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Thursday, 21 November, 2024
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NCERT पाठ्यपुस्तक में संशोधन और राजनीति साथ-साथ चलती रही है, लेकिन इस बार मामला अलग है

भारत के स्कूली पाठ्यक्रम में चार संशोधन हुए हैं - 1975, 1988, 2000 और 2005 में - जिनमें से आखिरी संशोधन 2000 में भाजपा द्वारा राजनीति से प्रेरित सिलेबस रिस्ट्रक्चरिंग थी.

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नई दिल्ली: स्कूली पाठ्यपुस्तकों में इंडिया का नाम बदलकर “भारत” करने की एनसीईआरटी समिति की “सर्वसम्मत” सिफारिश ने राजनीतिक और सामाजिक रूप से आलोचना का तूफान खड़ा कर दिया है.

यह सब 28 दिसंबर 2021 को शुरू हुआ, जब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने चुपचाप एक अधिसूचना जारी की, जिसमें अपने पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तक विकास प्रक्रिया को दिशा देने के लिए विशेषज्ञ समितियों के एक समूह के गठन की घोषणा की गई. आज़ादी के बाद से यह पांचवीं बार शुरू किया जा रहा था.

25 समितियों में से, ‘सामाजिक विज्ञान में शिक्षा’ पर समिति का नेतृत्व इतिहासकार सीआई आइज़ैक ने किया था, जो कि केरल के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं और जो आरएसएस से लंबे समय से जुड़े रहे हैं. सात सदस्यीय समिति के दो अन्य शिक्षाविदों का भी आरएसएस संगठनों के साथ गहरा संबंध रहा है.

अगले 18 महीनों में, समिति ने कई बैठकें कीं, जिसमें देश में सामाजिक विज्ञान की एजुकेशन में पालन किया जाने वाला रोडमैप तैयार किया. इसने सितंबर 2021 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में एक अन्य 12 सदस्यीय समिति को पेपर सौंप दिया.

हालांकि, आइज़ैक समिति की सिफ़ारिशों को कभी भी सार्वजनिक नहीं किया गया. 13-25 अक्टूबर के बीच, दिप्रिंट ने तीन स्टोरीज़ पब्लिश कीं, जिसमें पहली बार आइज़ैक की अध्यक्षता वाली उप-समितियों की सिफारिशों का खुलासा किया गया. प्रस्तावों, विशेष रूप से स्कूली पाठ्यपुस्तकों में देश का नाम “इंडिया” से बदलकर “भारत” करने के प्रस्ताव ने विपक्षी दलों के साथ-साथ सिविल सोसायटी को भी नाराज़ कर दिया. कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गुट ने इस कदम को “ध्रुवीकरण” का एक उपकरण करार दिया.

राजनीतिक कार्यकर्ता, टिप्पणीकार और वर्तमान में पढ़ाई जाने वाली एनसीईआरटी की राजनीति विज्ञान की किताबों के लेखन में शामिल रहने वाले योगेन्द्र यादव ने आइज़ैक पर उनकी उन टिप्पणियों के लिए निशाना साधा जिसमें उन्होंने कहा था कि किताबों में 1975 के आपातकाल के प्रकरण को हल्के ढंग से प्रस्तुत किया गया है.

यादव ने 26 अक्टूबर को ट्वीट किया, “ऐसा लगता है कि एनसीईआरटी समिति के अध्यक्ष ने एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक नहीं पढ़ी है. बारहवीं कक्षा के लिए एनसीईआरटी राजनीतिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में आपातकाल पर एक पूरा चैप्टर है. आपातकाल के दौरान संवैधानिक, कानूनी और मानवाधिकारों के उल्लंघन के सभी विवरण प्रदान किए गए, जब तक कि इस भाजपा सरकार ने इसमें कटौती नहीं की.”

यही कारण है कि एनसीईआरटी दिप्रिंट का न्यज़मेकर ऑफ द वीक है.

आइज़ैक समिति ने यह भी सिफारिश की है कि पाठ्यपुस्तकें “मुस्लिम जीत और हिंदू हार” पर कम ध्यान केंद्रित करें, और आपातकाल जैसी स्वतंत्रता के बाद की राजनीतिक घटनाओं पर अधिक प्रकाश डालें.

“हां, हमें समय-समय पर पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों को संशोधित करने की आवश्यकता है. लेकिन इसका कारण पहले से बना ली गई धारणाएं नहीं होनीं चाहिए बल्कि इस तरह के संशोधन व्यवसायों और जीवन शैली में बदलावों से प्रेरित होकर होने चाहिए. यह एक तथ्य है कि हमारी पाठ्यपुस्तकों में उत्तर भारत की ओर एक स्पष्ट झुकाव है, जबकि दक्षिण भारत या पूर्वोत्तर के इतिहास को उतनी जगह नहीं मिली है.

इतिहासकार नारायणी गुप्ता ने कहा, “पाठ्यक्रम या पाठ्यपुस्तक संशोधन पर चर्चा का आधार हिंदू या मुस्लिम पहचान नहीं होनी चाहिए. हम किसी एक को बहुत अधिक महिमामंडित या दूसरे की बहुत ज्यादा आलोचना नहीं करनी चाहिए. उदाहरण के लिए, बच्चों को बिल्डिंग निर्माण या वास्तु कला में चोलों की उत्कृष्टता के बारे अधिक बताया जाना चाहिए.”


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राजनीति से परे

अगस्त 2022 में, केंद्र ने कस्तूरीरंगन के नेतृत्व वाली संचालन समिति द्वारा तैयार नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) – स्कूल शिक्षा जारी की, जिसमें एक वर्ष में दो बार बोर्ड परीक्षा आयोजित करने और एक सेमेस्टर प्रणाली की शुरूआत करने जैसे संरचनात्मक सुधारों की एक पूरी सीरीज़ का प्रस्ताव दिया गया था. दूसरी ओर, उप-समितियों की सिफारिशें, जिनका उल्लेख ‘पोजीशन पेपर्स’ नामक दस्तावेजों में किया गया है, पाठ्यपुस्तकों में बदलावों से संबंधित हैं.

हालांकि, करीकुलम रिवीज़न और राजनीति हमेशा साथ-साथ चलते रहे हैं. आज़ादी के बाद से, भारत के स्कूली पाठ्यक्रम में चार संशोधन हुए हैं – 1975, 1988, 2000 और 2005 में.

2005 के संशोधन 2000 में केंद्र में भाजपा के दूसरी बार सत्ता में आने के दौरान राजनीतिक रूप से प्रेरित सिलेबस रिस्ट्रक्चरिंग केबाद हुआ था. और राजनीतिक तूफान खड़ा करने वाले उन संशोधनों के पीछे तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी थे जिस पर भारतीय शिक्षा के “भगवाकरण” के आरोप लगाए गए.

एनसीईआरटी के तत्कालीन निदेशक जेएस राजपूत और छह अन्य सदस्यों के नेतृत्व में एक करीकुलम ग्रुप द्वारा तैयार एनसीएफ 2000 ने छात्रों को “विश्व ज्ञान में भारत के योगदान” को पढ़ाने पर प्रमुख जोर दिया. ‘संदर्भ और चिंताएं’ नाम के शीर्षक वाले अध्याय में कहा गया है, “यह विरोधाभासी लग सकता है, कि हमारे बच्चे न्यूटन के बारे में जानते हैं, पर वे आर्यभट्ट के बारे में नहीं जानते हैं, वे कंप्यूटर के बारे में जानते हैं लेकिन शून्य या दशमलव प्रणाली की अवधारणा के आगमन के बारे में नहीं जानते हैं… देश के पाठ्यक्रम को इस तरह से असंतुलन को सही करना होगा.“

इसमें कहा गया है कि सामाजिक विज्ञान के शिक्षण को “मानवीय और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को बढ़ावा देना चाहिए, और देश और भारतीय होने पर गर्व की भावना पैदा करनी चाहिए.”

इसने छांदोग्य उपनिषद के तत्वों को शामिल करने, वैदिक गणित की शुरूआत और आयुर्वेद और योग के ज्ञान की सिफारिश की गई है.

2004 में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद, भाजपा सरकार द्वारा लाए गए परिवर्तनों को खत्म करके पहले जैसा बनाने के लिए कदम उठाए गए. सबसे पहले, बीजेपी के कार्यकाल के दौरान एनसीईआरटी में कथित अनियमितताओं की जांच करने के लिए सेवानिवृत्त नौकरशाह एस सत्यम के तहत एक समिति का गठन किया गया था.

अपने अन्य निष्कर्षों में, समिति ने कहा कि एनसीएफ समीक्षा 2000 ने “सही प्रक्रियाओं का पालन नही किया और जब इसे जारी किया गया, तो इसमें न तो कार्यकारी समिति और न ही एनसीईआरटी की गवर्निंग काउंसिल की सहमति थी. इसे केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (सीएबीई) के समक्ष भी नहीं रखा गया.”

हालांकि, सितंबर 2002 में सुप्रीम कोर्ट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने 2:1 के बहुमत के फैसले में पाठ्यक्रम में बदलाव को बरकरार रखा था और घोषणा की थी कि एनसीएफ 2000 को असंवैधानिक घोषित करने के लिए सीएबीई से परामर्श न करना कोई आधार नहीं है.

इस बीच, सत्यम रिपोर्ट पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप शुरू होने के बावजूद, संचालन समिति के अध्यक्ष के रूप में प्रोफेसर यशपाल, जिनका 2017 में निधन हो गया, के साथ एनसीएफ 2005 को गति दी गई. इस संबंध में तत्कालीन शिक्षा सचिव बीएस बासवान का एनसीईआरटी निदेशक एचपी दीक्षित को लिखे 21 जून 2004 के पत्र से जानकारी मिलती है.

बसवान ने लिखा,“समीक्षा करते समय, आप कृपया यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि निर्धारित या समय के साथ विकसित हुई प्रक्रियाओं का उल्लंघन न हो. आप शॉर्ट-सर्किटिंग और पिछली समीक्षा को अंतिम रूप देने के दौरान अपनाई गई प्रक्रियाओं की अपर्याप्तता के संबंध में आलोचना से अवगत हैं.”

उन्होंने कहा कि “पिछले कुछ वर्षों के दौरान एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों की गंभीर एकेडमिक आलोचना हुई है. आप पहले से ही इतिहास की पुस्तकों से संबंधित विवाद से निपटने की प्रक्रिया में हैं. वर्तमान समीक्षा को कमतर आंकते हुए, आप इस प्रश्न का समाधान करना चाह सकते हैं कि नए पाठ्यक्रम ढांचे से निकलने वाली पुस्तकों को इस तरह की विकृतियों से कैसे बचाया जा सकता है.

एनसीएफ 2005 संशोधन में 280 से अधिक विशेषज्ञ शामिल थे. प्रोफेसर यशपाल के अलावा, 35 सदस्यीय संचालन समिति में कुछ प्रमुख नामों में कवि-निबंधकार अशोक वाजपेयी, प्रोफेसर वाल्सन थंपू, पूर्व एनसीपीसीआर प्रमुख प्रोफेसर शांता सिन्हा, पूर्व ईपीडब्ल्यू संपादक प्रोफेसर गोपाल गुरु और इतिहासकार रामचंद्र गुहा शामिल हैं.

‘शिक्षा के उद्देश्य’ से लेकर ‘सामाजिक विज्ञान शिक्षण’ तक के विषयों पर बीस उप-समितियां भी स्थापित की गईं. फोकस ग्रुप के लगभग 250 सदस्यों में डीयू के प्रोफेसर अपूर्वानंद, पारिस्थितिकी विज्ञानी माधव गाडगिल, कलाकार शुभा मुद्गल, शिक्षाविद् योगेन्द्र यादव और सुहास पलशिकर जैसे शिक्षाविद् शामिल थे. जेएनयू प्रोफेसर निवेदिता मेनन ने भी लैंगिक शिक्षा पर उप-समिति में ‘योगदानकर्ताओं’ में से एक के रूप में काम किया.

तब तैयार किया गया एनसीईआरटी पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकें वर्तमान में देश भर के सीबीएसई स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं. चूंकि शिक्षा समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है, इसलिए केंद्र राज्यों को एनसीईआरटी पाठ्यक्रम का पालन करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने इसे अपनाया है.

लेकिन उन पाठ्यपुस्तकों में पहले ही कई दौर के संशोधन हो चुके हैं, जिनमें 2022 भी शामिल है, जब एनसीईआरटी ने, कोविड-19 महामारी के कारण सीखने में रुकावटों के मद्देनजर छात्रों पर अध्ययन के बोझ को कम करने के लिए सामग्री को तर्कसंगत बनाने के नाम पर, कई महत्वपूर्ण चीजों को हटाया जैसे एमके गांधी की हत्या में हिंदू चरमपंथियों की भूमिका पर अंश.

आइज़ैक जैसे शिक्षाविदों के इनपुट, जिन्हें इस वर्ष भाजपा सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, महत्वपूर्ण हैं क्योंकि एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों का नया सेट, जो अगले शैक्षणिक सत्र तक बाजार में आ सकता है, उस पर वर्तमान सरकार और इसकी विचारधार की मुहर लग सकती है.

(व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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