भोपाल : भाजपा ने रविवार को मध्य प्रदेश में जीत का परचम लहराया, लेकिन केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह एक मिली-जुली स्थिति हैं, क्योंकि उनके कुछ वफादार उनके गढ़, ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अपनी सीटें हार गए हैं.
22 विधायकों के साथ सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव था. इस क्षेत्र में राज्य की 230 सीटों में से 34 सीटें हैं और इस चुनाव को पूर्व की शाही ताकत के लिए परीक्षा के तौर पर देखा गया था.
इस चुनाव में, भाजपा ने क्षेत्र में अपनी 2018 की सीटों की तुलना में लगभग दोगुना कर लिया है – सात से 17 जीती हैं – लेकिन पिछली बार कांग्रेस की जीती, 26 सीटों से अभी भी कम है. इस बार कांग्रेस ने 16 सीटें जीती हैं.
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में 8 जिले हैं, जिनमें से पांच- ग्वालियर, शिवपुरी, दतिया, अशोकनगर और गुना हैं, जो कि ग्वालियर क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं. मुरैना, भिंड और श्योपुर चंबल क्षेत्र में आते हैं. ये सभी जिले तत्कालीन सिंधिया साम्राज्य का हिस्सा थे.
ग्वालियर में 21 सीटें हैं, जिनमें चार सीटें गुना (सिंधिया का लोकसभा क्षेत्र) से हैं. भाजपा ने 12 सीटें जीतीं हैं, जबकि कांग्रेस ने बाकी 9 सीटें.
चंबल में 13 सीटें हैं, जिनमें से 2018 में 2 की तुलना में भाजपा ने 6 पर जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस ने 7 पर.
2020 में, कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के आकांक्षी सिंधिया भाजपा में चले गए थे और उन्हें राज्यसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री बनाया गया था. इससे कांग्रेस के दिग्गज नेता कमल नाथ के नेतृत्व वाली 15 महीने की पुरानी सरकार गिर गई थी.
2020 में कांग्रेस सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाने वाले उनके कई वफादारों को इस बार भाजपा ने टिकट दिया.
वर्तमान विधायकों में से कम से कम 18, सिंधिया के वफादारों को भाजपा ने पूरे मध्य प्रदेश में मैदान में उतारा. 2020 के उपचुनावों में हारने वाले तीन अन्य लोगों को भी टिकट मिला – राज्य की पूर्व महिला और बाल विकास मंत्री इमरती देवी, मुरैना में मुरैवी विधानसभा सीट से रघुराज कंसाना, और मुरैना के सुमावली सीट से ऐदल सिंह कंसाना.
भाजपा द्वारा मैदान में उतारे गए 18 सिंधिया वफादारों में से 10 जीते, जबकि बाकी आठ लोग हार गए, जिनमें तीन मौजूदा मंत्री और राज्य नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड के अध्यक्ष शामिल थे.
राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने कहा कि मध्य प्रदेश के सभी क्षेत्रों में भाजपा की शानदार जीत हुई है और केवल ग्वालियर-चंबल में ही सुधार नहीं हुआ है.
किदवई ने कहा, “यह जीत इंडिपेंडेंट नेताओं के योगदान से परे है, चाहे वह सिंधिया हों या (सीएम) शिवराज सिंह चौहान हों. ऐसा लगता है कि यह मोदी फैक्टर है जिसने काम किया और न केवल मध्य प्रदेश, बल्कि छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी जीत हासिल की.”
“व्यक्तिगत तौर से नेताओं का एक निश्चित योगदान होता है, लेकिन अब आगे बढ़ते हुए यह केंद्र ही तय करेगा कि किस नेता को राज्य में रहना है और कौन केंद्र में जाएगा.”
सिंधिया के वफादारों का प्रदर्शन कैसा रहा?
जिन 18 सिंधिया वफादारों को टिकट दिया गया, उनमें से 10 जीत गए और बाकी हार गए. ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कम से कम पांच की हार हुई. यह ऐसे समय में हुआ जब भाजपा 230 सीटों वाली विधानसभा में 163 सीटें जीतने में कामयाब रही और उनमें से 18 सीटें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में आती हैं, जनमें कुल 34 सीटें हैं.
पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया गुना के बमोरी से 14,000 वोटों के अंतर से हार गए, जबकि इमरती देवी डबरा से और रघुराज कंसाना मुरैना से हार गए.
ग्वालियर और चंबल से परे, उद्योग नीति और निवेश प्रोत्साहन मंत्री राजवर्धन दत्तीगांव बधावर में कांग्रेस के भवर सिंह शेखावत से हार गए.
सुरेश रतखेड़े शिवपुरी जिले की पोहरी सीट, कांग्रेस के कैलाश खुशवाहा से हार गए. सिंधिया की चाची माया सिंह ग्वालियर-पूर्व से कांग्रेस के सतीश शिखरवार से हार गईं.
बीजेपी नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि सिंधिया को कभी भी संभावित मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं माना गया.
उन्होंने कहा, ”वह केंद्र में हैं और अच्छा काम कर रहे हैं. वह अचानक बिना किसी कारण के केंद्र से क्यों हटना चाहेंगे?” एक नेता ने कहा, “वह अगले कार्यकाल से हमेशा मुख्यमंत्री बन सकते हैं.”
एक अन्य नेता ने कहा कि “उम्र सिंधिया के पक्ष में है.”
हालांकि, बीजेपी ने अभी तक सीएम उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन 18 साल तक राज्य का नेतृत्व करने वाले शिवराज सिंह चौहान को सबसे आगे देखा जा रहा है. ऊपर जिक्र किए गए भाजपा नेताओं ने कहा कि अगर चौहान मुख्यमंत्री बने रहेंगे तो यह सिंधिया के लिए उपयुक्त होगा, क्योंकि उनके बीच “अच्छे संबंध हैं.”
(अनुवाद और संपादन : इन्द्रजीत)
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