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Sunday, 3 November, 2024
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दूरी या लागत नहीं, NFHS-5 ने बताई क्या है भारत में स्कूल ड्रॉपआउट की मुख्य वजह

सर्वे में शामिल करीब 36 प्रतिशत लड़कों और 21 प्रतिशत लड़कियों ने कहा कि उन्होंने स्कूल छोड़ दिया क्योंकि उन्हें ‘पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी.’ लेकिन यह कोई नया ट्रेंड नहीं है.

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नई दिल्ली: वित्तीय सहायता की पेशकश से लेकर उपयुक्त शिक्षण संसाधनों तक—केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय स्कूल छोड़ने वालों को फिर से कक्षाओं में वापस लाने के लिए पूरी गंभीरता के साथ हरसंभव उपाय करने में जुटा है, खासकर कोविड-बाद की स्थितियों के मद्देनजर.

2019-21 में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-5 के निष्कर्ष बताते हैं कि बच्चों के स्कूल छोड़ने की सबसे आम वजह लागत या पहुंच का अभाव नहीं, बल्कि पढ़ाई में रुचि न होना है. दरअसल, सर्वे के पिछले दौर में बच्चों के पढ़ाई बीच में छोड़ने का मुख्य कारण यही पाया गया था.

एनएफएचएस-5 के मुताबिक, 2019-20 शैक्षणिक वर्ष से पहले छह से 17 वर्ष की आयु की 21.4 प्रतिशत लड़कियों और 35.7 प्रतिशत लड़कों ने स्कूल छोड़ने की वजह ‘पढ़ाई में रुचि नहीं’ होना बताई थी.

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की तरफ से कराए गए इस अध्ययन के तहत मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) ने 20,084 लड़कों और 21,851 लड़कियों के स्कूल छोड़ने के कारणों का सर्वे किया था.

हालांकि एनएफएचएस भारत की ड्रॉपआउट दर का उल्लेख नहीं करता है लेकिन शिक्षा मंत्रालय के आंकड़े एक चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं, खासकर उच्च कक्षाओं के छात्रों के संदर्भ में.

यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यूडीआईएसई) की तरफ से 2020-21 में जारी नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2020-21 में प्राथमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर केवल 0.8 प्रतिशत थी लेकिन माध्यमिक स्तर (कक्षा 9-10) पर यह 14.6 प्रतिशत थी. हालांकि, 2019-20 में 16.1 प्रतिशत की स्थिति से काफी सुधार है, फिर भी यह आंकड़ा लाखों छात्रों के स्कूल छोड़ने से जुड़ा है.


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ड्रॉपआउट के प्रमुख कारण

व्यापक तौर पर माना जाता है कि गरीबी, दूरी पर स्कूल और अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति माता-पिता का नजरिया बच्चों के स्कूल में रहने या न रहने के अहम फैक्टर होते हैं.

हालांकि, एनएफएचएस के आंकड़ें बताते हैं कि तस्वीर इससे कहीं अधिक जटिल है. स्कूल छोड़ने का सबसे बड़ा कारण, जैसा पहले उल्लेख किया गया, ‘पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं होना’ है, और लड़कियों (लगभग 21 प्रतिशत) की तुलना में लड़के (लगभग 36 प्रतिशत) शिक्षा के प्रति बेहद कम उत्साहित हैं.

ग्राफिक | रमनदीप कौर

दूसरा जो सबसे बड़ा कारण सामने आया, वो है पढ़ाई पर होने वाला खर्च. लगभग 16 प्रतिशत लड़के और 20 प्रतिशत लड़कियों ने ड्रॉपआउट की यही वजह बताई.

सूची में अगली वजह थी, ‘घरेलू काम के लिए जरूरत होना.’ लगभग 13 प्रतिशत लड़कियों और 10 प्रतिशत लड़कों ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने का यही कारण बताया.

बच्चे की शिक्षा और लैंगिक आधार पर परिवार का नजरिया भी स्कूल छोड़ने की दर में एक भूमिका निभाता नजर आता है.

एनएफएचएस-5 के आंकड़ों से पता चलता है कि सर्वे में शामिल लगभग 7 प्रतिशत लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ा क्योंकि उनकी शादी होनी थी, जबकि यही कारण 0.3 प्रतिशत लड़कों पर भी लागू होता है.

ग्राफिक | रमनदीप कौर

इसी तरह, करीब 6 प्रतिशत लड़कों (और केवल 2.5 प्रतिशत लड़कियों) ने ‘नकद या वस्तु के भुगतान के लिए काम करने’ के लिए स्कूल छोड़ दिया जबकि 4.4 प्रतिशत लड़कों और 2.3 प्रतिशत लड़कियों को अपने खेतों या पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बंटाने के लिए पढ़ाई छोड़नी पड़ी.

करीब 5 फीसदी लड़कों और लड़कियों दोनों ने ‘एडमिशन’ न मिलने को वजह बताया. जबकि कुछ ने (लगभग 5 प्रतिशत लड़कों और 4 प्रतिशत लड़कियों ने) ‘बार-बार फेल होने’ को स्कूल छोड़ने की वजह बताया. करीब 4 फीसदी लड़कों और लड़कियों का मानना था कि आगे की शिक्षा ‘आवश्यक नहीं है.’

स्कूल से दूरी छात्रों के लिए कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि केवल 2 प्रतिशत लड़के और 6 प्रतिशत लड़कियों ने इसे स्कूल ड्रॉपआउट का कारण बताया.

लड़कियों के स्कूल छोड़ने के अन्य कारणों में उचित सुविधाओं का अभाव (1.7 प्रतिशत), कोई महिला शिक्षक न होना (0.2 प्रतिशत) और सुरक्षा संबंधी चिंताएं (2 प्रतिशत) शामिल हैं.

एक मामूली प्रतिशत उन लड़के-लड़कियों (दोनों में 0.2 फीसदी) का भी था जिन्होंने दावा किया कि उन्हें नहीं पता कि वे अब स्कूल में क्यों नहीं हैं.

1 प्रतिशत से भी कम छात्रों ने कहा कि उन्हें भाई-बहनों की देखभाल के लिए या किसी प्राकृतिक विपदा/आपदा के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा.


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पढ़ाई में कोई दिलचस्पी क्यों नहीं है?

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज में परिवार और पीढ़ियां विभाग के प्रमुख डॉ. टी.वी. शेखर के मुताबिक, बड़ी संख्या में उत्तरदाताओं के शिक्षा में रुचि न होने का हवाला देने के पीछे कई कारण हो सकते हैं.

उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर एक या दो कक्षाओं में फेल होने के बाद बच्चों की पढ़ाई में रुचि घट जाती है. अमूमन, ये बच्चे बेहद गरीब परिवारों से होते हैं. अगर उनके माता-पिता शिक्षा को महत्व नहीं देते हैं तो यह बच्चे की पढ़ाई में रुचि को प्रभावित करता है.’

शेखर ने कहा कि सरकार के प्रयासों से ड्रॉपआउट दर कम करने में मदद मिली है लेकिन रुचि बढ़ाने पर अभी तक कभी फोकस नहीं किया गया.

शेखर ने बताया, ‘देश में ड्रॉपआउट दर काफी घटी है क्योंकि सरकार ने बहुत सारे प्रयास किए हैं—इसमें मुफ्त और सुलभ शिक्षा से लेकर छात्रवृत्ति और स्टेशनरी, यूनिफॉर्म आदि मुहैया कराना तक शामिल है लेकिन रुचि न होने पर ध्यान देने और इस दिशा में उपयुक्त कदम उठाने की बेहद जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि स्कूल स्तर पर ही, यह समझने की कोशिश होनी चाहिए कि खराब प्रदर्शन करने वाले बच्चों की दिलचस्पी कम क्यों हो रही है और पढ़ाई में उनका विश्वास जीतने के लिए क्या किया जा सकता है. इसके लिए अतिरिक्त कक्षाएं या कुछ अन्य उपाय किए जा सकते हैं. माता-पिता की काउंसलिंग की जाना चाहिए ताकि वे भी अपने बच्चे की शिक्षा को अहमियत दें. अध्ययन के लिए रुचि में सुधार के लिए 360-डिग्री दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता होगी.’

एप्लाइड लिंग्विस्टिक्स एंड लैंग्वेज रिसर्च के पीयर-रिव्यू जर्नल में प्रकाशित 2019 के एक पेपर ने भी बच्चों के स्कूल ड्रॉपआउट होने के पीछे के कारणों का पता लगाया और ‘दिलचस्पी न होने’ को ही एक प्रमुख फैक्टर पाया.

नागार्जुन यूनिवर्सिटी की सैयद रुकैया तबस्सुम द्वारा लिखित इस अध्ययन में सिफारिश की गई है कि स्कूलों में ‘पढ़ाई के इनोवेटिव तरीकों’ और ‘अच्छे बुनियादी ढांचे’ की स्थापना के जरिये ‘छात्रों को स्कूलों के करीब लाने’ और उनमें ‘पढ़ाई के प्रति रुचि जगाने’ में मदद मिल सकती है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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