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Friday, 22 November, 2024
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मैथ्स, साइंस की किताबों से कुछ भाग हटाने से बच्चों की लर्निंग पर होगा असर? कुछ स्कूल अपना रहे ये तरीका

स्कूल के टीचर्स और प्रिंसिपल का मानना है कि इससे छात्रों की मौलिक अवधारणाओं की समझ पर असर पड़ेगा. नतीजतन, कुछ स्कूल तो पुराने पाठ्यक्रम पर टिके हुए हैं जबकि अन्य रेमेडियल क्लासेस ले रहे हैं.

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नई दिल्ली: नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) की 11वीं और 12वीं क्लास की इतिहास और पोलिटिकल साइंस की किताबों से कुछ हिस्सों को हटाने से जहां एक तरफ काफी हो-हल्ला मचा हुआ है. वहीं दूसरी तरफ शिक्षक भी इसे लेकर खासे चिंतित हैं. उन्हें लगता है कि मैथ और साइंस में प्रमुख अवधारणाओं को हटाने से छात्रों की लर्निंग पर असर पड़ेगा.

इस महीने की शुरुआत में कई रिपोर्ट सामने आईं जिनमें बताया गया कि एनसीईआरटी ने अपनी किताबों से मुगलों, दिल्ली सल्तनत, गांधी की हत्या और गुजरात दंगों से संबंधित इतिहास के कुछ हिस्सों को हटा दिया है. स्कूल शिक्षा के लिए नीतियों और कार्यक्रमों पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देने के लिए अधिकृत सरकारी निकाय एनसीईआरटी ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि किताबों में यह बदलाव छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम करने की युक्तिसंगत प्रक्रिया का हिस्सा है.

गणित की किताब से हटाए गए हिस्सों में ‘यूक्लिड डिवीजन लेम्मा’ और ‘वेक्टर अलजेब्रा’ है तो वहीं बायोलॉजी से ‘रिप्रोडक्टिव सिस्टम’ को हटाया गया है. बदलाव मौजूदा शैक्षणिक सत्र से प्रभावी होंगे.

जिन शिक्षाविदों और शिक्षकों से दिप्रिंट ने बात की, उन्होंने कहा कि गणित और साइंस के हटाए गए सिलेबस छात्रों की विषयों की मौलिक समझ प्रभावित होगी और इसे लेकर वे खासे चिंतित हैं. उन्होंने आगे कहा कि इसके अलावा यह बदलाव संयुक्त प्रवेश परीक्षा (JEE), राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) और आर्किटेक्चर में नेशनल एप्टीट्यूड टेस्ट (NATA) जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं पर बड़ा असर डाल सकता है.

दिल्ली के सेंट फ्रांसिस डी सेल्स स्कूल के शिक्षक परबोध बंबा लगभग 30 सालों से हाईर सेकेंडरी ग्रेड के बच्चों को मैथ पढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा कि बदलावों का मतलब है कि गणित अब बहुत कमजोर हो गया है. इससे छात्रों को 11वीं और 12वीं और प्रतियोगी परीक्षाओं में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

उन्होंने बताया, ‘सीबीएसई कर्रिकुलम देश में कई प्रवेश परीक्षाओं के लिए मानक है. हालांकि बोर्ड पिछले कुछ समय से पाठ्यक्रम को कमजोर बनाता जा रहा है, लेकिन ऐसी परीक्षाओं के मुश्किल स्तर में कोई कम नहीं आई है. इन अवधारणाओं को हटाने से न सिर्फ इन परीक्षाओं के लिए उनके ज्ञान पर असर पड़ेगा, बल्कि 10 वीं क्लास की किताबों से हटाया गए टॉपिक्स छात्रों को 11वीं और 12वीं की कई अवधारणाओं के प्रमेयों को साबित करने में भी असमर्थ बना देंगे.’

एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने मैसेज के जरिए दिप्रिंट को बताया कि वह अपनी ‘वयस्तता’ के चलते फिलहाल कुछ भी कहने के लिए उपलब्ध नहीं हैं.

फिलहाल तो इस स्थिति से निपटने के लिए स्कूल रेमेडियल क्लासेज से लेकर सिलेक्टिव असेसमेंट तक अलग-अलग रास्तों को अपना रहे हैं. इसका मकसद बच्चों के ऊपर पढ़ाई के बोझ को बढ़ाए बिना, उनकी सीखने की क्षमता में किसी तरह की रुकावट न आने देना है. शिक्षकों के मुताबिक, इसका मतलब यह है कि अवधारणाओं को स्कूलों में पढ़ाया जाना जारी रहेगा, लेकिन उसके आधार पर छात्रों का मूल्यांकन नहीं किया जाएगा.


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महत्वपूर्ण टॉपिक्स को सिलेबस से हटाना

तर्कसंगत पाठ्यक्रम के अनुसार, 10वीं क्लास की गणित की किताबों से ‘प्रूफ ऑफ पाइथागोरस थ्योरम’ और ‘यूक्लिड डिविजन लेम्मा’ जैसी अवधारणाएं और द्विघात समीकरण और ज्यामिति के टॉपिक्स हटा दिए गए हैं. साइंस से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन, फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण के नियम और तत्वों के आवधिक वर्गीकरण के कुछ हिस्सों को हटा दिया गया है.

‘विद्युत चुम्बकीय प्रेरण पर फैराडे का नियम’ के सिद्धांत पर कई तरह के यंत्र और इलेक्ट्रिक मोटर आदि काम करते हैं.

11वी कलास की गणित की किताब से ‘द्विपद प्रमेय’, ‘साइन’ और ‘कोसाइन’ सूत्र का अनुप्रयोग और ‘रैखिक असमानताओं’ जैसे टॉपिक्स को हटा दिया गया है. जूलॉजी, बॉटनी और एनवायरमेंटल केमिस्ट्री में भी बदलाव किए गए हैं.

‘द्विपद प्रमेय’ बीजगणितीय अभिव्यक्ति के विस्तार का सिद्धांत है जबकि त्रिकोणमिति में ‘कोसाइन’ और ‘साइन’ महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं. दोनों इंजीनियरिंग गणित के लिए उपयोगी हैं.

12वीं कक्षा के गणित से ‘वेक्टर अलजेब्रा’, ‘इंटीग्रल्स’ और ‘डिफरेंशियल इक्वेशन’ और साइंस से ‘इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स एंड इंडक्शन’, ‘सरफेस केमिस्ट्री’ और ‘रिप्रोडक्शन’ जैसे टॉपिक हटा दिए गए हैं.

‘वेक्टर बीजगणित’ किसी वस्तु की गति और प्रक्षेपवक्र के बारे में बताता है, जो इंजीनियरिंग के विभिन्न क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण विषय है. भौतिकी, गणित और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में ‘इंटीग्रल्स’ और ‘डिफरेंशियल’ मूल बातें हैं.

शिक्षकों के अनुसार, इन हटाए गए टॉपिक्स का उन बच्चों पर खासा असर पड़ेगा जो इन विषयों का आगे पढ़ना चाहते हैं.

अहमदाबाद के एक प्राइवेट स्कूल में साइंस टीचर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘न सिर्फ प्लांट और एनिमल्स से जुड़े अध्यायों को सेकेंडरी ग्रेड से हटाया गया है बल्कि प्राथमिक ग्रेड में भी इनकी कोई जगह नहीं है. जो छात्र इन विषयों का अध्ययन करना चाहते हैं वे इन्हें कैसे सीखेंगे?


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जहां तक फिजिक्स में बदलाव की बात है, तो कई ऐसी अवधारणाओं को हटाया गया हैं, जो जेईई देने वालों के लिए महत्वपूर्ण हैं.

उन्होंने कहा, ‘ये विषय बहुत सी अवधारणाओं का आधार बनते हैं. इन्हें पढ़ाया जाना चाहिए.’

कैसे इससे निपट रहे हैं स्कूल

इन समस्याओं को दूर करने के प्रयास में स्कूल उन रास्तों की तलाश कर रहे हैं, जिनके जरिए इन सब आउट-ऑफ-सिलेबस अवधारणाओं को पढ़ाना जारी रखा जाए. इनमें पुराने पाठ्यक्रम पर टिके रहना और उन छात्रों को ब्रिज कोर्स और रेमेडियल क्लासेज देना शामिल हैं. यह उन छात्रों के लिए है जो उन्हें सीखना चाहते हैं.

दिल्ली सरकार के स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में से एक के प्रिंसिपल ने कहा कि एनसीईआरटी का कदम छात्रों के लिए ‘अच्छे की बजाय नुकसान’ ज्यादा करेगा.

उन्होंने कहा कि दिल्ली के स्कूल ऑफ एक्सीलेंस 11वीं और 12वीं कक्षा के छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार करते हैं. उन्होंने अपने शिक्षकों से पुराने पाठ्यक्रम को पढ़ाना जारी रखने के लिए कहा है.

दक्षिण दिल्ली के एक स्कूल के प्रिंसिपल ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम उन्हें सभी हटाए गए अध्याय और विषय पढ़ाएंगे. बेशक, मूल्यांकन करते समय हम केंद्रीय दिशानिर्देशों का पालन करेंगे, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इससे उनकी पढ़ाई पर असर न हो.’

एपीजे एजुकेशन में एकेडमिक कोऑर्डिनेटर रितु मेहरा ने दिप्रिंट को बताया, ‘एपीजे स्कूल भी अपने छात्रों को हटाए गए सिलेबस को पढ़ाने के लिए ब्रिज कोर्स और हैंडआउट्स ऑफर करेगा.’

उन्होंने कहा, ‘हमें चिंता है कि अगर इस पाठ्यक्रम को पढ़ाया जाता है तो छात्र पहले जितना स्कोर नहीं कर पाएंगे. गर्मियों और सर्दियों की छुट्टियों से पहले हम बच्चों के माता-पिता से इन ब्रिज कोर्स के महत्व को बताने के लिए ओरिएंटेशन क्लास लेंगे.’

इसी तरह दिल्ली पब्लिक स्कूल बैंगलोर का मानना है कि हटाए गए सिलेबस को पढ़ाने से विषय की ‘वैचारिक समझ’ में मदद मिलेगी.

इसकी प्रिंसिपल मनीला कार्वाल्हो के अनुसार, ‘जो विषय उच्च शिक्षा में अवधारणाओं के लिए आधार बनाते हैं, उन्हें कक्षाओं में पढ़ाया जाएगा. लेकिन उन्हें मूल्यांकन प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाएगा.’

रोहिणी में माउंट आबू पब्लिक स्कूल कक्षा 11 और 12 के लिए ‘ऑप्शनल रेमेडियल कैप्सूल’ पर विचार कर रहा है. स्कूल की प्रिंसिपल ज्योति अरोड़ा ने कहा कि ये सिर्फ उन विषयों में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम उन छात्रों पर बोझ नहीं डालना चाहते जो 10वीं के बाद इन विषयों के साथ आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन जो छात्र सीखना चाहते हैं उनके लिए इस तरह की क्लासेस आयोजित कराई जाएंगी.’

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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