपने आप में बहुत श्रमसाध्य है,” – दीया सभरवाल

दीया के मामले में, बहस और झगड़े हुए और वह अपने परिवार को मनाने के लिए कई दिनों तक रोती रही.

उन्होंने कहा, “डॉक्टर बनना निश्चित रूप से एक परंपरा के रूप में देखा जाता है. मेरे माता-पिता वास्तव में चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं.” वह आश्रम के पास जीवन अस्पताल की दूसरी मंजिल पर रहती थी.

“कर्मचारी मुझे डॉ. दीया कहते थे.” जब वह 10वीं कक्षा में थी, तब उसने NEET की तैयारी के लिए आकाश इंस्टीट्यूट में दाखिला भी ले लिया था. उन्होंने कहा, “मैं इसे आजमाने के लिए लगभग तैयार हो गई थी, लेकिन अंत में, मुझे लगा कि यह मेरे समय और ऊर्जा को उन चीजों से निकाल रहा है जिन्हें मैं करना पसंद करती हूं – नई चीजों का सृजन करना और बनाना वह काम था जिसमें मैं सबसे अच्छी हूं,”

दीया के विपरीत, उसके क्रिकेट के दीवाने 16 वर्षीय चचेरे भाई आर्यन ने अगले साल 12वीं कक्षा पूरी करने के बाद मेडिकल की पढ़ाई करने का फैसला किया है. उसने घर पर ही NEET की तैयारी शुरू कर दी है.

आर्यन ने मुस्कुराते हुए अपनी दादी की ओर इशारा करते हुए कहा, “दादी मुझे मजबूर करती रहती हैं और वह मुझे परिवार की विरासत के बारे में और यह बात याद दिलाती रहती हैं कि लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना और उनकी मदद करना कितना महान काम है.” लेकिन उसे अभी भी यकीन नहीं है कि वह वास्तव में इसे पूरा कर पाएगा या नहीं. उसकी बड़ी बहन सेरेना पहले से ही यूनाइटेड किंगडम में सेंट्रल लंकाशायर विश्वविद्यालय में मेडिकल स्कूल में है.

सौभाग्य से, उसके माता-पिता ने यह स्वीकार कर लिया है कि उनके सभी बच्चे डॉक्टर नहीं बनेंगे.

आर्यन की माँ, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. शीतल सभरवाल ने कहा, “नई पीढ़ी हमेशा जो चाहे करने के लिए स्वतंत्र है. यह अच्छा है कि उन्हें पिछली पीढ़ी की तरह पारिवारिक दबाव का सामना नहीं करना पड़ता. कुछ लोग मेडिकल फील्ड चुन रहे हैं और कुछ नहीं.”

पीढ़ी दर पीढ़ी मरीज़

सभरवाल डॉक्टर डायनेस्टी की शुरुआत लाहौर में स्टेशन मास्टर लाला जीवनमल सभरवाल से हुई. परिवार के अनुसार, उन्हें महात्मा गांधी के भाषण से प्रेरणा मिली थी जिसमें उन्होंने बताया था कि भारत का भविष्य उसकी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा.

Jeewan hospital in the Jalalpur city of Pakistan, c 1920 | photo: special arrangement
जीवन अस्पताल पाकिस्तान की तस्वीरों का कोलाज, संस्थापक सदस्य | विशेष व्यवस्था द्वारा फोटो

उसी समय, जीवनमल ने फैसला किया कि वह एक अस्पताल बनाएंगे. उन्होंने अपने सपनों और महत्वाकांक्षाओं को अपने चार बेटों, बोधराज, त्रिलोक नाथ, राजेंद्र नाथ और महेंद्र नाथ पर डाल दिया.

1920 में परिवार को अपना पहला डॉक्टर मिला – डॉ. बोधराज. और लाला जीवनमल ने पाकिस्तान के जलालपुर शहर में अस्पताल स्थापित करने का अपना सपना पूरा किया. विभाजन के दौरान, वे लाहौर से भाग कर दिल्ली आ गए और फिर से अस्पताल की स्थापना शुरू की. तब तक, जीवनमल के सभी बेटे डॉक्टर बन चुके थे.

Jeewan hospital in the Jalalpur city of Pakistan, c 1920 | photo: special arrangement
पाकिस्तान के जलालपुर शहर में जीवन अस्पताल, लगभग 1920 | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

सभरवाल परिवार का हर सदस्य इस कहानी को दिल से जानता है – यहां तक कि वे भी जो डॉक्टर नहीं बनना चाहते हैं.

अंकुश याद करते हुए कहते हैं, “मेरे परदादा (डॉ. बोधराज) अपने मरीजों को परिवार के सदस्यों की तरह मानते थे. वह हमेशा दूर से आने वाले लोगों को खाना खिलाते थे और फिर उनका इलाज शुरू करते थे.”

डॉ. बोधराज को परिवार की कहानियों में बहुत सम्मान दिया जाता है. अंकुश कहते हैं, “वह न केवल एक बहुत अच्छे इंसान और डॉक्टर थे, बल्कि एक योद्धा और विद्रोही भी थे. उन्होंने ब्रिटिश सरकार के केवल अंग्रेजों का इलाज करने के आदेश को अस्वीकार कर दिया और इस फैसले के खिलाफ लड़ाई लड़ी.”

आज, जलालपुर अस्पताल, डॉ. बोधराज और उनके भाइयों की सीपिया तस्वीरें सभी पांच अस्पतालों की दीवारों पर लगी हुई हैं.

लॉबी से गुज़रते हुए मरीज़ों को फ़ोटो देखकर आभार जताते देखना कोई असामान्य बात नहीं है. ये ‘पीढ़ीगत मरीज़’ हैं जिनके माता-पिता और दादा-दादी भी सभरवाल से इलाज करवाते थे.

वे भी जीवन विरासत का हिस्सा हैं. भावना मिनोचा की परदादी उनके परिवार से करोल बाग के जीवन माला अस्पताल में आंखों की जांच के लिए आने वाली पहली व्यक्ति थीं.

58 वर्षीय मिनोचा ने कहा, “हम कभी किसी दूसरे अस्पताल में नहीं गए. मेरा जन्म जीवन माला अस्पताल में हुआ और मैंने अपने दोनों बच्चों को यहीं जन्म दिया.” वह इसे किसी और तरीके से नहीं चाहतीं.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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