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Saturday, 21 December, 2024
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मोदी सरकार की विदेशी विश्वविद्यालय से एक साल की PG डिग्री को भारत में मान्यता देने की योजना

इस विचार के पीछे उद्देश्य भारत में शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण करना है, और एक बार पीजी डिग्री को मान्यता मिलने के बाद छात्र भारत में उच्च शिक्षा या सरकारी नौकरी के लिए आवेदन कर सकेंगे.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक नरेंद्र मोदी सरकार विदेशी विश्वविद्यालयों के एक साल के पोस्टग्रेजुएट (पीजी) प्रोग्राम को देश में मान्यता देने की दिशा में काम कर रही है.

मौजूदा समय में विदेशी विश्वविद्यालयों के ऐसे पीजी प्रोग्राम उच्च शिक्षा संबंधी कोर्स या सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने में मान्य नहीं हैं क्योंकि भारत में स्नातकोत्तर दो वर्षीय पाठ्यक्रम है. लेकिन सरकार अब पाठ्यक्रम अवधि को क्रेडिट के साथ जोड़ने के आधार पर इसे बदलने की योजना बना रही है.

एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) की महासचिव पंकज मित्तल ने दिप्रिंट को बताया कि उदाहरण के तौर पर यदि किसी विदेशी विश्वविद्यालय के एक साल के पीजी प्रोग्राम में क्रेडिट नंबर भारत में दो साल के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के समान होते हैं, तो इसे मान्य माना जाएगा.

जब कोई छात्र पाठ्यक्रम की एक निश्चित अवधि पूरी कर लेता है तो उसे निश्चित संख्या में क्रेडिट मिलते हैं, कुछ पाठ्यक्रमों के लिए एक सेमेस्टर में जहां 20 क्रेडिट होते हैं वहीं, दूसरे में कोर्स वर्क और अध्ययन समय ज्यादा होने के कारण यह 40 क्रेडिट भी हो सकते हैं.

अवधि के साथ क्रेडिट का समीकरण बनाना

एआईयू इस योजना पर काम कर रहा है, जिसे भारतीय पाठ्यक्रमों और विदेशी डिग्री के बीच समीकरण तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया है. एआईयू एक सरकारी निकाय है जो शिक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करता है.

मित्तल ने बताया, ‘ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज जैसे कई विश्वविद्यालय एक वर्ष में डिग्री दे रहे हैं, लेकिन भारत में उनकी डिग्री को बराबर की मान्यता नहीं दी जा रही है, लेकिन अब एआईयू पाठ्यक्रम की समयावधि के बजाये क्रेडिट आधारित दृष्टिकोण अपनाने पर काम कर रहा है. इसलिए अगर किसी कोर्स में पर्याप्त क्रेडिट हैं, तो हम डिग्री दे सकते हैं.’

यह उन तरीकों में से एक है जिससे सरकार भारत में शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण की दिशा में काम कर रही है, नई शिक्षा नीति में इस बिंदु को भी विस्तार से शामिल किया गया है.

मित्तल ने आगे कहा, ‘अगर हम भारत में शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण करना चाहते हैं, तो हमें अपने देश में विदेशी डिग्री को मान्यता देने में अधिक सक्रिय रुख अपनाने की जरूरत है.’


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उन्होंने भारत को एक मान्यताप्राप्त ग्लोबल स्टडी डेस्टिनेशन बनाने के लिए सरकार की तरफ से उठाए जा रहे अन्य कदमों के बारे में भी बताया.

उन्होंने कहा, ‘हम अंतरराष्ट्रीय शिक्षकों का एक कंसोर्टियम (संघ) बनाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं, जिसमें शामिल होंगे ऐसे विश्वविद्यालयों के सदस्य जिनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ भागीदारी है, अंतरराष्ट्रीय बनाने में संस्थानों का मार्गदर्शन करने में सक्षम निकाय, और ऐसे विश्वविद्यालय जो अंतरराष्ट्रीय फलक पर आना चाहते हैं, लेकिन अभी इस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं कि यह कैसे होगा.’

इस कंसोर्टियम के पीछे का विचार विश्वविद्यालयों को अंतरराष्ट्रीय बनने में मार्गदर्शन करना है, जिसमें ज्यादा टाई-अप, विदेशी संकाय खोलना, सेमेस्टर एक्सचेंज प्लान, छात्रों को एक-दूसरे के यहां भेजना और यहां तक कि संयुक्त डिग्री प्रोग्राम चलाना भी शामिल है.

भारत में परिसर स्थापित करना

एक अन्य योजना, जिस पर काम कर चल रहा है, के तहत विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने परिसर स्थापित करने की सुविधा मिलेगी. नई शिक्षा नीति में भी इसका उल्लेख है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बारे में बात की है.

शिक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि इस बारे में विचार-विमर्श शुरू हो चुका है और यह तय करने के लिए समितियां बनाई गई हैं कि योजना को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है.

अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा करने के दो तरीके हो सकते हैं. सरकार को इसके लिए विधेयक लाना होगा या नियमन करना होगा. इसके बाद हमें यह देखना होगा कि निर्धारित प्रावधानों के तहत क्या-क्या अनुमति दी जा सकती है.

अधिकारी ने कहा, ‘हमें यह भी देखना होगा कि कौन से विश्वविद्यालय भारत आने के इच्छुक हैं. हार्वर्ड और कैम्ब्रिज जैसे विश्वविद्यालय का आना मुश्किल होगा क्योंकि वे कहीं भी कैंपस नहीं खोलते हैं. हार्वर्ड तो छात्रों से यही कहता है कि यदि आप विश्वविद्यालय का अनुभव करना चाहते हैं, तो हार्वर्ड आएं. हमने हाल में कुछ शीर्ष विश्वविद्यालयों के साथ एक वेबिनार भी आयोजित था और इस दौरान वे भारत में अपने परिसर खोलने में थोड़ा अनिच्छुक नजर आए. हालांकि, संयुक्त डिग्री प्रोग्राम को लेकर अधिक सहज थे.’

उन्होंने कहा कि विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए शुल्क का नियमन भी एक कठिन कार्य होगा और भारत सरकार इस संदर्भ में ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकती है, अन्यथा यह विश्वविद्यालयों के भारत आने में बाधक होगा.

इस पूरे घटनाक्रम से वाकिफ एक अन्य अधिकारी ने भारत में विदेशी संस्थानों के कैंपस खुलने से होने वाले फायदे गिनाए.

अधिकारी ने कहा, ‘यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि विदेशी विश्वविद्यालय भारत कैसे आएंगे, लेकिन मैं आपको यह बता सकता हूं कि इसके फायदे क्या हैं और सरकार इसे क्यों तरजीह दे रही है…यदि विदेशी संस्थान भारत में अपना कैंपस खोलते हैं तो हम हर साल वो दो अरब डॉलर बचा पाएंगे जो भारतीय छात्र विदेश जाने में खर्च करते हैं. देश की मुद्रा बाहर जाने में कमी आएगी.’

उन्होंने आगे कहा, ‘दूसरा, भारत में रहन-सहन की लागत कम है, इसलिए किसी विदेशी संस्थान के भारतीय कैंपस में पढ़ने वाले छात्र की प्रति छात्र लागत कम होगी. इसके अलावा यह हमारे अपने संस्थानों के लिए भी फायदेमंद है…वह संयुक्त डिग्री प्रोग्राम चला सकते हैं. यह भारतीय संस्थानों को अधिक प्रतिस्पर्धी भी बनाएगा और वह सब उत्कृष्टता हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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