नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हुए एक महीने से ज़्यादा हो चुका है, लेकिन अब भी लगभग 7,000 सीटें खाली हैं, खासकर ऑफ-कैंपस कॉलेजों में. इसी वजह से विश्वविद्यालय ने लगातार तीसरे साल खाली सीटों को भरने के लिए एक स्पेशल ड्राइव शुरू की है.
2023 में लगभग 6,000 सीटें खाली रह गई थीं, जबकि 2024 में करीब 3,000 सीटें नहीं भर पाई थीं.
कुछ शिक्षकों ने दिप्रिंट से बातचीत में इन खाली सीटों के लिए 2022 में शुरू किए गए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) और कॉमन सीट एलोकेशन सिस्टम (CSAS) को ज़िम्मेदार ठहराया.
विश्वविद्यालय के आंकड़ों के मुताबिक “मॉप-अप राउंड” 11 सितंबर तक चलेगा और यह कक्षा 12वीं के अंकों पर आधारित होगा. ज़्यादातर खाली सीटें ऑफ-कैंपस और ग्रामीण इलाकों के कॉलेजों में हैं.
उदाहरण के तौर पर नजफगढ़ के भागिनी निवेदिता कॉलेज में 985 में से 700 सीटें खाली हैं. इसी तरह बवाना के अदिति महाविद्यालय में 1,000 में से लगभग 600 सीटें अब भी खाली हैं.
इसी तरह जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज, कालिंदी कॉलेज, दयाल सिंह कॉलेज, भारती कॉलेज और श्यामलाल कॉलेज में लगभग 300–380 सीटें खाली हैं, जबकि देशबंधु कॉलेज में 295 सीटें खाली हैं.
शिक्षकों का आरोप है कि कई छात्र CUET रिज़ल्ट और एडमिशन प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही प्राइवेट कॉलेजों और राज्य संचालित विश्वविद्यालयों में दाखिला ले लेते हैं. हालांकि, इस ट्रेंड को लेकर कोई आधिकारिक डेटा मौजूद नहीं है.
राजधानी कॉलेज के प्रोफेसर राजेश झा ने कहा, “जब से विश्वविद्यालय प्रशासन ने CUET पर आधारित केंद्रीकृत एडमिशन सिस्टम अपनाया है, तब से हर साल प्रक्रिया बेवजह लंबी खिंच रही है और सीटें अब भी खाली रह जाती हैं. कई एडमिशन राउंड के बाद अब मॉप-अप राउंड शुरू किया गया है. यह साफ दिखाता है कि सिस्टम में गड़बड़ी है.”
उन्होंने कहा, “पहले हम अगस्त के मध्य तक एडमिशन प्रक्रिया पूरी कर लिया करते थे, लेकिन अब यह अभी भी चल रही है. कई छात्र इतने लंबे समय तक इंतज़ार नहीं करना चाहते, वह चांस नहीं लेना चाहते और कहीं और दाखिला ले लेते हैं. पहले तो दो-तीन कट-ऑफ के भीतर सीटें भर जाया करती थीं.”
दिप्रिंट ने दिल्ली विश्वविद्यालय की डीन ऑफ एडमिशन हनीत गांधी से फोन और मैसेज के ज़रिये संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन रिपोर्ट छापे जाने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला है. जैसे ही उनका जवाब मिलेगा रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
दिल्ली विश्वविद्यालय का केंद्रीकृत एडमिशन सिस्टम
कई कॉलेजों के अधिकारी, जहां सीटें खाली हैं, दिप्रिंट को बताया कि केंद्रीकृत एडमिशन प्रक्रिया में अपग्रेडेशन का प्रावधान, जिसमें छात्र को बेहतर पसंद के कोर्स या कॉलेज में स्थानांतरित किया जा सकता है अगर सीट उपलब्ध हो, के कारण सीटें खाली रह रही हैं.
पहले, कॉलेज केवल कक्षा 12 के अंकों के आधार पर छात्रों को दाखिला देते थे, अपनी कट-ऑफ जारी करते थे और अपनी अलग एडमिशन प्रक्रिया करते थे.
अदिति महाविद्यालय की प्रिंसिपल नीलम राठी ने कहा, “कॉलेज ने पहले राउंड में 750 छात्रों को एडमिशन दिया, लेकिन जब दूसरी लिस्ट जारी हुई, तो 500 से ज़्यादा छात्र अपग्रेड होकर कॉलेज छोड़ गए, केवल 250 छात्र बचे. फिर तीसरी लिस्ट में और छात्र अपग्रेड होकर चले गए.”
उन्होंने कहा, “इस वजह से ऑफ-कैंपस कॉलेजों में लगातार खाली सीटें रहती हैं. पिछले साल हमारे कॉलेज में भी कई सीटें खाली रह गई थीं.”
इसी तरह, भगिनी निवेदिता कॉलेज के एडमिशन कोऑर्डिनेटर विकास चौधरी ने कहा कि पहले राउंड में कॉलेज ने 985 में से 585 छात्रों को एडमिशन दिया.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “दूसरे राउंड में 350 छात्र चले गए और 400 नए एडमिशन हुए. अगले राउंड में फिर कई छात्र चले गए और अब हमारे पास 985 सीटों में केवल 285 छात्र बचे हैं.”
चौधरी ने कहा कि हालांकि, पुराने एडमिशन सिस्टम में भी छात्रों को कॉलेज बदलने की अनुमति थी, लेकिन पैमाना बहुत छोटा था.
उन्होंने कहा, “पहले कट-ऑफ में एक या दो प्रतिशत अंक का अंतर होता था; इसलिए केवल कुछ छात्र एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज में जाते थे. अब, ऑटोमेटेड सिस्टम के कारण बड़ी संख्या में छात्र ट्रांसफर हो रहे हैं. इसलिए ऑफ-कैंपस कॉलेजों पर इसका असर ज़्यादा पड़ रहा है.”
दयाल सिंह कॉलेज के शिक्षकों का भी यही मानना है.
कॉलेज की एडमिशन कोऑर्डिनेटर रत्नदीप कौर ने दिप्रिंट को बताया, “अपग्रेडेशन प्रक्रिया लगातार छात्रों को एक कॉलेज से दूसरे कॉलेज भेजती रहती है, लेकिन हमारे पास लोकप्रिय कोर्स जैसे बी.कॉम, पॉलिटिकल साइंस और हिस्ट्री में सीटें खाली नहीं हैं.”
‘CUET के बारे में जानकारी की कमी’
कई फैकल्टी मेंबर्स का कहना है कि CUET के बारे में जागरूकता की कमी भी एक कारण थी. अदिति महाविद्यालय की प्रिंसिपल नीलम राठी ने कहा कि कॉलेज ने पास के सरकारी स्कूलों में आउटरीच प्रोग्राम किए और पाया कि बहुत कम छात्रों को CUET के बारे में जानकारी थी.
वे बताती हैं कि पहले उनके ज्यादातर छात्र दिल्ली के आसपास के ग्रामीण इलाकों से आते थे. उन्होंने कहा, “लेकिन CUET के आने के बाद डेमोग्राफिक बदलाव आया है. आसपास के सरकारी स्कूलों के छात्र अक्सर इस परीक्षा के बारे में नहीं जानते और कई के पास प्रतिस्पर्धा करने के संसाधन भी नहीं हैं. पहले उन्हें कक्षा 12 के नंबरों के आधार पर एडमिशन मिलता था. अब हम उम्मीद कर रहे हैं कि मॉप-अप राउंड में ऐसे छात्रों को एडमिशन मिलेगा.”
मिरांडा हाउस की एसोसिएट प्रोफेसर अभा देव हबीब ने कहा कि मॉप-अप राउंड, जो कक्षा 12 के नंबरों पर आधारित है, यह दिखाता है कि पहले कई कोर्स और कॉलेज स्थानीय छात्रों को आकर्षित करते थे. उन्होंने कहा, “CUET अब एक अनावश्यक बाधा बन गया है, जिसे स्थानीय छात्र पार करने में इच्छुक या सक्षम नहीं हैं. बाहर के छात्र इन खास स्ट्रीम्स या कॉलेजों में रूचि नहीं ले सकते. यह भी हो सकता है कि एक महीना पढ़ाई का पहले ही बीत गया है, इसलिए छात्र अब शामिल होने से हिचक रहे हों.”
फैकल्टी मेंबर्स का मानना है कि एडमिशन प्रक्रिया की समीक्षा करना ज़रूरी है. दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष ए.के. भागी कहते हैं कि कॉलेजों के आसपास के इलाके पहले स्थानीय छात्रों की जरूरतों को ध्यान में रखकर कट-ऑफ सेट करते थे.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “अब ऐसी लोकलाइज्ड अप्रोच नहीं है. यह ज़रूरी नहीं कि सभी कॉलेज बाहर के छात्रों को सेवाएं दें; अधिकांश कॉलेज स्थानीय छात्रों के लिए हैं. इन अंतरालों पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है.”
भागी यह भी सुझाव देते हैं कि यूनिवर्सिटी पहले राउंड्स केंद्रीयकृत सिस्टम के जरिए करे और बाद में कॉलेजों को सौंप दे. उन्होंने कहा, “इससे कॉलेज अपनी सीटें भर पाएंगे और स्थानीय जरूरतों और मांगों को ध्यान में रख सकेंगे.”
राजेश झा ने भी कहा कि यूनिवर्सिटी को इस प्रक्रिया पर फिर से विचार करना चाहिए. उन्होंने कहा, “CUET के बावजूद, कॉलेजों को अपनी एडमिशन प्रक्रिया चलाने की अनुमति मिलनी चाहिए. केंद्रीकृत सिस्टम को हटा देना चाहिए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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