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Monday, 9 December, 2024
होमएजुकेशनकौन हैं IIT-खड़गपुर के डायरेक्टर वीरेंद्र तिवारी जिन पर लगा ‘भाई-भतीजावाद, मनमानी फैकल्टी नियुक्ति’ का आरोप

कौन हैं IIT-खड़गपुर के डायरेक्टर वीरेंद्र तिवारी जिन पर लगा ‘भाई-भतीजावाद, मनमानी फैकल्टी नियुक्ति’ का आरोप

आईआईटी खड़गपुर में कृषि और खाद्य इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर तिवारी 2019 में निदेशक के रूप में अपनी नियुक्ति के वक्त से ही एक विवादास्पद व्यक्ति रहे हैं.

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नई दिल्ली: 31 दिसंबर, 2019 को — अपनी रिटायरमेंट से कुछ घंटे पहले — भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर में कृषि और खाद्य इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार तिवारी को सबसे पुराने IIT में से एक का निदेशक नियुक्त किया गया.

जनवरी 2020 में पदभार संभालने वाले तिवारी उस समय 65 वर्ष के थे, जो IIT में रेगुलर फैकल्टी मेंबर्स के लिए रिटायरमेंट की आयु सीमा है. दरअसल, निदेशक पद के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय (पूर्व में मानव संसाधन विकास मंत्रालय) के आधिकारिक नोटिस में लिखा था कि आवेदन की अंतिम तिथि तक आवेदकों की आयु आदर्श रूप से 60 वर्ष से कम होनी चाहिए.

नाम न बताने की शर्त पर संस्थान के एक रिटायर्ड फैकल्टी मेंबर ने दिप्रिंट से कहा, “उनकी नियुक्ति के कारण किसी को मालूम नहीं हैं, खासकर उनकी आयु को देखते हुए और वे किसी मुख्य इंजीनियरिंग अनुशासन में प्रोफेसर भी नहीं थे.”

उन्होंने कहा, “इससे कई सवाल उठे जब कृषि और खाद्य इंजीनियरिंग विभाग के किसी व्यक्ति को, जिनकी रिटायरमेंट की आयु भी पूरी हो चुकी थी, सबसे पुराने IIT में से एक के निदेशक नियुक्त किए गए. उन्होंने दो अन्य उम्मीदवारों को पीछे छोड़ दिया, जिनमें तत्कालीन आईआईटी खड़गपुर के निदेशक पार्थ चक्रवर्ती और राजीव आहूजा शामिल थे, जो स्वीडन की उप्साला यूनिवर्सिटी में कम्प्यूटेशनल मैटेरियल साइंस के प्रोफेसर थे.”

तिवारी को पूर्व शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने चुना था और उनका नाम अंतिम मंजूरी के लिए राष्ट्रपति भवन भेजा गया था.

एक जनवरी, 1955 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रसरा गांव में जन्मे तिवारी ने 1981 में बीटेक और एमटेक की पढ़ाई पूरी की, इसके बाद 1985 में आईआईटी खड़गपुर से पीएचडी की. तब से वे संस्थान में फैकल्टी मेंबर रहे हैं.

जनवरी 2025 में आईआईटी खड़गपुर के निदेशक के रूप में तिवारी का कार्यकाल समाप्त होने वाला है, ऐसे में प्रशासन और फैकल्टी के बीच तनाव पीक पर है. टीचर्स एसोसिएशन के मेंबर्स के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई वापस लेने की मांग करने वाली याचिका पर हस्ताक्षर करने वाले 86 फैकल्टी मेंबर्स को कारण बताओ नोटिस जारी करने के प्रशासन के फैसले का फैकल्टी विरोध कर रही है.

सितंबर में आईआईटी खड़गपुर टीचर्स एसोसिएशन (आईआईटीटीए) ने शिक्षा मंत्रालय को लिखे एक पत्र में तिवारी पर “भाई-भतीजावाद” और “मनमाने ढंग से भर्ती” का आरोप लगाया था. उन्होंने मजबूत शैक्षणिक रिकॉर्ड और समावेशी शासन वाले उत्तराधिकारी की मांग की.

जवाब में प्रशासन ने आईआईटीटीए के पदाधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया और 7 दिनों के भीतर जवाब नहीं देने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की. इसके बाद फैकल्टी मेंबर्स ने कार्रवाई को रद्द करने के लिए याचिका दायर की, लेकिन प्रशासन ने 86 हस्ताक्षरकर्ताओं को नोटिस जारी करके और तीन विभाग प्रमुखों को बदलकर जवाबी कार्रवाई की.

प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि हस्ताक्षरकर्ता 20 फैकल्टी मेंबर्स ने शुक्रवार को माफी पत्र प्रस्तुत किए, जिसे प्राधिकरण ने स्वीकार कर लिया है.

अधिकारी ने कहा, “बाकी ने कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया, जिस पर सक्षम प्राधिकारी ने विचार किया है.”

फैकल्टी मेंबर्स कानूनी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जिसमें विभाग प्रमुखों को हटाने पर रोक लगाने की मांग करना भी शामिल है.

एक सीनियर फैकल्टी मेंबर ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “यह अनोखा है. आईआईटी खड़गपुर के इतिहास में इससे पहले कभी भी प्रशासन ने किसी फैकल्टी के खिलाफ ऐसा मनमाना रुख नहीं अपनाया है.”

हालांकि, फैकल्टी मेंबर ने कहा कि तिवारी का कोई सीधा राजनीतिक जुड़ाव नहीं है. “उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान आरएसएस से जुड़े व्यक्तियों की भर्ती करने का प्रयास किया. हालांकि, वे सीधे तौर पर आरएसएस से संबंधित गतिविधियों में शामिल नहीं थे.”


यह भी पढ़ें: IIT खड़गपुर में 86 फैकल्टी मेंबर्स को कारण बताओ नोटिस, शिक्षक और प्रशासन में क्यों बढ़ा विवाद?


पिछले विवाद

2010 में हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि आईआईटी खड़गपुर में एक ऐसा कोटा है, जिसके तहत फैकल्टी मेंबर्स के बच्चों को जेईई एडवांस्ड पास किए बिना दाखिला दिया जा सकता था. तिवारी के बेटे को इस कोटे के ज़रिए दाखिला मिला था, जिसे बाद में समाप्त कर दिया गया.

2022 में असम के तिनसुकिया जिले का 23-वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियरिंग स्टूडेंट अपने हॉस्टल के एक कमरे में मृत पाया गया. जब यह घटना हुई थी, तब आईआईटी खड़गपुर और खड़गपुर टाउन पुलिस दोनों ने छात्रों के माता-पिता को सूचित किया था कि उनके बेटे ने “आत्महत्या” की है. इसके अलावा, संस्थान की फैक्ट-चैकिंग रिपोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट को सूचित किया कि वे “मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं” से पीड़ित था.

एक्टिविस्ट धीरज सिंह, जो एक पूर्व छात्र और ग्लोबल आईआईटी एलुमनाई सपोर्ट ग्रुप के संस्थापक भी हैं, को आरटीआई में मिले एक जवाब के अनुसार, 2005 से अब तक आईआईटी के 115 छात्रों की आत्महत्या से मृत्यु हो चुकी है, और उनमें से 13 आईआईटी खड़गपुर के थे.

इस घटना के बाद कैंपस में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए और छात्रों ने तिवारी के इस्तीफे की भी मांग की.

फिर, जनवरी 2023 में, कलकत्ता हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने आईआईटी खड़गपुर के अधिकारियों पर एक छात्र की मौत को “छिपाने की कोशिश” करने का आरोप लगाया, जिसकी कथित तौर पर कुछ सीनियर्स ने रैगिंग की थी. उन्होंने तिवारी से पूछा, “क्या आपके अपने बच्चे हैं? अगर हैं, तो आप उस पिता का दर्द समझेंगे जिनका बच्चा आईआईटी खड़गपुर जैसे प्रमुख संस्थान में पढ़ते हुए मर जाता है.”

बाद में 2024 में, एक दूसरी फोरेंसिक रिपोर्ट से पता चला कि छात्र को चाकू और गोली मारी गई थी. मामला अभी भी विचाराधीन है.

उक्त रिटायर्ड फैकल्टी मेंबर ने कहा, “एक छात्र की कथित हत्या को छिपाने के लिए उन्हें अदालत में कड़ी फटकार लगाई गई थी.”

‘भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने वाला प्रशासक’

पूर्व और वर्तमान दोनों फैकल्टी मेंबर्स के अनुसार, तिवारी अपने पूरे कार्यकाल के दौरान काफी हद तक अनअप्रोचेबल रहे हैं और फैकल्टी के साथ उनके सामने आने वाले मुद्दों पर सार्थक बातचीत करने में विफल रहे हैं.

टीचर्स एसोसिएशन के एक पूर्व सदस्य ने दिप्रिंट को बताया, “वे किसी भी बात का जवाब नहीं देते हैं.”

उन्होंने कहा, “उनके कार्यकाल के दौरान, एसोसिएशन ने उन्हें विभिन्न मुद्दों से अवगत कराने के लिए कई पत्र भेजे हैं, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है. उनके साथ किसी भी तरह की बातचीत करना बेहद मुश्किल साबित रहा है.”

नाम न बताने की शर्त पर एक सीनियर फैकल्टी मेंबर ने “भाई-भतीजावाद” और “मनमाने ढंग से भर्ती” के आरोपों पर विस्तार से कह, “उनके विभाग का एक व्यक्ति तेज़ी से प्रोफेसर से विभागाध्यक्ष, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य, डीन और अब उप निदेशक बन गया है. यह स्पष्ट पक्षपात फैकल्टी में चर्चा का विषय बन गया है, खासकर तब जब अधिक योग्य और सीनियर फैकल्टी मेंबर्स को एक व्यक्ति के पक्ष में बार-बार नज़रअंदाज किया गया है.”

फैकल्टी मेंबर ने आरोप लगाया, “इसके अलावा, डीन, विभाग प्रमुख और समिति अध्यक्ष जैसे प्रमुख प्रशासनिक नियुक्तियां संस्थान के नियमों और विधियों का उल्लंघन करते हुए मनमाने ढंग से की गई हैं. जब टीचर्स एसोसिएशन ने निदेशक के समक्ष इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की, तो उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.”

फैकल्टी मेंबर्स ने उन्हें एक ऐसा व्यक्ति बताया जो केवल अपने पर फोकस करके बैठकों पर हावी रहते हैं.

नाम न बताने की शर्त पर एक अन्य फैकल्टी मेंबर ने कहा, “वे अपनी विदेश यात्राओं के बारे में विस्तार से बात करते थे और इस प्रक्रिया में अपने सहयोगियों को नीचा दिखाते रहे.”

इन आरोपों पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने फोन कॉल, ईमेल और टेक्स्ट मैसेज के ज़रिए से तिवारी से संपर्क किया. अगर कोई जवाब आता है इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

टीचर्स और स्टूडेंट्स के लिए सख्त नियम

जून 2020 में कार्यभार संभालने के कुछ समय बाद ही आईआईटी खड़गपुर में तिवारी के प्रशासन ने संस्थान के आचरण नियमों का हवाला देते हुए कर्मचारियों को मीडिया से बात करने से बैन कर दिया, यहां तक ​​कि गुमनाम रूप से भी नहीं, इसमें कहा गया था कि कुछ कर्मचारी प्रेस से बात करके संस्थान को “शर्मिंदगी” पहुंचा रहे थे.

नाम न बताने की शर्त पर एक सीनियर फैकल्टी मेंबर ने दिप्रिंट को बताया, “यह सिर्फ मीडिया की बात नहीं है. उन्होंने टीचर्स की ज़िंदगी को मुश्किल बना दिया है. यहां तक ​​कि लेक्चर देने और सेमिनार में शामिल होने के लिए भी हमें विशेष अनुमति लेनी पड़ती थी. पहले ऐसा नहीं था.”

इस साल अप्रैल में संस्थान ने घोषणा की थी कि कैंपस में या बाहर शराब पीते पकड़े जाने वाले छात्रों पर जुर्माना लगाया जाएगा. पहली बार अपराध करने पर 5,000 रुपये और दूसरी बार अपराध करने पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगेगा. दोनों ही मामलों में छात्र के माता-पिता को सूचित किया जाएगा. बार-बार अपराध करने पर आगे की कार्रवाई के लिए अनुशासन समिति (डीसी) को भेजा जाएगा.

फाइनल ईयर के एक स्टूडेंट ने दिप्रिंट से कहा, “प्रशासन द्वारा कैंपस के बाहर शराब पीने पर जुर्माना लगाने का फैसला उनके अधिकार की सीमाओं के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाता है, खासकर तब जब छात्रों का एक बड़ा हिस्सा वयस्क है. यह कदम वर्तमान प्रशासन की तानाशाही प्रकृति को दर्शाता है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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