बेलगावी/धारवाड़: बेलगावी के खासबाग में क्षत्रिय सावजी होटल में विष्णु सुभाष लटकन खाना परोस रहे हैं और कैश काउंटर पर उनकी किशोरी बेटी बैठी हैं. दोनों कर्नाटक विधानसभा चुनाव पर चर्चा कर रहे हैं और अचानक से दोनों की जुगलबंदी धीमी हो गई.
उन्होंने कहा, ‘हमें देखना होगा कि मराठा, मुस्लिम और लिंगायत किस तरह वोट करते हैं. पिछली बार बीजेपी लड़ाई में आगे थी, लेकिन इस बार कड़ा मुकाबला है. महंगाई ने हम सभी को बुरी तरह प्रभावित किया है.’ लटकन ने बिल बनाते हुए कहा.
उन्होंने कांग्रेस और महाराष्ट्र एकीकरण समिति (एमईएस) का जिक्र करते हुए कहा, ‘बीजेपी पिछली बार कई सीटें आसानी से जीती, लेकिन इस बार तीन-तरफा लड़ाई है.’ चुनाव से पहले महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को उठाया गया है और चुनाव अब सिर्फ तीन दिन दूर है.
नेशनल हाइवे से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर, प्रसिद्ध नाटककार डी.एस. चौगले अपने घर पर आराम से बैठे हैं. उनके घर की दीवारों पर वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं से उन्हें पुरस्कार प्राप्त करते हुए उनकी तस्वीरें लगी हुई हैं.
वह कहते हैं, ‘यह एक आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) मैच की तरह है जो आखिरी गेंद तक चलता है. मुकाबला रोमांचक है लेकिन विजेता का फैसला आखिरी गेंद पर ही होगा.’
उनका समर्थन पाने के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं की ओर से कम से कम तीन दौरे हो चुके हैं, लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने वहां का एक दौरा भी नहीं किया है. उनका कहना है कि इसका मतदान के दिन फर्क पड़ेगा. हालांकि चौगले ने अपनी जाति की पहचान पर जोर नहीं दिया, लेकिन उन्होंने खुलासा किया कि वे लिंगायतों के पंचमसाली उप-संप्रदाय से हैं.
बेलगावी कित्तूर-कर्नाटक (पूर्व में मुंबई-कर्नाटक) क्षेत्र का संभागीय मुख्यालय है, जहां लिंगायत संभवत: सबसे अधिक प्रभावशाली हैं.
हालांकि इस समुदाय को बीजेपी का सपोर्टर माना जाता है, लेकिन इस बार लिंगायतों का कहना है कि 10 मई को वोट डालने से पहले उन्हें इस बारे में सोचना होगा.
इसमें लिंगायत बाहुबली नेता बी.एस. येदियुरप्पा भी शामिल हैं, जिन्हें 2021 में सीएम से हटा दिया गया था. दो अन्य वरिष्ठ नेताओं, पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी को टिकट नहीं देने से भी कुछ नाराजगी है, दोनों अब कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.
‘लिंगायतों के लिए एक संदेश’
माना जाता है कि लिंगायत राज्य की कुल आबादी का लगभग 17 प्रतिशत हैं, और उनका समर्थन किसी भी पार्टी को चुनाव जीतने के लिए महत्वपूर्ण है.
चौगले ने कहा, ‘बीजेपी की विचारधारा (लिंगायतवाद के संस्थापक) बसवन्ना के दर्शन का विरोध करती है. लेकिन जब राहुल गांधी बसवा जयंती समारोह (23 अप्रैल, 23 कुडाला संगम पर) के लिए आए, तो यह लिंगायतों के लिए एक संदेश था.’
खाड़े बाजार में 45 वर्षीय ड्राइवर संगन्ना हिरेकोप्पा ने कहा कि उन्हें याद है कि अगस्त 2022 में राहुल गांधी को लिंगायत समुदाय की ओर से धर्म की दीक्षा मिली थी.
बेलगावी के एक शिक्षाविद् ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘बी.एस. येदियुरप्पा सबसे बड़े लिंगायत नेता हैं, लेकिन उन्हें पद छोड़ने के लिए कहा गया और फिर चुनाव नहीं लड़ने के लिए मजबूर किया गया’.
शिक्षाविद ने कहा, ‘जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी भी टिकट से वंचित रह गए. हो सकता है कि इसका चुनावी परिणाम पर कोई असर नहीं हो, लेकिन उनके जाने का असर हुआ है.’
यहां देखने पर अधिकांश क्षेत्र में विकास कार्य जैसे- सड़कों का निर्माण, मूर्तियों बनाना, शहर में स्ट्रीटलाइट लगाना काफी कम और सीमित दिखता है. हाइवे से दूर अधिकांश सड़कों की स्थिति दयनीय हैं और अधिकांश दीवारों पर थूक के धब्बे दिखाई पड़ते हैं.
बेलागवी शहर से लगभग 118 किमी दूर अथानी में, कई मतदाताओं ने दिप्रिंट को बताया कि वे पार्टियों को देखकर वोट डालने के बजाय उम्मीदवारों को देखकर वोट करेंगे.
50 वर्षीय मेडिकल चलाने वाले अनिल कुमार मेनसी ने दिप्रिंट से कहा, ‘लक्ष्मण सावदी ने इन इलाकों में काफी विकास कार्य किया है, इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह किस पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं. उनका एक मजबूत आधार है.’
इटनल मठ, एक व्यक्ति, जो एक स्थानीय लिंगायत मठ से काफी नजदीकी से जुड़ा हुआ है, एक बहुत गहरे जाति मैट्रिक्स के संभावित प्रभाव की ओर इशारा करता है.
उन्होंने कहा, ‘लिंगायतों में रमेश जरकिहोली के खिलाफ काफी गुस्सा है, जिन्होंने 2018 में सावदी की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इस बार अथानी से उन्हें टिकट नहीं देने के लिए बीजेपी पर दबाव बनाया था.’
प्रभावशाली जारकीहोली भाइयों में से एक, जिन्होंने कांग्रेस-जेडीएस के नेतृत्व वाली सरकार से दलबदल कर बीजेपी ज्वाइन किया और विधायकों के दलबदल का नेतृत्व किया.
कुछ स्थानीय निवासियों का मानना है कि, जिले पर नियंत्रण करने की कोशिश के बावजूद रमेश काफी पीछे चले गए हैं और वह अपने प्रभुत्व को खत्म होते हुए देख रहे हैं.
‘लोकतंत्र की हत्या की जा रही है’
बेलगावी और धारवाड़ को जोड़ने वाले NH-4 पर जहां तेज रफ्तार में वाहन दौड़ रहे हैं वहीं से कुछ दूरी पर कित्तूर के गिरियाल गांव में 40 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच कुछ लोग बैठे हैं.
यहां प्रचंड गर्मी और तेज धूल के कारण आंखें खोलना मुश्किल हो रहा है. लगभग 30 लोग एक बड़े आम के पेड़ की छांव में बैठे हैं. कुछ लोग आ रहे हैं और कुछ लोग वाहन का इंतजार कर रहे हैं.
जो लोग तेज गर्मी में वाहन से उतरते हैं वह सीधे सामने एक नवनिर्मित घर के बाहर रखे तीन पानी के डिस्पेंसरों की ओर अपनी प्यास बुझाने के लिए भागते हैं. यह नवनिर्मित आवास धारवाड़ ग्रामीण से कांग्रेस के उम्मीदवार विनय कुलकर्णी का है.
आम के पेड़ के नीचे बैठे लोगों से कुलकर्णी कहते हैं, ‘लोकतंत्र की हत्या की जा रही है और हमें इसे बचाना है.’
कुलकर्णी 15 जून 2016 को जिला पंचायत के सदस्य और बीजेपी कार्यकर्ता योगेशगौड़ा गौदर की हत्या के मुख्य आरोपी हैं. कुलकर्णी ने नौ महीने जेल में बिताए, लेकिन अगस्त 2021 में जमानत पर रिहा होने पर उनका हीरो की तरह स्वागत किया गया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने जमानत की शर्तों में उन्हे अपने गृह जिले में प्रवेश करने पर रोक लगा दी है.
राजनीति में लोगों को हीरो मानना आम बात है लेकिन यह उतना स्पष्ट नहीं है जितना कि कर्नाटक के उत्तरी जिलों के मामले में है. यहां लोगों की आय असमानताएं काफी अधिक है और जमींदार अपने जिले को ‘जागीर’ मानते हैं.
कुलकर्णी भी लिंगायतों समुदाय के एक उपसमूह ‘पंचमसाली’ से हैं, जिनका कम से कम 100 विधानसभा क्षेत्रों में दबदबा है. पूर्व पीएम राजीव गांधी द्वारा पूर्व सीएम वीरेंद्र पाटिल के कथित तौर पर अपमान के बाद यह समुदाय कांग्रेस से काफी दूर चला गया था लेकिर अब दोबारा कांग्रेस इस समुदाय को अपने पाले में वापस लाने के लिए अधिक संख्या में लिंगायत नेताओं को अपने पक्ष में किया है.
कांग्रेस ने दावानगेरे से 91 वर्षीय शमनूर शिवशंकरप्पा को बीजेपी की तुलना में लिंगायत को ‘अधिक सम्मान’ देने का अनुमान लगाकर मैदान में उतारा है.
अगर गली-मुहल्लों में चल रही बातों पर गौर किया जाए तो कई लिंगायत संतों की बातों से पता चलता है कि समुदाय अपने हितों के लिए काम करता है और सावदत्ती, अथानी, गोकक और रामदुर्ग में बीजेपी के खिलाफ ‘अपने हितों और प्रभुत्व की रक्षा’ के लिए वोट करता है.
बीजेपी लिंगायतों पर बहुत अधिक निर्भर है और इस क्षेत्र के छह जिलों में 50 सीटें हैं, जिनमें से पार्टी ने 2018 के विधानसभा चुनावों में 30 पर जीत हासिल की थी. कुछ निवासियों के मुताबिक इस बार उस संख्या को हासिल करना बहुत कठिन लगता है, खासकर जब गैर-लिंगायतों को इन हिस्सों में हावी होते हुए देखा जा रहा है.
धारवाड़ के एक पूर्व जिला पंचायत सदस्य यूसुफ दरगढ़ ने जोशी के बारे में कहा, ‘उनकी (प्रहलाद जोशी) हुबली-धारवाड़ क्षेत्र में मजबूत पकड़ है.’
स्थानीय लिंगायतों के बीच कुछ बातों को भूलना मुश्किल हो रहा है. शेट्टार ने बीजेपी महासचिव (संगठन) बी.एल. संतोष को पार्टी से दरकिनार करने का कारण बताया, और एच.डी. कुमारस्वामी का बयान कि बीजेपी जोशी को सीएम बनाना चाहती थी.
बेलागवी के खाड़े बाजार में एक होटल में काम करने वाले नौशाद असलम ने कहा, ‘हमारे लिए यह मायने नहीं रखता कि कौन सत्ता में आता है जब तक कि वे बीजेपी को बाहर रख सकते हैं.’
मुस्लिमों ने यहां कांग्रेस या एमईएस का साथ दिया है और यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे इस क्षेत्र में बीजेपी को हराने के लिए किसे मजबूत संभावनाओं के रूप में देखते हैं.
इस बीच, कन्नड़ समर्थक संगठनों के लिए, पार्टियां मायने नहीं रखती हैं – और न ही जातीय समीकरण – जब तक कि एमईएस सत्ता से बाहर रहता है.
बेलगावी के किसी भी चुनाव में कई फैक्टर होते हैं क्योंकि इस सीमावर्ती जिले में मराठा, लिंगायत और एससी/एसटी तीनों समुदाय हैं, लेकिन इस क्षेत्र की भाषा की राजनीति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
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‘जातिगत समीकरणों का पेचीदा जाल’
बेलगावी से बीजेपी सांसद सुरेश अंगड़ी का सितंबर 2020 में निधन हो गया था, जबकि हुक्केरी से आठ बार के विधायक उमेश कट्टी का भी सितंबर 2022 में निधन हो गया. इससे इस क्षेत्र में प्रभावशाली लिंगायत नेताओं की संख्या कम हो गई.
कांग्रेस ने इस उम्मीद में कि लिंगायत पाला बदल लेंगे, अपने चुनावी अभियान में इस बात पर जोर दिया है कि कैसे बीजेपी येदियुरप्पा, सावदी और शेट्टार के साथ ‘दुर्व्यवहार’ करती है.
लिंगायतों के भीतर 99 उपजातियां हैं जहां इसके भीतर भी प्रभुत्व की राजनीति चलती है.
येदियुरप्पा और शेट्टार बनजीगा उपजाति से हैं, जबकि 2023 में उम्मीदवार मुरुगेश निरानी, बसनगौड़ा पाटिल यतनाल, विनय कुलकर्णी, लक्ष्मी हेब्बलकर और अरविंद बेलाड पंचमसाली उप-वर्ग से हैं. लक्ष्मण सावदी गनिगा उपजाति के हैं. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और अनुभवी कांग्रेस नेता शमनूर शिवशंकरप्पा सदर लिंगायत हैं.
पंचमसाली, जो एक भूमि-स्वामी और कृषि आश्रित समुदाय है, सत्ता के बड़े पदों पर छोटे उपजाति के नेताओं को बैठे देख खुद को अपमानित महसूस करता है. इस उपवर्ग के लोग इस क्षेत्र के अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों, होटलों और अस्पतालों के मालिक हैं.
1991 में, बेलगावी (तत्कालीन बेलागम) के तत्कालीन महापौर संभाजी पाटिल ने कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एस. बंगरप्पा को सम्मानित किया था.
बेलागवी शहर में, जो महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच विवादित क्षेत्रों में से एक है, भाषा का मुद्दा सबसे अधिक मायने रखता है.
एक राजनीतिक विश्लेषक और कन्नड़ समर्थक कार्यकर्ता अशोक चंद्रगी ने बताया कि इस क्षेत्र में लिंगायत, मराठा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और कुछ अन्य समुदाय हैं जो उम्मीदवार और अन्य कारक देखकर किसी का समर्थन करते हैं.
चंदरगी ने दिप्रिंट को बताया, ‘1999 से 2013 तक आबादी का एक बड़ा हिस्सा उन दलों को वोट दिया जो कर्नाटक समर्थक थे और एमईएस को राज्य विधानसभा से बाहर रखते थे.’
हालांकि बीजेपी ने खुले तौर पर दावा किया है कि उसे मुस्लिम वोट नहीं चाहिए, लेकिन इस क्षेत्र के पार्टी के विधायकों ने अपनी पार्टी के विचारों का समर्थन नहीं किया है.
बेलगावी उत्तर से बीजेपी विधायक अनिल बेनाके ने हिजाब प्रतिबंध को लेकर पार्टी के फैसले का समर्थन नहीं किया और साथ ही इस तर्क का भी विरोध किया कि मुसलमानों को हिंदू के पारंपरिक मेलों से बाहर रखा जाना चाहिए. बीजेपी ने इस चुनाव में उन्हें टिकट नहीं दिया.
आरक्षण विवाद को लेकर बोम्मई की अगुआई वाली बीजेपी के खिलाफ लिंगायतों के पास अपना हथियार है. इस साल जनवरी में, कुडाला संगम के पुजारी जया मृत्युंजय स्वामी ने धमकी दी थी कि अगर बोम्मई की अगुवाई वाली राज्य सरकार लिंगायतों के पंचमसाली उप-वर्ग के लिए बेहतर आरक्षण की घोषणा करने में विफल रहती है, तो वह बीजेपी के खिलाफ प्रचार करेंगे.
इसके बाद सीएम ने दो नई श्रेणियां बनाईं और पहले उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) से अतिरिक्त आवंटन देने का वादा करके उनके गुस्से को शांत करने की कोशिश की और फिर लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के बीच धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए ओबीसी कोटे को पुनर्वितरित करने के लिए मुलिमों को हटाने का फैसला किया.
जया मृत्युंजय स्वामी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने कभी किसी अन्य समुदाय को वंचित करने और हमें वह लाभ देने के लिए नहीं कहा. आप सरकार भले ही हमें पेट भर खाना न दें, लेकिन उन्होंने हमें हमारी भूख शांत करने के लिए पर्याप्त दे दिया है.’
साहूकार
अथानी और रामदुर्ग में, दो प्रमुख लिंगायत नेताओं (सावदी और महादेवप्पा यादवाद) को बीजेपी ने टिकट से वंचित कर दिया है, जबकि गोकक में यह रमेश जारकीहोली के खिलाफ एक ‘जंग’ की तरह है, जिन्हें ‘साहूकार’ कहा जाता है.
अशोक चंद्रगी ने कहा, ‘लंबे समय से, लिंगायतों ने बेलगावी के कई हिस्सों में अपने प्रभाव को कम होते देखा है, क्योंकि रमेश जारकीहोली ने अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार किया है.’
वाल्मीकि समुदाय (एसटी) से ताल्लुक रखने वाले ‘जरकीहोली बंधु’, चीनी व्यापारी हैं जिनका इस क्षेत्र पर बड़ा प्रभाव है.
सतीश जारकीहोली कांग्रेस से विधायक और पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं, जबकि बालचंद्र जारकीहोली अराभवी से बीजेपी विधायक और कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (केएमएफ) के अध्यक्ष हैं. रमेश जरकीहोली गोकक से विधायक और पूर्व मंत्री हैं.
रमेश ने 1999 से गोकक पर अपनी मजबूत पकड़ बनाई है, जब उन्होंने पहली बार यह सीट जीती थी. तब से उन्होंने पूरे क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाया है.
रमेश ने महेश कुमथल्ली का समर्थन किया, जो 17 कांग्रेस-जेडी (एस) के दलबदलु विधायकों में से एक थे और उन्होंने बीजेपी पर 2023 के विधानसभा चुनावों में अथानी से सावदी को मैदान में नहीं उतारने का दबाव डाला.
लिंगायतों के जंगमा उप-वर्ग से बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार महंतेश कवातागीमठ, बेलगावी से दिसंबर 2022 का एमएलसी चुनाव हार गए थे क्योंकि रमेश ने खुले तौर पर अपने भाई लखन का समर्थन किया था.
रमेश ने बेलगावी ग्रामीण से कांग्रेस की उम्मीदवार लक्ष्मी हेब्बलकर को हराने की जिम्मेदारी भी उठा ली है, जिन्हें वह कट्टर प्रतिद्वंद्वी मानते हैं. हेब्बलकर भी एक पंचमसाली हैं, जो इस बात पर मुहर लगाता है कि रमेश बेलगावी में लिंगायत नेतृत्व को ‘खत्म’ करने की कोशिश कर रहे हैं.
बेलगावी के एक व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ‘लोग कुमथल्ली से नाराज हैं क्योंकि जब लोग किसी काम के लिए उसके पास जाते हैं, तो वह कहते हैं कि वह इसे ‘साहूकार’ के ध्यान में लाएंगे.’
उन्होंने कहा, ‘अगर पानी और मोटर अठानी में है, तो उसके लिए स्विच गोकक में है.’
धारवाड़ के बीजेपी विधायक अरविंद बेलाड ने दिप्रिंट को बताया कि अन्य पिछड़े समुदाय लिंगायतों का अनुसरण करते हैं और अगर इस बयान दिया जाता है तो बीजेपी को परेशानी होगी.
(संपादनः ऋषभ राज)
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