नई दिल्ली: सबसे पुराने आईआईटी में से एक, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) खड़गपुर ने 86 फैकल्टी मेंबर्स को कारण बताओ नोटिस जारी किया है, जिन्होंने टीचर्स असोसिएशन के पदाधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई वापस लेने की मांग वाली याचिका पर साइन किए थे.
जवाब में, फैकल्टी मेंबर्स अब संभावित कानूनी कार्रवाई के अलावा सड़क पर प्रदर्शन और भूख हड़ताल सहित विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहा है.
आईआईटी-खड़गपुर प्रशासन और आईआईटी-खड़गपुर टीचर्स एसोसिएशन (IITTA) के बीच संघर्ष सितंबर में शुरू हुआ, जब एसोसिएशन ने कई शिकायतों को रेखांकित करते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को एक पत्र भेजा. इसके जवाब में आईआईटीटीए के पदाधिकारियों-अध्यक्ष, महासचिव, उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष-को कारण बताओ नोटिस जारी करने के प्रशासन के फैसले से तनाव और बढ़ गया.
एक वरिष्ठ संकाय सदस्य ने नाम न बताने की शर्त पर पूछा,
“IITTA एक स्वतंत्र निकाय है, जो पश्चिम बंगाल सोसायटी अधिनियम के तहत पंजीकृत है. प्रशासन एक स्वतंत्र संघ के निर्वाचित सदस्यों के खिलाफ और अब उनका समर्थन करने वाले 86 शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई कैसे कर सकता है?”
IITTA अब किसी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए कानूनी विकल्प तलाश रहा है.
नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करने वाले एक अन्य फैकल्टी ने कहा, “हम काम पर काली पट्टियां पहनेंगे, सड़क पर विरोध प्रदर्शन करेंगे; हममें से कुछ लोग भूख हड़ताल भी शुरू कर सकते हैं.”
कई प्रयासों के बावजूद, आईआईटी-खड़गपुर के निदेशक वी.के. तिवारी ने कॉल या ईमेल का जवाब नहीं दिया. रजिस्ट्रार कैप्टन अमित जैन (सेवानिवृत्त) ने भी टिप्पणी मांगने वाले ईमेल का जवाब नहीं दिया. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
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‘पक्षपातवाद पनपा’
दिप्रिंट ने जिन कई फैकल्टी सदस्यों से बात की, उन्होंने कहा कि मौजूदा प्रशासन के साथ मतभेदों के कारण IITTA के पदाधिकारियों ने 20 सितंबर को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को एक पत्र भेजा था.
नाम न छापने की शर्त पर एक सीनियर फैकल्टी मेंबर ने कहा, “मंत्रालय को लिखने का निर्णय आवश्यकता से प्रेरित था, क्योंकि प्रशासन फैकल्टी की शिकायतों का समाधान नहीं कर रहा था.”
अपने पत्र में आईआईटीटीए ने आईआईटी खड़गपुर के निदेशक वी.के. तिवारी, जिनका कार्यकाल जनवरी 2025 में खत्म हो रहा है, उन पर “भाई-भतीजावाद”, “मनमाने ढंग से फैकल्टी भर्ती”, “मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल और बाहरी परिसर शुरू करने में विफलता” और “कैंपस और पड़ोस समुदाय के बीच सद्भाव को खराब करने” का आरोप है.
शिक्षक संघ ने मंत्रालय से तिवारी के उत्तराधिकारी के रूप में “उच्च शैक्षणिक रिपोर्ट के साथ-साथ समावेशी शासन का अभ्यास करने का अनुभव” वाले किसी व्यक्ति को चुनने का आग्रह किया.
यह भी आरोप लगाया गया कि 2020 में तिवारी की नियुक्ति के बाद से संस्थान में “अभूतपूर्व भाई-भतीजावाद” देखा गया.
दिप्रिंट के पास मौजूद पत्र में लिखा है, “इस दौरान, हम मौजूदा निदेशक के एक ही विभाग से संबंधित एक खास व्यक्ति के प्रोफेसर पद से लेकर विभाग के प्रमुख, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य, डीन, SRIC और अब संस्थान के डिप्टी डायरेक्टर तक के उत्थान को देखकर दंग रह गए हैं. यह अब शहर में चर्चा का विषय है कि वर्तमान निदेशक के कार्यकाल में पक्षपात कैसे पनपा है.”
IITTA ने इसे “बड़ी समस्या का छोटा सा हिस्सा” बताया है.
उन्होंने आगे कहा, “यह दिखाता है कि अगर एक अयोग्य व्यक्ति इतने प्रतिष्ठित संस्थान का निदेशक बन जाता है तो क्या होता है.”
शिक्षक संघ ने आगे कहा कि संस्थान को एक ऐसे निदेशक की जरूरत है जो सभी हितधारकों और खासतौर से फैकल्टी मेंबर्स के प्रति “दयालु हो और जरूरतों और आकांक्षाओं को सुनता हो.” इसमें यह भी कहा गया है कि निदेशक, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स और उसके अध्यक्ष को लिखे गए पत्रों का जवाब नहीं दिया गया, यह दावा करते हुए कि “किसी ने भी उन पत्रों की प्राप्ति की पुष्टि करने की जहमत नहीं उठाई.”
पत्र में लिखा है, “अब हम चाहते हैं कि आप उच्च शैक्षणिक प्रतिष्ठा वाले और समावेशी शासन का अभ्यास करने में अनुभवी निदेशक का चयन करके आईआईटी खड़गपुर के पिछले गौरव को लाने के लिए उचित कदम उठाएंगे ताकि सभी शिक्षक, कर्मचारी और छात्र संस्थान की सर्वोच्च कुर्सी का सम्मान करें.”
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पत्र का नतीजा
लगभग दो महीने बाद, आईआईटी खड़गपुर के रजिस्ट्रार ने 12 नवंबर को IITTA के पदाधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें 20 सितंबर 2024 को शिक्षा मंत्रालय को लिखे अपने पत्र में लगाए गए आरोपों के सबूत सात दिनों के भीतर जमा करने को कहा गया.
कारण बताओ नोटिस में लिखा, “ये मुद्दे अत्यंत अहम है और इन्हें तत्काल स्पष्टीकरण की जरूरत है. अगर आरोप सही पाए गए, तो संस्थान के शासन और प्रतिष्ठा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.”
इसमें लिखा गया है कि आईआईटी खड़गपुर “आपके पत्र के कंटेंट्स से बहुत चिंतित हैं, और तदनुसार, आपको साक्ष्य के साथ एक विस्तृत लिखित स्पष्टीकरण प्रदान करना आवश्यक है.”
नोटिस में यह भी कहा गया है कि “निर्धारित समय के भीतर संतोषजनक स्पष्टीकरण या प्रतिक्रिया” प्रदान करने में विफलता के कारण आगे की कार्रवाई हो सकती है, जिसमें संस्थान के नियमों के अनुसार अनुशासनात्मक उपाय शामिल हो सकते हैं.
रजिस्ट्रार ने IITTA के महासचिव अमल कुमार दास पर आरोप लगाया है कि उन्होंने शिक्षक संघ के पत्र के विवरण को मीडिया में लीक किया, जिसके खिलाफ एक अलग कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है.
एक वरिष्ठ फैकल्टी मेंबर ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए दिप्रिंट को बताया,“शिक्षक संघ के आदेश के अनुसार, केवल महासचिव ही मीडिया से जुड़ने के लिए अधिकृत हैं, और केवल तभी जब उनसे संपर्क किया जाए. प्रोफेसर दास ने संस्थान की स्थापित आचार संहिता का पालन करते हुए प्रशासन के संबंध में कभी भी कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया. यह बेहद आपत्तिजनक है कि उन्हें एक अलग नोटिस जारी किया गया था.”
संपर्क करने पर दास ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
दो दिन बाद, 14 नवंबर को, IITTA के निर्वाचित सदस्यों ने यह कहते हुए समय सीमा 26 दिसंबर तक बढ़ाने का अनुरोध किया कि वे चल रहे सेमेस्टर के लिए शैक्षणिक गतिविधियों में व्यस्त थे. हालांकि, उनके अनुरोध को तुरंत अस्वीकार कर दिया गया जिसके बाद शिक्षक संघ ने उसी दिन एक असाधारण आम सभा की बैठक (ईजीबीएम) आयोजित की.
इस बीच, प्रशासन ने समय पर कारण बताओ जवाब देने में विफल रहने के लिए IITTA पदाधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू की.
बैठक के ब्योरे के अनुसार, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, IITTA और उसके सदस्यों ने दोनों कारण बताओ नोटिसों का जवाब तैयार करने के लिए कानूनी सलाह लेने का फैसला किया. उन्होंने मामले को कानूनी रूप से खत्म करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई भी व्यक्ति वित्तीय बोझ न उठाए, IITTA फंड में समान रूप से मासिक या एकमुश्त अतिरिक्त राशि का योगदान करने का निर्णय लिया.
अनुशासनात्मक कार्रवाई और कारण बताओ नोटिस को वापस लेने की मांग करते हुए एक ज्ञापन के साथ मिनट्स प्रसारित किए गए थे, जिस पर 86 शिक्षकों ने साइन किए थे जो IITTA के सदस्य भी थे.
इस पर प्रतिक्रिया करते हुए, रजिस्ट्रार ने 29 नवंबर को सभी 86 शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें कहा गया कि उनके कृत्य ने संस्थान के आचरण नियमों, क़ानून 15 (17) का उल्लंघन किया है, जो कहता है: “कोई भी कर्मचारी किसी भी संयुक्त प्रतिनिधित्व पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं होगा. किसी भी शिकायत या किसी अन्य मामले के निवारण के लिए अधिकारियों को.”
कारण बताओ नोटिस में लिखा है, “उपरोक्त के मद्देनजर, आपको इस नोटिस की प्राप्ति के सात (7) दिनों के भीतर कारण बताना होगा कि आपके उपरोक्त कृत्य के लिए आपके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जाए. निर्धारित समय के भीतर जवाब देने या संतोषजनक स्पष्टीकरण देने में विफलता के परिणामस्वरूप आपके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी.”
नए घटनाक्रम में, पहले जिक्र किए गए एक फैकल्टी मेंबर ने कहा,“संस्थान के 75 वर्षों के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ है. प्रशासन ने पहले कभी भी इस तरह का अधिकारपूर्ण व्यवहार नहीं किया है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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