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गुरूवार, 29 मई, 2025
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सोशल मीडिया जांच के चलते अमेरिका ने वीज़ा इंटरव्यू रोक, भारतीय छात्रों ने कहा ‘सब कुछ दांव पर लगा’

जब एक जज ने ट्रंप का विदेशी छात्रों को हार्वर्ड में पढ़ाई से रोकने का फैसला रद्द किया, उसके बाद मार्को रुबियो का दूतावासों को भेजा गया डिप्लोमैटिक संदेश भारतीय छात्रों के लिए एक और झटका बनकर सामने आया, जो अमेरिका में पढ़ाई के लिए जा रहे हैं.

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नई दिल्ली: डॉनल्ड ट्रंप की अगुवाई वाली अमेरिका सरकार द्वारा दूतावासों से “स्टूडेंट वीज़ा एप्लीकेशंस के लिए नए इंटरव्यू शेड्यूल करना रोकने” की बात कहे जाने की रिपोर्टों ने इस साल अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ में दाख़िला लेने जा रहे हज़ारों भारतीय छात्रों में चिंता पैदा कर दी है.

दिल्ली के एक छात्र, जिनका इस हफ्ते अमेरिकी दूतावास में इंटरव्यू है, ने इन रिपोर्टों को “एक डरावना सपना” बताया. उन्होंने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “इस समय सब कुछ दांव पर लगा है. हालांकि मेरा इंटरव्यू अभी तक तय है, लेकिन इतनी अनिश्चितता के बीच पता नहीं चीजें कैसे आगे बढ़ेंगी.” छात्र ने पहचान न बताने की शर्त पर यह बात कही.

यह घटनाक्रम ट्रंप प्रशासन द्वारा अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर की जा रही सख्ती की हालिया कड़ी है. पिछले हफ्ते प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों के दाखिले पर रोक लगाने का आदेश दिया था. हालांकि, एक संघीय न्यायाधीश ने इस कदम पर फिलहाल रोक लगा दी है.

पोलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने मंगलवार को एक डिप्लोमैटिक केबल पर साइन किए, जिसमें दूतावासों और काउंसलर सेक्शनों से कहा गया कि वे नए स्टूडेंट वीज़ा इंटरव्यू शेड्यूल करना रोक दें. रिपोर्ट के मुताबिक, यह फैसला विदेशी छात्रों की सोशल मीडिया जांच की संभावित योजना के चलते लिया गया है.

हालांकि अब तक इस नीति को लेकर कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया है.

मंगलवार शाम की प्रेस कॉन्फ्रेंस में अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने कहा कि इस फैसले की खबरें शायद “लीक हुए दस्तावेज़ों” से आई हैं.

हालांकि, ब्रूस ने ज़ोर देते हुए कहा, “हर संप्रभु देश को यह जानने का अधिकार है कि कौन उसके देश में आना चाहता है, क्यों आना चाहता है, वह कौन है, पहले क्या कर चुका है, और उम्मीद है कि वह यहां आने के बाद क्या करेगा.”

अगर ट्रंप प्रशासन इस योजना को आगे बढ़ाता है, तो स्टूडेंट वीज़ा प्रोसेसिंग में अनिश्चितकालीन देरी हो सकती है, जिससे उन विश्वविद्यालयों के लिए आर्थिक समस्याएं खड़ी हो सकती हैं, जो अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर भारी मात्रा में निर्भर हैं.

ओपन डोर्स रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 शैक्षणिक वर्ष में अमेरिका में 3,31,602 भारतीय छात्रों ने दाखिला लिया, जिससे भारत अमेरिका में पढ़ने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा स्रोत बन गया. अमेरिका में कुल 1,126,690 अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से 29.4 प्रतिशत भारतीय छात्र हैं.

एक और भारतीय छात्र, जो इस साल एक आइवी लीग यूनिवर्सिटी में पोस्टग्रेजुएट पढ़ाई के लिए जा रहे हैं, उनका भी जल्द ही दूतावास में इंटरव्यू होना है. उनके साथियों से मिल रही मिली-जुली खबरें उन्हें काफी तनाव दे रही हैं.

उन्होंने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “एक बांग्लादेशी छात्र को वीज़ा मिल गया, लेकिन वो सिर्फ एक मामला है. बाकी सभी के वीज़ा या तो होल्ड पर हैं या रिजेक्ट हो चुके हैं.”

उन्होंने बताया कि अब तक उन्होंने लगभग 1,500 डॉलर आवेदन शुल्क, कॉलेज स्वीकार शुल्क, SEVIS (स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विज़िटर इंफॉर्मेशन सिस्टम) शुल्क और वीज़ा आवेदन शुल्क में खर्च किए हैं. छात्र ने कहा, “इसके अलावा, ट्यूशन फीस लगभग 101,200 डॉलर प्रति वर्ष है, जो अभी तक मैंने नहीं भरी है। इस समय यह सब कुछ पूरी तरह समय की बर्बादी लग रहा है.”

छात्र आमतौर पर यूनिवर्सिटी जॉइन करने के बाद ट्यूशन फीस भरते हैं और उससे पहले कॉलेज स्वीकार शुल्क भरते हैं.

सोशल मीडिया जांच पर चिंताएं

पोलिटिको की रिपोर्ट के अनुसार, एक टेलीग्राम में कहा गया है, “तुरंत प्रभाव से, सोशल मीडिया की जांच और जांच प्रक्रिया के विस्तार की तैयारी में, वाणिज्य दूतावासों को तब तक कोई भी नया स्टूडेंट या एक्सचेंज विज़िटर (F, M और J) वीज़ा अपॉइंटमेंट नहीं जोड़ना चाहिए, जब तक कि आगे का मार्गदर्शन ‘सेप्टेल’ के माध्यम से जारी न किया जाए, जिसकी हमें आने वाले दिनों में उम्मीद है.”

‘सेप्टेल’ शब्द स्टेट डिपार्टमेंट की भाषा में “अलग टेलीग्राम” को दर्शाता है.

रिपोर्ट के अनुसार, टेलीग्राम में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि भविष्य में सोशल मीडिया जांच में क्या देखा जाएगा. हालांकि, यह आतंकवाद और यहूदी-विरोध के खिलाफ कार्यकारी आदेशों का हवाला देता है.

छात्रों को आने वाली सोशल मीडिया जांच नीति को लेकर काफी चिंता है.

हावर्ड केनेडी स्कूल के एक छात्र ने दिप्रिंट को बताया कि एक सीनियर जो कुछ दिन पहले ही अमेरिका लौटे हैं, उन्हें एयरपोर्ट पर पूरी जांच प्रक्रिया से गुजरना पड़ा, जिसमें उनके फोन की तलाशी भी शामिल थी.

छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर फोन इंटरव्यू में कहा, “इस समय हमें नहीं पता कि कौन सा सोशल मीडिया लाइक या कमेंट मुसीबत में डाल सकता है. नीति की घोषणा अभी बाकी है.”

हालांकि, हावर्ड बिजनेस स्कूल के एक लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम में नामांकित भारतीय छात्रा श्रेया मिश्रा रेड्डी ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट में कहा कि अब सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए विस्तृत सोशल मीडिया जांच प्रक्रिया का हिस्सा बन जाएगी.

उन्होंने कहा, “फिलहाल संबंधित विभाग स्टूडेंट और एक्सचेंज विज़िटर वीज़ा आवेदकों की जांच और प्रक्रिया की समीक्षा कर रहे हैं. यह रोक मौजूदा जांच प्रक्रिया से एक कदम आगे है, जो अब तक मुख्य रूप से उन छात्रों को निशाना बना रही थी जिन्होंने फिलिस्तीन के समर्थन में कैंपस प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था.”

कड़ी तैयारी के बाद भी अनिश्चितता जारी

कंसल्टेंट्स और छात्रों के अनुसार, अमेरिका के किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन की पूरी प्रक्रिया में कई सालों की मेहनत लगती है.

यूनिवर्सिटी लीप नाम की एजुकेशन कंसल्टेंसी की फाउंडर साक्षी मित्तल ने कहा कि छात्र टॉप यूनिवर्सिटी में एडमिशन पाने के लिए चार साल तक लगातार मेहनत करते हैं.

“पेरेंट्स और स्टूडेंट्स SAT की तैयारी, कोचिंग क्लासेज और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज में काफी निवेश करते हैं. बहुत से लोग जिनका सपना पूरा हुआ था, अब उन्हें अमेरिका में पढ़ाई की उम्मीद धुंधली लग रही है,” मित्तल ने कहा.

“हमारे कुछ स्टूडेंट्स ने पहले ही वीजा इंटरव्यू स्लॉट बुक कर लिए हैं और उन्हें वीजा मिल भी गया है, लेकिन जो वेटलिस्ट में हैं या अभी-अभी एडमिट हुए हैं, वे बेहद तनाव में हैं. कई छात्रों ने किसी दूसरे देश के यूनिवर्सिटी में अप्लाई नहीं किया था और अब जल्दी-जल्दी यूके व अन्य देशों की यूनिवर्सिटीज़ में अप्लाई कर रहे हैं,” उन्होंने कहा. “औसतन, पेरेंट्स एक टॉप यूएस यूनिवर्सिटी के अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम पर दो करोड़ से चार करोड़ रुपये तक खर्च करते हैं.”

मित्तल ने कहा कि अगर यह निर्णय पलटता नहीं है, तो कुछ छात्रों को एडमिशन डिफर करने की सलाह दी है, और उन्हें उम्मीद है कि यह निर्णय जल्द ही पलटेगा.

एक छात्रा, जो अमेरिका की एक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में लॉ कोर्स जॉइन करने जा रही हैं, ने वीजा प्रक्रिया को लंबा बताया. उन्होंने समझाया कि जब किसी छात्र को अमेरिका का कॉलेज एडमिट करता है, तो उसे फॉर्म I-20 या फॉर्म डीएस-2019 मिलता है ताकि वह क्रमशः F-1 या J-1 वीजा के लिए अप्लाई कर सके. इसके बाद, SEVIS फीस भरनी होती है और DS-160 वीजा अप्लिकेशन फॉर्म ऑनलाइन भरना होता है. फिर, पास के अमेरिकी दूतावास या वाणिज्य दूतावास में वीजा इंटरव्यू के लिए स्लॉट लेना होता है और सभी ज़रूरी दस्तावेज़ तैयार करने होते हैं. इसमें पासपोर्ट, I-20 या DS-2019, DS-160 कन्फर्मेशन, SEVIS फीस की रसीद, यूनिवर्सिटी एडमिशन और इनविटेशन लेटर, फाइनेंशियल प्रूफ और अकादमिक रिकॉर्ड शामिल होते हैं.

उन्होंने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “वीजा अपॉइंटमेंट दो चरणों में होती है—पहले बायोमैट्रिक और फिर किसी दूसरे दिन इंटरव्यू. मेरा बायोमैट्रिक पूरा हो चुका है. अगला हफ्ता मेरा इंटरव्यू है और मैं बहुत चिंतित और असमंजस में हूं. लेकिन मुझे भरोसा है कि ट्रंप प्रशासन के बाकी निर्णयों की तरह यह भी पलट जाएगा.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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