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Sunday, 16 June, 2024
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UP के गांव से 100% स्कॉलरशिप पर स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी तक- अलीगढ़ के इस लड़के का सपना कैसे साकार हुआ

मनु चौहान को इंटरनेशनल रिलेशन पर अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम के लिए कैलिफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में 100 फीसदी स्कॉलरशिप मिली है. उनका सपना वंचित बच्चों तक बेहतर शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना है.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के एक गांव में रहने वाला 18 वर्षीय मनु चौहान देश के लाखों अन्य छात्रों की तरह ही 12वीं कक्षा के नतीजों का इंतजार कर रहा है लेकिन उसे कोई बड़ी चिंता नहीं है. कारण है कि मनु को इंटरनेशनल रिलेशन पर अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम के लिए कैलिफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में 100 फीसदी स्कॉलरशिप मिल चुकी है.

यूपी में अलीगढ़ जिले के एक छोटे से गांव अकराबाद निवासी एक बीमा पॉलिसी विक्रेता के बेटे मनु का अपने गांव से स्टैनफोर्ड तक का सफर उसकी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प का नतीजा है. परिवार के पास उसके सपनों को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था, उसके माता-पिता का कड़ी मेहनत के बावजूद बमुश्किल जीवनयापन का इंतजाम कर पाना भी इस किशोर की आकांक्षाओं को रोक नहीं पाया.

मनु ने दिप्रिंट से बात करते कहा कि उसने स्टैनफोर्ड में इसलिए अप्लाई किया क्योंकि इसमें रिसर्च की बेहतरीन सुविधाएं हैं. अपने खुद के संघर्षों को देखते हुए उसका सपना नीतियों का अध्ययन करना और वंचित बच्चों तक बेहतर शिक्षा की पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना है.

उसके मुताबिक, ‘मैं किसी के पास अपने सपने सच करने के पर्याप्त संसाधन नहीं होने के दर्द को बखूबी समझता हूं. इसलिए अपने गांव के बच्चों के लिए राह आसान बनाना चाहता हूं.’


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जमकर पढ़ाई

इस मुकाम तक पहुंचना कोई आसान काम नहीं था और इसमें रोजाना 18 घंटे पढ़ाई की मेहनत शामिल थी. मनु ने कहा, ‘मैं सुबह 6 बजे उठता था, फिर दोपहर 2 बजे तक स्कूल में पढ़ता था. इसके बाद थोड़ा आराम करता और अपना होमवर्क पूरा करता. शाम को मैं एक घंटे टेबल टेनिस खेलता और रात 8 बजे से दो बजे तक सैट के लिए पढ़ाई करता था.’ सैट (एसएटी) एक मानक टेस्ट है जिसे अमेरिकी कॉलेजों में प्रवेश के इच्छुक छात्रों को क्लियर करना होता है.

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यूपी के इस छात्र ने कहा कि कई बार बाधाएं और कठिनाइयां सामने आईं लेकिन वह अपनी पढ़ाई करता रहा.

मनु ने पांचवीं कक्षा तक अकराबाद के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई की, जिसके बाद उनका चयन यूपी के बुलंदशहर स्थित आवासीय स्कूल विद्याज्ञान अकादमी में हो गया. यद्यपि सरकारी स्कूल में पढ़ने का उसका अनुभव बुरा नहीं था लेकिन माता-पिता उसके लिए कुछ और बेहतर चाहते थे.

एक साल की तैयारी के बाद मनु शिव नादर फाउंडेशन की एक कल्याणकारी पहल विद्याज्ञान की स्कॉलरशिप हासिल करने में सफल रहा. अकादमी को हर साल दो लाख से अधिक आवेदन प्राप्त होते हैं, जिनमें से 250 ऐसे मेधावी छात्रों को मुफ्त शिक्षा के लिए चुना जाता है जिनके परिवार की वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम होती है.

मनु का कहना है कि एक ओर जहां वह कड़ी मेहनत कर रहा था, वहीं दूसरी ओर उसे अपने सपने साकार करने के लिए कड़ा संघर्ष भी करना था. उसने कहा, ‘मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती तो यह थी कि मैं इस बात पर भरोसा कर पाऊं कि मुझ जैसा एक छोटे से गांव का लड़का अमेरिका की एक शानदार यूनिवर्सिटी में जा सकता है. मुझे अपने साथ के और शहरी माहौल में पले-बढ़े अन्य छात्रों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी थी. खुद को अपने-आप पर भरोसा करने के लिए तैयार करने में तीन साल का लंबा समय लगा.’

मनु अलीगढ़ से 21 किलोमीटर दूर स्थित करीब 6,000 लोगों के गांव अकराबाद का रहने वाला है.

उसने बताया कि विद्याज्ञान का साथ मिलना उसके लिए बहुत मददगार साबित हुआ. स्टैनफोर्ड के लिए आवेदन करने में विद्याज्ञान के शिक्षकों और काउंसलर ने उसकी काफी मदद की.

उसने कहा, ‘मेरे काउंसलर मेरे निबंधों की समीक्षा करते थे और इसमें क्या बेहतर हो सकता है, इस पर व्यापक नज़रिया भी प्रदान करते थे. मेरे संस्थान के मेंटर्स ने यह भी समझाया कि सैट की तैयारी के दौरान मुझे किन बातों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.’

इतना ही नहीं वह स्कॉलरशिप ग्रांट के साथ टीओईएफएल और एसएटी जैसी पात्रता परीक्षाएं भी दे पाया. उसने बताया, ‘कई फाउंडेशन हैं जो छात्रों को इन टेस्ट में बैठने के लिए शुल्क देते हैं. छात्रों को अकादमिक क्षमताएं दिखाने के साथ यह बताना होता है कि उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसके आधार पर उन्हें छात्रवृत्ति दी जाती है.’

यह किशोर अब इसी सितंबर में अमेरिका के लिए उड़ान भरने को तैयार है.


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सबसे बेहतरीन देने की कोशिश

मनु की सफलता में पिता प्रमोद कुमार चौहान की भी अहम भूमिका रही है. वह चौहान ही थे जिन्होंने काफी कम उम्र में ही अपने बेटे की क्षमताओं को पहचान लिया था और ऐसे स्कूलों की तलाश की जो उनके सपनों को आकार दे सकें.

चौहान अकराबाद में बीमा पॉलिसी बेचने का काम करते हैं और उनकी पत्नी एक गृहिणी है. दंपति ने अपने बेटे को एक छात्रावास में भेज दिया ताकि वह ‘अपने जीवन में कुछ बड़ा हासिल कर सके.’ वे जानते थे कि आर्थिक रूप से वह उसके सपनों को साकार करने में सक्षम नहीं होंगे लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से उसे बेहतरीन देने का प्रयास किया.

अपने बेटे के दृढ़ संकल्प के बारे में बताते हुए 47 वर्षीय चौहान ने कहा, ‘मनु हमसे करीब 80 किलोमीटर दूर बुलंदशहर में एक छात्रावास में रहता था. हर दिन वह देर रात तक पढ़ता था और हम भी जागकर रातें काटा करते थे. हमारा परिवार सीमित साधनों वाला है और ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि मैं उसे अमेरिका भेज पाता. शिव नादर संस्थान के काउंसलर पूरी प्रक्रिया में उसकी बहुत मदद करते रहे.’

व्यक्तित्व परीक्षण

मनु वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में नियमित रूप से भाग लेता था और टेबल टेनिस का शौकीन है. उसने 2018 में ओपन स्टेट लेवल टेबल-टेनिस चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक भी जीता था. उसका कहना है कि व्यक्तित्व निर्माण और अपनी रुचियों का जगाना उसके लिए स्टैनफोर्ड में इंटरव्यू के दौरान अपनी अलग छाप छोड़ने में मददगार साबित हुआ.

उसका कहना है, ‘अकादमिक क्षमताओं से ज्यादा…वहां की यूनिवर्सिटी आपका सैट स्कोर और आपकी एक्स्ट्राकरिकुलर एक्टीविटीज देखती हैं. मैंने इन गतिविधियों का इस्तेमाल कई जीवन कौशल आत्मसात करने में किया. अपने निबंधों, जो आवेदनों के लिए लिखे थे- में मैंने सुनिश्चित किया कि उसमें मेरा सही व्यक्तित्व और मेरी पढ़ाई-लिखाई झलके.’

18 वर्षीय इस छात्र का कहना है कि महामारी ने उसके लिए चीजों को काफी मुश्किल बना दिया था लेकिन कोर्स मैटीरियल हासिल करने के लिए ऑनलाइन साधनों पर भरोसा करना काम आया.

उसने कहा, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की स्थिति बहुत खराब है और लॉकडाउन के दौरान मुझे घर लौटना पड़ा था. पढ़ाई के लिए आवश्यक सामग्री जुटाना कठिन कार्य था लेकिन कुछ वेबसाइट और अमेरिका में रहने वाले भारतीय छात्रों ने बहुत मदद की. यूएस में रहने वाले भारतीय छात्रों ने आवेदन प्रक्रिया पर टिप्स देने वाले कई वीडियो बना रखे हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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