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Sunday, 8 December, 2024
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NCERT की सोशल साइंस के नए करीकुलम में ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत’ करने की पैनल ने की सिफारिश

इतिहासकार और आरएसएस विचारक पैनल के अध्यक्ष प्रोफेसर सी.आई. आइज़ैक (सेवानिवृत्त) का कहना है कि समिति ने सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम में 'हिंदू पराजयों' पर ध्यान कम करने का भी सुझाव दिया है.

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नई दिल्ली: एनसीईआरटी द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए गठित एक उच्च-स्तरीय समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर सी.आई. आईज़ैक (सेवानिवृत्त) ने सिफारिश की है कि प्राथमिक से लेकर हाई-स्कूल स्तर तक स्कूली पाठ्यपुस्तकों में देश का नाम इंडिया नहीं, बल्कि भारत होना चाहिए.

आईज़ैक ने दिप्रिंट को बताया कि समिति ने पाठ्यक्रम में “हिंदू पराजयों” पर ध्यान कम करने का भी सुझाव दिया है.

आइज़ैक ने कहा कि सात सदस्यीय समिति की “सर्वसम्मति” से की गई सिफारिश वाले सामाजिक विज्ञान के फाइनल पोज़ीशन पेपर में, जो कि एनसीईआरटी पाठ्य पुस्तकों की नींव रखने वाला एक प्रमुख दस्तावेज है, उसमें इसका ज़िक्र किया गया है.

/यह सिफ़ारिश उस बहस में एक नया आयाम जोड़ती है जो केंद्र सरकार द्वारा 5 सितंबर को राष्ट्रपति द्वारा आयोजित जी-20 रात्रिभोज के लिए “प्रेसीडेंट ऑफ इंडिया” के बजाय “प्रेसीडेंट ऑफ भारत” के नाम पर निमंत्रण भेजने के बाद शुरू हुई थी.

उससे चार दिन पहले गुवाहाटी में बोलते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि लोगों को इंडिया नहीं, बल्कि भारत नाम का इस्तेमाल करना चाहिए.

संविधान के अनुच्छेद 1(1) में कहा गया है, “इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा”. इस साल जनवरी में पद्मश्री से सम्मानित किए गए आईज़ैक ने कहा कि समिति ने विशेष रूप से सिफारिश की है कि स्कूली छात्रों को पाठ्य पुस्तकों में इंडिया के बजाय भारत नाम पढ़ाया जाए.

उन्होंने कहा, “भारत नाम का उल्लेख विष्णु पुराण में मिलता है. कालिदास ने भारत नाम का प्रयोग किया था. यह एक सदियों पुराना नाम है. इंडिया नाम बहुत बाद में तुर्कों, अफगानों और यूनानियों के आक्रमण के बाद आया.”

आइज़ैक ने कहा, “उन्होंने सिंधु नदी के आधार पर भारत की पहचान की. आक्रमणकारियों को यह सुविधाजनक लगा. मैंने इस बात पर जोर दिया कि 12वीं कक्षा तक की पाठ्य पुस्तकों में केवल भारत नाम का ही उपयोग किया जाए. अन्य सदस्यों ने इसे स्वीकार कर लिया और यह समिति का सर्वसम्मत विचार बन गया.”

आइज़ैक ने कहा, एक और पहलू जिस पर समिति ने प्रकाश डाला, वह यह है कि प्रचलित पाठ्यक्रम और पाठ्य पुस्तकें “लड़ाइयों में हिंदू हार” पर बहुत अधिक जोर देती हैं.

आइज़ैक ने कहा, “इसके विपरीत, हिंदू जीत का उल्लेख नहीं किया गया है. हमारी पाठ्य पुस्तकें हमारे छात्रों को यह क्यों नहीं सिखाती कि मुहम्मद गोरी को भारतीय आदिवासियों ने उस समय मार डाला था जब वह भारत को लूटने के बाद लौट रहा था? कोलाचेल की लड़ाई (त्रावणकोर साम्राज्य बनाम डच ईस्ट इंडिया कंपनी) हमारी पाठ्य पुस्तकों से क्यों गायब है? आपातकाल की अवधि के बारे में विस्तार से क्यों नहीं पढ़ाया जाता?”

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद के सदस्य, आइज़ैक कोट्टायम स्थित सीएमएस कॉलेज में इतिहास विभाग में संकाय के पूर्व सदस्य हैं.

वह 1975 में आरएसएस की छात्र शाखा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हुए, और आरएसएस से जुड़े थिंक टैंक भारतीय विचार केंद्रम की केरल इकाई के वर्तमान राज्य कार्यकारी अध्यक्ष हैं.

समिति के अन्य सदस्यों में आईसीएचआर के अध्यक्ष प्रोफेसर रघुवेंद्र तंवर (सेवानिवृत्त), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की प्रोफेसर वंदना मिश्रा, डेक्कन कॉलेज डीम्ड विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति वसंत शिंदे और हरियाणा सरकार स्कूल समाजशास्त्र पढ़ाने वाली ममता यादव शामिल हैं.

मिश्रा एबीवीपी के पूर्व राष्ट्रीय सचिव हैं, जबकि यादव संगठन के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं.

तंवर और यादव ने उस सुझाव पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया जिसके बारे में आइजैक ने दावा किया था कि यह सर्वसम्मत था.

आइज़ैक ने कहा कि समिति ने यह भी सिफारिश की है कि भारतीय इतिहास में प्राचीन, मध्ययुगीन और आधुनिक के रूप में अवधियों का वर्गीकरण चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए.

आइज़ैक ने कहा, “हमें प्राचीन शब्द की जगह शास्त्रीय या क्लासिकल शब्द का प्रयोग करना चाहिए. यह ऐसी चीज़ है जिसकी सिफारिश हमारा पेपर करता है,”


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‘इंडियन पुश’

आइज़ैक की अध्यक्षता वाला पैनल विभिन्न विषयों और विषयों पर स्थिति पत्र तैयार करने के लिए दिसंबर 2021 में एनसीईआरटी द्वारा गठित 25 समितियों में से एक था. इसी तरह, राज्यों ने भी नए पाठ्यक्रम और टेक्स्ट बुक डेवलेपमेंट एक्सरसाइज़ के हिस्से के रूप में एनसीईआरटी को इनपुट भेजने के लिए समान विषयों और थीम पर 25 समूहों का गठन किया था.

दिप्रिंट ने पहले बताया था कि राज्यों द्वारा गठित समितियों ने सुझाव दिया है कि नई एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों को “प्राचीन भारत की विभिन्न उपलब्धियों” से भरा जाना चाहिए. इस महीने की शुरुआत में एक अन्य रिपोर्ट में त्रि-भाषा फॉर्मूले और स्कूलों में संस्कृत की शुरूआत पर राज्यों के बीच मतभेदों को उजागर किया गया था.

सामाजिक विज्ञान पर राज्य-स्तरीय समूहों द्वारा प्रस्तुत काग़ज़ात पर एक नज़र डालने से पता चलता है कि सुझावों में सीमा पार के स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले ‘पाकिस्तान अध्ययन’ की तर्ज पर ‘भारत अध्ययन’ पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए भाजपा शासित गोवा की वकालत भी शामिल है.

इसने सुझाव दिया है कि “भारतीय ज्ञान प्रणाली पाकिस्तान में पाकिस्तान अध्ययन के समान भारत अध्ययन के तहत हमारे सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम में हो सकती है”.

इसमें कहा गया है, “भारतीय परंपराओं, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान प्रणाली पर सभी आवश्यक विषय प्रदान किए जा सकते हैं.”

भारतीय ज्ञान प्रणाली पर गहरा ध्यान राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लिए एक प्रमुख प्राथमिकता वाला क्षेत्र है, जिसके तहत सरकार भारतीय शिक्षा प्रणाली में कई सुधार लाना चाहती है.

भाजपा के नेतृत्व वाले हरियाणा ने भी प्रस्ताव दिया है कि भारत मदरसों को मुख्यधारा की शिक्षा के करीब लाने के मामले में पाकिस्तान द्वारा अपनाई गई पद्धति से सीख ले.

हरियाणा ने ‘समावेशी शिक्षा’ पर अपने स्थिति पत्र में सुझाव दिया है, “पाकिस्तान ने मदरसों या धार्मिक स्कूलों में शिक्षण को पारंपरिक स्कूलों के करीब लाने और चरमपंथी शिक्षण पर अंकुश लगाने की योजना पर सहमति व्यक्त की है.”

“उसी तरह भारतीय सरकार को योजना बनानी चाहिए कि धार्मिक स्कूलों को पंजीकृत किया जाए और अंग्रेजी, विज्ञान और गणित जैसे विषयों में पारंपरिक शिक्षण को मजबूत करने में मदद की जाए.”

“वे धार्मिक शिक्षण के लिए ज़िम्मेदार रहेंगे और बदले में उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध होना होगा कि चरमपंथी शिक्षण पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है.”

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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