नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय की तरफ से जारी की गई नई रिपोर्ट में निर्देश दिए गए हैं कि पांच साल के बच्चे को 10 तक की गिनती, भारी/हल्के जैसे तुलनात्मक शब्दों का उचित इस्तेमाल आना चाहिए. साथ ही उन्हें अपना पहला नाम लिखना भी आ जाना चाहिए.
मंत्रालय ने पिछले सप्ताह सभी राज्यों को ‘समग्र शिक्षा योजना कार्यान्वयन’ के तहत एक अपडेटेड रोडमैप भेजा है. समग्र शिक्षा केंद्र सरकार की एक फ्लैगशिप स्कूली शिक्षा योजना है जिसका उद्देश्य स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता और बुनियादी सुविधाओं में सुधार लाना है.
शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए बुनियादी साक्षरता और न्यूमरेसी यानी आंकड़ों की समझ के संदर्भ में लर्निंग आउटकम को संशोधित किया गया है. सरकारी डॉक्यूमेंट में बताया गया है कि पांच से नौ वर्ष तक के विभिन्न आयु समूहों के आधार पर ‘ओरल लैंग्वेज’, ‘रीडिंग’, ‘राइटिंग’ और ‘न्यूमरेसी’ आदि का लर्निंग आउटकम क्या होना चाहिए.
डॉक्यूमेंट में यह बात भी रेखांकित की गई है कि बच्चों की लर्निंग को लेकर अपेक्षित नतीजे हासिल करने के लिए क्या-क्या किया जाना चाहिए, मसलन बच्चों को इस तरह पढ़ाना चाहिए जो उनके दैनिक जीवन की स्थितियों और उनके वातावरण, क्षेत्र, संस्कृति, भाषा, जातीयता और लिंग आदि से जुड़ा हो.
उदाहरण के तौर पर बच्चों को लिखित शब्द पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जहां कहीं भी यह उपलब्ध हो. चाहे वह स्कूल के नाम वाला बोर्ड हो या फिर बस स्टैंड का नाम और नंबर, विज्ञापन, होर्डिंग, दीवार के नारे, पैक सामान पर लिखी जानकारी, अखबार, टीवी कार्यक्रम आदि.
अन्य तरीकों में सेक्शन-वाइज, टार्गेटेड एप्रोच का सुझाव दिया गया है जिसे उम्र के आधार पर तय किया गया हो.
दिशानिर्देश यह भी कहते हैं कि मूल्यांकन ‘समग्र’ होना चाहिए और बच्चों को नियमित तौर पर अंकों वाले रिजल्ट के बजाये ‘समग्र प्रगति कार्ड’ दिया जाना चाहिए. रिपोर्ट कार्ड में ‘उन अद्वितीय दक्षताओं की जानकारी भी होनी चाहिए जो केवल अकादमिक नहीं हैं’ और पेंटिंग, ड्राइंग, क्ले-वर्क, खिलौना बनाने, प्रोजेक्ट और इंक्वायरी बेस्ड लर्निंग, स्टूडेंट पोर्टफोलियो, क्विज, ग्रुप वर्क, भूमिकाएं निभाने जैसे तमाम कौशलों को छात्रों की प्रगति के आकलन के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
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लर्निंग आउटकम
पांच से छह वर्ष आयु के प्री-स्कूल छात्रों को दोस्तों और टीचर्स से बात करने, समझने के साथ कविताएं/पोएम गाने, किताबों में चित्रों की मदद से कहानी पढ़ने की कोशिश करने में सक्षम होना चाहिए. साथ ही बार-बार दोहराए जाने वाले कुछ शब्दों को पहचानना और पढ़ना आना चाहिए.
सरकारी दिशा-निर्देशों के मुताबिक, उन्हें कम से कम दो से तीन अक्षरों वाले सरल शब्दों को पढ़ना आना चाहिए, स्क्रिबल/ड्रॉ और पेंट के जरिये सेल्फ-एक्सप्रेश, पेंसिल का उपयोग करने और उसे ठीक से पकड़ने और पहचानने योग्य अक्षर बनाने में सक्षम होना चाहिए. साथ ही उन्हें अपना पहला नाम पहचानने और लिखने में भी सक्षम होना चाहिए.
पहली कक्षा वाले बच्चों, जो 6-7 वर्ष के आयु वर्ग के हैं, को अर्थ समझाने के लिए किसी चीज को ड्रा करने या लिखने और अपनी वर्कशीट पर नाम लिखने, 20 तक की चीजों की गणना करने, 99 तक की संख्या पढ़ने-लिखना, दैनिक जीवन में नौ तक की संख्याओं के जोड़-घटाव और अपने आसपास मौजूद ठोस आकृतियों के संदर्भ में आकार जैसे गोल/सपाट सतह, कोने और किनारों की आदि के बारे में बताने में सक्षम होना चाहिए. उन्हें कदम, अंगुली, कप और चम्मच जैसे गैर-मानक तरीकों का उपयोग करके लंबाई और क्षमता का अनुमान लगाने में भी सक्षम होना चाहिए.
गाइडलाइन आगे कहती है कि दूसरी कक्षा वाले सात से आठ वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को दूर/पास, अंदर/बाहर, ऊपर/नीचे, बाएं/दाएं, आगे/पीछे, ऊपर/नीचे आदि जैसी शब्दावली के उपयोग करने और संख्याओं तथा आकृतियों के आधार पर सरल पहेलियां हल करने में सक्षम होना चाहिए.
तीसरी ग्रेड वाले आठ से नौ वर्ष की आयु के बच्चों को कैलेंडर पर किसी तिथि और संबंधित दिन की पहचान करने और घंटे और आधे घंटे में घड़ी पर समय पढ़ने, विभिन्न उद्देश्यों के लिए छोटे संदेश लिखने और एक्शन वर्ड्स, नेम वर्ड्स और विराम चिह्नों के उपयोग करने में सक्षम होना चाहिए. साथ ही व्याकरण के लिहाज से सही वाक्य लिखना आना चाहिए.
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