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Friday, 22 November, 2024
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रिमाइंडर हों या सोशल मीडिया कैंपेन, डीयू के गेस्ट टीचर्स को एक साल से वेतन दिलाने में कुछ मदद नहीं कर पाया

दिल्ली विश्वविद्यालय का कहना है कि नॉन-कॉलेजिएट महिला शिक्षा बोर्ड की तरफ से काम पर रखे गए शिक्षकों को कॉलेजों के अपने लंबित बिल जमा कराते ही, बकाया भुगतान मिल जाएगा.

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नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) के कॉलेजों में तमाम गेस्ट टीचर को उनके बकाये का भुगतान पिछले एक साल से नहीं मिला है—जिसमें कक्षाएं लेने और परीक्षा ड्यूटी के लिए मिलने वाली राशि भी शामिल है.

नॉन-कॉलेजिएट महिला शिक्षा बोर्ड (एनसीडब्ल्यूईबी) डीयू से संबद्ध कॉलेजों में स्थित अपने 20 केंद्रों पर पढ़ाने के लिए गेस्ट फैकल्टी सदस्यों की नियुक्ति करती है. एनसीडब्ल्यूईबी की कक्षाएं उन कामकाजी महिलाओं और लड़कियों के लिए चलती हैं जो नियमित तौर पर कॉलेज नहीं जा सकतीं. इनमें से अधिकांश क्लास गेस्ट फैकल्टी सदस्य ही लेते हैं.

एनसीडब्ल्यूईबी संकाय चार-छह महीने की अवधि वाले प्रत्येक सेमेस्टर में लगभग 25 कक्षाएं लगाता है. लेकिन फैकल्टी सदस्यों ने बताया कि पिछले साल महामारी की शुरुआत के बाद से क्लास की संख्या बढ़ गई है, क्योंकि आमतौर पर केवल सप्ताहांत पर लगने वाली कक्षाओं की जगह सप्ताह के अन्य दिनों में भी कक्षाएं चल रही हैं.

डीयू प्रशासन का दावा है कि उन्हें अभी तक कॉलेजों की तरफ से बिल प्राप्त नहीं हुए हैं और भुगतान लंबित हैं. इसका एक कारण यह भी है कि कई प्रशासनिक कर्मचारी अस्वस्थ हैं और इस वजह से सारी कागजी कार्रवाई अटकी हुई है.

दिप्रिंट ने एनसीडब्ल्यूईबी की निदेशक गीता भट्ट से फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के जरिये संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी.

इस बीच, अपने बकाये का इंतजार करने वालों का कहना है कि उनके लिए अपनी जरूरतें पूरा करना कठिन हो गया है. असंतुष्ट शिक्षकों ने अपनी स्थिति को बताने के लिए एक सोशल मीडिया कैंपेन भी चलाया. लेकिन कहा कि इस सबसे भी उनकी स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ा है.

डीयू के लिए फैकल्टी सदस्यों का प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है. बकाया भुगतान को लेकर पूर्व में भी टीचिंग स्टाफ अपनी नाराजगी जताता रहा है.

2019 में यूनिवर्सिटी के एडहॉक टीचर्स ने डीयू प्रशासन के साथ लंबी लड़ाई लड़ी थी. उस समय यूनिवर्सिटी के करीब 4,500 एडहॉक टीचर हड़ताल पर चले गए थे. ड्यूटी से अनुपस्थिति रहने के बावजूद उन्हें कई महीनों तक वेतन नहीं दिया गया था. हालांकि, बाद में शिक्षकों को आश्वासन दिया गया कि उनकी मांगों को सुना जाएगा और यूनिवर्सिटी की एक्जीक्यूटिव काउंसिल इस मामले पर विचार कर रही है.

इस साल मार्च में दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित कॉलेजों के शिक्षकों ने भी अपने वेतन का भुगतान न किए जाने पर प्रदर्शन किया. कुछ शिक्षकों ने बाद में दिप्रिंट को बताया कि उनका बकाया क्लियर हो चुका है.


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‘बस से कॉलेज जाने के लिए भी पैसे उधार लेने पड़े’

अपने वेतन और अन्य बकाये के भुगतान का इंतजार रहे गेस्ट टीचर्स का कहना है कि वे न केवल बार-बार प्रशासन का दरवाजा खटखटा रहे हैं, बल्कि इस साल जनवरी से ट्विटर पर एक ऑनलाइन कैंपेन भी चला रखा है, जिसमें हैशटैग #DU_प्रशासन_वेतन_दो का इस्तेमाल किया जा रहा है.

हालांकि, सोशल मीडिया पर प्रशासन की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन यूनिवर्सिटी के टीचिंग स्टाफ में से कुछ ने जरूर प्रदर्शन करने वाले फैकल्टी सदस्यों के प्रति समर्थन जताया है. हालांकि, इस मामले में कोई प्रगति होती नजर नहीं आती है.

गेस्ट फैकल्टी सदस्यों को अब भुगतान का इंतजार करते एक साल से अधिक समय बीत चुका है, उनका कहना है कि वे लगभग पूरी तरह यहां से होने वाली अपनी कमाई पर ही निर्भर हैं, क्योंकि वे एनसीडब्ल्यूईबी से जुड़े होने के कारण नियमित कॉलेजों में नहीं पढ़ा सकते.

ऐसे में भुगतान में हो रही देरी ने उनके लिए तमाम वित्तीय कठिनाइयां उत्पन्न कर दी है. राजधानी कॉलेज में एक गेस्ट फैकल्टी सदस्य सूरज राव ने कहा, ‘ऐसे दिन आ गए जब मुझे कॉलेज जाकर पढ़ाने के लिए दोस्तों से पैसे उधार लेने पड़े. जनवरी-मई 2020 और अक्टूबर-दिसंबर 2020 सेमेस्टर के लिए भुगतान अब तक क्लियर नहीं किया गया है.’

यूजीसी ने जनवरी 2019 में ही गेस्ट फैकल्टी के लिए वेतन 1,000 रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपये प्रति क्लास कर दिया था, लेकिन लंबे समय तक डीयू की एक्जीक्यूटिव काउंसिल ने एनसीडब्ल्यूईबी शिक्षकों के लिए इसे मंजूरी नहीं दी. मिरांडा हाउस कॉलेज में एक गेस्ट टीचर राज कैथवार के मुताबिक, वह तो 2021 में आकर एक्जीक्यूटिव काउंसिल ने संशोधित दरों को मंजूरी देने के साथ गेस्ट टीचर को इसके मुताबिक भुगतान करने पर सहमति जताई.

कैथवार ने यह भी कहा कि उन्हें दो सेमेस्टर के लिए बकाये का भुगतान नहीं मिला है.

कैथवार ने बताया, ‘यदि हम प्रत्येक संकाय की बकाया राशि जोड़े तो यह 1,75,000 रुपये के करीब होती है. इसमें इनविजिलेशन ड्यूटी का भुगतान और उत्तर पुस्तिकाओं की जांच के लिए मिलने वाली राशि शामिल नहीं है. मैं इन स्थितियों से निपटने में सक्षम हूं क्योंकि मैं अपने परिवार के साथ रहता हूं. लेकिन हमारे साथ के तमाम लोग ऐसे हैं जो यहां अकेले ही रहते हैं. वे कैसे काम चलाएंगे?’

एनसीडब्ल्यूईबी केंद्रों में बतौर गेस्ट फैकल्टी पढ़ाने वालों में से अधिकांश रिसर्च स्कॉलर हैं. उनकी आय का एक अन्य स्रोत उन्हें बतौर स्कॉलर यूनिवर्सिटी से मिलने वाला स्टाइपेंड होता है.

डीयू के एक कॉलेज में बतौर गेस्ट फैकल्टी काम करने वाली भावना सिंह गेस्ट टीचर के प्रति डीयू प्रशासन के रवैये पर सवाल उठाती हैं और कहती हैं कि उनकी मांगों पर बहुत ही कम ध्यान दिया जाता है.

उन्होंने कहा, ‘हम नियमित फैकल्टी की जितनी ही कड़ी मेहनत करते हैं. फिर ऐसा क्यों है कि हमारे लिए कोई सम्मान नहीं है, हमारा कोई मोल नहीं है? क्या उन्हें लगता है कि हम भोजन के बजाये हवा खाकर जीवित रह लेंगे? क्या हमारे पास कोई खर्चा नहीं है?’

महामारी के कारण हुई देरी

इस बीच, दिल्ली यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि महामारी के कारण भुगतान में देरी हुई है, क्योंकि तमाम कॉलेजों में प्रशासनिक कर्मचारियों और संकाय सदस्य अस्वस्थ हो गए हैं.

डीयू के कॉलेजों के डीन बलराम पाणि ने कहा, ‘एनसीडब्ल्यूईबी के गेस्ट टीचर्स के वेतन का भुगतान कॉलेजों की तरफ से यहां यूनिवर्सिटी में हमारे पास बिल जमा कराने के बाद होता है. इस साल महामारी की वजह से कॉलेजों की तरफ से इस प्रक्रिया में देरी हुई है. कई प्रशासनिक कर्मचारी कॉलेज नहीं आ रहे, कई का स्वास्थ्य ठीक नहीं हैं, इन सब वजहों ने इसका प्रबंधन करना बहुत मुश्किल है.’

उन्होंने बताया कि यूनिवर्सिटी ने पहले ही कॉलेजों को यह प्रक्रिया तेज करने के निर्देश जारी कर दिए हैं. उन्होंने आगे कहा, ‘जैसे ही हमें कॉलेजों की तरफ से बिल मिलते हैं, एक सप्ताह के भीतर वेतन जारी कर दिया जाएगा.’

हालांकि, नाराज गेस्ट फैकल्टी सदस्यों ने यूनिवर्सिटी पर अपने कामकाज में कछुए की चाल से आगे बढ़ने का आरोप लगाया है.

अपना नाम न देने की शर्त पर एक गेस्ट फैकल्टी सदस्य ने कहा, ‘उसे (यूनिवर्सिटी) गेस्ट टीचर की चिंताओं से कोई लेना-देना नहीं है. हममें से कई इन सब कारणों से गंभीर वित्तीय संकट की स्थिति में हैं. महामारी लगातार जारी है और वह हमें यह भी नहीं बता रहे हैं कि हमारा बकाया कब तक मिल जाएगा.’


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